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Updated: 11 मार्च, 2021 01:08 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को नंदीग्राम (Nandigram) में चोट लग जाने के बाद अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. नंदीग्राम से ममता को कोलकाता ले जाया गया. बताते हैं, ममता बनर्जी को काफी गंभीर चोट आयी है. नंदीग्राम में अपने नामांकन के बाद ममता बनर्जी अपने चुनाव अभियान में जुट गयी थीं - और नंदीग्राम में ही उनके रुकने का भी कार्यक्रम बना था. चोट लगने के बाद ममता बनर्जी के सारे कार्यक्रम रद्द कर दिये गये.

ममता बनर्जी को चोट लगने के बाद से ही पश्चिम बंगाल में राजनीति शुरू हो गयी. ममता बनर्जी के अपने ऊपर साजिश के तहत हुए हमले के दावे को बीजेपी ने नौटंकी करार दिया, लेकिन आये दिन ममता बनर्जी से भिड़े रहने वाले राज्यपाल जगदीप धनखड़ उनका हालचाल लेने अस्पताल भी पहुंचे.

बीजेपी के पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय से लेकर ममता बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) ने भी हमले की बात तो तृणमूल कांग्रेस नेता का नाटक बताया है.

अब तक तो पश्चिम बंगाल में कार्यकर्ताओं पर ही हमले के आरोप लगते और लगाये जाते रहे हैं, लेकिन चुनावी हिंसा की राजनीति के ये नये फलक सामने आ रहे हैं.

एक तरफ ममता बनर्जी दर्द से कराह रही थीं, दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति अपना रंग दिखाने लगी - और तभी बीजेपी ने चुनाव आयोग से घटना की सीबीआई जांच कराने की मांग कर डाली.

देखा जाये तो ममता बनर्जी को लगी चोट को लेकर बीजेपी ने ठीक वैसे ही रिएक्ट किया है जैसे दिसंबर, 2020 में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हुए हमले को लेकर तृणमूल कांग्रेस नेता ने प्रतिक्रिया दी थी - बीजेपी भी अब वैसे ही और वही सवाल पूछ रही है जो तीन महीने पहले ममता बनर्जी पूछ रही थीं.

चोट तो लगी है, राजनीति की बात और है

ममता बनर्जी को नंदीग्राम में चुनाव प्रचार के दौरान लगी चोट पर तो नहीं, लेकिन बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस नेता के हमले के दावे पर सवाल जरूर उठाया है. ज्यादातर बीजेपी नेताओं ने ममता बनर्जी के दावे को ड्रामा करार दिया है.

ममता बनर्जी ने चोट के बारे में बताया, 'चार-पांच लोगों ने गाड़ी एकदम से बंद कर दी. बहुत चोट लग गई... वहां लोकल पुलिस से भी कोई नहीं था... किसी की साजिश जरूर है - ये जानबूझकर किया गया है.'

ममता बनर्जी को लगी चोट के बाद राजनीति सीधे सीधे दो धड़ों में बंटी नजर आने लगी. बीजेपी नेताओं के साथ साथ पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी भी ममता बनर्जी को लगी चोट को नौटंकी बता रहे थे. अधीर रंजन ने बंगाल की कानून व्यवस्था पर तो सवाल उठाये ही, ममता बनर्जी को लेकर कहा कि उनको तो नाटक करने की आदत है.

mamata banerjeeघायल ममता बनर्जी हमले का दावा कर अकेले पड़ीं, बीजेपी और कांग्रेस ने उठाये एक जैसे सवाल

अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि वोटों के लिए पाखंड किया जाता है. अधीर रंजन चौधरी ने ये भी कहा कि पुलिस सुरक्षा के बीच हमले की बात गले नहीं उतरती.

लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी के सपोर्ट में खड़े नजर आये. अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर ममता बनर्जी की चोट को उनके दावे के मुताबिक हमला ही माना और कड़ी निंदा की. अरविंद केजरीवाल ने घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को तुरंत गिरफ्तारी के साथ ही सजा दिये जाने की भी बात कही.

जैसे बीजेपी और कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के खिलाफ अपनी दलीलें पेश कर रहे थे, तेजस्वी यादव ने ममता के सपोर्ट में अपने तर्क दिये. तेजस्वी यादव पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ना भी चाहते थे, लेकिन ममता बनर्जी ने चुनावी गठबंधन सहयोगी के लिए सिर्फ तीन सीटें ही छोड़ीं लेकिन वो भी तेजस्वी यादव के लिए नहीं.

तेजस्वी यादव का कहना रहा कि पुलिस और पूरी मशीनरी तो चुनाव आयोग के पास है - और चुनाव आयोग के बहाने बीजेपी को भी लपेट लिया.

बीजेपी के पश्चिम बंगाल प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तो कह रहे हैं कि मजाल किसकी है जो ममता बनर्जी की तरफ आंख उठाकर देख ले. कैलाश विजयवर्गीय का कहना रहा, 'जिस तरह से तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं, किसी की हिम्‍मत नहीं होगी कि कोई ममता बनर्जी की तरफ आंख उठाकर देख ले - हमले की बात तो दूर है.

