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Updated: 24 दिसम्बर, 2019 02:58 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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झारखंड चुनाव के नतीजे (Jharkhand Election Results) आ चुके हैं. हेमंत सोरेन (Hemant Soren) का झारखंड का अगला मुख्यमंत्री (Next CM of Jharkhand) बनना तय हो चुका है. इस चुनाव में जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी (JMM-Congress-RJD) के गठबंधन ने 47 सीटें जीती हैं, जिनमें 30 सीटें जेएमएम ने जीतीं, 16 सीटें कांग्रेस के खाते से आईं और आरजेडी ने एक सीट जीती. वहीं दूसरी ओर भाजपा (BJP) को करारी हार का सामना करना पड़ा है, जिसके खाते में सिर्फ 25 सीटें ही आईं. इस हार के बाद से ही एक सवाल उठ रहा है कि आखिर इसकी वजह क्या थी. कुछ लोग इसे एंटी इनकम्बेंसी (Anti Incumbency) मान रहे हैं तो कुछ ने इसके लिए रघुवर दास (Raghubar Das) के गुस्सैल बर्ताव और भाजपा सरकार के एंटी आदिवासी रवैये को जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि, अगर वोटों और सीटों के गणित पर थोड़ा गौर करें तो मिलेगा कि भाजपा के हारने की असल वजह आजसू (AJSU) से साथ गठबंधन ना करना है. चलिए आपको समझाते हैं पूरा गणित.

Jharkhand Election Results BJP AJSUझारखंड में भाजपा-आजसू का गठबंधन टूटना ही भाजपा की हार की असल वजह है.

BJP-AJSU साथ लड़ते तो मिलतीं 40 से 45 सीटें

फिलहाल झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election) में भाजपा ने 25 सीटें जीती हैं, जबकि आजसू ने 2 सीटें जीती हैं. यानी एक बात तो तय है कि अगर दोनों साथ चुनाव लड़ते तो ये 27 सीटें तो इनके गठबंधन को मिलती हीं, कुछ और भी सीटें ये जीत सकते थे. कुल 13 ऐसी सीटें हैं, जहां पर अगर भाजपा और आजसू को मिले वोटों को जोड़ दें तो गठबंधन को जीत हासिल होती दिख रही है. यानी अब ये आंकड़ा सीधे-सीधे 40 का हो गया है, बहुमत से महज एक वोट कम.

भाजपा-आजसू का गठबंधन होने पर जो अन्य 13 सीटें खाते में आतीं, वह हैं- नाला, जामा, मधुपुर, बड़कागांव, रामगढ़, गंडे, दुमरी, घाटसिला, जगसलई, इचागढ़, चक्रधरपुर, खिजरी और लोहारदगा.

भाजपा और आजसू को अलग-अलग चुनाव लड़ते देख भाजपा के समर्थक तो भाजपा के साथ रहे, लेकिन आजसू के समर्थक बिखरे हैं. ऐसी स्थिति में लोगों को ये भी लगा होगा कि आजसू तो इतनी सीटें जीत नहीं पाएगी कि सरकार बना ले, ऐसे में उसे वोट देने का कोई फायदा नहीं. यानी आजसू ने बहुत सी सीटों पर वोटकटवा का भी काम किया है.

एक और बात, आजसू ने इस चुनाव में 81 में से सिर्फ 53 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. बाकी की 28 सीटों पर भले ही आजसू की पकड़ ना हो, लेकिन वहां भी कुछ न कुछ समर्थक तो होंगे ही. ऐसे में अगर भाजपा-आजसू साथ-साथ चुनावी मैदान में उतरते तो उन्हें 3-5 सीटों को अतिरिक्त फायदा हो सकता था. यानी अगर दोनों का गठबंधन हो गया होता तो पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा-आजसू का गठबंधन जीतता और एक बार फिर झारखंड में रघुवर दास की सरकार बनती.

एंटी इनकम्बेंसी नहीं है हार की वजह

रघुवर दास की सरकार झारखंड की पहली ऐसी सरकार है, जिसने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया है. यही दिखाता है कि इस सरकार से लोग सबसे अधिक खुश रहे हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो अब तक की सरकारों की तरह ये सरकार भी कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर जाती. पिछली बार झारखंड में भाजपा और आजसू के गठबंधन की सरकार थी. अगर एंटी इनकम्बेंसी होती तो इस बार भी लोग भाजपा को वोट नहीं देते, लेकिन आंकड़े दिखाते हैं कि इस बार तो भाजपा का वोट पर्सेंटेज पिछली बार की तुलना में और बढ़ा है. यानी पहले से भी अधिक लोगों ने भाजपा पर भरोसा दिखाया है. आजसू के साथ भी ऐसा ही. आजसू का वोट पर्सेंटेज भी पिछली बार की तुलना में बढ़ा है.

Jharkhand Election Results BJP AJSUअगर आंकड़ों को देखें तो भाजपा को अकेले ही पिछली बार से भी अधिक वोट मिले हैं.

जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी के गठबंधन को कुल 35.35 (18.7+13.9+2.75) फीसदी वोट मिले हैं, जबकि भाजपा को अकेले ही 33.4 फीसदी वोट मिले हैं. यानी साफ है कि इस बार के चुनाव में एंटी इनकम्बेंसी हार की वजह नहीं है. आजसू के वोट पर्सेंटेज को भी इसमें जोड़ लें तो दोनों का कुल आंकड़ा 41.5 (33.4+8.1) फीसदी होता है.

भाजपा और आजसू की लड़ाई में जेएमएम सत्ता ले उड़ी

2019 के चुनाव में भाजपा को 33.4 फीसदी वोट मिले हैं और आजसू को 8.1 फीसदी वोट मिले हैं. 2014 में भाजपा और आजसू ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था. तब भाजपा को 31.26 फीसदी वोट मिले थे, जबकि आजसू को 3.68 फीसदी वोट मिले. बता दें कि पिछली बार 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 37 सीटें जीती थीं, जबकि आजसू ने 5 सीटों पर कब्जा किया था. अगर इस बार भी दोनों ने गठबंधन किया होता तो उनकी जीती हुई सीटों का आंकड़ा इसी के आसपास होता. भाजपा और आजसू की लड़ाई में जेएमएम सत्ता ले उड़ी.

क्यों टूटा भाजपा और आजसू का गठबंधन?

2014 में आजसू ने 8 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 5 सीटों पर जीत दर्द की थी. बताया जा रहा है कि इस बार आजसू ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग की थी. उनकी इस मांग पर भाजपा राजी नहीं हुई और नतीजा ये हुआ कि गठबंधन टूट गया. बता दें कि 2000 में झारखंड बनने के बाद से ही भाजपा और आजसू एक साथ गठबंधन में चुनाव लड़ते रहे हैं, इस बार पहली बार दोनों ने अलग होकर चुनाव लड़ा है और अलग होने का खामियाजा भी भुगत लिया.

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