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Updated: 24 दिसम्बर, 2019 11:00 PM
सुजीत कुमार झा
सुजीत कुमार झा
  @suj.jha
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झारखंड में बीजेपी की हार (BJP Performance In Jharkhand) का सीधा असर बिहार (Jharkhand results impact on Bihar election) में भी देखने को मिलेगा. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू (JDU) को अपनी बराबरी में खड़ा करने के लिए सीटों की कुर्बानी दी थी. जेडीयू उस एहसान के तले अपने को दबा महसूस कर रहा था. यही वजह है कि जब केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू को सिर्फ एक मंत्री बनाने का मौका दिया तो जेडीयू ने बड़ी ही विनम्रता से उसे ठुकरा दिया. लेकिन झारखंड में बीजेपी को लगे झटके से जेडीयू को इससे उभरने का मौका जरूर मिल गया है. लोकसभा चुनाव के ठीक बाद हुए तीन राज्यों के चुनाव से यह साफ हो गया था कि लोकसभा चुनाव की बैटिंग पिच अलग है और राज्यों की अलग. अगर ऐसा नहीं होता तो हरियाणा में बैसाखी के सहारे सरकार बनना, महाराष्ट्र में शिवसेना का गठबंधन से अलग हो जाना और झारखंड में गठबंधन न करने के कारण बीजेपी को जोर का झटका नहीं लगता.

झारखंड चुनाव, बिहार, नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, अमित शाह, Jharkhand  झारखंड में जो परिणाम भाजपा के आए हैं उसका फायदा नीतीश कुमार को मिलेगा अब शायद ही भाजपा उनपर दबाव बना पाए

दरअसल लोकसभा में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद बीजेपी को धीरे धीरे ये गुमान होने लगा था कि राज्यों में वो अकेले हाथ आजमा सकती है. महाराष्ट्र में झटका खाने के बाद झारखंड में इसका प्रयोग किया गया. अगर झारखंड में यह प्रयोग सफल हो जाता तो यक़ीनन इसकी आज़माइश बिहार में की जाती. यदि ऐसा होता तो जेडीयू के लिए मुश्किलें हो सकती थीं तब शायद उसे कोई और रास्ता तलाशना पड़ता लेकिन अब शायद ये न हो.

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए विधानसभा का चुनाव लड़ेगी. इसका ऐलान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी कर चुके हैं. और यह भी सही है कि रघुवर दास के मंत्रिमंडल में रहे सरयू राय का टिकट उनकी नीतीश कुमार के साथ दोस्ती की वजह से काटा गया. यानी एक बात तो तय है कि, जिस तरह से जेडीयू ने ट्रिपल तलाक, धारा 370 पर सरकार का समर्थन नहीं किया और सदन का बहिष्कार किया. उससे बीजेपी के शीर्ष नेताओं में इसको लेकर नाराजगी थी.

हालांकि जेडीयू ने सीएबी को धर्मनिरपेक्ष कानून मानते हुए दोनों सदनों में इसका समर्थन किया. लेकिन एनआरसी के मुद्दे में पीछे हट गई. इस विषय पर नीतीश कुमार ने कहा था कि यह बिहार में लागू नही होगा.  सीएबी के समर्थन को लेकर जेडीयू में प्रशांत किशोर, पवन वर्मा जैसे नेताओं ने पार्टी के इस फैसले का खुलकर विरोध भी किया.

इन सबके बावजूद हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि 1996 में जब बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन हुआ तो कई मुद्दे ऐसे थे जिनपर भाजपा और जेडीयू की बिलकुल अलग राय थी. मगर जब वो वाजपेयी की सरकार में शामिल हुई तो कभी उसने इन मुददों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. मगर अब बीजेपी का दौर अलग है. अब मोदी और शाह का जमाना है. साथ ही प्रचंड बहुमत भी है. ऐसे में जेडीयू के लिए उन मुद्दों पर खड़ा रहना मुश्किल जरूर लगता है फिर भी एनडीए में शामिल जेडीयू एकलौती पार्टी है, जो आज भी बीजेपी के एजेंडे पर चलने से बचती है.

झारखंड में मिली हार के बाद अब भाजपा नीतीश कुमार पर अपना एजेंडा नहीं थोप सकती. इस हार से बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर दबाव में अब नीतीश कुमार नहीं बल्कि बीजेपी होगी. बिहार में जब से बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन हुआ है तब से नीतीश की पार्टी जेडीयू बड़े भाई की भूमिका में रही है. विधानसभा चुनावों में हमेशा ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ी है. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने 17 -17 सीटों पर चुनाव लड़ा. जिसमें बीजेपी ने अपने हिस्से की सभी 17 सीटों और जेडीयू ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की. यहां लोकसभा चुनाव के आधार पर टिकट बंटवारे का दबाव नीतीश कुमार को झेलना पड़ता. लेकिन क्योंकि झारखंड में पार्टी की शिकस्त हुई है तो शायद जेडीयू को अब ये सब न झेलना पड़े.

बिहार में एनडीए गठबंधन काफी मजबूत रहा है. 2005 में सत्ता में आने के बाद से 2010 तक विधानसभा चुनाव में इसे बम्पर सफलता मिली थी.  2015 का चुनाव नीतीश कुमार ने महागठबंधन के साथ लड़ा था और एनडीए को पटखनी दी थी. लेकिन 2020 का चुनाव खास है. ऐसा इसलिए क्योंकि नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक बार फिर 10 सालों के बाद एनडीए चुनाव लड़ रहा है. लेकिन इस बीच बीजेपी, वाजपेयी और आडवाणी से निकल कर मोदी और शाह के पास आ गई है. ऐसे में झारखंड का यह झटका बीजेपी को नीतीश कुमार से राय लेने से रोकेगा नहीं.

झारखंड में अकेले बीजेपी ही नहीं हारी अलग अलग चुनाव लड़ रही जेडीयू और एलजेपी की भी करारी हार का सामना करना पड़ा है. उनके लगभग सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. जेडीयू को सिर्फ 0.73 फीसदी वोट मिले तो एलजेपी को जेडीयू से बहुत कम 0.30 फीसदी. ऐसे में ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि झारखंड में इनकी क्या हैसियत रही है.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी का अपने पुराने सहयोगी आजसू से गठबंधन न करने का खामियाजा भी उसे सत्ता गवां कर भुगतना [पड़ा. लेकिन एनडीए में शामिल ये सभी पार्टियां एकजुट होकर अपनी हैसियत के हिसाब से चुनाव लड़ती तो परिणाम कुछ और होता. लेकिन सता के लोभ और अहंकार की वजह से बीजेपी झारखंड में मात खा गई जिसे शायद वो बिहार में दोहराना बिलकुल नहीं चाहेगी.

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लेखक

सुजीत कुमार झा सुजीत कुमार झा @suj.jha

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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