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Updated: 27 सितम्बर, 2016 06:18 PM
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पाकिस्तान को करारा जवाब तो दिया जाना ही था, लेकिन सुना किसने? सिर्फ पाकिस्तान ने या फिर बाकी मुल्कों ने भी भारत की बात सुनी? अगर सुनी तो बोले क्यों नहीं?

सुषमा स्वराज बोलती तो अच्छा ही हैं - न तो इसमें किसी को शक था और है. यहां तक कि न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जानी सियासी दुश्मन अरविंद केजरीवाल को न उनके कुमार विश्वास को जिन्होंने भारत की 'सिंहनी' तक बता डाला है.

लेकिन क्या इतने भर से हम पाकिस्तान को अलग थलग कर पा रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम पाकिस्तान को घसीटने के बजाए खुद हाशिये पर छिटके जा रहे हैं.

हमें क्या मिला ?

लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी के बाद ये पहला मौका रहा जब किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच से सुषमा ने पाकिस्तान को घेरने के लिए बलूचिस्तान का मामला उठाया, "खुद के गिरेबान में झांके और देखें कि बलूचिस्तान में क्या हो रहा है, वहां जो हो रहा है, वह यातना की पराकाष्ठा है."

सुषमा ने मोदी के लाहौर ठहराव का जिक्र करते हुए बदले में पठानकोट और उरी की मिसालें दीं. सुषमा ने सबूत पेश करते हुए पाकिस्तान को घेरा भी, "हमारे पास बहादुर अली जिंदा सबूत है जो कि सीमा पार से आया है."

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और जो बात हम हर खास मौके पर जरूर जिक्र करते हैं, "जम्मू-कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है." पाकिस्तान ने बस इसी बात पर आपत्ति जताई है क्योंकि उससे यही बात बर्दाश्त नहीं होती.

लेकिन ऐसा क्यों है कि भारत को दुनिया के देशों से पाकिस्तान के खिलाफ अपेक्षित समर्थन नहीं मिल पा रहा. प्रधानमंत्री मोदी तकरीबन हर मंच से आतंकवाद खास कर पड़ोसी द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का मामला उठाते रहे हैं. आतंकवाद के खिलाफ दुनिया को एकजुट होने की अपील करते रहे हैं.

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जरा बलूचिस्तान में झांक कर तो देखो...

सुषमा ने भी अपने भाषण में दुनिया में जगह जगह पैर जमाये आतंकवाद का जिक्र किया, लेकिन बाकी मुल्कों में दहशतगर्दी के खिलाफ कोई मजबूत एकजुटता क्यों नहीं दिखाई दे रही? कुछ न कुछ लोचा तो है. है कि नहीं?

नाम में क्या?

संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण में सुषमा स्वराज ने बुरहान वानी का नाम नहीं लिया. नवाज शरीफ ने बुरहान को कश्मीरी इंतेफादा का प्रतीक बताया था - और उसको लेकर भी सुषमा की ओर से जोरदार जवाब की अपेक्षा रही.

कुछ लोग इसे लेकर एनम गंभीर की स्पीच को सुषमा के भाषण के मुकाबले ज्यादा धारदार मान रहे हैं. सुषमा के भाषण के बाद टीवी बहसों में भी इसका जिक्र हुआ और कई एक्सपर्ट की राय रही कि सुषमा ने अपने कद का ख्याल रखा.

शिव सेना को भी सुषमा का ये अंदाज पसंद नहीं आया. संजय राउत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है. नवाज शरीफ से खुले तौर पर अपने भाषण में हमारा नाम लिया था, तो हम उसका नाम क्यों नहीं ले सकते?

करीब बीस मिनट के भाषण में सुषमा ने आधा हिस्सा पाकिस्तान और आतंकवाद पर फोकस रखा - 42 बार उन्होंने पाकिस्तान और आतंकवाद और 16 बार इस्लामाबाद का नाम लिया.

इस बीच कांग्रेस पाकिस्तान के खिलाफ ज्यादा सख्ती की पक्षधर नजर आ रही है. कांग्रेस ने पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने की मांग रखी है. इसके अलावा कांग्रेस की मांगों में पाकिस्तान के खिलाफ आर्थिक पाबंदियां लगाना, उसे दिया गया सर्वाधिक वरीयता वाला मुल्क का दर्जा वापस लेना, हाई कमीशन में राजनयिकों की संख्या घटाना और बलूच नेता ब्रहमदाग बुगती को राजनीतिक शरण देना शामिल है.

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बुगती को शरण देने के साथ साथ मोदी सरकार पाकिस्तान को MFN का दर्जा जारी रखा जाये या नहीं इसकी समीक्षा कर रही है.

सोशल मीडिया बाकी बातों की तरह लोगों ने यूएन में विदेश मंत्री के भाषण पर भी रिएक्ट किया है, जिनमें एक सवाल ये भी है कि जब सुषमा का भाषण हिंदी में था तो वे कौन लोग थे जिन्हें बार बार टीवी पर ताली बजाते सुना गया?

सुषमा को कभी लिखा हुआ भाषण पढ़ने की जरूरत नहीं होती, लेकिन कुछ मौकों पर ऐसा करना पड़ता है. प्रधानमंत्री मोदी इस भाषण के स्वाभाविक स्क्रिप्ट डायरेक्टर थे, लेकिन आखिरी वक्त में उन्होंने इसे संशोधित कर दिया. ऐड ऑन के तौर पर 'खून और पानी साथ नहीं बहेंगे' जोड़ दिया - लिहाजा मीडिया में जो स्पेस सुषमा को मिलती उसमें भी मोदी ने हिस्सेदारी बांट ली.

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