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Updated: 10 मई, 2018 06:14 PM
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एक कश्मीरी युवक की मदद के साथ ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जो मैसेज दिया है वो बेमिसाल है. सुषमा स्वराज के समझाने पर युवक ने भी जिस तरह से रिस्पॉन्ड किया है - वो भी बेहतरीन है.

मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जम्मू कश्मीर में रमजान और अमरनाथ यात्रा के दौरान शांति कायम करने के लिए सीजफायर का प्रस्ताव रखा है. सूबे के तमाम सियासी दलों से मुलाकात के बाद महबूबा ने मोदी सरकार को वाजपेयी सरकार की राह चलने की गुजारिश की है.

घाटी में अमन का माहौल बनाने के लिए महबूबा की पहल अच्छी है. सवाल ये है कि महबूबा या उनके आइडिया से इत्तेफाक रखने वाले सुरक्षा बलों की ओर से तो सीजफायर चाहते हैं, लेकिन पत्थरबाजों की गारंटी कौन लेगा ये नहीं बता रहे. ताली भला एक हाथ से कैसे औ कब तक बजेगी?

मदद के हाथ, मैसेज के साथ

एक कश्मीरी युवक शेख अतीक ने फिलीपींस से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मदद मांगी. सुषमा स्वराज को टैग करते हुए अतीक ने ट्विटर पर लिखा, "सुषमा स्वराज जी, मुझे आपकी मदद की ज़रूरत है. मेरा पासपोर्ट डैमेज हो गया है. मुझे अपने घर भारत लौटना है."

stone pelterएकतरफा सीजफायर किसके लिए?

सुषमा स्वराज ने मदद का भरोसा तो दिलाया ही, लगे हाथ उसके प्रोफाइल की ओर भी ध्यान दिलाया. असल में, युवक ने खुद को 'भारत अधिकृत कश्मीर' का बता रखा था. सुषमा स्वराज ने अतीक के ट्वीट के साथ अपनी ओर से एक नोट लिखा और रीट्वीट कर दिया. सुषमा ने लिखा, "अगर आप जम्मू और कश्मीर से हैं तो हम आपकी मदद जरूर करेंगे, लेकिन आपके प्रोफाइल बायो में लिखा है कि आप 'भारत अधिकृत कश्मीर' से हैं. ऐसी कोई जगह नहीं है."

सुषमा की सलाह के बाद अतीक ने अपने ट्विटर बॉयो में बदलाव करते हुए जम्मू और कश्मीर कर लिया, लेकिन अपना पुराना ट्वीट डिलीट कर दिया. सुषमा स्वराज ने एक और ट्वीट कर अतीक की तारीफ भी की. फिर फिलीपींस में भारतीय दूतावास को आदेश दिया वो जम्मू-कश्मीर के रहने वाले अतीक की मदद करें.

ये बात अलग है कि कश्मीरी युवक को मदद की जरूरत थी, लेकिन ये भी साफ है कि वो गुमराह था. मदद के चलते ही सही उसने यू टर्न लेते हुए सही राह तो पकड़ ही ली. पूरे वाकये में सबसे बड़ी बात यही है.

आखिर कौन हैं पत्थरबाज?

जम्मू कश्मीर में सीजफायर को आखिर कैसे समझा जाये. सीजफायर की तकनीकी परिभाषा अपनी जगह है लेकिन उसका व्यावहारिक पक्ष बहुत ही जटिल है.

महबूबा के सीजफायर का आशय सुरक्षा बलों, खासतौर पर सेना की कार्रवाई रोकने से है. सुरक्षा बल आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं. साथ ही साफ कर दिया गया है कि जो भी आंतकवादियों का साथ देखा उसके साथ भी वैसा ही सलूक किया जाएगा. ऐसा तब करना पड़ा जब हाथों में पत्थर लिये कश्मीरी युवकों का ग्रुप सुरक्षा बलों की राह में रोड़े खड़ा करने लगा. पत्थरबाजों की इस हरकत से या तो आतंकियों को बच कर भाग निकलने का मौका मिल जाता या फिर सुरक्षा बलों को विरोध के कारण कदम पीछे खींचने पड़ते.

stone pelterपत्थरबाजों की गारंटी कौन लेगा?

ये पत्थरबाज हैं कौन, इनका मकसद क्या है और इनके पीछे कौन है - सारी बातें एक एक कर साफ हो चुकी हैं. पत्थरबाजी को पालने पोसने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी एनआईए के हत्थे चढ़ चुके हैं और स्टिंग ऑपरेशनों के जरिये सबको मालूम हो चुका है कि किस तरह पाकिस्तान पत्थरबाजों की फंडिंग कर रहा है.

आर्मी चीफ बिपिन रावत ने भी ऐसे कश्मीरी युवकों को समझाने की कोशिश की है. कश्मीर में होने वाले एनकाउंटर पर रावत ने साफ तौर पर कहा है कि वो ऐसी घटनाओं से खुश नहीं होते. कश्मीरी युवाओं को संबोधित करते हुए आर्मी चीफ कहते हैं, 'हमें किसी को मारकर खुशी नहीं मिलती... सुरक्षा बल बंदूक उठानेवाले लड़ाकों की तरह क्रूर नहीं हैं... आप सीरिया और पाकिस्तान के हालात देखिये... मानता हूं कि युवाओं में गुस्सा है, लेकिन सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकना कोई रास्ता भी तो नहीं है."

