New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 07 जुलाई, 2022 05:05 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

वाराणसी कोर्ट की ओर से कराए गए सर्वे में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी विवादित ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था. जिसे नकारने के लिए सोशल मीडिया पर तरह-तरह की तस्वीरों के जरिये बेशर्मी की हदों को पार कर शिवलिंग का अपमान किया जाने लगा. ये तमाम कवायदें तब अंजाम दी जा रही थीं, जब मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाए जाने की बातों के दस्तावेजी सबूत दुनियाभर के सामने हैं. और, ऐसा करने वालों में बहुत से मुस्लिम भी थे. तो, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी कवर-फायर करने के लिए भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की एक तस्वीर शेयर की थी. जिसे बाद में एक मुस्लिम महिला पत्रकार ने भी ट्वीट किया था. 

इन्हीं महुआ मोइत्रा ने एक बार फिर से हिंदू धर्म को निशाने पर लेते हुए मां काली का अपमान कर दिया. महुआ मोइत्रा ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2022 में फिल्मकार लीना मनिमेकलाई की फिल्म काली के पोस्टर को लेकर चल रहे विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि 'काली उनके लिए मांस खाने वाली और शराब पीने वाली देवी हैं.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो महुआ मोइत्रा ने लीना मनिमेकलाई का समर्थन किया था. इस बयान पर विवाद होने के बाद उनकी ही पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी उनके बयान से अपना पल्ला झाड़ लिया. लेकिन, कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस मामले में भी महुआ मोइत्रा का बचाव करते हुए कहा है कि 'उन्होंने वही कहा जो सभी हिंदू जानते हैं.'

कहना गलत नहीं होगा कि खुद को लिबरल और धर्मनिरपेक्ष जमात का मानने वाले महुआ मोइत्रा और शशि थरूर जैसे नेता हमेशा से ही हिंदू धर्म के प्रतीकों को लेकर ऐसे ही मजाक उड़ाते रहे हैं. खैर, ये तो ज्ञानवापी मस्जिद मामले में ही तय हो गया था कि महुआ मोइत्रा मजाक उड़ाने के मामले में शशि थरूर से भी कई हाथ आगे हैं. क्योंकि, उन्हें लिबरल और सेकुलर दिखते हुए अपनी पार्टी के मुस्लिम वोटबैंक को भी संभालना है. वैसे, महुआ मोइत्रा के विवादित बयान और उनके बचाव में उतरे शशि थरूर की इन प्रतिक्रियाओं को देखने के बाद आसानी से कहा जा सकता है कि लीनाओं को डरने की क्या जरूरत है, कवर-फायर देने के लिए महुआ मोइत्रा-शशि थरूर हैं ना.

 Mahua Moitra and Shashi Tharoor give cover fire on Kaali Film maker Leena Manimekalai by defaming Hindu Religionखुद को सेकुलर और लिबरल दिखाने के लिए ये नेता हिंदू धर्म पर टिप्पणी को अपना अधिकार मान लेते हैं.

क्यों सेकुलर बन कवर-फायर करने को तैयार हैं?

ये पहला मौका नहीं है, जब महुआ मोइत्रा और शशि थरूर जैसे नेताओं ने अपने विवादित बयानों के जरिये हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए एजेंडा चलाने वाली लीना मनिमेकलाई जैसी शख्सियतों का समर्थन किया हो. ज्ञानवापी मामले पर महुआ मोइत्रा का ट्वीट अभी भी इनकी ट्विटर वॉल पर मौजूद है. वहीं, शशि थरूर भी हिंदू धर्म के तालिबानीकरण से लेकर हिंदू पाकिस्तान बनाने जैसे विवादित बयान देते रहे हैं. लेकिन, अहम सवाल ये है कि महुआ-शशि जैसे नेताओं को ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ती है. तो, इसका जवाब बहुत सीधा सा है कि हिंदू धर्म की निंदा करने वाले लोगों को कवर-फायर देने के लिए. दरअसल, भारत में खुद को बुद्धिजीवी और सेकुलर मानने वाला वामपंथी धड़ा हिंदू धर्म को टारगेट करने में सबसे आगे रहता है. 

