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Updated: 19 फरवरी, 2022 06:36 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कुमार विश्वास (Kumar Vishwas) ने अपने लेटेस्ट इंटरव्यू को ही ट्वीट करते हुए लिखा है - "फ्लावर समझा क्या?" मतलब, वो फिल्म पुष्पा में अल्लू अर्जुन का डायलॉग बोल कर कहना चाहते हैं, "फायर हूं मैं."

आखिर कुमार विश्वास किस बात से चिढ़े हुए हैं? पुरानी दुश्मनी के जख्म हरे हो जाने से या कुछ नये डेवलपमेंट से? अरविंद केजरीवाल के हास्य रस का कवि करार दिये जाने से या यूथ कांग्रेस के नेता श्रीनिवास बीवी की भगवंत मान के साथ जोड़ कर ट्वीट किये जाने से?

अरविंद केजरीवाल के कुमार विश्वास को हास्य कवि बताने पर श्रीनिवास बीवी ने पूछ लिया था कि अगर कुमार विश्वास हास्य कवि हैं तो भगवंत मान क्या हैं?

इंटरव्यू में कुमार विश्वास का गुस्सा फूट पड़ता है और वो अपना पूरा बॉयोडाटा हाथ के हाथ बता डालते हैं - पढ़ा लिखा हूं, फोर फर्स्ट क्लास हूं, गोल्ड मेडलिस्ट हूं, 17 साल विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी है. फिर भगवंत मान की शिक्षा दीक्षा पर वैसे ही सवाल उठाते हैं जैसे पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने बयान दिया है.

अरविंद केजरीवाल को पुराने अंदाज में ही नये सिरे से कुमार विश्वास चैलेंज करते हैं, मैं चुनौती दे रहा हूं कि वो किसी भी मंच पर आकर मुझसे बात कर लें... मैं अपनी बात को साबित कर दूंगा कि उनके देश को बांटने वालों से संबंध थे... वो जब खालिस्तानियों से बैठकें कर रहे थे और मैंने सवाल उठाया था तो मुझे चुप रहने को कहा गया था...'

और एक बार फिर से ललकारते हैं, 'अगर आज भी हिम्मत है तो वो कह दें कि मैं खालिस्तान को कभी नहीं बनने दूंगा - मैं इसके खिलाफ हूं!'

कहीं ऐसा तो नहीं कि जाने अनजाने में कुमार विश्वास गलती से मिस्टेक कर दे रहे हों - और दुश्मनी का बदला लेने के लिए हिसाब किताब बराबर करने के चक्कर में ऐसी बातें कर रहे हों जिनसे नुकसान के बजाय अरविंद केजरीवाल का सीधा फायदा हो जा रहा हो?

मायावती के बारे में तो ये खुल्लम खुल्ला समझा जा रहा है, यूपी चुनाव में. सिर्फ एक विधानसभा सीट को छोड़ कर - करहल. मैनपुरी के करहल से समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं. यहां तक कि गोरखपुर सदर, बलिया के बैरिया और जहूराबाद जैसी सीटों के समीकरणों को समझें तो मायावती की राजनीति को आसानी से समझा जा सकता है - हो सकता है, मायावती के मुताबिक, मौजूदा दौर में सरवाइवल के लिए यही फॉर्म्यूला फिटेस्ट हो!

मौजूदा बहस-मुबाहिसे के बीच अरविंद केजरीवाल को निशाने पर लेते हुए कुमार विश्वास ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की आम आदमी पार्टी नेता से तुलना भी कर डाली है. - और उस तुलनात्मक ऑब्जर्वेशन में कुमार विश्वास की बात पॉलिटिकली करेक्ट है या नहीं, ये उनके ऑब्जेक्टिव के हिसाब से ही तय किया जा सकता है.

असल में कुमार विश्वास ने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को भी प्रधानमंत्री मोदी जैसा ही बता डाला है - और वो भी राष्ट्रवाद के मुद्दे पर. ये राष्ट्रवाद ही वो मुद्दा है जिस पर कांग्रेस और बीजेपी की मोदी सरकार अक्सर फेस-टू-फेस नजर आते हैं. राहुल गांधी जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चीन के मुद्दे पर सवाल पूछते हैं, बीजेपी की तरह से चीन के साथ उनके निजी रिश्ते पर सवाल खड़ा कर दिया जाता है.

rahul gandhi, kumar vishwas, narendra modiकुमार विश्वास जान बूझ कर अपनी राजनीति को नये मोड़ पर लाये हैं या फिर दुर्घटनावश ऐसा हो गया है?

