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Updated: 19 नवम्बर, 2019 03:09 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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भारत के नए मानचित्र को लेकर नेपाल (Nepal Protest On India New Map) में सियासत तेज है. नेपाल में बढ़ते विरोध-प्रदर्शन (Protest) और तानव के बीच प्रधानमंत्री केपी ओली (Nepal PM KP Oli) ने बड़ा बयान दिया है. नेपाली पीएम ने कहा है कि  कालापानी (Kalapani) नेपाल, भारत और तिब्बत के बीच का ट्रिजंक्शन है और यहां से भारत को तत्काल अपने सैनिक हटा लेने चाहिए. विषय इसलिए भी गंभीर है क्योंकि पहली बार हुआ है जब भारत के नए आधिकारिक नक्शे से पैदा हुए विवाद पर नेपाल के प्रधानमंत्री ने अपनी राय जाहिर की है. ध्यान रहे कि नए मानचित्र में नेपाल के पश्चिमी छोर पर स्थित कालापानी को भारत ने अपना हिस्सा बताया था. वहीं मामले पर भारत लगातार यही तर्क दे रहा है कि नेपाल से लगी सीमा पर भारत के नए नक्शे में कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है.

नेपाल, कालापानी, चीन, मानचित्र, भारत, नरेंद्र मोदी, Nepal    कालापानी पर पूरा नेपाल एकजुट हो गया है और मुद्दे को लेकर विपक्ष भी सरकार और पीएम के साथ आ गया है

आपको बताते चलें कि ये सारी बातें पीएम ओली ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के यूथ विंग 'नेपाल युवा संगम' को संबोधित करते हुए कही हैं. केपी ओली ने कहा है कि, 'हमलोग अपनी एक इंच ज़मीन भी किसी के क़ब्ज़े में नहीं रहने देंगे. भारत यहां से तत्काल हटे.' बताया ये भी जा रहा है कि नेपाली प्रधानमंत्री ने उस सुझाव को भी खारिज कर दिया है जिसमें नेपाल द्वारा एक संशोधित नक्शा जारी करने की बात कही जा रही थी. प्रोग्राम में युवा कम्युनिस्टों से संबोधित होते हुए ओली ने कहा कि यदि भारत हमारी ज़मीन से सेना हटाता हैतो हम संवाद के लिए तैयार हैं.

आपको बताते चलें कि कालापानी भारत और नेपाल को लेकर एकमात्र भूमि विवाद है. और अब तक भारत का ही इस पर कब्ज़ा रहा है. नेपाली प्रधानमंत्री के जो तेवर हैं यदि उनका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि कहीं न कहीं वो जो भी कर रहे हैं उसके पीछे चीन का हाथ है. माना जा रहा है कि इस जमीन को लेकर भारत के खिलाफ जाने के लिए चीन लगातार नेपाल पर दबाव बना रहा है.

भारत ने काफी पहले ही कालापानी को भारत का अंग बनाते हुए उसे अपने नए नक़्शे में जगह दी थी. घटना ने न सिर्फ नेपाल सरकार बल्कि स्थानीय लोगों तक को प्रभावित किया था जिसके बाद जमीन के अधिकार को लेकर नेपाल में प्रदर्शन तेज हो गया था. मामले में दिलचस्प बात ये है कि कालापानी को लेकर नेपाल का सत्तापक्ष और विपक्ष एकजुट है जिसने कहा है कि यदि भारत नहीं मानता है तो फिर नेपाल की सरकार न सिर्फ मामले को गंभीरता से लेगी बल्कि इसके लिए सख्त से सख्त कदम उठाए जाएंगे. आपको बताते चलें कि मामले को गंभीरता से लेते हुए बीते दिनों ही नेपाल के विदेश मंत्रालय की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति निकाली गई थी जिसमें बड़े ही साफ़ लहजे में इस बात को कहा गया था कि कालापानी नेपाल का हिस्सा है.

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद भारत ने नया नक्शा जारी किया था. जारी हुए इस नक़्शे में भारत ने न सिर्फ कालापानी बल्कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान और कुछ हिस्सों को शामिल पूरे विश्व को अपनी शक्ति का एहसास कराया था. नक्शा जारी होने के साथ ही इसे लेकर नेपाल की सड़कों पर प्रदर्शन तेज हो गया था. मामले पर नेपाल के लोगों का मानना था कि ऐसा कर भारत अपनी शक्ति का दुरूपयोग कर रहा है.

वहीं मामले पर नेपाल के पीएम संवाद का सहारा लेने की बात कर रहे हैं. नेपाली प्रधानमंत्री ने बीते दिनों ही इस बात को कहा था कि, नेपाल  अपने पड़ोसी के साथ शांति से रहना चाहता हैं. नेपाली पीएम ओली ने ये भी कहा था कि ,'सरकार इस सीमा विवाद को संवाद के ज़रिए सुलझा लेगी. हमारी ज़मीन से विदेशी सैनिकों को वापस जाना चाहिए. यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम अपनी ज़मीन की रक्षा करें. हमें किसी और की ज़मीन नहीं चाहिए तो हमारे पड़ोसी भी हमारी ज़मीन से सैनिकों को वापस बुलाए.'

बहरहाल इस मामले में चीन का हस्तक्षेप भी देखा जा रहा है. भारत के इस नए नक़्शे का सीधा असर चीन पर हुआ है. अलग अलग मोर्चों पर पाकिस्तान का समर्थन करने के कारण चीन पहले ही आलोचना का शिकार हो रहा है. ऐसे में अब उसका नेपाल को भड़काना उसकी मंशा साफ़ कर देता है. खैर अब जबकि चीन मामले को लेकर नेपाल के साथ आ गया है तो देखना दिलचस्प रहेगा कि वो इस मामले पर नेपाल के साथ कितनी दूर तक जाता है.  

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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