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Updated: 15 दिसम्बर, 2021 11:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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लखीमपुर खीरी हिंसा पर SIT रिपोर्ट (Lakhimpur Violence SIT Report) का इंतजार सबसे ज्यादा किसे रहा होगा? किसान आंदोलन के नेताओं को या प्रियंका गांधी वाड्रा सहित यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे विपक्षी नेताओं को?

हो सकता है थोड़ा बहुत सबको इंतजार रहा हो, लेकिन यूपी की चुनावी राजनीति में मौजूदा जातीय समीकरणों के हिसाब से समझें तो लगता है कि कोई और नहीं बल्कि बीजेपी नेतृत्व को ही SIT रिपोर्ट का सबसे ज्यादा इंतजार रहा होगा - क्योंकि उसकी खास राजनीतिक वजह है.

ये ठीक है कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी (Ajay Mishra Teni) का बेटा आशीष मिश्रा बुरी तरह फंसने लगा है - और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से लेकर तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा तक हमलावर हो चुके हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी संसद में कार्य स्थगन प्रस्ताव का नोटिस देते हैं - और संसद में हंगामे के साथ साथ यूपी विधानसभा के स्पेशल सेशन से पहले विपक्ष बीजेपी के खिलाफ धरने पर बैठ जाता है.

विपक्ष की ये खुशी चुनावी माहौल में बिकाऊ भले लगती हो, लेकिन उतनी टिकाऊ नहीं जैसी बीजेपी के लिए हो सकती है. एसआईटी की रिपोर्ट के बाद तो बीजेपी नेतृत्व को जैसे पल्ला झाड़ते हुए हाथ खींच लेने का लाइसेंस ही मिल गया है - राजनीतिक तौर पर फायदे और भी हो सकते हैं.

निश्चित तौर पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी एसआईटी की तरफ से कोर्ट में दाखिल बयान से राहत की सांस ले रहे होंगे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह को तो कहीं हद से ज्यादा सुकून महसूस हो रहा होगा.

सबको मालूम है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अजय मिश्रा को यूपी चुनाव को लेकर काफी उम्मीदों के साथ कैबिनेट में शामिल किया था, लेकिन लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद केंद्रीय मंत्री को बर्खास्त किये जाने की विपक्ष की मांग के बाद तो वो उनको भारी बोझ जैसा ही समझ रहे होंगे - मुश्किल ये रही कि जिस चुनावी फायदे के लिए मंत्री बनाया वो तो मिलने रहा, उलटे नुकसान की आशंका ज्यादा प्रबल हो गयी.

एसआईटी की रिपोर्ट तो अजय मिश्रा पर फैसले को लेकर मोदी-शाह के सामने डबल बेनिफिट ऑफर की तरह आयी है - बीजेपी नेतृत्व का अजय मिश्रा से तो पीछा छूटेगा ही, विपक्ष के पास भी आगे से शोर मचाने का मौका नहीं बचेगा - ठीक वैसे ही जैसे कृषि कानूनों की वापसी के मामले में काफी हद तक हो रखा है.

बस एक सेफ-पैसेज की दरकार थी

ये कहना तो ज्यादा हो जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी को राम मंदिर निर्माण के फैसले जैसा ही गिफ्ट भेजा है, लेकिन मान कर चलना चाहिये कि चुनावी तैयारियों के बीच लखीमपुर खीरी हिंसा में ये बहुत बड़ी राहत है - क्योंकि कृषि कानूनों को वापस लिये जाने के बावजूद ये मामला न तो आराम से निगलते बन रहा था, न ही निगलते बन पा रहा था.

1. लापरवाही नहीं, हत्या का मामला है: लखीमपुर खीरी केस की जांच कर रही स्‍पेशल इनवेस्‍टीगेशन टीम ने कोर्ट को बताया है कि ये महज लापरवाही से गाड़ी चलाने का मामला नहीं है, बल्कि आशीष मिश्रा और उसके साथियों ने पूर्वनियोजित तरीके से अपराध को अंजाम दिया है.

ajay mishra teni, narendra modiमोदी कैबिनेट में अजय मिश्रा टेनी कितने दिन तक?

आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी से पहले तक केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा दावा करते फिर रहे थे कि उनका बेटा तो मौके पर था ही नहीं. पूछताछ के दौरान भी लखीमपुर खीरी बीजेपी दफ्तर में नारेबाजी कर रहे पार्टी कार्यकर्ताओं को आश्वस कर रहे थे कि कुछ ऐसा वैसा नहीं होने देंगे - मुमकिन है केंद्रीय मंत्री ऐसा करने में सफल भी हो जाते, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के स्वतः संज्ञान में मामले को लेने के बाद सारी चीजें बदलती गयी थी - और सबसे बड़ी अदालत की सख्ती के आगे यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की सारी दलीलें धरी की धरी रह गयीं.

