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Updated: 06 अक्टूबर, 2021 09:07 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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लखीमपुर खीरी हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence) में 8 लोगों की मौत होने के बाद उत्तर प्रदेश का सियासी पारा उबाल पर है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के कारों के काफिले से 4 किसानों की मौत के बाद आक्रोशित भीड़ ने 4 लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी. वहीं, लखीमरपुर हिंसा के 24 घंटे के भीतर ही किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने किसानों और प्रशासन के बीच अहम भूमिका निभाते हुए समझौता करा दिया. जिसके बाद इस मामले में किसी तरह की राजनीति (Politics) करने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है.

हालांकि, अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Elections 2022) के मद्देनजर सूबे के विपक्षी दल किसी भी हाल में लखीमपुर हिंसा (Lakhimpur Violence) के मामले को ठंडा नहीं पड़ने देना चाहते हैं. राजनीतिक हितों को देखते हुए अन्य राज्यों के नेताओं ने भी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) का रुख कर लिया है.

खैर, लखीमपुर खीरी हिंसा मामले (Lakhimpur Kheri Violence case) में तेजी से बदलते घटनाक्रमों के बीच जिसने लोगों का सबसे ज्यादा ध्यान खींचा वो है सोशल मीडिया, किसान नेता राकेश टिकैत, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi). आसान शब्दों में कहा जाए, तो लखीमपुर हिंसा मामले की धुरी इन चार केंद्रों पर ही टिकी हुई नजर आती है. इस स्थिति में इन पर चर्चा करना लाजिमी हो जाता है. आइए जानते हैं कि किसान आंदोलन से लेकर सियासत तक इस मामले में किसे कितना फायदा हुआ?

लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा में 8 लोगों की मौत हुई है.लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा में 8 लोगों की मौत हुई है.

सोशल मीडिया

हर मामले की तरह लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में भी घटना को लेकर दो अलग-अलग पक्ष सामने आए. सोशल मीडिया (Social Media) पर अब तक लखीमपुर हिंसा (Lahimpur Kheri) के सात अलग-अलग वीडियो सामने आ चुके हैं, जिन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी हैं. दरअसल, हर वीडियो (Lakhimpur Viral Video) एक अलग ही कहानी कह रहा है. किसानों का शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर केवल काले झंडे दिखाने वाले वाला दावा कारों के काफिले पर पत्थरबाजी करने औऱ उसे जबरन रोकने वाले वीडियो के सामने के बाद टूटता दिख रहा है. सोशल मीडिया पर सर्वाधिक सुर्खियां बटोरीं, आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) के कारों के काफिले वाले वीडियो ने जिसमें महिंद्रा थार एसयूवी (Mahindra Thar SUV) से किसानों को रौंदते हुए देखा जा सकता है. लेकिन, इस वीडियो को लेकर भी कई पेंच सामने आ चुके हैं. पक्ष औऱ विपक्ष अपने-अपने हिसाब से इस वीडियो को लोगों के सामने रख रहा है. किसानों (Farmers) और सियासी दलों का दावा है कि अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के खिलाफ ये सबसे बड़ा सबूत है. वहीं, इस घटना के एक अन्य वीडियो में एक शख्स इसी महिंद्रा थार एसयूवी से भागते हुए देखा गया. जिसे लेकर दावा किया गया कि यही आशीष मिश्रा है.

हालांकि, इस घटना का इस चश्मदीद सुमित ने आजतक से बातचीत में एक अलग ही कहानी बताई. सुमित ने बताया कि मेरे सामने उपद्रवियों ने ड्राइवर और शुभम को कार से घसीटकर पीट-पीटकर हत्या कर दी. मैं जान बचाकर वहां से भागा. सुमित ने ये भी कहा कि आशीष मिश्रा वहां पर नहीं थे. उन्होंने बताया कि जिस वीडियो की बात की जा रही है, वो आधा सच है. गाड़ी पर पत्थरबाजी के बाद महिंद्रा थार एसयूवी का नियंत्रण खो गया था. वहीं. अन्य तीन वीडियो में से एक में उपद्रवी ड्राइवर व अन्य लोगों को बुरी तरह से लाठी-डंडों से पीटते दिखाई पड़ रहे हैं. अगले वीडियो में गाड़ियों को खाई में धकेल कर आग लगाने की घटना देखी जा सकती है. आखिरी सामने आए वीडियो में गाड़ी के लहूलुहान ड्राइवर से उपद्रवी जबरदस्ती किसानों पर गाड़ी चढ़ाने का आदेश देने के लिए अजय मिश्रा टेनी का नाम कबूल करने को कह रहे हैं. हालांकि, मौत को आंखों के सामने देख रहा ड्राइवर आखिर तक इस बात से इनकार करता रहा. घटनास्थल पर पुलिस के पहुंचने के बाद ड्राइवर की लाश बरामद हुई थी.