बड़े ही सख्त लहजे में आर्मी चीफ रावत कहते हैं, "बंदूक उठानेवालों और मासूम नौजवानों को आजादी के नाम पर झूठे ख्वाब दिखानेवालों को मैं बताना चाहता हूं कि इस रास्ते कुछ भी हासिल नहीं होने वाला... दूसरों के भड़काने पर गलत रास्ते पर न जाये."

चाहे सुषमा स्वराज हों या आर्मी चीफ कश्मीरी नौजवानों को दोनों एक ही सलाह दे रहे हैं - बस तरीका थोड़ा अलग है. सीजफायर जैसी पहल से पहल महबूबा मुफ्ती को भी एक बार महबूबा ऐसा कोई तरीका आजमा कर जरूर देख लेना चाहिये - अच्छे नतीजों की गारंटी इसी में हो सकती है.

पत्थरबाजों की गारंटी कौन लेगा?

तमिलनाडु से कश्मीर घूमने गये तिरुमणि के साथ हुई घटना को महबूबा मुफ्ती ने 'मानवता की हत्या' जरूर बताया है, लेकिन उनकी ओर से ऐसी कोई कोशिश बहुत ही कम देखने को मिली है जिसमें वो कश्मीरी नौजवानों को सही रास्ते पर चलने की सलाहियत या अपील की हों.

stone pelterमहबूबा मुफ्ती को भी मैसेज देना होगा...

कश्मीर में हिंसा, उपद्रव और आतंकवाद का ताजा मामला जुलाई, 2016 के बाद से शुरू हुआ और अब तक बरकरार है. दरअसल, 8 जुलाई 2016 को ही हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहानी वानी को सुरक्षा बलों ने एक ऑपरेशन में मार गिराया था - और उसके बाद से लंबे वक्त तक कर्फ्यू का दौर चला. यहां तक कि पिछली बार ईद की नमाज भी लोगों को घरों में पढ़नी पड़ी. रमजान से पहले सीएम महबूबा मुफ्ती और सूबे के सियासी दल चाहते हैं कि सरकार सीजफायर लागू कर दे.

महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात की समीक्षा के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी जिसमें सत्ता में साझीदार पीडीपी और बीजेपी के अलावा कांग्रेस और दूसरे दलों ने भी हिस्सा लिया. इससे पहले जून, 2017 में भी महबूबा ने ऐसी मीटिंग की थी लेकिन कांग्रेस ने उसका बहिष्कार किया था.

मीटिंग के बाद महबूबा मुफ्ती ने कहा कि एनकाउंटर और झड़पों से घाटी में आम अवाम को काफी मुश्किलें हो रही हैं. महबूबा मुफ्ती का इस बात पर जोर रहा कि ऐसा माहौल तैयार किया जाये कि ईद और अमरनाथ यात्रा दोनों शांतिपूर्वक हो सके. महबूबा ने इस सिलसिले में वाजपेयी सरकार की पहल का भी हवाला दिया है कि किस तरह 2000 में एकतरफा सीजफायर लागू किया गया था.

देखा जाये तो कश्मीरी युवक शेख अतीक भी उसी विचारधारा से प्रभावित रहा जो काफी कश्मीरी नौजावानों पर हावी है. मुमकिन है शेख अतीक पर वो विचारधारा उस हद तक न असर डाल पायी हो जितना बाकियों को चपेट में ले चुकी है. एक दलील दी जा सकती है कि चूंकि शेख अतीक विदेश में फंसा हुआ था इसलिए उसने मदद हासिल करने के लिए प्रोफाइल में बदलाव कर लिया. शेख अतीक के प्रोफाइल में बदलाव महज मदद हासिल करने के लिए अस्थाई है या फिर उसे असलियत समझ आ गयी है - ये तो आगे चल कर ही मालूम होगा. फिर भी हमें शेख अतीक के कदम को सकारात्मक नजरिये से देखना चाहिये.

शेख अतीक जैसे न जाने कितने ही नौजवान नासमझी के चलते गुमराह हुए हो सकते हैं. ऐसे नौजवानों से बात करने की जरूरत है. बुरहान वानी के मारे जाने के बाद महबूबा ने कहा था कि उन्हें जानकारी होती तो उनकी कोशिश होती कि वैसा न हो. महबूबा कह चाहें तो समझा सकती हैं कि बुरहान के केस में भी उनका मतलब बात करने से ही रहा, मगर मैसेज तो अलग गया. आम लोगों में तो यही मैसेज गया कि महबूबा सुरक्षा बलों की ओर नहीं बल्कि कश्मीरी लोगों के साथ हैं. कश्मीर में बस चुकी ऐसी विचारधारा के साथ जिसमें सेना और सुरक्षा बलों के जवान बतौर बाहरी ट्रीट किये जाते हैं.

तमिलनाडु के युवक के मारे जाने के बाद कश्मीर टूरिज्म से जुड़ा एक शख्स बीबीसी रेडियो से बातचीत में पत्थरबाजों को अपने तरीके से कोस रहा था, "ऐसा करेंगे तो हमारे और आर्मी में फर्क क्या रह जाएगा?" महबूबा मुफ्ती को ऐसी बातों की गंभीरता समझनी होगी, वरना एकतरफा सीजफायर से कुछ नहीं हासिल होने वाला.

महबूबा मुफ्ती को सुषमा स्वराज के मदद के तरीके पर गौर करना चाहिये. सुषमा ने मदद भी की और मैसेज भी दिया. शेख अतीक के सुधार पर खुशी भी जतायी. महबूबा भी अगर कश्मीर में सुरक्षा बलों की ओर से सीजफायर चाहती हैं तो पत्थरबाजों को भी उन्हें सही मैसेज देना होगा. अगर नहीं तो, सियासत तो चलती ही रहेगी.

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