एसआईटी ने अदालत को बताया है कि ये आपराधिक कृत्य लापरवाही से नहीं हुआ है, बल्कि जानबूछ कर सुनियोजित तरीके से हत्या के इरादे से किया गया है. जांच टीम ने कोर्ट में दाखिल अपनी रिपोर्ट में माना है कि किसानों की हत्या की गयी है - और नये सिरे से गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किये जाने की सिफारिश की है.

2. पहले सेंगर, फिर स्वामी और अब टेनी: जैसे उन्नाव गैंगरेप केस में यूपी पुलिस तब के 'माननीय विधायक जी' कुलदीप सेंगर के साथ पेश आ रही थी, करीब करीब वैसा ही संकोच स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ एक छात्रा के यौन शोषण के आरोप लगाने के मामले में भी देखा गया - और केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा को पूछताछ के लिए जिस तरीके से लखीमपुर खीरी पुलिस ने कानूनी न्योता भेजा वो तो कुछ ज्यादा ही दिलचस्प रहा.

तीनों ही हाई प्रोफाइल मामलों में बारी बारी सभी को बचाने की कोशिश हुई, लेकिन कोर्ट का डंडा चला तो बीजेपी को हाथ खड़े करने पड़े - ये कहना ज्यादा अच्छा होगा कि मौका देख कर हाथ खींच लिया. अजय मिश्रा टेनी का मामला भी करीब करीब उसी मोड़ पर पहुंच चुका है.

ये बात अलग है कि गैंगरेप के लिए उम्रकैद की सजा होने के बाद भी कुलदीप सेंगर को बर्थडे विश करने और चुनावी जीत की शुक्रिया जताने बीजेपी सांसद साक्षी महाराज जाते रहे हैं - पंचायत चुनावों में को सेंगर की पत्नी संगीता सेंगर को टिकट देने के बाद बीजेपी को कदम पीछे खींचने पड़े थे. विपक्ष का दबाव में टिकट काट ही दिया गया.

स्वामी चिन्मयानंद के केस में भी पुलिस हाथ डालने से आखिर तक बचती रही और सुप्रीम कोर्ट के कुछ सीनियर वकीलों सक्रियता से ही गिरफ्तारी संभव हो पायी, लेकिन आरोप लगाने वाली कानून की छात्रा को भी जेल भेजा गया - हालांकि, बाद में दोनों पक्षों के बीच अदालत से बाहर समझौता भी हो गया.

अब तो सेंगर और चिन्मयानंद की ही तरह अजय मिश्रा टेनी से भी पीछा छुड़ाने का वक्त आ गया है - मोदी और शाह को ज्यादा मुश्किल नहीं होनी चाहिये. बीजेपी नेतृत्व को योगी आदित्यनाथ का भी कोपभाजन नहीं होना पड़ेगा.

3. बीजेपी को ब्राह्मणों को समझाने का बहाना मिल गया: लखीमपुर खीरी हिंसा का मामला सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान में लेते हुए सुनवाई शुरू की. चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली पीठ ने यूपी पुलिस के एक्शन को लेकर फटकार तो लगायी ही, न्यायिक जांच को लेकर भी डिटेल्स मांगे और हिदायतें भी जारी की गयीं. कोर्ट के निर्देश पर जांच कर रही एसआईटी में सीनियर अफसरों को शामिल किया गया.

यूपी चुनाव में ओबीसी और दलित वोट बैंक ही नहीं ठाकुर बनाम ब्राह्मण राजनीति में भी जोर आजमाइश चल रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी ठाकुरवाद की राजनीति करने के आरोप लगते रहे हैं - और समय समय पर, खास कर चुनावों से पहले बीजेपी नेतृत्व को ब्राह्मणों की नाराजगी से बचने के लिए कोई न कोई रास्ता निकालना पड़ता है. अजय मिश्र टेनी को भी मोदी कैबिनेट में उसी योग्यता के बूते एंट्री मिली थी, जैसे 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले शिव प्रताप शुक्ला को.

एसआईटी ने तो जैसे ब्राह्मणों को समझाने का बहाना ही दे दिया है. अब तो बीजेपी बड़े आराम से मैसेज दे सकेगी कि जितना संभव था अजय मिश्रा टेनी को भी बचाने की कोशिशें तो हुई हीं. फिर भी अगर कोई थोड़ा बहुत नाराज होता है तो बीजेपी आसानी से कह सकेगी कि कोर्ट के आगे सरकार की भी चलती कहां है? वैसे भी ब्राह्मण वोट बैंक कोई इतना मजबूत तो है नहीं कि पूछेगा कि एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट का फैसला के खिलाफ तो सरकार ने ही ऑर्डिनेंस लाया था.

एसआईटी रिपोर्ट पर तेज हुई राजनीति के बीच अजय मिश्रा ने लखीमपुर खीरी जेल में बंद अपने बेटे आशीष मिश्रा से मुलाकात की. करीब आधे घंटे तक वो जेल में बेटे का हाल चाल लेते रहे. आशीष मिश्रा से मिलने केंद्रीय मंत्री के साथ सदर विधायक योगेश वर्मा भी गये हुए थे. याद रहे योगेश वर्मा ही अपने स्कूटर पर बिठा कर आशीष मिश्रा को पूछताछ के लिए पुलिसलाइन तक छोड़ने गये थे.