यहां देखिये वो सात वायरल वीडियो...

टुकड़ों-टुकड़ों में आए ये वीडियो एक साथ रखने पर पूरी कहानी शीशे की तरह साफ हो जाती है. हालांकि, ये जांच का विषय है और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज व यूपी पुलिस (UP Police) इन वीडियो की पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट सौंपेगे. लेकिन, इन तमाम वीडियो के सामने आने के बाद एक बात तय हो जाती है कि लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में किसी एक पक्ष की गलती नहीं रही है. सोशल मीडिया पर पक्ष और विपक्ष को अपने हिसाब से नैरेटिव बनाने के लिए पर्याप्त वीडियो उपलब्ध हैं, तो कहना गलत नहीं होगा कि लखीमपुर हिंसा मामले में सबसे अहम भूमिका सोशल मीडिया ही निभा रहा है. भाजपा (BJP) समर्थक इन तमाम वीडियो के सहारे लोगों के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब होते दिख रहे हैं. क्योंकि, इन तमाम वीडियो को एकसाथ रखने पर यही निष्कर्ष निकल रहा है कि किसानों ने गाड़ियों पर पत्थरबाजी की और गाड़ी असंतुलित हो गई.

किसान नेता राकेश टिकैत

लखीमपुर खीरी में हिंसा भड़कने के बाद पुलिस-प्रशासन की सख्ती के बाद जहां किसी भी सियासी दल के नेता को लखीमपुर खीरी में घुसने नहीं दिया गया. वहीं, किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत को पुलिस-प्रशासन ने घटनास्थल पर पहुंचाकर एक तरह से अपना ही सिरदर्द कम किया. दरअसल, किसानों और प्रशासन के बीच हुए समझौते में किसान नेता राकेश टिकैत एक अहम कड़ी बनकर उभरे. किसानों की नाराजगी से जब पुलिस-प्रशासन के माथे पर बल पड़ गए थे. तब राकेश टिकैत ने किसानों और मृतक किसानों के परिवार से बातचीत कर 24 घंटे के अंदर ही मामला सुलझा दिया. जिसके बाद शवों को रखकर किया जा रहा विरोध ठंडा पड़ गया और उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेजा दिया गया. वहीं, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सामने आने के बाद मृतक किसानों के परिवार ने पीएम रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए दाह संस्कार से इनकार कर दिया. जिसके बाद एक बार फिर राकेश टिकैत योगी सरकार के लिए संकटमोचक के तौर पर सामने आए और उन्होंने परिवारों से बातकर उन्हें दाह संस्कार के लिए तैयार कर लिया.

24 घंटे के अंदर किसानों के साथ समझौते के बाद राकेश टिकैत ने सियासी दलों के लिए राजनीति करने की कोई वजह नहीं छोड़ी है.24 घंटे के अंदर किसानों के साथ समझौते के बाद राकेश टिकैत ने सियासी दलों के लिए राजनीति करने की कोई वजह नहीं छोड़ी है.

आसान शब्दों में कहें, तो लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में किसान नेता राकेश टिकैत योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath) के लिए तारणहार साबित हुए. लेकिन, यही चीज राकेश टिकैत के लिए समस्या खड़ी करने वाली हो गई है. दरअसल, 24 घंटे के अंदर किसानों के साथ योगी सरकार (Yogi Government) के समझौते और शवों के दाह संस्कार तक राकेश टिकैत ने सियासी दलों के लिए राजनीति करने की कोई वजह नहीं छोड़ी है. योगी सरकार के उच्च अधिकारियों के साथ किए गए समझौते के तहत मृतक किसानों के परिवार को 45 लाख, एक सदस्य को नौकरी, हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज द्वारा पूरे मामले की जांच, घायलों को 10-10 लाख और किसानों की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज करने की मांगों पर सहमति बनी थी. इस समझौते के बाद राकेश टिकैत की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किये जाने लगे. कहा जाने लगा कि राकेश टिकैत ने समझौता कर एक उभरते हुए आंदोलन की बलि चढ़ा दी.

