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Updated: 20 मार्च, 2020 09:25 PM
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मध्य प्रदेश सरकार (Madhya Pradesh govt) की उम्र पांच साल होगी, ऐसी उम्मीद तो कमलनाथ (CM Kamal Nath resigns) को भी शायद ही कभी रही होगी. हो सकता है दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी थोड़ा बहुत अंदाजा, हो लेकिन राहुल गांधी को तो खतरे की आशंका भी पक्की ही रही होगी. कमलनाथ सरकार को लेकर राहुल गांधी को ज्यादा खतरा शिवराज सिंह चौहान या दूसरे बीजेपी नेताओं (Shivraj Singh Chauhan and Jyotiraditya Scindia) से रहा होगा. एक वक्त करीबी रहे दिग्विजय सिंह और हर वक्त साथ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर तो राहुल गांधी को काफी हद तक अंदाजा भी होगा लेकिन वो ये तो नहीं ही सोचे होंगे कि कमलनाथ ही खेल खत्म कर देंगे.

कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन के बाद लगने लगा था कि अब ऑपरेशन लोटस का इंकुबेशन पीरियड सवा साल का होने लगा है - और मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने ही उसे सही साबित कर दिया है. शिवराज सिंह चौहान को तो कुछ बातें, मुलाकातें और प्रेस कांफ्रेंस जैसी सिर्फ जरूरी रस्में ही निभानी पड़ी हैं.

यहां तक कि फ्लोर टेस्ट के लिए भी पूरा इंतजाम स्पीकर नर्मदा प्रसाद प्रजापति (Speaker NP Prajapati) ने कर दिया था और ये कमलनाथ की टीम की तरफ से सबसे बड़ी चूक साबित हुई - सुप्रीम कोर्ट ने तो स्पीकर के वकील को भी पूरा मौका दिया लेकिन वो सुनने समझने को तैयार ही न थे - आखिरकार वो सब किया जिससे भाग रहे थे.

15 साल बनाम 15 महीने

कमलनाथ के इस्तीफे के ऐलान से पहले ही सूत्रों के हवाले से खबर आ चुकी थी क्योंकि मुख्यमंत्री ने राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात का वक्त मांगा था. मुलाकात का वक्त भी ऐसा रहा कि कोई शक-शुबहा नहीं बचा था कि कमलनाथ फ्लोर टेस्ट के मूड में हैं. फ्लोर टेस्ट से तो शुरू से ही कमलनाथ भागते रहे - और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी बोल दिया था कि कमलनाथ के पास नंबर नहीं है.

कमलनाथ ने बीजेपी के 15 साल के शासन के साथ अपनी 15 महीने के सरकार की तुलना की - और उपलब्धियों से भरा बताया. बोले, 15 महीने में भी दो-ढाई महीने तो आम चुनाव और आचार संहिता में चले गये और जो कुछ भी कर पाये वो साढ़े बारह महीने में ही हुआ है. हाथ में एक प्रेस नोट लिये मीडिया से मुखातिब कमलनाथ ने शुरुआत ही बीजेपी पर हमले के साथ किया. बोला कि चुनाव बाद विधानसभा में बहुमत हासिल करने के साथ ही बीजेपी के लोग कहने लगे थे कि सरकार 15 दिन भी नहीं चलने वाली.

kamal nathइस्तीफे के ऐलान के बाद कमलनाथ राज भवन रवाना होते हुए...

अपनी सरकार की उपलब्धियों में कमलनाथ ने कांग्रेस के चुनाव मैनिफेस्टो वचन पत्र के कई काम गिनाये. दावा ये रहा कि वचन पत्र पांच साल के लिए था, लेकिन काफी काम उनकी सरकार ने पहले ही कर दिया. कमलनाथ जो भी दावा करें, लेकिन याद रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने वचन पत्र की दुहाई देते हुई ही बगावत शुरू की थी. सिंधिया ने तब अस्थायी अध्यापकों का मुद्दा उठाया था और कहा था कि उनके लिए आंदोलन करेंगे और कमलनाथ का जवाब रहा - करना चाहते हैं तो करें. कांग्रेस छोड़ बीजेपी ज्वाइन कर चुके सिंधिया ने साफ तौर पर कहा था कि राज्य में किसान त्रस्त हैं और नौजवानों के लिए रोजगार के मौके नहीं हैं.