जेल से बाहर निकले अजय मिश्रा से पूछे जाने पर उनका सवाल रहा - 'आप अपने बेटे से क्या बात करते हैं?' लेकिन बात इतने भर से नहीं खत्म हो पा रही, कदम कदम पर केंद्रीय मंत्री मीडिया के सवाल फेस करने पड़ रहे हैं और वो झल्ला जा रहे हैं.

ऐसे ही एक रिपोर्टर के सवाल पर अजय मिश्रा का रिएक्शन रहा - "बेवकूफी के सवाल न किया करो, दिमाग खराब है क्या बे?"

कानून तो अपना काम करेगा ही - क्या राजनीति नहीं होगी?

मीडिया के सवाल पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा चाहे कितना भी रौब दिखाते फिरें, लेकिन ये नहीं भूलना चाहिये कि चीनी मिल का कार्यक्रम उनको रद्द करना ही पड़ा था - और ऐसा किसान आंदोलन में शामिल नेताओं के दबाव में करना पड़ा था.

अमित शाह के साथ लखनऊ रैली के बाद अजय मिश्रा टेनी को सीतापुर में हुए बूथ सम्मेलन में भी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ भी स्टेज पर देखा गया था - और मीडिया में ये खबर आने के बाद सवाल भी उठे.

1. विपक्ष आक्रामक हो गया है: लखीमपुर खीरी केस में एसआईटी की रिपोर्ट के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा, 'मोदी जी, फिर से माफी मांगने का टाइम आ गया… लेकिन पहले अभियुक्त के पिता को मंत्री पद से हटाओ. सच सामने है!'

राहुल गांधी की ही तरह उनकी बहन और यूपी कांग्रेस प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी की भी केंद्रीय मंत्री के खिलाफ लखीमपुर हिंसा पीड़ितों को न्याय दिलाने की लड़ाई जारी है. तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी दौरे पर टिप्पणी करते हुए ट्वीट किया है - बहुत डूबकी लगा ली. अजय मिश्रा को बर्खास्त कर न्याय सुनिश्चित किया जाये.

किसान मोर्चा मंत्री की गिरफ्तारी के पक्ष में: संयुक्त किसान मोर्चे की तरफ से भी केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा बर्खास्त कर गिरफ्तार किये जाने की मांग की गयी है. मोर्चा की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, '... संघर्ष जारी रखा जाएगा... देश के किसान इस नरसंहार को तब तक नहीं भूलेंगे, जब तक हम पीड़ितों को न्याय नहीं दिला देते.'

2. अजय मिश्रा के खिलाफ रुझान आने लगे: बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने एक तरीके से अजय मिश्रा के खिलाफ किसी तरह के एक्शन लिये जाने की संभावना से इनकार कर दिया है, लेकिन स्पीकर ओम बिड़ला ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के लोक सभा में कार्य स्थगन प्रस्ताव को खारिज नहीं किया है - ये भी अजय मिश्रा टेनी के लिए एक मैसेज ही है.

3. क्या विपक्ष के लिए मुद्दा नहीं बचा है: बेशक एसआईटी की रिपोर्ट को लेकर विपक्ष के आक्रामक होने का मौका मिल गया है, लेकिन कब तक? आखिर कब तक?

कृषि कानून वापस लेकर मोदी सरकार ने किसान आंदोलन को खत्म न सही, होल्ड तो करा ही दिया है. किसानों की नाराजगी खत्म हो जाएगी, ऐसा तो बीजेपी को भी नहीं लग रहा होगा, लेकिन ये तो सबको लगता है कि कम तो हो ही जाएगी. अभी न सही, वोटिंग का वक्त आते आते काफी कुछ रफा दफा हो ही जाएगा. पब्लिक मेमरी शॉर्ट होती है, किसान भी तो पब्लिक ही हैं - और कई किसान नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी तो हैं.

जैसे कृषि कानूनों की क्रेडिट लेने की कोशिशें चल रही हैं, विपक्ष अजय मिश्रा पर मोदी सरकार के एक्शन पर भी वैसे ही प्रयास करेगा - लेकिन कितना? और कहां तक? किस हद तक?

बीजेपी नेतृत्व के सामने ये मौका तो है ही कि अदालत के नाम पर अजय मिश्रा से इस्तीफा मांग लिया जाये, ब्राह्मण नाराज नहीं होंगे और किसानों की बची खुची नाराजगी और भी कम हो जाएगी - विपक्ष के लिए ये मुद्दा भी खत्म ही लगने लगा है.

जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले किसानों से कहा था, एक बार चाहें तो चुनाव से पहले किसी न किसी तरीके से ब्राह्मण वोट बैंक को भी मैसेज भिजवा सकते हैं - एक और 'तपस्या' अधूरी रह गयी.

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#अजय मिश्रा, #नरेंद्र मोदी, #अमित शाह, Ajay Mishra Teni, Lakhimpur Violence SIT Report, Narendra Modi

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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