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Updated: 21 नवम्बर, 2020 10:58 PM
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कांग्रेस में विरोध की आवाज थमने की बजाय बुलंद होती जा रही है - और फिलहाल इस मुहिम में सबसे आगे जाने माने वकील और सीनियर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) आगे आगे चल रहे हैं. विरोध के स्वर बने होने की वजह से भी हो सकता है, सोनिया गांधी की बनायी गयी तीनों कमेटियों में से किसी में भी कपिल सिब्बल का नाम नहीं है. वो भी तब जबकि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं की अगुवाई करने वाले गुलाम नबी आजाद सहित चार असंतुष्ट नेताओं को ताजातरीन कमेटियों में जगह मिली है.

खबर है कि कांग्रेस में नये अध्यक्ष के लिए डिजिटल चुनाव की तैयारी चल रही है - और अगले साल की शुरुआत में ही कांग्रेस अधिवेशन बुलाकर राहुल गांधी की फिर से ताजपोशी भी हो सकती है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि अप्रैल मई में पश्चिम बंगाल, केरल, असल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी विधानसभाओं के लिए चुनाव होने वाले हैं.

जब ये सारी खबरें मीडिया में आ चुकी हैं और ये भी तय है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के लिए मन बना भी चुके हैं, तो फिर कपिल सिब्बल के लगातार आक्रामक तेवर को किसी बड़े तूफान का ट्रेलर समझा जाये?

कांग्रेस में कोई नयी बयार तो नहीं बह रही है

कपिल सिब्बल कहते हैं, 'मैं किसी की क्षमता पर उंगली नहीं उठा रहा. पार्टी के संविधान की बात कर रहा हूं कि चुनाव होना चाहिये. अगर हम खुद अपने संगठनों में चुनाव नहीं करवाएंगे तो हम जो रिजल्ट चाहते हैं वो कैसे मिलेगा... यही बातें हमने अपनी चिट्ठी में कही थी.'

सारी बातें अपनी जगह है, फिर भी सवाल खड़ा होता है कि क्या कपिल सिब्बल को सोनिया गांधी के नेतृत्व में पहले वाली आस्था नहीं रही? हर कांग्रेसी गांधी परिवार को भावनात्मक रूप से नेता मानता हैं - लेकिन कपिल सिब्बल की दलीलों में लीगल ऐंगल ही नजर आ रहा है.

राहुल गांधी वैसे भी और कपिल सिब्बल के की सोच के हिसाब से भी तकनीकी तौर पर महज वायनाड के सांसद हैं. बल्कि प्रियंका गांधी वाड्रा फिलहाल कांग्रेस महासचिव हैं - लेकिन बिहार चुनाव में गठबंधन से लेकर चुनाव प्रचार तक राहुल गांधी ने ही सारे फैसले लिये. जहां कहीं भी दिक्कत आयी वहां बाकी मामलों की तरह प्रियंका गांधी संकटमोचक बन कर हाजिर रहीं.

कपिल सिब्बल लाख सफाई दें कि वो गांधी परिवार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ये दावा उनकी बातों का सपोर्ट नहीं करता. कपिल सिब्बल पेशे से मशहूर वकील हैं और अंदर से कवि हृदय हैं. अंग्रेजी में कवितायें लिखते हैं. उनके दो काव्य संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं - एक 2008 में और दूसरा 2012 में. यही वजह है कि वो प्रतीकों में भी अपनी बातें कहते हैं और बिंब उभारने की कोशिश करते हैं. याद कीजिये जब राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद चल रहा था तो वो किस तरह अस्तबल के घोड़ों का जिक्र करके पूरी व्यवस्था पर कटाक्ष किये थे.

ऐसा क्यों लगता है जैसे ऊपर से तमाम दावों के बावजूद कपिल सिब्बल के मन में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रति अब पुरानी भावना समाप्त प्राय हो चुकी है. वो राहुल गांधी की बातों से ही उनको काटने की कोशिश करते हैं और ऐसे वक्त में जहां ज्यादातर कांग्रेसी सोनिया गांधी में पूरी आस्था प्रदर्शित करते हैं, कपिल सिब्बल अलग लाइन ले रखे हैं.

kapil sibalकांग्रेस में आखिर किसकी तरफ है कपिल सिब्बल?

आखिर 23 नेताओं वाली तीसरी चिट्ठी के मार्केट में आ जाने के बाद तो सोनिया गांधी ने इस्तीफे की पेशकश कर ही दी थी, लेकिन सीडब्ल्यूसी में ध्वनि मत से उसे खारिज करते हुए कुछ नेताओं के मान मनौव्वल के बाद सब कुछ फौरन ही रफा दफा हो गया. मीटिंग में चिट्ठी पर चर्चा तो दूर उलटे लिखने वालों पर ही एक्शन की बात होने लगी.

कपिल सिब्बल जिन कांग्रेस नेताओं की आवाज होने का दावा कर रहे हैं, उनकी चिट्ठी में तो साफ तौर पर राहुल गांधी को ही टारगेट किया गया था. कांग्रेस पार्टी के लिए एक ऐसे अध्यक्ष की डिमांड रखी गयी थी जो वास्तव में काम करता हुआ भी नजर आये - साधारण बुद्धि वाला आदमी भी समझ सकता है कि निशाने पर राहुल गांधी ही रहे. जिस तरह से वो चीजों को लेकर गंभीर नजर नहीं आते और महत्वपूर्ण मौकों को छुट्टी मनाने विदेश या किसी गुमनाम जगह चले जाते हैं, उनके प्रति एक लापरवाह नेता की आम धारणा बनी हुई है. कपिल सिब्बल लाख दावा करें कि वो गांधी परिवार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनकी बातें तो राहुल गांधी का खुल्लम खुल्ला विरोध करती नजर आ रही हैं.

