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Updated: 16 जून, 2017 10:08 PM
हिमांशु मिश्रा
हिमांशु मिश्रा
 
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2017 में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए का राष्ट्रपति पद उम्मीदवार कौन होगा इसको लेकर देश के सभी सियासी गलियारो में चर्चा है.

एनडीए में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए जिन नामों की चर्चा है वह हैं- पूर्व उप प्रधानमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनहोर जोशी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन, केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत, मणिपुर की राज्यपाल  नज़मा हेपतुल्ला, झारखंड की राज्यपाल दोरूपती मुर्मू, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस और केरल के राज्यपाल सदाशिवम्म, गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनन्दी पटेल और बिहार से सांसद हुकुम देव नारायण यादव हैं.

president-candidate-_061517061251.jpgकौन बनेगा राष्ट्रपति

सूत्रों की मानें तो इन्हीं नामों में से एक राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार होगा और एक उपराष्ट्रपति पद का. इन सभी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति क्यों बनाया जाना चाहिये इसके पीछे नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के पास अपने अपने तर्क हैं और किस उम्मीदवार को आगे करने से सरकार और पार्टी को क्या फायदा मिल सकता है इसके कारण भी हैं.

लालकृष्ण अडवाणी और मुरली मनोहर जोशी

सूत्रों की मानें तो इस बार संघ देश के दोनों सर्वोच्च पदों पर अपनी विचारधारा से जुड़े हुए व्यक्तियों को देखना चाहता है. इसलिए राष्ट्रपति पद के लिए लालकृष्ण अडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की दावेदारी है, बावजूद इसके कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों नेताओं पर बाबरी मस्जिद विध्वंस षड्यंत्र मामले एक बार फिर सीबीआई की अदालत में केस चलाये जाने की अनुमति दी उसके बाद भी इनकी स्थिति मजबूत मानी जा रही है.

lal Krishna Adwani, Murlimanohar Joshiराषट्रपति पद के प्रबल दावेदार

पूरा देश ये भी जनता है कि इन दोनों वरिष्ठ नेताओं ने मोदी सरकार बनने के बाद कई बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व पर सवाल उठाये हैं. लेकिन इसके बावजूद संघ इन दोनों नेताओं के नाम की पैरवी कर रहा है. क्योंकि संघ का मानना है कि इन दोनों नेताओं की पार्टी के यहां तक पहुंचने में बहुत बड़ी भूमिका है. सूत्रों का ये भी कहना है कि संघ का ये भी मानना है कि इनको उम्मीदवार बनाया गया तो इससे पार्टी में और आम जनता के बीच एक अच्छा संदेश जाएगा.

सुषमा स्वराज

sushma Swaraj

सुषमा स्वराज इन पदों के लिए सबसे उपयुक्त नाम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि वो विदेश मंत्री के साथ साथ पार्टी की तेजतर्रार नेता हैं इसके साथ उनके पास लंबा संसदीय अनुभव और देश की महिलाओं में सुषमा स्वराज की अलग छवि है. विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज के काम की सहारना प्रधानमंत्री के साथ-साथ कई विपक्षी दलों के नेता भी कर चुके हैं. पिछले दिनों खराब स्वास्थ्य होने के चलते उन्होंने घर से ही मंत्रालय के कामकाज को देखा. सुषमा स्वराज के पक्ष में जो जाता है वो ये कि पार्टी की कद्दावर नेता होने के साथ-साथ वो महिला हैं, वो भी ब्रह्माण. लेकिन ललित मोदी को मदद करना और उनका स्वास्थ्य उनके खिलाफ जा सकता है.

सुमित्रा महाजन

Sumitra Mahajan

सुमित्रा महाजन लोकसभा स्पीकर होने के साथ-साथ इंदौर से लगातार सात बार सांसद हैं उनके साथ कभी भी कोई विवाद नहीं रहा है. पिछले तीन सालों में जिस तरह से उन्होंने लोकसभा को चलाया है उससे प्रधानमंत्री और अमित शाह समेत सभी उनके काम से प्रसन्न हैं. एक और बात उनके पक्ष में जाती है, वो है अगले साल अंत में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं, अगर उन्हें उम्मीदवार बनाया जाता है तो पार्टी को इसका फायदा जरूर मिलेगा. सुमित्रा महाजन भी महिला होने के साथ-साथ ब्राह्मण भी हैं. एक और बात उनके पक्ष में जाती है जो उनकी खूबी है, उनका सदन को सुचारू रूप से चलना. उनके बाद सदन को इतने अच्छे से चलाने वाला स्पीकर शायद सरकार को वर्तमान में ना मिले. उनकी उम्मीदवारी में सबसे बड़ी रुकावट ये है कि लोकसभा स्पीकर जैसे बड़े पद से उन्हें पहले ही नवाजा जा चुका है.

थावरचंद गहलोत

Thawarchand Gehlot

थावरचंद गहलोत दलित होने के साथ-साथ मोदी सरकार में एक लो प्रोफाइल कैबिनेट मंत्री हैं जिनके काम से प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय बहुत संतुष्ट रहता है. गहलोत बीजेपी की सबसे पावरफुल बॉडी संसदीय बोर्ड के भी सदस्य भी हैं और गहलोत कभी भी किसी विवाद में नहीं रहे हैं. गहलोत भी मध्यप्रदेश से आते हैं जहां अगले साल अंत में चुनाव हैं. पार्टी अगर गहलोत को दलित चेहरे के तौर पर पेश करके उम्मीदवार बनाती है पार्टी को अगले साल विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी फायदा मिल सकता है. लेकिन थावरचंद गहलोत के बीजेपी के दलित नेता होने के बावजूद भी देशभर के दलितों में उनकी उतनी पकड़ नहीं जितनी पार्टी को उम्मीद हैं.

