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Updated: 11 मार्च, 2020 02:54 PM
विजय मनोहर तिवारी
विजय मनोहर तिवारी
  @vijay.m.tiwari
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श्रीमंत का इस्तीफा सुर्खियों में है. शहजादे की मुश्किल पर कोई गौर नहीं कर रहा. बादशाह बनने की उम्र पार हो रही है लेकिन शहजादा एक कदम आगे नहीं सरक पा रहा. तुर्रा ये कि बादशाहत खानदानी है. जनता ने मुहर चाय वाले पर लगाई है. शहजादे पर बुढ़ापा घिरता जा रहा है. तख्त पर होता तो राज करता. बिना तख्त अब क्या करे? कहां जाकर करे? थाईलैंड या कोलंबिया, जाए तो कहां जाए? कहां राहत पाए? बिल क्लिंटन ने अभी खुलासा किया है कि व्हाइट हाऊस में काम के दबाव से राहत पाने के लिए वे मोनिका से जुड़े थे. शहजादा शहजादा ही बना हुआ है और तख्त नहीं है तो ये बिना तख्त का तनाव कहां हल्का करे? अभी के रंग-ढंग देखकर लगता नहीं कि तख्त पर बैठना कभी नसीब में होगा. तब तक थाईलैंड-कोलंबिया की साधना यात्राएं जारी रहेंगी.

इस्तीफे का प्रहार करने वाले श्रीमंत का अपनी सियासी स्टाइल है. अंदाज है. आधार है. खानदानी विरासत यहां भी है, लेकिन अपना सुरक्षित गढ़ है. फालोइंग है. सीटों पर असर है. जीत-हार में अहम किरदार होता है. ग्राउंड कनेक्ट है. सुदर्शन हैं. भाषण में बहकते नहीं हैं. संजीदा हैं. जहां हैं, वहां से ज्यादा के हकदार हैं. सत्ता में उलटफेर में बड़ी मेहनत उनकी भी लगी. लेकिन सवा साल उन्हें  दूध में मख्खी की तरह निकालने की पीड़ा से भरे सवा सौ साल जैसे कष्टप्रद थे. दुत्कारने के अंदाज में कह दिया गया कि उतरना है तो उतर जाइए सड़क पर. दूसरे शब्दों में आपकी औकात क्या है? उतर जाइए. किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए यह एक निर्णायक अति की असहनीय स्थिति है.

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वे श्रीमंत हैं ही इसलिए कि बड़े निर्णय लेने की कूवत रखते हैं. तख्त पर लाने और गिराने का दम रखते हैं. दम तो बहुतों के पास होता है. दम दिखाने का दम दुर्लभ है. दिखा दिया. इसीलिए श्रीमंत हैं. वर्ना हम बगल में ही आंख मारता हुआ देख रहे हैं कि ऐसे नॉन सीरियस शहजादे बेदम ही हुआ करते हैं. उनमें इतना भी दम नहीं होता कि वे दम से कह सकें कि उनमें दम नहीं है. बेहतर होगा कोई और ढूंढ लीजिए. वे तो फिर से उस कुर्सी पर आने वाले हैं, जहां पहले थे और दम नहीं दिखा पाए थे. अभी 2029 के पहले तो कोई चांस नहीं है. वेटिंग लंबी है. धैर्य की परीक्षा आसान नहीं होती.

शहजादा उदास आंखों से अपनी मरियल और बिखरती फौज को देख रहा है, जो किसी चमत्कार की तरह ही कहीं किसी किले पर फतह पर कर बैठी है. सचाई यह है कि आजादी की लड़ाई में अपनी अहम भूमिका की ठेकेदारी से साठ साल तक कमाती-खाती रही एक थकी हुई सेना के जख्मी अश्व हैं. टूटे चके हैं. घिसे जंग खाए तीर हैं. टूटे धनुष हैं. बूढ़े और लाचार योद्धा हैं. विचार शून्यता और दृष्टिहीनता की गहन अंधकारमय विचारणीय स्थिति में सब घिरे हुए हैं. वामियों ने कुछ चप्पू संभाल रखे हैं. नौका डूबने की कगार पर है. जिनके पास जितनी आयु  है, उनका भविष्य उतना ही अंधकारमय है. पुराने दुकानदार ही अपने मुनाफे के आखिरी टुकड़े के मिलने तक धूल खाए बैठे रहेंगे.