सबसे बड़ी बाद ये रही कि कमलनाथ ने दावा किया कि '15 महीनों में हमारे ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे' - सिंधिया इल्जाम लगा चुके हैं, 'ट्रांसफर में जमकर भ्रष्‍टाचार हो रहा है और खनन माफ‍िया बेलगाम है.'

बीजेपी को कमलनाथ कितना भी क्यों न कोसते फिरें, सच तो ये है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी वो गांधी परिवार से करीबी और दूसरे प्रभावों का इस्तेमाल करते हुए कब्जा जमाया था. सिंधिया से दुश्मनी साधने में ये भी भूल गये कि दिग्विजय सिंह भी सिर्फ इसलिए साथ में खड़े हैं क्योंकि वो जानते हैं कि दुश्मन के दुश्मन को काम के लिए दोस्त बनाये रखना चाहिये - जब तक सख्त जरूरत हो. बेंगलुरू की यात्रा भी दिग्विजय सिंह ने अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए की, न कि कमलनाथ की सरकार बचाने के लिए.

अब तो सवाल है कि क्या सिंधिया के कांग्रेस छोड़ देने के बाद भी दिग्विजय सिंह और कमलनाथ वैसे ही दोस्त बने रहेंगे? जैसे सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया के जमाने में दोस्ती निभाते रहे - दिग्विजय सिंह का काम भोपाल में रहते हुए कमलनाथ को दिल्ली में बनाये रखना था और कमलनाथ का काम दिल्ली में रहते हुए दिग्विजय को भोपाल में स्थापित किये रहना था. लेकिन आगे भी ऐसा ही होगा, इसकी बहुत ही कम संभावना है - सबसे बड़ी वजह दोनों ही नेताओं के बेटे हैं. दिग्विजय सिंह को जयवर्धन के लिए पूरी ताकत झोंक देनी है और कमलनाथ को नकुलनाथ के लिए. जयवर्धन मध्य प्रदेश में कांग्रेस के विधायक हैं और नकुलनाथ छिंदवाड़ा की पिता की सीट से लोक सभा सांसद हैं.

कैसे अपने ही बुने जाल में उलझ गये कमलनाथ

सवाल ये है कि कमलनाथ को ऐसी स्थिति पैदा होने का अंदाजा नहीं रहा या फिर वो जान बूझ कर जैसे तैसे मामले को लटकाये रखना चाहते थे. इस्तीफा देने से 24 घंटे पहले इंडिया टुडे टीवी के साथ इंटरव्यू में बहुमत होने के दावे के साथ कमलनाथ लगातार फ्लोर टेस्ट से पल्ला झाड़ते रहे - सुप्रीम कोर्ट में भी उनके वकील मामला लंबा खींचने की कोशिश करते रहे.

गवर्नर की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मौजूद अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता ने जब फ्लोर टेस्ट की मांग की तो विरोधी पक्ष की तरफ से कपिल सिब्बल ने ये कहते हुए प्रोटेस्ट किया कि फ्लोर टेस्ट का फरमान जारी करने वाले गवर्नर होते कौन है? कपिल सिब्बल ने कहा कि गवर्नर सिर्फ विधानसभा का सत्र बुला सकते हैं और उसके आगे का काम स्पीकर का होता है.

फ्लोर टेस्ट का मुद्दा 22 विधायकों के बेंगलुरू पहुंच जाने के बाद स्पीकर को भेजे गये इस्तीफे के बाद उठा और उसी बीच स्पीकर एनपी प्रजापति ने एक बड़ी गलती कर दी. स्पीकर ने छह विधायकों के इस्तीफे तो स्वीकार कर लिए लेकिन 16 का लटकाये रखा. कमलनाथ से टीवी इंटरव्यू में जब ये सवाल उटाया गया तो वो ये बात स्पीकर बताएंगे कह कर टाल गये. आखिरकार वही गले की हड्डी साबित हुआ.

टीम कमलनाथ के फ्लोर टेस्ट से भागने को ही बीजेपी के वकील मुकुल रोहतगी ने आधार बना कर पेश किया, दलील दी कि फ्लोर टेस्ट से भागना ही साबित करता है कि सरकार बहुमत खो चुकी है.