यहां तक कि 2019 के आम चुनाव में भी जब पुलवामा हमले का मुद्दा जोर शोर से छाया हुआ था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार बार राहुल गांधी को पाकिस्तान की भाषा बोलने के लिए कठघरे में खड़ा किया करते रहे - और अब भी बीजेपी नेतृत्व के इस स्टैंड में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है.

ये कहते हुए कि 'कम से कम मोदी और राहुल में तमीज तो है', कुमार विश्वास ने दोनों को एक ही तराजू पर तौलने की कोशिश की है. वो भी बराबरी पर. लिहाजा ये सवाल उठता है कि क्या कुमार विश्वास का ये बयान भविष्य में उनके राजनीतिक जुड़ाव या अवसरवादिता की तरफ इशारा कर रहा है?

मोदी और राहुल दोनों की तारीफ बटोर रहे हैं कुमार विश्वास

पंजाब चुनाव में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तो प्रधानमंत्री मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल दोनों को ही RSS का बता कर खूब हमले बोल रही हैं, लेकिन मोदी और राहुल दोनों ही केजरीवाल को टारगेट करने के लिए कुमार विश्वास का ही हवाल दे रहे हैं.

बदले में कुमार विश्वास भी पंजाब के गर्मागर्म राजनीतिक माहौल में मोदी और राहुल को वैसा ही तवज्जो दे रहे हैं जैसे उनकी महफिलों में नामी गिरानी शायरों को मिलता रहा है. महफिलों में तो कुछ भी चल जाता है, लेकिन चुनावी माहौल में हर लफ्ज के अलग सियासी मायने होते हैं.

मोदी और राहुल को राजनीतिक रूप से एक दूसरे के विरोधी बताते हुए, कुमार विश्वास कहते हैं, 'लेकिन जब बात देश की अखंडता की होती है, तो वे लोग भी एक हो जाते हैं.'

क्या कुमार विश्वास को ये इल्म भी है कि प्रधानमंत्री मोदी की राहुल गांधी से सरेआम तुलना और दोनों को बराबरी में दिखाना संघ, बीजेपी और खुद मोदी को कैसा लग रहा होगा?

और ये सुन कर कैसा लगता होगा, जब कुमार विश्वास कहते हैं, 'राहुल गांधी ने देश की अखंडता के लिए अपने पिता और दादी को खो दिया, लेकिन केजरीवाल पता नहीं क्‍या बोलते हैं?'

कुमार विश्वास के बयान पर केजरीवाल से राहुल गांधी का सवाल: पंजाब के बस्सी पठाना की रैली में राहुल गांधी कहते हैं, 'लंबे भाषण की जरूरत नहीं है... एक शब्‍द... मीडिया से आप मिलते हैं... एक शब्‍द मसलन... कुमार विश्‍वास झूठ बोल रहा है... मैंने ऐसी बात नहीं की या कुमार विश्‍वास सच बोल रहा है मैंने ऐसी बात की थी... केजरीवाल जवाब नहीं दे रहे... वो जवाब क्‍यों नहीं दे रहे हैं... हां - क्‍योंकि आम आदमी के फाउंडर सच बोल रहे हैं.'

और फिर राहुल गांधी पंजाब के लोगों को आगाह करते हैं, 'जो भी आदमी आतंकवादी के घर में सो सकता है, वो पंजाब की रक्षा कैसे करेगा? जो आदमी डर जाता है, वो पंजाब की रक्षा कैसे करेगा?'

कुमार विश्वास के बयान पर केजरीवाल से प्रधानमंत्री मोदी का सवाल: कुमार विश्वास की तरफ से छेड़ी गयी बहस को ही आगे बढ़ाते हुए केजरीवाल के बारे में प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, 'ये लोग पंजाब को तोड़ने का सपना पाले हुए हैं... ये लोग सत्ता के लिए अलगाववादियों से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं... सत्ता पाने के लिए इन लोगों को अगर देश भी तोड़ना पड़े, तो ये लोग उसके लिए भी तैयार हैं... इनका एजेंडा और देश के दुश्मनों का एजेंडा, पाकिस्तान का एजेंडा अलग है ही नहीं.'