नज़मा हेपतुल्ला

Najma Heptulla

नज़मा हेपतुल्ला पार्टी के पास एक अल्पसंख्यक चेहरा हैं जो महिला भी हैं. नज़मा हेपतुल्ला मोदी सरकार में दो साल अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री रही हैं. नज़मा के पक्ष में एक बात जाती है, उनके सम्बंध यूपीए के दलों में भी हैं, अगर उन्हें राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाता है तो एनडीए को इसका फायदा जरूर मिलेगा. वो राज्यसभा की काफी लंबे समय तक डिप्टीचैरयमेन भी रही हैं. राज्यसभा में सरकार अल्पमत में है ऐसे में नज़मा का अनुभव सरकार और पार्टी के काम आ सकता है. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को लगता है कि इस समय ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम वोटर के बीच दरार डालकर बीजेपी के खिलाफ वोट प्रतिशत में कमी लाई जा सकती है. ऐसे में कोई और मुस्लिम और महिला चेहरा, नज़मा हेपतुल्ला से अच्छा पार्टी के पास नहीं है. शायद संघ में मुस्लिम होने कारण उनके नाम पर सहमति नहीं बन पाए, दूसरा वो कांग्रेस 2004 में छोड़कर बीजेपी में आई थीं.

द्रौपदी मुर्मू

Draupadi Murrmu

द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा की रहने वाली हैं और आदिवासी कम्यूनिटी से हैं. उड़ीसा, झारखंड , छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में आदिवासी हार और जीत तय करते हैं. ऐसे में पार्टी में उनके नाम पर विचार हो सकता है, लेकिन वो उतनी बड़ी आदिवासी नेता नहीं हैं जो उड़ीसा छोड़कर किसी अन्य राज्य में प्रभाव रखती हों.

पी सतशिवम्

P.Sathashivam

केरल के राज्यपाल पी सतशिवम सुप्रीम कोर्ट पूर्व चीफ जस्टिस हैं और साउथ से आते हैं, और जाति से दलित भी हैं. प्रधानमंत्री से उनकी काफी नजदीकी भी है. कानूनी मामलों पर अगर पीएम मोदी वित्त मंत्री अरुण जेटली के अलावा किसी से सलाह लेते हैं तो वो सदा शिवम् ही हैं. अगर उन्हें उम्मीदवार बनाया जाता है तो विपक्ष ये मुद्दा बना सकता है. उन्होंने अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी को कोर्ट केस में मदद की थी अब उन्हें उस मदद का हिसाब चुकता किया जा रहा है. उनके पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है.

आनन्दी बेन पटेल

Anandiben Patel

आनन्दी बेन पटेल प्रधानमंत्री की गुडबुक्स में बहुत ऊपर हैं. पिछले साल गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद से हाशिये पर हैं, लेकिन वो हमेशा प्रधानमंत्री की विश्वासपात्र रही हैं इसलिए उनकी लाटरी लग सकती है. गुजरात की मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी बेटी पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे थे जिसके चलते उन्हें समय से पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. सूत्रों की मानें तो आनन्दी बेन पटेल का अमित शाह से छत्तीस का आंकड़ा है, ऐसे में उनका गणित बैठना मुश्किल है.

हुकुमदेव नारायण यादव

Hukumdev narayan Yadav

लालू यादव और नीतीश कुमार को साधने के लिए बीजेपी ने बिहार से एक नया नाम उछाला है हुकुमदेव नारायण यादव का. हुकुम देव यादव जाति से ओबीसी हैं. प्रधानमंत्री उन्हें उनकी सादगी के कारण बहुत पसंद करते हैं. लेकिन उनके खिलाफ सिर्फ एक ही बात जाती है कि उन्होंने बिहार में हार के लिए आरआरएस प्रमुख मोहन भागवत को ही जिम्मेदार ठहराया था.

अब देखना है कि अमित शाह ने जो राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और वेंकैया नायडू की तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है वो विपक्ष के कितने दलों को इनमें से किसी भी नाम पर सहमत कर पाते हैं.

पिछले दो राष्ट्रपति चुनाव में किसी ना किसी कारण से शिवसेना ने एनडीए उम्मीदवार के खिलाफ ही वोट किया है. इसबार भी शिवसेना ने आरआरएस प्रमुख मोहन भागवत को उम्मीदवार बनाया जाए ऐसा बयान दिया है. एनडीए में शिवसेना बीजेपी के नाम सहमत हो ये कहना अभी थोड़ा मुश्किल है.

एनडीए का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन होगा इसका अंतिम फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को करना है. पीएम मोदी को जानने वाले कहते हैं कि उनके फैसलों से फायदा मिलता है वो भी ब्याज के साथ.  इसलिए वो हमेशा फैसले विपक्ष की चाल और समय की मांग को देखकर करते हैं.

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लेखक

हिमांशु मिश्रा हिमांशु मिश्रा

लेखक आजतक में पत्रकार हैं.

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