कम से कम ये निर्णय तो श्रीमंत ले ही सकते थे, जो उन्होंने बहुत नाटकीय अंदाज में लिया. यह तो अपने बारे में लिया गया निर्णय है. उन्होंने 2018 में जी-जान से लगने के बाद सवा साल का शानदार धैर्य का प्रदर्शन भी किया. कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई. देखते रहे नाथ की लीला. राजा के कारनामे. अगली पीढ़ी का शानदार इंतजाम हो गया. जागीर के मुनाफे पर एकाधिकार का दृश्य था. सत्ता रियासत में अपने-अपने युवराजों की ताजपोशी का खुशगवार मौसम बन गई. और श्रीमंत को सड़कों पर उतरने की अपमानजनक घुड़की!!

कायर नेतृत्व के लिए अपनी निष्ठा व्यर्थ बरबाद करना समझदारों का काम नहीं है. उन्हें अपना अलग रास्ता चुनना चाहिए. उनका त्यागपत्र एक ऐतिहासिक दस्तावेज है. साहस के साथ निर्णय लेने का दस्तावेज. बेशक यह सियासत है. सेवा अपनी जगह है, लेकिन ताकत तो ओहदों से आती है. इसलिए एक श्रेष्ठ सामंत की तरह सब कुछ बारीकी से तय हुआ होगा. सुनते हैं कि सत्ता के बिना उनका गुजारा नहीं. पावर के बिना कैसी प्रतिष्ठा?

अब सही समय है कि महल के अंदर-बाहर श्रीमंत अपने राजसी ठसके से बाहर आएं. कितना अच्छा हो कि महल के राजमार्ग से जननायक जनता के पथ पर निकलें. यह समझें कि अब श्रीमंतों का समय गया. सत्ता के सेक्युलर ढांचे में रचे-बसे श्रीमंत अयोध्या और कश्मीर के चमचमाते नए वातावरण में कैसे कुछ को स्थापित करेंगे, यह देखना बाकी है? उनके लिए राजनीति का यह नया व्याकरण समझने का समय है, जिसमें पूरे पाठ्यक्रम को बदलने की आक्रामक बेचैनी भरी हुई है. श्रीमंत के मुखारविंद से नए अंदाज के डायलॉग सुनना रोचक होगा. अब उनके भाषणों में नेहरू नहीं, शिवाजी, सावरकर और मोदी के दृष्टांत आएंगे.

उधर देखिए, उदास जनपथ पर शहजादा अधीर और एकाकी है. अपने ही घर में हाशिए पर पटका हुआ. उपेक्षित, उदासीन. दीदी प्रधानमंत्री पिता को मिले सरकारी तोहफों की पेंटिंग दो करोड़ में बेचकर अपना परिवार पाल रही हैं. अक्सर नाक कटाने वाला दामाद भी कई केसों में उलझा है. पिछली तगड़ी हार के बाद से ही शहजादा सन्नाटे में है. शुक्र है, थाईलैंड या कोलंबिया में कहीं तो राहत के इंतजाम हैं. बैठे-ठाले कुछ तो कीजिए. कुछ करने के लिए निर्णय करने की जरूरत है. निर्णय के लिए दम चाहिए. कुछ और न कर सकें लेकिन थाईलैंड-कोलंबिया जाने का दम तो दिखा ही सकते हैं. वही दिखाने में लगे हैं.

अब इस समय के सबसे अहम सवाल. होली के दिन देश भर में सुनाई दिए दीवाली के इस धमाके के लिए एकमात्र आत्मघाती कौन जिम्मेदार है, जिसने सब कुछ ढहा दिया है? यह मलबे के पीछे से कौन अपना चश्मा साफ करता हुआ निकला है? कौन जीत के मुनाफे में जागीर पर अपना हक जमाकर बैठ गया था? श्रीमंत को दहलीज के बाहर निकलने के लिए मजबूर करने वाली ऐसी अपमानजनक स्थिति का कुटिल निर्माता कौन है? ऐसा व्यवहार कोई गंभीर नेता किसी के साथ कैसे कर सकता है? ले डूबने के लक्षण किसकी कुंडली में दृष्टिगोचर हैं? इन सवालों पर बात करने के लिए किसी दिन भोपाल में न्यू मार्केट के कॉफी हाऊस में मिलते हैं!!!

लेखक

विजय मनोहर तिवारी विजय मनोहर तिवारी @vijay.m.tiwari

लेखक मध्यप्रदेश के स्टेट इन्फॉर्मेशन कमिश्नर हैं. और 'भारत की खोज में मेरे पांच साल' सहित छह किताबें लिख चुक हैं.

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