मोदी समझाते हैं कि केजरीवाल की असलियत उनके ही करीबी रहे ऐसी शख्सियत के जरिये सामने आया है जिसकी युवाओं की देश भर में फैन फॉलोविंग है. स्थिति की गंभीरता को लोग समझ सकें, ये सोच कर मोदी बताते हैं, 'दर्द जब बहुत ज्यादा होगा, तब ये खुलासा किया... देश के लिए मरने-मिटने में कोई आगे रहा है तो वो मेरा पंजाब है... ये उन गुरुओं की भूमि है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये थे.'

कुमार विश्वास का हासिल क्या है - और प्लान क्या है?

अभी तो कुमार विश्वास जिस राजनीतिक राह पर चले जा रहे हैं, उसमें आगे कुआं और पीछे खाई ही नजर आ रही है. जब कुमार विश्वास का स्टैंड फायदेमंद लगता है, ऐन उसी वक्त खतरनाक भी लगता है जैसे कभी भी बैकफायर कर सकता है.

कुमार विश्वास ने अरविंद केजरीवाल की अपने आकलन के अनुसार दो विशेषताएं बतायी है, 'पहला विश्वास के साथ झूठ बोलना और दूसरा विक्टिम कार्ड खेलकर यह दिखावा करना कि हर कोई उनके खिलाफ गिरोह बना रहा है... दो चालों के साथ, एक बार देश को बेवकूफ बनाया, फिर अपने सहयोगियों को.'

लेकिन बात बस इतनी ही नहीं लगती है. कोई हिडेन एजेंडा भी तो हो सकता है, जो सीधे सीधे सामने से समझ में नहीं आ रहा हो.

1. कुमार विश्वास 2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी में चुनाव लड़ चुके हैं. अब क्या ये मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं कि वो ऐसा कभी नहीं करते बल्कि केजरीवाल ने उनसे ऐसा करा लिया?

2. दिल्ली में एक बार तख्तापलट की जबरदस्त चर्चा रही. जब कपिल मिश्रा ने केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे. जैसे ही मनीष सिसोदिया के जरिये केजरीवाल को अपने खिलाफ साजिश की भनक लगी, कपिल मिश्रा को बर्खास्त कर दिया - तब ये भी चर्चा रही कि कपिल मिश्रा की पीठ पर कुमार विश्वास का ही हाथ रहा और वो केजरीवाल को रिप्लेस करना चाहते थे - कहीं नये सिरे से ऐसी कोई कवायद तो नहीं चल रही है?

3. कुमार विश्वास आप से अलग होने के बाद अपनी एंटी-केजरीवाल मुहिम चलाते रहे हैं. बयान तो कुमार विश्वास के ऐसे ही दिल्ली चुनाव के दौरान भी ट्विटर पर आते रहे, लेकिन पंजाब की तरह हिट नहीं हुए. तब कांग्रेस ने भी इग्नोर किया था और बीजेपी की तरफ से अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा आक्रामक बने हुए थे, शायद इसलिए भी जरूरत महसूस नहीं हुई होगी - नयी गर्माहट का कोई नया असर भी हो सकता है क्या?

4. जब तक केजरीवाल का साथ रहा कुमार विश्वास की राजनीति भी खूब चली. जब झगड़ा हो गया तो बीजेपी का सपोर्ट मिलने लगा, लेकिन तब क्या होगा अगर सत्ता में कांग्रेस लौट आयी?

लगता है कुमार विश्वास भविष्य का ध्यान रखते हुए, भूल-चूक लेनी वाले लहजे में समझा बुझा कर गिले-शिकवे खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं - मोदी और राहुल को बराबरी में पेश करने का एक मतलब तो यही लगता है.

5. सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि कुमार विश्वास की ताजा राजनीतिक सक्रियता का डबल फायदा और उतना ही नुकसान भी संभव है. अगर राहुल गांधी पुरानी दुश्मनी नहीं भूल पाये - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी राहुल गांधी को लेकर कुमार विश्वास की नयी पेशकश से नाराज हो गये तो?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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