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Updated: 19 अगस्त, 2021 12:32 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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बीते करीब दो साल देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस (Congress) के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं गुजरे हैं. और, फिलहाल जिस तरह के हालात नजर आ रहे हैं, ऐसा लगने लगा है कि भविष्य में भी उसकी दशा सुधरने वाली नही है. दरअसल, बीते कुछ समय में कांग्रेस से युवा नेताओं की रवानगी में काफी तेजी आई है. इसमें भी सबसे चौंकाने वाली बात ये रही है कि इन सभी नेताओं को परंपरागत कांग्रेसी माना जाता रहा है. हिमंता बिस्व सरमा को छोड़ दिया जाए, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे बड़े नाम वाले नेताओं की पारिवारिक पृष्ठभूमि कांग्रेस की ही रही है. इसी क्रम में अब एक नाम और जुड़ गया है अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष और सिलचर से पूर्व सांसद सुष्मिता देव (Sushmita Dev) का. उन्होंने हाल ही में पार्टी से इस्तीफा देकर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है. उनके पिता भी पुराने कांग्रेसी और कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. सुष्मिता देव ने कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होते समय इस बात पर जोर दिया कि वो पार्टी से नाराज नहीं है. लेकिन, अगर वो नाराज नहीं थीं, तो कांग्रेस छोड़ने की वजह क्या रही, इस पर उन्होंने कुछ स्पष्ट तौर पर नहीं कहा. लेकिन, बीते दो सालों में युवा नेताओं के कांग्रेस छोड़ने के सिलसिले में तेजी आई है और ये कहीं न कहीं पार्टी के साथ ही गांधी परिवार के लिए भी खतरे की घंटी है.

ऐसा नही है कि सिर्फ पुरुष नेता ही कांग्रेस को छोड़कर जा रहे हों. पार्टी से महिला कांग्रेस नेताओं की रवानगी भी काफी बढ़ी है.ऐसा नही है कि सिर्फ पुरुष नेता ही कांग्रेस को छोड़कर जा रहे हों. पार्टी से महिला कांग्रेस नेताओं की रवानगी भी काफी बढ़ी है.

पुरुष ही नहीं महिला नेताओं का भी जाना जारी

किसी समय राहुल गांधी के करीबी और कांग्रेस के युवा तुर्क नेताओं में गिने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं के कांग्रेस छोड़ने पर अटकलें लगना शुरू हो गई थीं कि अब अगला नंबर किसका होगा? दरअसल, सिंधिया और प्रसाद के अलावा राहुल गांधी की पसंदीदा 'चौकड़ी' में शामिल सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा भी लंबे समय से पार्टी से नाराज चल रहे हैं. लेकिन, ऐसा नही है कि सिर्फ पुरुष नेता ही कांग्रेस को छोड़कर जा रहे हों. पार्टी से महिला कांग्रेस नेताओं की रवानगी भी काफी बढ़ी है. कांग्रेस की पूर्व कद्दावर महिला नेता रीता बहुगुणा जोशी भी पार्टी का दामन छोड़ भाजपा में शामिल हो गई थीं. रीता बहुगुणा जोशी फिलहाल प्रयागराज से भाजपा सांसद हैं. करीब 10 सालों तक कांग्रेस में रहने के बाद 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी प्रवक्ता रहीं प्रियंका चतुर्वेदी भी शिवसेना के खेमे में शामिल हो गई थीं. शिवसेना में शामिल होने के बाद उन्हें राज्यसभा सांसद बना दिया गया. इस लिस्ट में कांग्रेस की पूर्व सोशल मीडिया प्रभारी राम्या और खुशबू सुंदर का नाम भी शामिल है.

क्या 'प्रसाद पॉलिटिक्स' का शिकार हो रहे हैं कांग्रेसी नेता

जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा था कि कांग्रेस में नेता अब प्रसाद पॉलिटिक्स की ओर बढ़ गए हैं. दरअसल, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए तकरीबन सभी नेताओं को किसी न किसी बड़े पद या सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल कर उपकृत किया जाता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया और हिमंता बिस्व सरमा इसके बेहतरीन उदाहरण हैं. कांग्रेस की उपस्थिति भले ही हर राज्य में हो, लेकिन वो लगातार सिमटती जा रही है. कांग्रेस का हाल इस समय ऐसा हो गया है कि मजबूत स्थिति वाले राज्यों को 'हाथ के पंजे' की पांच उंगलियां पर गिना जा सकता है. अन्य राज्यों में पार्टी के नेता तेजी से भाजपा सहित दूसरे दलों में शामिल हो रहे हैं. वहीं, राज्यों में छोटी-बड़ी टूट पर कांग्रेस आलाकमान की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया नजर नहीं आती है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस को लगातार दो बार केंद्र की सत्ता से बाहर रहने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. लेकिन, राज्यों में पार्टी अपनी आंतरिक गुटबाजी और कांग्रेस आलाकमान के फैसलों में देरी की वजह से कमजोर होती जा रही है.

