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Updated: 15 जून, 2017 04:50 PM
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राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी अपनी रणनीति के हिसाब से आगे बढ़ रहे हैं. उम्मीदवार के नाम की घोषणा को लेकर जो स्थिति बन रही है वो भी 'पहले आप-पहले आप' जैसी नजर आ रही है.

सोनिया गांधी के साथ साथ विपक्ष की ओर से इस दिशा में पहल कर रहे येचुरी जहां इसे राजनीतिक लड़ाई में तब्दील करने के पक्ष में हैं वहीं विपक्ष का एक धड़ा सत्ता पक्ष की ओर से नाम का इंतजार करना चाहता है.

विपक्ष किसी नतीजे पर पहुंचे उससे पहले ही अरविंद केजरीवाल को अलग थलग किया जा चुका है, बाकियों पर बीजेपी लगातार डोरे डाल रही है. बीजेपी नेताओं की तिकड़ी एक्टिव हो चुकी है जिसकी पहली और आखिरी कोशिश है - वो सारे हथकंडे आजमाना जिससे विपक्ष में फूट पड़ जाये.

'पहले आप, पहले आप' वाली उलझन

बीजेपी ने विपक्षी नेताओं से बातचीत के लिए जो कमेटी बनाई है उसमें वेंकैया नायडू पहले ही सक्रिय हो चुके हैं. केंद्रीय मंत्री नायडू पीएमके नेता अंबुमणि रामदौस, बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्रा, पुड्डुचेरी के ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस नेता एन रंगास्वामी, टीआरएस नेता जितेंद्र रेड्डी, एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल और वायआरएस कांग्रेस नेता जगनमोहन रेड्डी से बात कर चुके हैं. अब तक यही संकेत हैं कि जगनमोहन रेड्डी बीजेपी के साथ जा सकते हैं. खबर है कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह को ममता बनर्जी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को नीतीश कुमार से बातचीत का असाइनमेंट मिला हुआ है. राजनाथ को मिली लिस्ट में शिवसेना और नॉर्थ ईस्ट की पार्टियां भी हो सकती हैं जबकि वेंकैया को दक्षिण की पार्टियों से संपर्क करने की जिम्मेदारी मिली हुई है.

presidential electionविपक्ष को तोड़ने का तिकड़म...

बीजेपी के इस प्रयास को विपक्ष का एक खेमा महज औपचारिकता मान कर चल रहा है - और ऐसे नेताओं की सलाह है कि विपक्ष को बगैर सत्ता पक्ष का इंतजार किये अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर देनी चाहिये.

विपक्ष में गुलाम नबी आजाद जैसे नेता सत्ता पक्ष के कदम के इंतजार के पक्षधर हैं, जबकि सीताराम येचुरी सीधी सियासी जंग की तैयारी में जुटे हुए हैं. विपक्ष की उस मीटिंग में कुछ देर के लिए माहौल थोड़ा गर्म भी हो गया जब अपनी अपनी बातों को लेकर आजाद और येचुरी में बहस होने लगी.

दरअसल, येचुरी राष्ट्रपति चुनाव को इस बार 'गांधी बनाम गोडसे' या कहें कि 'सेक्युलर बनाम कम्युनल' की लड़ाई बनाने की वकालत कर रहे हैं. यही वजह है कि येचुरी पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं. एक इंटरव्यू में भी येचुरी ने कहा था कि उम्मीदवार को लेकर विपक्ष लगभग सहमत हो चुका है, लेकिन कुछ नेता सरकार की ओर से पहल का इंतजार कर रहे हैं. वस्तुस्थिति तो अब भी यही बता रही है कि विपक्ष में इस बात को लेकर अब भी यथास्थिति ही बनी हुई है.

सरकार और विपक्ष में बीच बातचीत में भी कम पेंच नहीं है. कांग्रेस के कुछ नेताओं की दलील है कि सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से तीन सदस्यों की जो कमेटी बनाई गयी है उससे डील भी आलाकमान की जगह उनके प्रतिनिधि ही करें. इस बात के पीछे तर्क है कि अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर खुद उन्होंने सोनिया गांधी से मुलाकात की थी. हालांकि, ये दलील भी अपने आप खारिज हो जाती है क्योंकि पिछली बार सत्ताधारी कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी का नाम तय करने के बाद ही विपक्ष से संपर्क किया था.

पसंद, नापसंद और मजबूरियां

जिस तरह केजरीवाल विपक्षी गोलबंदी से बाहर हैं वैसी ही संभावना है कि शिवसेना इस बार भी एनडीए से दूर ही रहेगा. ये सोच कर विपक्षी दल बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना को अपने खेमे में मिलाने की कोशिश में जुटे हैं. हालांकि, विपक्ष के कई नेताओं को लगता है कि शिवसेना पक्ष और विपक्ष के फेर में पड़ने की जगह उम्मीदवार का नाम सामने आने पर कुछ भी फैसला ले सकती है. शिवसेना का ट्रैक रिकॉर्ड भी यही कहता है - पिछले चुनावों में दूसरे उम्मीदवार होते तो, संभव है शिवसेना का स्टैंड भी अलग होता.

मराठी फैक्टर पर वैसे तो पेटेंट की दावेदारी शिवसेना की ही रहती है, लेकिन सुना है एनसीपी ने कहा है कि अगर सत्ता पक्ष की ओर से ऐसा कोई कैंडिडेट आया तो उसका समर्थन करना उसकी मजबूरी होगी. जाहिर है एनसीपी भी इस आधार पर विपक्ष का साथ छोड़ देगा.

एनसीपी की ही तरह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने भी तकरीबन साफ कर ही दिया है कि अगर बीजेपी सुषमा स्वराज या किसी महिला को मैदान में उतारा तो उसके लिए विरोध करना मुश्किल होगा. बीते दिनों पर गौर करें तो बीजेपी की ओर से सुमित्रा महाजन से लेकर दौपदी मुर्मू तक के नाम के संकेत दिये जा चुके हैं. मुर्मू की अहमियत ओडिशा चुनाव के चलते भी बढ़ जाती है. अगर ऐसा हुआ तो नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी के लिए तो विरोध नामुमकिन ही होगा.

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