मध्य प्रदेश में फ्लोर टेस्ट का आदेश देने में सबसे बड़ा आधार बना स्पीकर का वो फैसला जिसमें वो 22 में से 6 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिये और 16 को यूं ही फंसाये रखा. सुप्रीम कोर्ट में कमलनाथ इसी बात को लेकर घिरने लगे और बाद में पूरी तरह फंस गये.

कोर्ट ने पूछा था कि अगर विधायक स्पीकर के सामने अगले ही दिन पेश हो जायें तो क्या वो उनके इस्तीफे पर फैसला ले लेंगे? स्पीकर के वकील इधर उधर की बातें करते दो हफ्ते का वक्त मांग रहे थे. फिर कोर्ट ने पूछा अगर इस्तीफा देने वाले विधायक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये स्पीकर के संपर्क में आयें तो क्या वो तत्काल फैसला ले लेंगे? इस पर भी स्पीकर राजी नहीं हुए - फिर सुप्रीम कोर्ट ने किसी अलग स्थान पर पर्यवेक्षक की मौजूदगी में विधायकों से मुलाकात कराने पर राय जाननी भी चाही, लेकिन स्पीकर को ये भी मंजूर न था.

अभिषेक मनु सिंघवी चाहते थे कि कोर्ट विधायकों को बीजेपी के बंधन से मुक्त करा दे और ये समझाने की हर संभव कोशिश की - पूछा, विधायक अगर बंधक नहीं हैं तो दिग्विजय सिंह को उनसे मिलने क्यों नहीं दिया गया?

सुप्रीम कोर्ट ने भी इरादे भांप लिये थे. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ा का सीधा सवाल रहा - 'इस्तीफे या अयोग्यता का फ्लोर टेस्ट से क्या संबंध है'

सिंघवी के पास भी दमदार दलीलें बची नहीं थीं, इसलिए, बोले, इससे तय होगा कि नई सरकार में अपनी पार्टी के विश्वासघात करने वाले विधायकों को क्या मिलने वाला है. ये भी समझाने की कोशिश की कि अगर इस्तीफा अस्वीकार कर दिया गया तो विधायक पार्टी व्हिप से बंधे रहेंगे.

ये सुनते ही विधायकों के वकील मनिंदर सिंह तपाक से बोले, व्हिप होने की स्थिति में भी विधायक वोटिंग के लिए नहीं जाने वाले. मनिंदर सिंह को मालूम था कि जब विधायकों को सदस्यता बचाने की ही फिक्र नहीं तो व्हिप से क्या फर्क पड़ता है.

जस्टिस चंद्रचूड़ मंशा तो समझ ही चुके थे बस तस्वीर साफ करने के लिए सवालों के जरिये समझने कोशिश कर रहे थे. बोले, अगर विधायकों ने व्हिप नहीं माना तो भी आप उन्हें अयोग्य करार दे सकते हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा जोड़तोड़ को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिये और फिर फ्लोर टेस्ट का आदेश जारी कर दिया.

लगे हाथ एक छोटी सी लक्ष्मण रेखा भी खींच दी, ताकि किसी और तरीके से हेर फेर की गुंजाइश न बचे -

1. विधानसभा सत्र बुलाया जाये लेकिन कार्यवाही का सिर्फ और सिर्फ एजेंडा बहुमत परीक्षण कराना ही होना चाहिये.

2. फ्लोर टेस्ट की पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग करायी जाये और नियम हो तो लाइव स्ट्रीमिंग भी हो.

3. विधानसभा में सदन के पटल पर विधायकों के हाथ उठाने से ही बहुमत का फैसला किया जाये.

4. अगर कांग्रेस के बागी विधायक लौटना चाहें तो कर्नाटक और मध्य प्रदेश के DGP सुरक्षा मुहैया करायें.

5. और फ्लोर टेस्ट की पूरी प्रक्रिया 20 मार्च, 2020 को शाम 5 बजे तक पूरी कर ली जाये.

कमलनाथ को भी मालूम रही होगी फ्लोर टेस्ट की हकीकत, तभी तो विधानसभा में बहुमत साबित करने की कोशिश भी नहीं की और सीधे राज भवन जाकर गवर्नर लालजी टंडन को इस्तीफा सौंप दिया.

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