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Updated: 18 मार्च, 2022 06:18 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) को शुरू हुए अब 22 दिन हो चुके हैं. यूक्रेन और रूस की सेनाएं जमीन पर आमने-सामने हैं. और, जंग से युद्धक्षेत्र के हालात भयावह होते जा रहे हैं. दोनों ही देशों की सेना एकदूसरे पर वार-पलटवार कर रही हैं. यूक्रेन को अमेरिका और सैन्य संगठन नाटो के सदस्य देशों से हथियारों के रूप में मिल रही मदद की वजह से रूस अभी तक युद्ध जीत नहीं सका है. रूस पर तमाम तरह के आर्थिक और सामरिक प्रतिबंध लगाकर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को अलग-थलग करने की कवायद भी जारी है. लेकिन, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अभी भी झुकने को तैयार नही हैं. हालांकि, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध रोकने को लेकर बातचीत भी जारी है. लेकिन, अभी तक इसका नतीजा सिफर ही रहा है. वहीं, बीते दिनों यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की ने एक बयान में कहा है कि 'यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं हो सकता है और जनता को ये तथ्य स्वीकार कर लेना चाहिए.' वलाडिमीर जेलेंस्की के इस बयान से रूस और यूक्रेन के बीच तनाव में कमी आने की संभावना है. लेकिन, 22 दिनों बाद आए इस बयान से ये बात तय हो गई है कि रूस यूक्रेन युद्ध खत्म होने पर वलाडिमीर जेलेंस्की ही सबसे बडे़ खलनायक बनेंगे.

volodymyr zelenskyy War Criminalपश्चिमी देशों से मिल रहे हथियारों की सहायता के दम पर यूक्रेन ने रूस की सेना को मजबूत चुनौती दी है.

'देर आए, दुरुस्त आए' वाला नहीं है जेलेंस्की का बयान

रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने से पहले केवल वलाडिमीर जेलेंस्की के पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो में शामिल होने पर आपत्ति जताई थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो रूस यूक्रेन युद्ध छिड़ने का सबसे बड़े बुनियादी कारणों में से एक वलाडिमीर जेलेंस्की की नाटो में शामिल होनी की जिद ही थी. लेकिन, अब जेलेंस्की ने यूक्रेन के नाटो में शामिल नहीं होनी की बात की है. जो किसी भी हाल में 'देर आए, दुरुस्त आए' वाला मामला नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि, रूस-यूक्रेन युद्ध को छिड़े अब 22 दिन हो चुके हैं. यूक्रेन के शहरों में मची रूस की ओर से किए गए मिसाइल हमलों और बमबारी से जो तबाही मची है. कहने को तो उसकी जिम्मेदारी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर आएगी. लेकिन, इस युद्ध में यूक्रेन के सैनिकों और नागरिकों की मौत के जिम्मेदार के तौर पर वलाडिमीर जेलेंस्की का नाम ही सामने आएगा. क्योंकि, जेलेंस्की ने ही सैनिकों के साथ यूक्रेन के नागरिकों को भी जंग में उतरने का आग्रह किया था.

युद्ध खत्म होने के बाद शुरू होगी एक अलग जंग

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पश्चिमी देशों से मिल रहे हथियारों की सहायता के दम पर यूक्रेन ने रूस की सेना को मजबूत चुनौती दी है. लेकिन, रूस ने यूक्रेन को जो नुकसान पहुंचाया है, उसकी वजह से देश कई दशक पीछे चला गया है. क्योंकि, युद्ध को लेकर एक सर्वमान्य बात है कि युद्ध किसी भी देश को दशकों पीछे धकेल देता है. और, यूक्रेन के साथ भी यही हुआ है. युद्ध के बाद कोई भी देश इन्फ्रास्ट्रक्चर, पर्यावरण, मानव सभ्यता, संस्कृति, साधनों और संसाधनों के नष्ट होने जैसी कई दुश्वारियों से दो-चार होता है. तो, यूक्रेन को भी युद्ध खत्म होने के बाद इन दुश्वारियों से जंग लड़नी होगी. युद्ध शुरू होने से पहले यूक्रेन जहां था. वहां तक उसे दोबारा पहुंचने में न जाने कितने साल लग जाएंगे. और, युद्ध की विभीषिका को समझे बिना इस तरह के फैसले के लिए यूक्रेन के नागरिकों में वलाडिमीर जेलेंस्की की छवि किसी हीरो की नहीं बल्कि खलनायक की बनेगी. क्योंकि, रूस की यूक्रेन के नाटो में शामिल न होने की मांग मानकर जेलेंस्की पहले ही इस युद्ध को छिड़ने से रोक सकते थे. और, इसे लेकर जेलेंस्की से सवाल होंगे.