सवाल है कि कपिल सिब्बल की नाराजगी की क्या वजह हो सकती है? कांग्रेस के भीतर परदे के पीछे जो भी हुआ हो, एक मीटिंग से ऐसी खबरें जरूर आयी थीं जिसमें कपिल सिब्बल की एक सलाह पर राहुल गांधी के करीबी नेता राजीव सातव ने खूब भला बुरा कहा था. ये वो बैठक रही जो राज्य सभा के सांसदों को लेकर बुलायी गयी थी और सोनिया गांधी की मौजूदगी में ही मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए 2 की सरकार पर सवाल उठाये गये थे.

मीटिंग में जो कुछ भी हंगामा हुआ था वो कपिल सिब्बल की आत्मनिरीक्षण की सलाह को लेकर ही शुरू हुआ था और हालत ये हो गयी कि अपनी खामोशी के लिए मशहूर मनमोहन सिंह को भी बीच बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा था. मीटिंग के अगले दिन कांग्रेस के कई नेताओं ने ट्विटर पर खुलेआम विरोध जताया था.

23 नेताओं वाली चिट्ठी को भी सीधे सीधे सोनिया गांधी या राहुल गांधी के खिलाफ नहीं माना गया था, बल्कि राहुल गांधी के करीबी चापलूसों की टोली से नाराजगी समझी गयी थी.

ये सारी बातें तो यही इशारा कर रही हैं जैसे कपिल सिब्बल का वो गुस्सा अब भी कायम हो और रह रह कर भड़ास के रूप में गुब्बारा बार बार बाहर आकर फूट रहा हो!

गांधी परिवार के एक्टिव रहते कांग्रेस नेतृत्वविहीन कैसे

कांग्रेस पार्टी की कमान फिलहाल सोनिया गांधी के हाथों में है. वही सोनिया गांधी जो कांग्रेस के इतिहास में अध्यक्ष की कुर्सी पर सबसे लंबे वक्त तक बैठी रही हैं. बेशक राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ दी है, लेकिन उनके कामकाज और अधिकारों में सिर्फ एक ही फर्क है - वो कांग्रेस के फैसले से जुड़े किसी कागज पर दस्तखत करने के लिए अधिकृत नहीं हैं क्योंकि ये अधिकार फिलहाल सोनिया गांधी के पास ही है.

कपिल सिब्बल कांग्रेस नेतृत्व को लेकर अपने बयान के चलते अधीर रंजन चौधरी जैसे कांग्रेस नेताओं के निशाने पर रहे हैं.असल में कपिल सिब्बल ने बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद इंडियन एक्सप्रेस को दिये इंटरव्यू में कहा था कि कांग्रेस नेतृत्व को लगता है हार की आदत पड़ चुकी है.

आज तक के साथ इंटरव्यू में कपिल सिब्बल का कहना रहा कि वो गांधी परिवार के खिलाफ नहीं हैं, जैसा कि उनके साथी नेता उनती बातों का मतलब निकाल कर निशाना बना रहे हैं. कहते हैं, खुद राहुल गांधी ने लोक सभा चुनाव के बाद इस्तीफा देते वक्त कह दिया था कि वो अध्यक्ष नहीं बनना चाहते और लगे हाथ ये भी साफ कर दिया था कि वो ये भी नहीं चाहते कि गांधी परिवार का कोई भी सदस्य कांग्रेस का अध्यक्ष बने.

कपिल सिब्बल समझाते हैं कि उनका तो सीधा सा सवाल यही है कि कोई भी राष्ट्रीय पार्टी इतने लंबे समय तक अपने अध्यक्ष के बगैर कैसे रह सकती है? अधीर रंजन चौधरी तो कपिल सिब्बल को कांग्रेस छोड़ कर जहां मर्जी हो चले जाने तक की सलाह दे डाली है, लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि कपिल सिब्बल को ऐसी बातें पार्टी फोरम पर करनी चाहिये, न कि मीडिया में आकर. कपिल सिब्बल के पास इस बात का भी काफी सटीक जवाब है.

कपिल सिब्बल पूछते हैं, मैं पार्टी फोरम में कैसे अपनी बात रखूं जब मैं सीडब्ल्यूसी का हिस्सा नहीं रहा. पार्टी का कोई अध्यक्ष भी नहीं है. कपिल सिब्बल के मुताबिक 23 नेताओं की दस्तखत वाले जिस चिट्ठी की खूब चर्चा रही वो असल में उस विषय में तीसरी चिट्ठी थी. गुलाम नबी आजाद उससे पहले दो वैसी ही चिट्ठियां लिख चुके थे. कहते हैं, जब मुझे मौका मिला मैंने बात की.

चिट्टी को लेकर भी कपिल सिब्बल का सवाल है, किसी ने भी कांग्रेस नेताओं से बात नहीं की. पूछते हैं, 'मैं जानना चाहता हूं कि डेढ़ साल बाद भी हमारा अध्यक्ष नहीं है - कार्यकर्ता अपनी समस्या लेकर किसके पास जायें?'

सोनिया गांधी कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर कार्यकारिणी की सलाह से हर फैसले लेती हैं. कांग्रेस से जुड़े किसी भी दस्तावेज पर दस्तखत करने की पावर अब भी सोनिया गांधी के पास ही है - फिर दिक्कत किस बात को लेकर है?

जब पूरा गांधी परिवार पूरी तरह एक्टिव है, फिर कांग्रेस को नेतृत्वविहीन कैसे माना जा सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कपिल सिब्बल कुछ और इशारा कर रहे हैं और वो बात किसी को समझ में नहीं आ रही है.

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