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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 18 अप्रिल, 2021 08:00 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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महाराष्ट्र की दो घटनाएं बड़ी अजीब लगती हैं - अजीब इसलिए भी कि दोनों ही विशुद्ध राजनीति के खांचे में बड़े आराम से फिट हो जाती हैं. अफसोस की बात ये है कि ये विशुद्ध राजनीति कोविड से जूझ रहे मरीजों के बीच संजीवनी बूटी की तरह तलाशी जा रही रेमडिसिविर के अकाल पड़ने की हालत में मिलजुल कर लोक कल्याण के लिए काम करने की बजाय जिम्मेदारियों को फुटबॉल की तरह खेला जा रहा है.

एक मामला तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से फोन पर बात करने की कोशिश का है. दूसरा मामला, आधी रात को बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के थाने पहुंचने का है - और दोनों वाकयों से जो बातें निकल कर आ रही हैं वो ये हैं कि रेमडेसिविर को लेकर हर कोई जरूरी इंतजाम करने या उसमें सहयोग करने की जगह अपने राजनीतिक हित को ऊपर रखे हुए है.

हाल ही में सोनिया गांधी ने भी केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि कोविड से जुड़ी चीजों को लेकर गैर बीजेपी सरकारों, खासकर कांग्रेस शासित राज्यों के साथ भेदभाव किया जा रहा है.

मौजूदा हालात में करीब करीब पूरे देश में रेमडेसिविर और ऑक्सीजन की किल्लत महसूस की जा रही है, अस्पतालों में बेड और एडमिट किये जाने जैसी चीजें तो पीछे छूट चुकी हैं. हालात तो सभी जगह मिलते जुलते ही हैं, लेकिन महाराष्ट्र दिल्ली और यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश के कई शहरों में भयावह स्थिति हो चली है.

महाराष्ट्र की राजनीति में गठबंधन सरकार के मंत्री नवाब मलिक हंगामा किये हुए हैं. नवाब मलिक प्रवक्ता तो एनसीपी के हैं, लेकिन फिलहाल उद्धव ठाकरे सरकार की तरफ से मोर्चा संभाले हुए हैं.

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक का आरोप है कि केंद्र सरकार की तरफ से कुछ रेमडिसिविर सप्लायर पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे महाराष्ट्र को दवा का स्टॉक न भेजें.

पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र सरकार पर बड़ा आरोप जड़ दिया है कि एक रेमडेसिविर सप्लायर को सिर्फ इसलिए तंग किया जा रहा है क्योंकि वो कुछ बीजेपी नेताओं से मिला था.

एक फोन कॉल - जैसे कोई खुला पत्र हो!

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कार्यालय से एक बड़ा दिलचस्प बयान जारी किया गया - ये बयान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टेलीफोन के जरिये बात करने के असफल प्रयास को वैसे ही पेश किया गया जैसे कोई खुला पत्र मीडिया के जरिये या सोशल मीडिया पर सार्वजनिक किया जाता है.

जैसा कि बयान में भी बताया गया था और एनसीपी नेता नवाब मलिक ने भी कहा - मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पोन पर प्रधानमंत्री से बात करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन बताया गया कि वो पश्चिम बंगाल के दौरे पर हैं और जब लौट कर आएंगे तो बात हो जाएगी.

मानना पड़ेगा महाराष्ट्र सरकार और नवाब मलिक को इतनी महत्वपूर्ण जानकारी लोगों को बयान जारी कर देने के लिए. पारदर्शिता की ऐसी मिसाल देखने को तो कम ही मिलती है.

महाराष्ट्र सरकार को भला ये बताने की जहमत उठाने की जरूरत क्यों पड़ी? और दिल्ली से जो बताया गया था उसमें ऐसा क्या गलत रहा जो लोगों को बता कर संदेश देने की कोशिश की गयी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम तो पहले से ही तय था और बीजेपी की तरफ से बताया भी गया था. वैसे भी प्रधानमंत्री का कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं था जिसके बारे में किसी को मालूम न हो या बताया जाना जरूरी न हो - वो जहां भी रहे नेशनल टीवी पर लाइव ही नजर आ रहे थे.

अब पश्चिम बंगाल का ये चुनावी दौरा कोई प्रधानमंत्री के रूप में तो था नहीं, वो तो बीजेपी के स्टार प्रचारक की हैसियत से चुनावी रैली कर रहे थे. कोरोना के मामलों को लेकर किसी को ऐसी रैलियों से ऐतराज हो तो बात और है.

narendra modi, uddhav thackeray, devendra fadnavisचुनाव पश्चिम बंगाल में हो रहे हैं, लेकिन कोरोना पर पॉलिटिक्स महाराष्ट्र में हो रही है!