यूक्रेन में फंसे नागरिकों के गुस्से को कौन करेगा शांत?

रूस-यूक्रेन युद्ध के हालात बनने के साथ ही दुनियाभर के देशों ने अपने नागरिकों को वहां से निकालने की कवायद जारी कर दी थी. भारत ने वहां फंसे अपने नागरिकों को निकालने के लिए ऑपरेशन गंगा चलाया. युद्ध छिड़ने के पहले और बाद में यूक्रेन के नागरिकों ने भी बड़ी संख्या में पलायन को एक विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया. लेकिन, यूक्रेन के कई शहरों में युद्ध के हालातों में फंसे नागरिकों को पलायन के लिए रास्ता ही नहीं मिल पा रहा है. दरअसल, वलाडिमीर जेलेंस्की के रूसी सेना के दांत खट्टे कर देने वाले दावों की वजह से यूक्रेन के नागरिक बड़ी संख्या में अपने शहरों में रुक गए थे. लेकिन, रूसी सेना की ओर से जब उन शहरों पर हमले शुरू कर दिए गए हैं, तो इन नागरिकों को मजबूरन बंकरों में शरण लेनी पड़ रही है. वहीं, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की ओर से दावा किया जा रहा है कि जेलेंस्की जान-बूझकर यूक्रेन के नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. वैसे, धरातल पर सच्चाई क्या है, ये वहां उसे झेल रहे नागरिक ही बता सकते हैं. लेकिन, एक बात तय है कि युद्ध खत्म होने के बाद यूक्रेन के तमाम शहरों में फंसे हुए लोगों के गुस्से का शिकार वलाडिमीर जेलेंस्की को ही बनना पड़ेगा.

रूस बढ़ाता जा रहा है युद्ध रोकने की शर्तें

युद्ध शुरू होने से पहले जहां रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन केवल यूक्रेन के सैन्य संगठन नाटो में शामिल होने के खिलाफ थे. वही पुतिन अब हर बदलते दिन के साथ युद्ध रोकने की अपनी शर्तों को बढ़ाते जा रहे हैं. व्लादिमीर पुतिन ने रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए 4 शर्ते रखी हैं. जिनमें यूक्रेन के संविधान में बदलाव, क्रीमिया को रूसी हिस्से के तौर पर मान्यता, डोनेत्स्क-लुहांस्क को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता के साथ यूक्रेन की ओर से सैन्य कार्रवाई बंद करने की मांग की गई है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो किसी एक पक्ष के हथियार डालने से पहले रूस-यूक्रेन युद्ध का रुकना मुमकिन नजर नहीं आता है. वैसे, वलाडिमीर जेलेंस्की ने भले ही नाटो में शामिल न हो पाने की बात जनता को एक तथ्य के तौर पर स्वीकार करने की बात की हो. लेकिन, जेलेंस्की ने इस बयान में भी खुद को इस युद्ध विभीषिका की जिम्मेदारी लेने से अलग कर लिया है. कहा जा सकता है कि अभी भी जेलेंस्की केवल युद्ध को लंबा खींचने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि, पूरी दुनिया इस युद्ध के खिलाफ होकर यूक्रेन के पक्ष में आ जाए. लेकिन, कहीं से भी ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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