राहुल गांधी का डरपोक नेताओं के लिए स्पष्ट संदेश

राहुल गांधी ने बीते महीने ही कांग्रेस के डरपोक नेताओं को पार्टी से बाहर जाने का आदेश दे दिया था. दरअसल, राहुल गांधी ने पार्टी लाइन से अलग हटकर बयान देने वालों को सीधे बाहर निकलने को कह दिया था. राहुल गांधी कांग्रेस की विचारधारा में बदलाव के समर्थक नजर नहीं आते हैं. उनके इस बयान से तो मतलब यही निकलता है. कांग्रेस की विचारधारा की बात करें, तो आज के हिसाब से ये धारा 370, राम मंदिर, नरेंद्र मोदी के विरोध और हिंदुत्व जैसे मुद्दों को साइडलाइन कर सेकुलर रहते हुए सत्ता की ओर बढ़ने की है. लेकिन, राज्य स्तर पर कई बार ये चीजें ठीक उलट हो जाती हैं. इन मुद्दों पर राहुल गांधी 'जीरो टॉलरेंस' नीति पर चल रहे हैं. राहुल गांधी का ये बेबाक संदेश कांग्रेस के असंतुष्ट जी-23 नेताओं के लिए भी है और भविष्य को आशंकित नेताओं के लिए भी. इस स्थिति पर विचार करें, तो सामने आता है कि आने वाला समय कांग्रेस के लिए और ज्यादा मुश्किल होने वाला है.

अगर राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार का मामला जल्दी नहीं सुलझा, तो सचिन पायलट को भाजपा हिमंता बिस्व सरमा बनाने में ज्यादा समय नहीं लगाएगी. दरअसल, राहुल गांधी के साथ मूल समस्या ये है कि जिन मुद्दों का वो विरोध कर कांग्रेस को पाक साफ जताने की कोशिश कर रहे हैं. महाराष्ट्र में उसी विचारधारा वाली पार्टी शिवसेना के साथ गठबंधन की सरकार चला रहे हैं. कांग्रेस के बड़े नेताओं को भ्रमित करने का काम काफी हद तक कांग्रेस आलाकमान खुद कर रहा है. कांग्रेस में गांधी परिवार खुद ही भ्रमित नजर आता है. समस्या ये भी है कि कांग्रेस आलाकमान अपनी नाकामियों का सारा दोष किसी और पर डाल देता है. जी-23 नेताओं के अगुआ कपिल सिब्बल ने सुष्मिता देव के कांग्रेस से इस्तीफे पर ट्वीट कर कहा था कि जब युवा नेता पार्टी छोड़कर जाते हैं, तो इसका दोष हम बूढ़ों पर लगा दिया जाता है, जो पार्टी को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. इन मामलों पर पार्टी आंखें बंदकर आगे बढ़ती रहती है.

वैसे, कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार फैसले लेने की हिम्मत ही नहीं दिखा पा रहा है. दरअसल, राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से कहने को तो इस्तीफा दे दिया है. लेकिन, अतंरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के सभी फैसलों में उनकी छवि नजर आती है. सोनिया गांधी जहां कांग्रेस के असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं के जी-23 गुट को मनाने की कोशिशें कर रही हैं. वहीं, राहुल गांधी उनके खिलाफ कड़े एक्शन के संकेत दे रहे हैं. कपिल सिब्बल भी गांधी परिवार को संदेश देने के लिए अपने घर पर विपक्षी दलों की डिनर पार्टी का आयोजन कर लेते हैं. वैसे, कांग्रेस आलकमान काफी हद तक खुद से ही समस्याओं को बढ़ा रहा है. अब अगले साल होने वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अभी से राज्य स्तर पर दो फाड़ की व्यवस्था कर दी है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत और विपक्ष के नेता प्रीतम सिंह के बीच तनातनी अभी से सामने आने लगी है.

लेकिन, ऐसी तमाम समस्याओं पर कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह से खामोश है. राहुल गांधी पार्टी पूरी ताकत अपने पास रखना चाहते हैं, लेकिन कड़े फैसले लेने में कमजोर पड़ रहे हैं. अगर यही स्थिति आगे भी रही, तो वो समय दूर नही है, जब कांग्रेस में केवल गांधी परिवार ही बचेगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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