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Updated: 02 जून, 2016 01:03 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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दिल्ली सरकार राजधानी में बिजली कटौती की समस्या से निजात पाने की कोशिश कर रही है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पॉवर कंपनियों पर शिकंजा कसने के लिए फरमान जारी किया है कि राजधानी में किसी क्षेत्र की बिजली यदि एक घंटे गुल रहती है तो वहां के बाशिंदों के बिजली बिल से 50-50 रु. कम कर दिए जाएंगे. यदि दूसरे घंटे भी बिजली नहीं आई तो 50 रु. और (कुल सौ रु. की कमी). उसके बाद के हर घंटे पर मुआवजा सौ रु. प्रति घंटे की दर से दिया जाएगा.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निशाने पर दिल्ली की पॉवर ट्रांसमिशन कंपनियां (बीएसईएस यमुना, बीएसईएस राजधानी और टाटा पॉवर) शुरू से रही हैं. मुख्यमंत्री बनने से पहले ही केजरीवाल ने रिलायंस और अन्य पॉवर कंपनियों को आड़े हाथों लेने की कोशिश की. केजरीवाल का दावा रहा कि इन कंपनियों के चलते ही राजधानी में बिजली की दरें अधिक हैं क्योंकि यह कंपनियां कागजों पर फर्जी घाटा दिखाकर राज्य में उपभोक्ताओं से मनमानी वसूली करती हैं. लिहाजा, केजरीवाल ने खुद इन पॉवर कंपनियों का ऑडिट करने की मांग रखी है और आए दिन इस बात को दोहराते भी रहते हैं. इन सबके बावजूद गर्मी आते ही राज्य में बिजली कटौती की गंभीर समस्या खड़ी हो जाती है. दिल्ली के कई इलाकों में घंटो तक बिजली सप्लाई बाधित रहती है और कंपनियां आमतौर पर इसे मेंटेनेंस और पॉवर लोड के नाम पर जायज ठहरा देती हैं.

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राजधानी दिल्ली में बिजली कटौती से परेशान लोग

दिल्ली सरकार का दावा है कि राजधानी में तीन पॉवर ट्रांसमिशन कंपनियों के जरिए 7000 मेगावाट बिजली प्रतिदिन सप्लाई करने की क्षमता है. बीते कुछ दिनों की प्रचंड गर्मी में अभी तक अधिकतम खपत 6188 मेगावाट तक पहुंची है और शनिवार और इतवार की न्यूनतम खपत 5,833 मेगावाट प्रतिदिन पर है. इस स्थिति में दिल्ली की पॉवर कंपनियों के पास सप्लाई के लिए लगातार अतिरिक्त बिजली रहती है लेकिन इसके बावजूद कई इलाकों में लंबे अंतराल तक पॉवर कट देखने को मिला है. इसपर पॉवर कंपनियों की दलील है कि अधिक गर्मी की वजह से बिजली की खपत बढ़ गई है और अधिक लोड के चलते कई इलाकों में कंजेशन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. इस कंजेशन से कई इलाकों में लोकल फॉल्ट पैदा हो जाता है जिसके रिपेयर के लिए उन्हें बिजली सप्लाई बाधित करनी पड़ती है.

वहीं दिल्ली सरकार का दावा है कि उसने राजधानी के लिए पर्याप्त बिजली मुहैया करा रखी है और जरूरत पड़ने पर उसके पास और बिजली खरीदने का प्रावधान है. लेकिन दिल्ली में बेतहाशा कटौती के लिए वह पॉवर कंपनियों को जिम्मेदार मानते हुए दावा करती है कि कंपनियां समय रहते अपने इंफ्रास्ट्रक्चर का रख-रखाव नहीं करती और मेंटेनेंस में इसी लापरवाही के चलते भीषण गर्मी में उसके नेटवर्क लोकल फॉल्ट की संख्या बढ़ जाती है.

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क्यों कारगर नहीं है मुआवजे का फॉर्मूला

- न तो ट्रांसफॉर्मर और न ही घरेलू बिजली मीटरों में कोई टाइमर लगा है जो यह दर्ज कर सके कि कितने घंटे बिजली कटौती हुई.

- कंपनियों का कहना है कि सरकार ने मुआवजे का एलान एकतरफा किया, बिना कंपनियों की बात सुने. ऐसे में वे इसके खिलाफ कोर्ट जाएंगी.

- सरकार भी इस बात से वाकिफ है कि जिस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के पास अभी है, उसे पूरा बदलने में करोड़ों रुपए खर्च होंगे और कम से दो साल लगेंगे सभी ट्रांसफॉर्मर और करीब 50 लाख बिजली मीटर बदलने में.

- अभी जिस तरह के मीटर लोगों के घरों में लगे हुए हैं उसकी तुलना में टाइमर वाले ऐसे स्मार्ट मीटर 6 से 8 गुना महंगे होते हैं.

- कई झु‍ग्गी बस्तियों के भीतर तो केबल भी बदलना होगी.

- यह तय करने में कठिनाई है कि इलाके में जो बिजली गुल हुई वह कंपनी की गलती के कारण हुई या किसी कंज्यूमर की गलती से.

- दिल्ली के कई इलाकों और संकरी बस्तियों में एप्रोच रोड ही नहीं है. यदि वहां कोई खराबी आती भी है तो बिजली कंपनियों का कहना है कि वे दो घंटे तक तो मौके पर ही नहीं पहुंच पाएंगे.

