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Updated: 17 अप्रिल, 2015 07:58 AM
मार्कंडेय काटजू
मार्कंडेय काटजू
  @justicekatju
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गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को इंदौर में जैन संतों को संबोधित करते हुए कहा कि वे गौ-वध पर राष्ट्रीय प्रतिबंध का समर्थन करते हैं. और इस मसले पर जनता की राय जानने की कोशिश भी करेंगे.

भारत में कोई भी इस मुद्दे पर आम सहमति का हिस्सा हो सकता है. लेकिन इस पर सभी एक मत नहीं होंगे. मैं पूरी तरह से इस प्रतिबंध के खिलाफ हूँ. जिसके निम्नलिखित कारण हैं:

1. मुझे बीफ खाने में कुछ भी गलत नहीं दिखता है. दुनिया में अधिकांश जगहों पर बीफ खाया जाता  है. तो क्या वे सभी लोग शैतान हैं?

2. बीफ प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है. और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा के अलावा केरल जैसे कुछ अन्य राज्यों में लोग बीफ खाते हैं. वहां इसकी बिक्री पर प्रतिबंध नहीं है.

3. मैं कभी-कभी बीफ खाता हूँ. मैं आम तौर पर मेरी पत्नी और अन्य रिश्तेदारों की धार्मिक भावनाओं के सम्मान में बाहर नहीं खाता हूँ क्योंकि वे रूढ़िवादी हिंदू हैं. लेकिन अगर मौका मिलेगा तो मैं इसे फिर से खाऊंगा. मैं दूसरों को बीफ खाने के लिए मजबूर नहीं कर रहा हूँ. लेकिन क्या दूसरों को मुझे रोकने का हक होना चाहिए? एक लोकतांत्रिक देश में हर किसी को अपनी पसंद का खाना खाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए.

4. इस तरह के प्रतिबंध हमारी पिछड़ी सामंती मानसिकता को दिखाकर हमें पूरी दुनिया के सामने एक उपहास का पात्र बना रहे हैं.

5. गोहत्या के खिलाफ रोने वालों को उन हजारों गायों की कोई चिन्ता नहीं है, जो सड़कों पर आवरा घूमते हुए खाने के लिए परेशान होती हैं. जब गाय दूध देने लायक नहीं रहती या उनकी उम्र हो जाती है. या फिर अन्य कारणों से अक्सर उन्हें बाहर निकालकर लावारिस छोड़ दिया जाता है. मैंने सड़कों के किनारे गायों को गंदगी और कचरा खाते हुए देखा है. मैंने इतनी पतली गायों को देखा है, जिनकी पसलियां उनके मांस से बाहर दिख रही होती हैं. गायों को भूखा मरने को छोड़ दिया जाता है तो क्या यह गोहत्या नहीं है? लेकिन किसी को इस बात की परवाह नहीं है.

मुझे कहते हुए अफसोस हो रहा है कि आजकल इस तरह के प्रतिबंध केवल राजनीतिक से प्रेरित हैं. इसके अलावा कुछ नहीं. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में पहले से ही महाराष्ट्र पशु परिरक्षण अधिनियम, 1976 के तहत गो हत्या पर प्रतिबंध है. (जिसमें गाय के बछड़े भी शामिल हैं). लेकिन बैल और भैंस के लिए "फिट टू स्लॉटर' प्रमाण पत्र होने पर उनकी हत्या की इजाजत दी जाती है. मगर अब 2 मार्च 2015 से लागू एक नए कानून के मुताबिक बीफ की बिक्री और निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है. जिसकी वजह से कई लोग बेरोजगार हो गए हैं.

कुछ लोग कहते हैं कि एक गाय की हत्या मानव हत्या के समान है. मुझे यह एक मूर्खतापूर्ण तर्क लगता है. कैसे कोई इंसान एक पशु समान हो सकता है? मुझे डर है कि ऐसे प्रतिबंध के पीछे दक्षिणपंथी तत्वों का हाथ है जो कि राष्ट्र के हित में नहीं हैं.

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लेखक

मार्कंडेय काटजू मार्कंडेय काटजू @justicekatju

लेखक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एवं प्रेस कॉउन्सिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष हैं

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