New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 05 अप्रिल, 2016 06:44 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में काफी पहले जयललिता ने साफ कर दिया था कि गठबंधन के बारे में वो सही वक्त पर सही फैसला लेंगी. फैसला उन्होंने जिस वक्त भी लिया हो लेकिन बड़े दलों से गठबंधन की जगह 'एकला चलो रे...' फॉर्मूला उन्होंने यूं ही नहीं अपनाया है.

बीजेपी गुबार देखती रही

बीजेपी ने एआईएडीएमके नेता जे जयललिता पर खूब डोरे डाले - लेकिन उन्होंने सारे दरकिनार कर दिये. जेल से छूटने की खबर मिलते ही जो शुरुआती फोन आए उनमें ज्यादातर बीजेपी नेताओं के ही थे.

बीजेपी के साथ बात नहीं बनी इस बात के संकेत तब मिले जब डीएमडीके चीफ कैप्टन विजयकांत से मिलने के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जयललिता पर हमला बोला. जयललिता की प्रधानमंत्री मोदी क साथ अच्छे रिश्तों की चर्चा रही है. माना जाता रहा कि केंद्र में भी मोदी सरकार को जयललिता की जरूरत है - और तमिलनाडु चुनाव में दोनों साथ मैदान में उतरना चाहेंगे.

इसे भी पढ़ें : तो तमिलनाडु को भी मिलेगा लालू जैसा किंगमेकर

बीजेपी तब तक इंतजार करती रही जब तक पूरा कारवां गुजर नहीं गया - और फिर गुबार देख कर ही संतोष करना पड़ा.

पनीरसेल्वम के भी पर कतरे

बीजेपी ही नहीं जयललिता को पुराने वफादारों पर भी अब उतना भरोसा नहीं रहा. जयललिता की नाराजगी के हालिया शिकार बने ओ पनीरसेल्वम. जीतनराम मांझी को तो बिहार में एक ही मौका मिला था, लेकिन पनीरसेल्वम ने दोनों बार जयललिता के जेल से लौटते ही खुशी खुशी कुर्सी छोड़ दी. वैसे भी बतौर मुख्यमंत्री वो अपने ही वित्त मंत्रालय के दफ्तर से शासन चलाते रहे.

बावजूद इसके उन्हें चुनाव प्रचार की कोर टीम से भी दूर कर दिया गया. हां, चुनाव लड़ने के लिए अम्मा ने उन्हें उनकी पुरानी सीट जरूर बख्श दी है.

यूं ही नहीं रजनीगंधा...

वैसे तो तमिलनाडु की सत्ता में जयललिता एमजीआर की विरासत के बूते काबिज हुईं - लेकिन जब लंबे अंतराल के बाद 2011 में सत्ता में लौटीं तो ब्रांड की अहमियत समझ आई - और अम्मा ब्रांड स्थापित करने में जुटीं. 2011 में ही उन्होंने एक बार प्रेस कांफ्रेंस किया था उसके बाद वो मीडिया से दूर ही रहीं. स्थानीय पत्रकारों के लिए ही नहीं, पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए भी उनसे मुलाकात हो पाएगी कोई सोच भी नहीं पाता.

jaya-sipping_650_040516064345.jpg
सफर लंबा हो तो आराम भी जरूरी है

जयललिता का इस कदर दुर्लभ होना उनके लिए नुकसानदेह होने की बजाय धीरे धीरे फायदेमंद साबित होने लगा. उनके समर्थक उन्हें ईश्वरीय गुणों से लैस और भगवान की तरह सर्वव्यापी और दयालु के रूप में पेश करने लगे. कई बार तो ऐसी बातें पनीरसेल्वम के मुंह से भी सुनी गईं. पनीरसेल्वम के दंडवत प्रणाम की तस्वीर तो गूगल के पहले पेज पर ही देखने को मिल जाती है.

जयललिता ने बड़ी सूझबूझ से अपना निजी आकर्षण साल दर साल बरकरार तो रखा ही है उसे जातीय समीकरण के साथ पिरोकर सूबे की राजनीति पर मजबूत पकड़ बना ली है.

इसे भी देखें : [ वीडियो ] देखिए, क्यों बढ़ते जा रहे हैं विजयकांत का योग देखने वाले

तब से लेकर अब तक चाहे वो सीएम की कुर्सी पर हों या जेल में तमिलनाडु के किसी भी हिस्से में शायद ही कोई उनकी मौजूदगी को नजरअंदाज कर पाए. 500 से ज्यादा अम्मा कैंटीन लोगों को सस्ता खाना खिलाते हैं तो पीने के लिए 'अम्मा वॉटर' मिलेगा. गरीबों और जरूरतमंदों के लिए अम्मा सीमेंट है तो महंगाई डायन की नजर से बचाने के लिए अम्मा सब्जी स्टोर. इतना ही नहीं सस्ती दवा के लिए अम्मा फार्मेसी तो है ही.

जयललिता ने तमिलनाडु की 234 में से 227 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये और सहयोगी दलों के लिए सिर्फ सात सीटें छोड़ीं. सहयोगी भी उन्हें ही बनाया जिनकी चुनाव जीतने भर से ज्यादा हैसियत नहीं थी - और उन्हें चुनाव भी एआईएडीएमके सिंबल पर ही लड़ने को मजबूर किया.

अपनी रणनीति को मजबूती के साथ साथ उन्होंने धारदार भी बनाने की कोशिश की है. उन्होंने सहयोगी दलों के उम्मीदवारों का खुद इंटरव्यू तो लिया ही, एमजीआर के विश्वस्त नेताओं को भी काफी हीलाहवाली के बाद मेन रोल में लाई हैं. इसके साथ ही उन्होंने 31 महिलाओं को भी चुनाव मैदान में उतारा है.

टिकट काटने के मामले में भी उन्होंने कोई नरमी नहीं दिखाई. जयललिता ने अपने मंत्रिमंडल के 27 सदस्यों में से सिर्फ 16 को ही चुनाव लड़ने का मौका दिया है - और इस तरह 100 से ज्यादा मौजूदा विधायकों को टिकट न देने का फैसला लिया.

सर्वे भी सपोर्ट में

सर्वे में भी पाया गया है कि चुनावों में डीएमके को बढ़त तो मिलेगी लेकिन उसे 70 सीटों से ज्यादा मिलने की संभावना नहीं है. डीएमके का कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ है.

दूसरी तरफ जीत दर्ज कर एआईएडीएमके 130 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली है - और इस तरह जयललिता एक बार फिर सत्ता में लौट सकती हैं.

ऐसे देखें तो इतिहास गढ़ा जाने वाला है. लेकिन डीएमके चीफ करुणानिधि का क्या होगा? क्या उनकी सक्रिय राजनीति का आखिरी चुनाव होगा? लेकिन अगर सर्वे गलत साबित हुए तो?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय