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Updated: 23 दिसम्बर, 2019 06:27 PM
प्रभाष कुमार दत्ता
प्रभाष कुमार दत्ता
  @PrabhashKDutta
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झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly election) ने दिखा दिया है कि अगर किसी राज्य की सरकार अच्छा काम नहीं करेगी तो उसकी वापसी काफी मुश्किल होगी, सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे से काम नहीं चलेगा. ये देखा गया है कि जहां पर पीएम मोदी (Narendra Modi) चुनाव में सीधे फैक्टर नहीं रहे हैं, वहां पर भाजपा को जीत हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ा है. ये 2017 में पंजाब में भी देखा जा चुका है. बाद में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी यही हुआ. हरियाणा और महाराष्ट्र में हाल ही में यही देखा गया. 2017 में उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी फैक्टर (Modi Factor) था, तो वहां भाजपा जीत गई. वह यूपी के वाराणसी से सांसद हैं, जिसका यूपी चुनाव में फायदा मिला. झारखंड में हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह की भाजपा वापसी करना चाहती थी. मोदी सीधा फैक्टर नहीं थे. सिर्फ 6 महीने पहले ही लोकसभा चुनाव में झारखंड ने मोदी को पूर्ण बहुमत दिया था. लेकिन झारखंड विधानसभा चुनाव में लोगों ने भाजपा (BJP) को एक पार्टी माना और रघुवर दास को भाजपा सरकार का मुखिया. दोनों ही झारखंड चुनाव में हार गए हैं. अब सवाल ये है कि आखिर झारखंड में लोगों ने रघुवर दास (Raghubar Das) और भाजपा को क्यों नकार दिया, जबकि मोदी सरकार ने कई बयान भी दिए कि जो लोग नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा कर रहे हैं उन्हें उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है. झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे (Jharkhand Election Results) दिखा रहे हैं कि झारखंड में तुष्टीकरण भाजपा के काम नहीं आया.

6 reason why BJP lost Jharkhand Assembly electionझारखंड में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह रघुवर दास रहे, पार्टी के सुस्त रवैये ने ने बाकी कसर पूरी कर दी.

1- ये चुनाव मोदी के लिए नहीं !

वोटर्स ने लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव को अलग-अलग तरीके से लिया. पीएम मोदी के डबल इंजन ग्रोथ मॉडल और भाजपा की सरकार के बावजूद लोग ये जानते हैं कि उनका स्थानीय नेता ही उनके इलाके का विकास कर सकता है. वह समझते हैं कि कैसे भारत का संघवाद काम करता है, ना कि जैसा विशेषज्ञ भारतीय वोटर्स के बारे में कहते हैं. समझदार वोटर्स ने अपनी ताकत 2015 के दिल्ली चुनाव और बिहार चुनाव में भी दिखाई थी. ये चुनाव लगभग पूरे उत्तर भारत के मोदी लहर के आगोश में आने के बाद हुए थे. झारखंड और हरियाणा विधानसभा चुनाव में एक बार फिर समझदार वोटर्स ने अपनी ताकत दिखाई है.

2- रघुवर दास पर गुस्सा

रघुवर दास झारखंड के मुख्यमंत्री हैं और इससे पहले भी भाजपा सरकार में मंत्री थे. वह हमेशा ही जमशेदपुर ईस्ट विधानसभा सीट से जीतते रहे हैं. लेकिन उन्हें नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने 2014 में जब मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाव तो रघुवर दास की ताकत और बढ़ गई, लेकिन झारखंड के लोगों ने शिकायत की कि सत्ता का नशा उनके सिर चढ़ गया है. यहां तक कि झारखंड के भाजपा नेताओं ने भी ये माना है कि रघुवर दास के गुस्सैल रवैये से राज्य में पार्टी की छवि खराब हुई है. पिछले 5 सालों में ऐसे कई मौके आए जब रघुवर दास के जनता और अधिकारियों पर चिल्लाते हुए वीडियो वायरल हुए. एक वीडियो में तो वह ये भी कहते हुए दिखे कि झारखंड पहला आदिवासी मुक्त राज्य होगा.

3- आदिवासियों का गुस्सा

झारखंड की स्थापना 2000 में हुई थी, इसके लिए सिबु सोरेन जैसे नेताओं ने एक लंबी लड़ाई लड़ी, जो झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और मुख्यमंत्री पद के दावेदार हेमंत सोरेन के पिता थे. भले ही वहां आदिसवासी आबादी एक तिहाई है, लेकिन झारखंड को कमोबेस एक आदिवासी राज्य की तरह देखा जाता है. ऐसे राज्य में रघुवर दास की सरकार की छवि ऐसी बन गई जो आदिवासियों के खिलाफ काम करती है. बता दें कि 2014 में भाजपा ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 28 में से 13 सीटें जीती थीं. लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने 5 आरक्षित सीटों में से 3 जीतीं. हालांकि, 2 पर बहुत ही कम अंतर से जीत मिली. इस बार जेएमएम ने इन आरक्षित सीटों में से 20 से भी अधिक सीटें जीत ली हैं.

भाजपा द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन को आदिवासियों ने उनके अधिकारों पर हमला माना. पथलगढ़ी आंदोलन ने भी झारखंड में भाजपा को नुकसान पहुंचाने का काम किया. इसमें आवाज उठाई गई थी कि सरकार को आदिवासियों के अधिकारों पर भी ध्यान देना चाहिए. भाजपा राज्य में आदिवासियों के खिलाफ काम करने वाली सरकार बन गई. एंटी कन्वर्जन बिल भी भाजपा के खिलाफ गया. आदिवासी ईसाई लोगों ने भारी संख्या में 2014 में भाजपा-आजसू के गठबंधन को वोट दिया था, लेकिन इस बार ईसाई लोगों को लगा कि ये बिल उन्हें ही टारगेट करने के लिए लाया गया है.

4- मॉब लिंचिंग की घटनाएं

मुस्लिमों और दलितों पर गौरक्षकों द्वारा किए गए हमलों ने भी भाजपा के खिलाफ जमीन तैयार की. भाजपा की सरकार ने ऐसे समूहों से लोगों की रक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाया. 5 सालों में झारखंड से ऐसी बहुत सी तस्वीरें सामने आईं. पिछले 2 सालों में झारखंड में लिंचिंग से 20 लोगों की मौत हुई है. इसमें 11 मुस्लिम थे, जिनमें से अधिकतर को गौरक्षकों ने पीटा था. 5 हिंदू भी लिंचिंग में मारे गए, जिन पर बच्चा चोरी की अफवाह के चलते हमला किया गया और 2 आदिवासी ईसाई थे, जिन्हें बीफ रखने या खाने का आरोप लगाकर पीट-पीट कर मार दिया गया. झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान भी तबरेज अंसारी की लिंचिंग की तस्वीरें और वीडियो खूब वायरल हुए थे.

5- भाजपा अब 'अलग' नहीं रही

एक वक्त था जब भाजपा दावा करती थी कि वह बाकी पार्टियों से अलग है. लोगों को लगा कि ये पार्टी सिर्फ राजनीति के लिए भ्रष्टाचार और बेतुकी बातों का सहारा नहीं लेगी. झारखंड में भले ही रघुवर दास पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने हों, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया है, लेकिन भाजपा ने इसके लिए बहुत समझौते किए और रघुवर दास के खिलाफ गंभीर आरोपों तक को नजरअंदाज किया. भाजपा ने शशि भूषम मेहता को चुनावी मैदान में उतारा, जिन्होंने झामुमो छोड़कर भाजपा ज्वाइन की. वह हत्या के मामले में ट्रायल का सामना कर रहे हैं. शशि भूषण मेहता पर एक स्कूल टीचर की हत्या का आरोप है.

निर्दलीय विधायक भानु प्रताप शाही पर भ्रष्टाचार के केस चल रहे हैं, लेकिन उन्हें भी भाजपा में शामिल कर लिया गया. उन पर 130 करोड़ के दवा घोटाला करने का आरोप है. इसके अलावा धुल्लू महतो पर भी कई केस चल रहे हैं, लेकिन बाघमरा के इस विधायक को भी पार्टी ने टिकट दे दिया. भाजपा दावा करती है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ है, जबकि झारखंड में इस दावे की पोल खुल गई.

6- सहयोगी पार्टियों को नजरअंदाज किया

ये पहली बार है जब झारखंड में भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ा है. इसने राज्य की सबसे पुरानी पार्टियों में से एक आजसू को किनारे लगाने का काम किया. आजसू आखिरी पल तक कोशिश करती रही कि वह भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े. भाजपा ने महाराष्ट्र में शिवसेना द्वारा 35 साल पुराना गठबंधन तोड़े जाने के बाद ये फैसला किया था कि वह झारखंड में अकेले चुनाव लड़ेगी. ट्रेंड दिखाते हैं कि अगर झारखंड में भाजपा ने आजसू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा होता तो वह फिलहाल पहले से अच्छी स्थिति में होती. वोटों की गिनती अभी जारी है, लेकिन अनुमान है कि दोनों साथ होते तो इस गठबंधन को करीब 43-44 फीसदी वोट मिलते, जबकि अभी जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी के गठबंधन को करीब 36 फीसदी वोट मिले हैं.

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लेखक

प्रभाष कुमार दत्ता प्रभाष कुमार दत्ता @prabhashkdutta

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्टेंट एडीटर हैं.

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