समझौते के बाद राजनीतिक दलों के 'स्लीपर सेल' ने किसान नेता राकेश टिकैत की भूमिका संदिग्ध बताकर उन्हें लगातार कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया. दरअसल, लखीमपुर खीरी में किसानों और प्रशासन के बीच समझौता होने के बाद स्थिर हो चुके हालातों के बाद वहां किसी भी तरह से राजनीतिक हित साधने की जगह नहीं बची है. तो, सियासी दलों को लखीमपुर खीरी में जो राजनीतिक फायदा माहौल के बिगड़ने से मिल सकता था, एक तरह से राकेश टिकैत ने उस पर पानी फेर दिया. वहीं, इस समझौते से किसान आंदोलन (Farmers Protest) के नेताओं में ये भी संदेश जाना तय है कि राकेश टिकैत कहीं न कहीं इस मामले में योगी आदित्यनाथ के हाथों के कठपुतली बन गए. आसान शब्दों में कहें, तो योगी आदित्यनाथ ने राकेश टिकैत को इस समझौते में आगे कर उनकी विश्वसनीयता का संकट खड़ा कर दिया है, जो आने वाले समय में किसान आंदोलन का चेहरा बदल सकता है.

अखिलेश यादव

भाजपा के सामने खुद को मुख्य प्रतिद्वंदी मानकर चल रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) लखीमपुर खीरी हिंसा मामले को जिस तरह से अपने पक्ष में भुनाने चाहते थे, उसमें कामयाब नहीं हो सके. योगी सरकार ने वैसे तो सभी सियासी दलों के नेताओं को लखीमपुर खीरी पहुंचने से रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन को अलर्ट कर दिया था. लेकिन, अखिलेश यादव इस मामले में योगी सरकार के सामने गच्चा खा गए. यूपी पुलिस ने 4-5 अक्टूबर की दरमियानी रात ही अखिलेश यादव को उनके लखनऊ स्थित आवास में नजरबंद कर दिया. 5 अक्टूबर को हजारों की संख्या में सपा कार्यकर्ताओं की मौजूदगी के बावजूद लखीमपुर खीरी के लिए निकले अखिलेश यादव अपने घर से चंद कदम ही चल सके. जिसके बाद वह इस घटना के विरोध में अपने घर के सामने ही धरना देने के लिए बैठ गए. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पूर्व मुख्यमंत्री लखीमपुर खीरी हिंसा मामले से जितना राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे थे, उस पर योगी सरकार ने मिट्टी डालने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. वहीं, अखिलेश यादव के आवास के बाहर यूपी पुलिस की एक गाड़ी फूंक दिए जाने से भी वह काफी हद तक बैकफुट पर आ गए. दरअसल, यूपी पुलिस की गाड़ी फूंकने के बाद जनता में सीधा संदेश यही जाता कि सपा के नेता गुंडई को बढ़ावा दे रहे हैं.

लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में अखिलेश यादव को जो राजनीतिक फायदा मिलना था, वो नहीं मिल सका. लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में अखिलेश यादव को जो राजनीतिक फायदा मिलना था, वो नहीं मिल सका.

हालांकि, इस मामले पर सपा नेताओं ने कहा कि यूपी पुलिस ने खुद ही अपनी गाड़ी में आग लगा दी है. लेकिन, इस घटना से अखिलेश यादव पर दबाव बना कि अगर वह पुलिस के साथ जोर-जबरदस्ती कर लखीमपुर खीरी जाने की कोशिश करते हैं, तो हजारों की संख्या में मौजूद सपा कार्यकर्ता भड़क सकते हैं. सपा कार्यकर्ताओं के भड़कने पर उन्हें रोकना अखिलेश यादव के हाथ से पूरी स्थिति निकालने जैसा हो जाता. जिसके बाद अखिलेश अपने आवास पर ही हिरासत में ले लिए गए. यूपी पुलिस ने उनके खिलाफ धारा-144 के उल्लंघन का मामला दर्ज किया और गाड़ी जलाने के मामले में अज्ञात लोगों पर एक और मामला दर्ज किया. कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने बहुत आराम से अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी माने जा रहे अखिलेश यादव को लखीमपुर खीरी से दूर रखकर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर पर्दा डाल कर मामले का पटाक्षेप कर दिया. कहना गलत नहीं होगा कि लखीमपुर खीरी मामला अखिलेश यादव के लिए 'ढाक के तीन पात' साबित हो गया.