प्रधानमंत्री के लिए फोन रिसीव करने वाले ने भी ऐसी कोई बात तो कही नहीं थी कि किसी को शिकायत होती. उसका तो यही कहना था कि लौटेंगे तो बात हो जाएगी - और ये बात भी महाराष्ट्र सरकार की तरफ से ही बतायी गयी है.

अगर बात करना इतना ही जरूरी था तो उद्धव ठाकरे खुद फोन मिलाकर बात कर सकते थे. अगर सीधे संभव न भी होता तो प्रधानमंत्री के आस पास रहे किसी न किसी बीजेपी नेता से संदेश भिजवाया जा सकता था कि बात करना जरूरी है.

अब अगर ये सब करने पर भी कोई रिस्पॉन्स नहीं मिलता, फिर तो सरकार का हक बनता था कि वो लोगों को बताती कि केंद्र को कैसे महाराष्ट्र के लोगों की कोई फिक्र नहीं है.

महाराष्ट्र सरकार ने जो जानकारी फोन पर हासिल की वो तो कोई भी न्यूज चैनल देख कर मालूम किया जा सकता था. और कुछ नहीं तो फोन मिलाने से पहले भी एक बार टीवी पर स्टेटस चेक किया जा सकता था.

अब टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन भी बीजेपी को टारगेट करने के लिए इसे बहाना बना रहे हैं. डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने ऑक्सीजन सप्लाई के लिए प्रधानमंत्री को फोन किया था, लेकिन उनको पता चला कि प्रधानमंत्री तो पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार कर रहे हैं.

हद है, शिकायत तो ऐसे जतायी जा रही है जैसे सारा काम छोड़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी की तरह एक बार फिर छुट्टी मनाने निकल पड़े हों - और अपने हिस्से की चुनावी रैलियां दूसरों के मत्थे मढ़ गये हों. वैसे राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल में आगे की अपनी चुनावी रैलियां कोरोना वायरस फैलने से रोकने की कोशिश में रद्द कर दी है.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी गैर बीजेपी शासित राज्यों के साथ भेदभाव करने का मोदी सरकार पर आरोप लगाया था. सोनिया गांधी का इल्जाम है कि कांग्रेसी और कांग्रेस के सहयोगी मुख्यमंत्रियों ने कई बार प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर आवश्यक सामानों की डिमांड की, लेकिन केंद्र सरकार पूरी तरह चुप्पी साधे हुए है. सोनिया का कहना रहा, कई राज्यों में वैक्सीन, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन तक नहीं हैं - और ये भी देखने को मिल रहा है कि कुछ राज्यों को इस मामले में तरजीह दी जा रही है.

वैसे सिर्फ महाराष्ट्र की कौन कहे, मध्य प्रदेश के शहडोल मेडिकल कॉलेज से खबर आयी है कि ऑक्सीजन के अभाव में वहां 12 मरीजों ने दम तोड़ दिया. हो सकता है ऑक्सीजन की कमी की बात वैसे ही नकार दी जाये जैसे 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत के मामले में हुआ - और ये भी सुनने को मिले कि कि अप्रैल-मई में तो लोग कोरोना से मरते ही हैं. तब बच्चों की मौत का महीना अगस्त बताया गया था. मध्य प्रदेश के एक मंत्री ने तो अभी अभी कहा ही था कि मौत तो होनी ही है, चाहे ऐसे वैसे हो या फिर कोरोना से.

सोनिया गांधी के आरोपों के हिसाब से देखें तो मध्य प्रदेश में तो ऐसी हालत नहीं ही होनी चाहिये - क्योंकि वहां तो पिछले साल से ही कांग्रेस की सरकार नहीं है कि भेदभाव जैसी आरोपों को हवा मिले. मध्य प्रदेश में तो बीजेपी की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं.

ऐसा ही एक मामला बिहार से आया है. बिहार में भी नीतीश कुमार की एनडीए की ही सरकार है जिसमें ज्यादा बोलबाला बीजेपी का ही है. लेकिन ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी से तंक आकर नालंदा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक ने सरकार को पत्र लिख कर कार्यभार से मुक्त करने का आग्रह किया है - और कहा है कि ऐसा हुआ तो वो आजीवन आभारी रहेंगे.

अस्पताल के एमएस डॉक्टर विनोद कुमार सिंह ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत को पत्र लिख कर बताया है कि अस्पताल में कोविड-19 के मरीजों के इलाज के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर की भारी कमी बनी हुई है.

मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट के पत्र के बाद बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के छद्म विकास का इसे नतीजा बता रहे हैं. पिछली बार मजदूरों की वापसी के दौरान नीतीश कुमार ने जो ढिलाई दिखायी उसकी बात और है, लेकिन अभी जबकि पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है, नीतीश कुमार का छद्म विकास कहां से आड़े आ रहा है.

आधी रात को फडणवीस थाने पहुंचे

महाराष्ट्र में 17 अप्रैल को रात करीब साढ़े ग्यारह बजे रेमडेसिविर पर नये सिरे से राजनीतिक हंगामा शुरू हो गया, जब पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस विले पार्ले थाने पहुंच गये. बताते हैं कि मुंबई पुलिस ने एक फार्मा कंपनी के डायरेक्टर को हिरासत में ले लिया था. फडणवीस के साथ विधान परिषद में विपक्ष के नेता प्रवीण दरेकर भी रहे. तभी खबर मिली कि हिरासत में लिये गये फार्मा कंपनी के अधिकारी को बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स थाने ले जाया जा रहा है, फिर बीजेपी नेताओं का थाने में जमावड़ा शुरू हो गया.

आधी रात को ही देवेंद्र फडणवीस ने मीडिया के सामने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार ने दमन के एक रेमडेसिविर सप्लायर को परेशान कर रही है - क्योंकि महाराष्ट्र में इस दवा की सप्लाई के लिए बीजेपी नेताओं ने उससे संपर्क साधा था.

देवेंद्र फडणवीस ने कहा, 'दमन की फार्मा कंपनी रेमडेसिविर की निर्यातक है. महाराष्ट्र में इस दवा की कमी को देखते हुए हमने उससे संपर्क साधा था और इसकी खेप राज्य में भेजने को कहा था. हमने इस बारे में राज्य के खाद्य और एफडीए मंत्री राजेंद्र शिंगणे को सूचित किया था - और जरूरी अनुमति के लिए केंद्र सरकार से संपर्क किया था.'

देवेंद्र फडणवीस के मुताबिक, कंपनी की तरफ से बताया गया कि अगर केंद्र और राज्य सरकारें मंजूरी दें तो वे पूरा माल महाराष्ट्र को बेच देंगे.'

नवाब मलिक का अलग ही आरोप है, कहते हैं, 'कंपनियों को धमकी दी जा रही है कि अगर वो महाराष्ट्र को ये इंजेक्शन देंगी तो उनका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा.'

एक बात और भी अजीब लग रही है. चाहे वो उद्धव ठाकरे के प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत की असफल कोशिश का मामला हो या फिर रेमडेसिविर पर का - आखिर नवाब मलिक मोर्चा क्यों संभाले हुए हैं, संजय राउत क्यों नहीं?

अगर उद्धव ठाकरे ने संजय राउत के शरद पवार और अमित शाह की मुलाकात को लेकर बयान के बाद पर कतर दिये हों तो शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता बनाये गये अरविंद सावंत भी तो बोल सकते थे. नवाब मलिक तो एनसीपी के प्रवक्ता हैं.

और अगर सरकार की तरफ से बोलने की बात है तो सरकार के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे को आगे आना चाहिये था - क्योंकि मामला तो उनके विभाग का ही है.

फिर तो सवाल ये भी उठता है कि कहीं इन मामलों का भी रिमोट कंट्रोल भी एनसीपी मुख्यालय तो नहीं है? जब से अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई की जांच पड़ताल शुरू हुई है, जाहिर है पॉलिटिकल काउंटर के लिए उपाय तो खोजे ही जा रहे होंगे. वैसे भी उद्धव सरकार का रिमोट कंट्रोल तो एनसीपी प्रमुख शरद पवार के हाथ में भी माना जाता रहा है.

ऐसा तो नहीं कह सकते कि शिवसेना में खामोशी छायी हुई है, एक वायरल वीडियो में बुलढाणा से शिवसेना विधायक संजय गायकवाड़ को ये कहते हुए सुना गया है - 'अगर मुझे कोरोना के कीटाणु मिलते तो देवेंद्र फडणवीस के मुंह में डाल देता.'

एनसीपी नेता नवाब मलिक भी तो कुछ ऐसी ही सलाह दे रहे हैं. नवाब मलिक का कहना है कि जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी का फोटो वैक्सीन सर्टिफिकेट पर लगाया गया है, हम मांग करते हैं कि एक फोटो को कोविड मरीजों के डेथ सर्टिफिकेट पर भी लगाया जाना चाहिये - अगर वो कोविड वैक्सीन का क्रेडिट ले रहे हैं, तो मौतों की जिम्मेदारी भी लेनी होगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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