- खिड़की एक्स टेंशन, जहांगीरपुरी, नरेला, सीलमपुरी, कल्याीणपुरी, कोंडली, जामिया नगर, देवली, बाटला हाउस, शाहीन बाग जैसी बस्तियों में तो सब-स्टेगशन या बिजली लाइन बिछाने की जगह ही नहीं है. अवैध कब्जोंम ने मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर को भी बिगाड़ दिया है. यहां पर बिजली गुल होने की वजह सिर्फ बिजली कंपनी नहीं होती.

- झूठी शिकायतों से कैसे निपटेंगे, अभी स्पष्ट नहीं.

- पतंगों की वजह से यदि किसी 33/66 केवी लाइन में फॉल्टै होता है तो दस हजार घरों की बिजली गुल होगी. इस फॉल्टं को दुरुस्त करने में 15 मिनट से 3 घंटे तक लगते हैं. ऐसे में मुआवजा बिजली कंपनी क्यों दे?

- बिजली कंपनियां इन सभी तर्कों के साथ इस आदेश के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी में हैं.

ये तो कॉल ड्रॉप जैसा मामला हुआ…

कॉल ड्रॉप की बढ़ती समस्या पर अपनी गंभीरता जाहिर करते हुए जब केन्द्र सरकार ने टेलिकॉम कंपनियों से उपभोक्ताओं को प्रति कॉल ड्रॉप मुआवजा देने को कहा तो लगा कि कुछ ही दिनों में मोबाइल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार होगा और कॉल ड्रॉप से निजात मिलेगी. इस फैसले से सरकार ने जहां उपभोक्ताओं को घटिया सर्विस के लिए सब्सिडी की रेवड़ी दी वहीं कंपनियों को जल्द से जल्द अपनी टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करने का फरमान सुना दिया.

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अब कॉल ड्रॉप के मुद्दे पर तो सरकार का फरमान सुप्रीम कोर्ट में औंधे मुंह गिर गया. महीनों के इंतजार के बाद भी उपभोक्ताओं को न तो टेलिकॉम कंपनियों से फूटी कौड़ी मिली और न ही टेलिकॉम कंपनियां कॉल ड्रॉ की समस्या को और विकट होने से रोक पाई. नतीजा यही है कि आज कॉल ड्रॉप मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए हकीकत है और महीनों की मशक्कत के बाद टेलिकॉम कंपनियों को कॉल ड्रॉप से रेवेन्यू का फायदा ही हो रहा है.

अब आपको खुद समझ आ गया होगा कि दिल्ली में बिजली कटौती का पूरा मामला क्यों मोबाइल नेटवर्क में कॉल ड्राप जैसा है. दोनों ही मामलों में कुल तीन खिलाड़ी हैं- परेशान उपभोक्ता, लापरवाह कंपनी और कमजोर सरकार. लिहाजा, दोनों ही मामले में जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है तो सरकार के पास उपभोक्ता की परेशानी दूर करने के लिए कंपनी पर जिम्मेदारी मढ़ने के सिवाए कोई विकल्प नहीं बचता. लिहाजा, आनन फानन में ऐसा फैसला कर दिया जाता है कि उपभोक्ताओं को उनकी समस्या पर कुछ कंपनसेशन दे दिया जाए और अपने फर्ज को पूरा मान लिया जाए.

हालांकि, एक आसान सी बात किसी सरकार या कंपनी को समझ नहीं आती. कोई भी उपभोक्ता बिजली या मोबाइल फोन जैसी सुविधा इसलिए नहीं लेता कि उसे कटौती और कॉल ड्रॉप के लिए मुआवजा मिले बल्कि इसलिए कि इस सुविधा से उसकी जिंदगी रफ्तार थाम सके और सुचारू रूप से उसी रफ्तार से आगे बढ़ती रहे. लेकिन सरकार और कंपनियों का दृष्टिकोण प्राय: मुआवजे का रहता है. जैसे कोई रेल हादसा, सड़क दुर्घटना या सरकार की देखरेख में होने वाले किसी कार्यक्रम में जब भी कोई घटना होती है तो सरकार की तरफ से सबसे पहले मृतक और घायलों की संख्या को देखते हुए मुआवजे का ऐलान कर दिया जाता है. लेकिन यह कोशिश कभी नहीं की जाती कि किस तरह रेल, सड़क या कोई अन्य दुर्घटना को होने से बचाया जा सके.

मुख्यामंत्री केजरीवाल ने आदेश का नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा कि बिजली कंपनियां तार टूटने, तकनीकी फॉल्टा और मेंटेनेंस का तर्क देती हैं, लेकिन ऐसा लंदन या वॉशिंगटन में क्यों नहीं होता? बात सही भी है. यदि बिजली सप्लािय की व्य वस्थाी को दुरुस्ते करने की कवायद में मुआवजे के प्रावधान को पहला कदम मानें तो भी यह गलत है. पहला कदम बिजली कं‍पनियों को साथ लेकर उठाया जाना था. जिनमें पहले ढांचागत सुधार और अंत में मुआवजे की व्य वस्थाद होती.

पिज्जा कंपनियां एक निश्चित समय के बाद डिलिवरी मिलने पर पिज्जा मुफ्त देने का वादा ग्राहकों से इसीलिए करती हैं, क्योंकि पहले उन्होंने डिलीवरी नेटवर्क को उतना मजबूत बना लिया है कि उन्हें ऐसा न करना पड़े.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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