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Updated: 02 दिसम्बर, 2021 05:53 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण जारी होने की बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर हर भाजपा नेता अपने कार्यक्रमों में याद दिलाते रहते हैं. और, आगामी 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस में दो साल के भीतर बनकर तैयार हुए काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन करने वाले हैं. यूपी चुनाव 2022 से पहले भाजपा किसी भी हाल में अपने हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने में कोई कोताही बरतती नजर नहीं आ रही है. भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे को यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में धीरे-धीरे हवा देनी शुरू कर दी है. इसका मुजाहिरा उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट ने कर दिया है. केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट के साथ ही 'मथुरा' अब सूबे की राजनीति में हॉट टॉपिक बन चुका है. मौर्य ने ट्वीट कर लिखा है कि अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है. मथुरा की तैयारी है. मौर्य के इस ट्वीट से सूबे में समीकरणों की राजनीति कर रहे विपक्षी खेमे में हड़कंप मचना लाजिमी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो मथुरा की तैयारी की घोषणा अखिलेश यादव के लिए चक्रव्यूह साबित हो सकती है. 

मौर्य के निशाने पर M-Y समीकरण

उत्तर प्रदेश के आठ फीसदी यादव मतदाताओं को समाजवादी पार्टी का वोटबैंक माना जाता है. सूबे की सत्ता में फिर से आने के लिए पूरा जोर लगा रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने M-Y (मुस्लिम+यादव) समीकरण के सहारे ही यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में जीत के सपने देख रहे हैं. इस समीकरण को और ज्यादा मजबूत करने के लिए ही अखिलेश यादव ने गठबंधन राजनीति के सहारे माइक्रो लेवल पर सोशल इंजीनियरिंग का दांव चला है. अखिलेश यादव ने भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने खुद को बेहतर विकल्प साबित करने के लिए जातिवादी पार्टियों का जो गठजोड़ बनाया है, वो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. यही वजह है कि अब मथुरा का मुद्दा उठाकर केशव प्रसाद मौर्य ने चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करने वाले यादव मतदाताओं में सेंध लगाने का प्रयास किया है.

सूबे के आठ फीसदी यादव मतदाताओं पर लंबे समय से समाजवादी पार्टी ही अपना एकाधिकार जताती रही है. समाजवादी पार्टी में यादव परिवार की हनक किसी से छिपी नहीं है. लेकिन, गठबंधन की सोशल इंजीनियरिंग ने समाजवादी पार्टी में यादव नेताओं को हाशिये पर ला दिया है. जिन यादव मतदाताओं को अब तक समाजवादी पार्टी में संगठन से लेकर टिकट बंटवारे तक में भरपूर तवज्जो मिलती रही है. वो वोटबैंक अब अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर साइडलाइन किया जाने लगा है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला पार्टी के लिए कहीं न कहीं खतरे की घंटी बजा रहा है. भाजपा की नजर सपा से नाराज होने वाले इन्हीं यादव वोटों को अपने पाले में लाने की है.

Keshav Prasad Maurya Akhilesh Yadav Mathuraअखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला पार्टी के लिए कहीं न कहीं खतरे की घंटी बजा रहा है.

हिंदुत्व से ऊपर भावनात्मक मुद्दा

इन सबसे इतर सबसे बड़ी बात ये है कि राम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण की तरह ही मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान भी बहुसंख्यक हिंदू आबादी की भावनाओं को छूने वाला मुद्दा है. सूबे की बहुसंख्यक हिंदू आबादी में एक वर्ग उन लोगों का भी है, जिनके लिए किसी पार्टी या विचारधारा से ज्यादा ये मायने रखता है कि राजनीतिक नफा-नुकसान को किनारे रखते हुए इन तमाम मुद्दों पर कौन काम कर रहा है और कौन इनसे दूरी बनाए रखने में ही अपनी भलाई समझ रहा है? ये लोग किसी पार्टी विशेष के मतदाता नहीं होते हैं. इनकी आस्था पर राजनीति हावी नहीं होती है. श्रीकृष्ण जन्मस्थान का मुद्दा उठाकर भाजपा इस मतदाता वर्ग को भी अपने साथ बनाए रखना चाहता है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से भाजपा को जितना फायदा मिलना होगा, वो उसे मिल ही जाएगा. लेकिन, श्रीकृष्ण जन्मस्थान की बात उठाकर भाजपा ने समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बसपा, आम आदमी पार्टी समेत सभी विपक्षी दलों की सॉफ्ट हिंदुत्व वाली राजनीति को भी कठघरे में खड़े करने की कोशिश की है.

सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे भाजपा को असहज करने की कोशिश में विपक्षी दलों ने भाजपा को हिंदुत्व की पिच पर बैटिंग करने के लिए एक बड़ा मैदान उपलब्ध करा दिया है. बीते कई दशकों से भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे को ही अपनी राजनीति का केंद्र बिंदु बनाया हुआ है. 2014 के आम चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने पर हिंदुत्ववादी एजेंडे को और धार मिली थी. इसके बाद भाजपा के लिए हिंदुत्व एक अचूक सियासी हथियार बन चुका है. भाजपा ने धारा 370, CAA जैसे लोगों की भावनाओं से जुड़े मुद्दों पर काम करते हुए खुद को मजबूत बनाया है. 'मंदिर वहीं बनाएंगे, लेकिन तारीख नहीं बताएंगे' के नारे के साथ राम मंदिर को लेकर भाजपा की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाने वाले सियासी दलों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अपनी राजनीति में बदलाव लाना पड़ा है.

वैसे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं. लेकिन, सीएम योगी ने अयोध्या के साथ ही मथुरा पर भी विशेष फोकस बनाए रखा था. दुनियाभर में प्रसिद्ध बरसाने की लठ्ठमार होली को राजकीय मेले का दर्जा देने की बात हो या जन्माष्टमी के आयोजनों भव्य स्वरूप प्रदान करने की योगी आदित्यनाथ ने मथुरा को अपने एजेंडे से बाहर नहीं होने दिया है. कुछ समय पहले ही श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और क्रीड़ास्थली वृंदावन को योगी आदित्यनाथ ने तीर्थस्थल घोषित किया था. जिसके बाद मथुरा-वृंदावन नगर निगम के 22 वार्डों में मांस-मदिरा की बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया गया था. सीएम योगी के इस फैसले को काफी सराहा गया था. 

चक्रव्यूह से कैसे निकलेंगे अखिलेश?

यूपी चुनाव 2022 से पहले सूबे की सियासत में मथुरा की एंट्री होना पहले से ही तय था. दरअसल, दिवाली से एक दिन पहले सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में मनाए गए दीपोत्सव कार्यक्रम में घोषणा की थी कि अगर अगली कारसेवा होगी, तो गोली नहीं चलेगी. रामभक्तों व कृष्णभक्तों पर पुष्पों की वर्षा होगी. हिंदुत्व के फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ ने अपनी तासीर के हिसाब से ही यूपी चुनाव में 'अब्बाजान' से लेकर 'जिन्ना बनाम गन्ना' तक का तड़का लगा दिया है. समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भले ही 'मथुरा की तैयारी' के मामले पर ये कहें कि इस बार कोई रथ यात्रा या नया मंत्र भाजपा की मदद करने वाला नहीं है. लेकिन, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सॉफ्ट हिंदुत्व के नाम पर टेंपल रन में जुटे अखिलेश यादव को आज नहीं तो कल मथुरा पर लोगों के बीच जवाब देना ही पड़ेगा. और, ये जवाब भाजपा का विरोध भर करने के नाम से मतदाताओं को संतुष्ट नहीं कर पाएगा.

बीते महीने ही भाजपा के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने यादव बेल्ट के तौर पर जाने वाले एटा में अखिलेश यादव को खुली चुनौती पेश कर दी थी. हरनाथ सिंह यादव ने अखिलेश यादव के 'जय माधव, जय यादव' के नारे पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए थे. हरनाथ यादव ने कहा था कि अगर अखिलेश यादव में दम है, तो मंच से खड़े होकर बोलें कि भगवान कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा में है, जहां पर अवैध तरीके से मस्जिद खड़ी हुई है. उस मस्जिद को हटाकर भगवान कृष्ण की जन्मभूमि पूरी तरह से मस्जिद मुक्त होनी चाहिए. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भाजपा ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत मथुरा के मुद्दे को उठाया है. अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग के दांव से यादव समाज में बने खांचे को भाजपा और बढ़ाने की कोशिश कर रही है. भाजपा ने मथुरा की तैयारी के सहारे अपना दांव चल दिया है. देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश यादव भाजपा के इस चक्रव्यूह का क्या तोड़ निकाल कर लाएंगे?

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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