अपने साथ साथ कैलाश विजयवर्गीय ने कांग्रेस को भी जोड़ लिया, 'कांग्रेस की भी हिम्‍मत नहीं है कि वो ममता बनर्जी की तरफ आंख उठाकर देख सके.'

ये रास्ता तो ममता ने ही दिखाया है

ममता बनर्जी के दावे को मान लें तो यही लगता है कि पश्चिम बंगाल में हिंसा कार्यकर्ताओं के स्तर से ऊपर उठ कर नेताओं तक पहुंचने लगी है. कार्यकर्ताओं को तो कंट्रोल करना वैसे ही मुश्किल रहा, लेकिन अगर बड़े नेता भी ऐसी घटनाओें की जद में आने लगें तो स्थिति की गंभीरता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.

दिसंबर, 2020 की ही तो बात है, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा डायमंड हार्बर की तरफ जा रहे थे तभी उनके काफिले पर हमला हो गया. डायमंड हार्बर, दरअसल, अभिषेक बनर्जी का संसदीय क्षेत्र है. अभिषेक बनर्जी तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे हैं. यही वजह कि अभिषेक बनर्जी हमेशा ही बीजेपी के निशाने पर रहते हैं.

तीन महीने पहले जेपी नड्डा के काफिले पर हमले का आरोप तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर लगा था - और जो भी सवाल फिलहाल बीजेपी नेता उठा रहे हैं, तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी जेपी नड्डा पर हमले को लेकर पूछा करती थीं. नड्डा के काफिले पर हमले के दौरान कैलाश विजयवर्गीय को भी चोट लगी थी - और फिर केंद्रीय गृह मंत्रालय भी एक्शन में दिखा और राज्य सरकार से रिपोर्ट भी तलब की थी. केंद्र सरकार ने नड्डा के सिक्योरिटी के इंचार्ज रहे पुलिस अफसरों तक के लिए फरमान जारी कर दिया था और उस पर भी ममता बनर्जी अड़ गयी थीं.

जेपी नड्डा पर हमले को लेकर ममता बनर्जी पूछ रही थीं, 'आपके पास बहुत सारे सीआईएसएफ-बीएसएफ कमांडो हैं... फिर वे आपकी कार को कैसे छू सकते हैं?'

ये तो ऐसा लगता है जैसे बीजेपी जो कर रही है वो सब ममता बनर्जी ने ही सिखाया है. बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, 'मैं छह साल से बंगाल में राजनीति कर रहा हूं... जिस प्रकार से ममता बनर्जी वहां पुलिस से घिरी होती हैं, कोई उन पर हमला करने की सोच भी नहीं सकता... उनके कार्यकर्ताओं के ऊपर भी कोई हमला नहीं करता, ऐसा वहां माहौल है - पुलिस और अपराधियों का वहां नेक्सस काम करता है.'

साथ ही कैलाश विजयवर्गीय ने घटना की सीबीआई जांच की भी मांग कर डाली है, कहते हैं, 'अगर ऐसा हुआ है तो मैं चुनाव आयोग से अनुरोध करूंगा कि सीबीआई जांच होनी चाहिए. अगर हमला हुआ है तो कड़ी सजा मिले - मैं दावा करता हूं कि ये सहानुभूति बटोरने के लिए नौटंकी है.'

तब जैसे ममता बनर्जी केंद्रीय सुरक्षा बलों का नाम लेकर सवाल खड़े कर रही थीं, बीजेपी नेता अब पूछ रहे हैं - 'पुलिस प्रशासन क्या कर रहा था?'

इस बीच एक प्रत्‍यक्षदर्शी भी सामने आया है, लेकिन वो जो आंखों देखा हाल सुना रहा है ममता बनर्जी के खिलाफ और उनके राजनीतिक विरोधियों से इत्तफाक रखे हुए लगता है.

चश्मदीद चित्‍तरंजन दास का कहना है, 'मैं मौके पर मौजूद था. मुख्‍यमंत्री अपनी कार में अंदर बैठी हुई थीं, लेकिन कार का दरवाजा खुला था. एक पोस्‍टर से टकराकर कार का दरवाजा बंद हो गया. किसी ने दरवाजे को न तो धक्‍का दिया और न ही छुआ। दरवाजे के पास कोई भी नहीं था.'

ये तो अच्छी बात नहीं लगती. ऐसा क्यों लगता है जैसे ममता बनर्जी बयान देकर हल्की पड़ने लगी हैं. अगर राजनीति ही करनी थी तो तृणमूल कांग्रेस का कोई नेता आगे आ जाता और बिलकुल वही बयान पढ़ देता जो ममता बनर्जी ने बोला है. ममता बनर्जी हड़बड़ी नहीं दिखातीं तो पुलिस की जांच रिपोर्ट का इंतजार कर सकती थी. चोट लगने के बाद ममता बनर्जी चुप रह जातीं तो भी भारी ही पड़तीं, लेकिन थोड़ा पहले और थोड़ा अभी - ममता बनर्जी ने पूरा मौका तो बीजेपी के हाथ में ही डाल दिया है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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