प्रियंका गांधी

4-5 अक्टूबर की दरमियानी रात ही लखीमपुर खीरी जाते समय कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को सीतापुर के हरगांव में पुलिस ने हिरासत में लिया गया था. इसके बाद से लेकर अभी तक प्रियंका गांधी पुलिस हिरासत में ही बनी हुई हैं. जिस पीएसी गेस्ट हाउस में उन्हें रखा गया है, उसे ही अस्थायी जेल घोषित कर दिया गया है. इस गेस्ट हाउस के बाहर बड़ी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता जुटे हुए हैं. इस दौरान प्रियंका गांधी लगातार किसी न किसी तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार पर मुखर होकर हमले कर रही हैं. लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के बाद कांग्रेस सबसे ज्यादा एक्टिव दिख रही है. प्रियंका गांधी को अस्थायी तौर पर जेल में बंद किया गया है. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल लखनऊ एयरपोर्ट पर धरने में बैठ गए थे. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) योगी सरकार की अनुमति के बिना लखीमपुर खीरी जाने की कोशिश करेंगे. कांग्रेस नेता और पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी इस मामले पर गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर चुके हैं. आसान शब्दों में कहें, तो सपा और बसपा के मुकाबले लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में जमीनी तौर पर सबसे ज्यादा मुखरता के साथ भाजपा और योगी आदित्यनाथ पर हमलावर केवल प्रियंका गांधी ही नजर आ रही हैं.

कांग्रेस नेताओं की इस बढ़ी हुई सक्रियता ने पार्टी में एक नई जान फूंक दी है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले सूबे में मृतप्राय नजर आ रही कांग्रेस अचानक से जमीनी स्तर पर सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आने लगी है. हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब प्रियंका गांधी ने इस तरह से भाजपा और योगी आदित्यनाथ को कड़ी चुनौती दी हो. सोनभद्र, उन्नाव, हाथरस, लखीमपुर खीरी जैसे सभी मामलों में कांग्रेस की ओर से जमीनी स्तर पर प्रियंका गांधी ने राजनीतिक तौर पर सपा और बसपा से बाजी मारते हुए बढ़त अपने नाम की है. कांग्रेस के लिहाज से देखा जाए, तो ये उसके लिए संजीवनी मिलने जैसा है. लेकिन, इस स्थिति में ये सवाल भी खड़ा हो रहा है कि कहीं ऐसा तो नहीं, योगी आदित्यनाथ भी चाहते हैं कि यूपी में प्रियंका गांधी ज्यादा से ज्यादा दिखें.

प्रियंका गांधी लगातार किसी न किसी तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार पर मुखर होकर हमले कर रही हैं.प्रियंका गांधी लगातार किसी न किसी तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार पर मुखर होकर हमले कर रही हैं.

भाजपा के नजरिये से देखा जाए, तो लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में प्रियंका गांधी का चेहरा जितना ज्यादा चर्चा में रहेगा. वो परोक्ष रूप से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए ही भारी पड़ेगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इस मामले पर प्रियंका गांधी का जितना ज्यादा उभार होगा, सपा के लिए स्थितियां उतनी ही कमजोर होती जाएंगी. अभी तक खुद को भाजपा और योगी आदित्यनाथ के सामने सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी मानकर चल रहे अखिलेश यादव लखीमपुर हिंसा के बाद कुछ न कर पाने की स्थिति में कांग्रेस से पिछड़ते दिख रहे हैं. इस स्थिति में कहीं न कहीं किसानों का समर्थन प्रियंका गांधी और कांग्रेस के पक्ष में जाता दिख रहा है. जो निश्चित तौर पर भाजपा के लिए फायदेमंद कहा जा सकता है. भाजपा विरोधी वोटों में जितना ज्यादा बिखराव होगा, उतना ही फायदा पार्टी को यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में मिलना तय है. तो, कहना गलत नहीं होगा कि योगी आदित्यनाथ ने प्रियंका गांधी के सहारे यूपी चुनाव की राजनीति को एक अलग ही मोड़ दे दिया है.

खैर, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे ही तय करेंगे कि भाजपा, सपा, कांग्रेस, बसपा में से किस सियासी दल को सत्ता की कुर्सी मिलती है. लेकिन, यूपी चुनाव की समीकरणों की बिसात पर योगी आदित्यनाथ ने शह-मात का खेल अपने ही अंदाज में शुरू कर दिया है. देखना दिलचस्प होगा कि लखीमपुर खीरी हिंसा को लगातार सियासी तूल देने की कोशिश कर रहे विपक्षी दलों के चलते आगे ये मामला क्या मोड़ लेता है?

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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