वैसे, जिन मुस्लिम महिला पत्रकार ने शिवलिंग को लेकर विवादास्पद ट्वीट किया था. वो भी इसी वामपंथी वर्ग की सदस्या मानी जाती हैं. उनके खिलाफ भी एक एफआईआर दर्ज की गई है. वहीं, हाल ही में खुद को फैक्ट चेकर कहने वाले मोहम्मद जुबैर को भी पुलिस ने धार्मिक भावनाएं भड़काने के लिए गिरफ्तार किया है. दरअसल, इन जैसे तमाम लोग हैं, जो खुद को सेकुलर का दर्जा देते हुए फ्री स्पीच के नाम पर हिंदू धर्म का मजाक उड़ाते रहते हैं. अब ऐसे लोगों पर भारतीय कानून के हिसाब से कार्रवाई होना तय है. तो, इन्हें बचाने के लिए एक आधार तैयार करने की कोशिश की जाती है. जिसमें महुआ मोइत्रा और शशि थरूर जैसे हिंदू धर्म के मानने वाले देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने को एक सामान्य सी बात साबित कर देते हैं. 

देवी काली का अपमान करने वाली महुआ मोइत्रा का बचाव करने उतरे शशि थरूर ने भी वही किया. अपने ट्वीट के जरिये शशि थरूर ने महुआ मोइत्रा के आपत्तिजनक बयान को सही साबित करने की कोशिश की. और, ऐसा कर वह भी लीना मनिमेकलाई को ही कवर-फायर दे रहे थे. लेकिन, क्या एक नेता किसी एक धर्म को निशाने पर लेकर इस तरह से अपने विचार खुलेआम जाहिर कर सकता है. शशि थरूर कहते हैं कि धर्म को एक निजी प्रैक्टिस के तौर पर छोड़ देना चाहिए. लेकिन, वे सार्वजनिक मंचों पर ऐसे आपत्तिजनक बयान को कैसे न्यायोचित ठहराएंगे?  

धर्म की निंदा को निजी बयान कैसे साबित किया जा सकता है?

पैगंबर मोहम्मद पर नुपुर शर्मा की कथित विवादित टिप्पणी को लेकर विपक्षी राजनीतिक दलों ने भाजपा को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. नुपुर शर्मा की कथित टिप्पणी के लिए विपक्षी दलों ने आरएसएस से लेकर भाजपा तक को दोषी करार दे दिया था. विपक्षी दलों ने तो यहां तक मांग कर डाली थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले पर माफी मांगनी चाहिए. वैसे, अगर विपक्षी दलों के इसी मानदंड को आधार मान लिया जाए, तो क्या महुआ मोइत्रा द्वारा भगवान शिव और देवी काली के अपमान करने के लिए तृणमूल कांग्रेस पर आरोप क्यों नहीं लगाया जाएगा? और, महुआ मोइत्रा का समर्थन करने वाले कांग्रेसी सांसद शशि थरूर की टिप्पणी को कांग्रेस से क्यों नहीं जोड़ा जाएगा?

बहुत सीधी सी बात है कि जब नुपुर शर्मा ने बयान दिया था, तो भाजपा की एक सदस्य के तौर पर ही देखी जा रही थीं. बाद में भाजपा ने नुपुर शर्मा को सस्पेंड भी कर दिया. लेकिन, महुआ मोइत्रा और शशि थरूर के मामले में उनके राजनीतिक दलों की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई. उलटा इनके बयानों से पल्ला झाड़कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली गई है. हिंदू धर्म की निंदा को निजी बयान कहकर खुद को सेकुलर साबित करने की कोशिश बहुत स्पष्ट है. दरअसल, ऐसी किसी कार्रवाई से टीएमसी और कांग्रेस को मिलने वाले मुस्लिम वोटबैंक पर प्रभाव पड़ सकता है. क्योंकि, इससे सियासी संदेश जाएगा कि मुस्लिमों के हक के लिए टीएमसी और कांग्रेस जैसी पार्टियां भी सेकुलर और लिबरल स्टेटस छोड़ने को तैयार हो गई हैं. और, ये राजनीतिक दल इसका खतरा नहीं उठाना चाहते हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय