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Updated: 15 जनवरी, 2018 01:24 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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राजधानी के हुमायूं रोड स्थित यहूदी मंदिर (सिनोगॉग) के पुजारी (रब्बी) श्री एजिकिल मलेकर को आशा है कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू 14 जनवरी से शुरू हो रही अपनी भारत यात्रा के दौरान कुछ पलों के लिए सिनोगॉग में भी जरूर ही आएंगे. इधर इजरायल के सभी प्रमुख नेता आते रहे हैं. दरअसल पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वपूर्ण इजरायल यात्रा के लगभग छह माह के भीतर अब इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत आए हैं.

सहयोग के क्षेत्र -

ये जानना भी महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों के साझेदारी के पांच मुख्य बिंदु हैं. इसमें रक्षा क्षेत्र अति महत्वपूर्ण है. भारत इजरायली हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक है. साथ ही इजरायल, भारत के लिए हथियारों का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत भी है. भारत और इजरायल के बीच रक्षा संबंधों की शुरुआत तो 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान ही शुरू हुई थी. लेकिन, वह नेहरु की कुटिल कूटनीति का हिस्सा मात्र ही था, जो देश की राष्ट्रभक्त जनता की अनवरत भावनाओं पर मलहम मलने के अलावे और कुछ भी नहीं था. क्योंकि, नेहरु का मुस्लिम प्रेम तो जगजाहिर था.

लेकिन, आज के दिन तो कृषि क्षेत्र में भी इजरायल से भारत को मदद मिल रही है. भारत ने हॉर्टिकल्चर तकनीक, संरक्षित खेती, नर्सरी प्रबंधन और माइक्रो-इरीगेशन के मामले में इजरायल से काफी लाभ उठाया है. हरियाणा और महाराष्ट्र ने इससे खास तौर से फायदा उठाया है. हर साल लगभग 20,000 से ज्यादा किसान हरियाणा के करनाल स्थित कृषि केंद्र पर पहुंचते हैं. यहां की नर्सरी में सब्जियों के हाइब्रिड बीज मिलते हैं. इंडो-इजरायल एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट पर एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसके जरिये पांच से दस गुना तक उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है. साथ ही खेती में पानी, कीटनाशक और उर्वरकों के इस्तेमाल में भी गिरावट आई है.

जलप्रबंधन पर भी इजरायल से भारत को सहयोग मिल रहा है. इजरायल ने जल प्रबंधन तकनीक में महारत हासिल की है. वहां पानी के बेहद कम स्रोत होने पर भी वह पानी की अपनी जरूरतें पूरी कर लेता है. इजरायल में पानी की भारी कमी है फिर भी वहां "ड्रिप सिंचाई" पद्धति के विशेषज्ञ भरे पड़े हैं. बागवानी, खेती, बागान प्रबंधन, नर्सरी प्रबंधन, सूक्ष्म सिंचाई और सिंचाई के बाद कृषि प्रबंधन क्षेत्र में इजरायल प्रौद्योगिकी से भारत को काफी लाभ मिला है. इसका हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात में काफी जगहों पर उपयोग किया गया है.

india, israel, relationsभारत इजरायल संबंधों की शुरुआत 1962 में ही हो चुकी थीभारत और इजरायल के बीच का व्यापार वित्तीय वर्ष 2016-17 में 5 अरब डॉलर तक पहुंच गया था. भारत इजरायल को 1 अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य के खनिज ईंधन और तेल निर्यात भी करता है. इजरायल से भारत लगभग 1.11 अरब डॉलर के मोती, कीमती पत्थर इत्यादि भी आयात करता है. कुल व्यापार का 54 फीसदी सिर्फ हीरों का होता है. यह तय था कि केन्द्र में भाजपा की सरकार के आने के बाद दोनों देशों के संबंधों में पहली वाली स्थिति नहीं रहेगी. और यही हुआ भी. अब दोनों देशों के नेता मौजूदा आपसी रिश्तों के बारे में बात करने में कांग्रेसी शासकों की तरह कतई बचते नहीं हैं.

इजरायल और भारतीय मुसलमान -

कौन नहीं जानता कि अरब देशों और भारतीय मुसलमानों का कुछ जरूरत से ज्यादा ही ख्याल रखते हुए लंबे समय तक भारत ने इजरायल से दूरी बनाई हुई थी. फिलस्तीन मसले पर भारत अरब संसार के साथ विगत कई दशकों तक खड़ा रहा. पर बदले में भारत को वहां से अपेक्षित सहयोग और समर्थन तक भी नहीं मिला. भारत अरब देशों की वकालत करता रहा. पर कश्मीर के सवाल पर अरब देशों ने सदैव पाकिस्तान का ही साथ दिया. यह ठीक है कि अब वहां पर भी बदली हुई बयार बह रही है. और तो और सऊदी अरब भी पर्दे के पीछे इजरायल से मधुर रिश्तों को स्थापित कर रहा है.

इसी तरह से भारत खुलकर इजरायल के साथ संबंधों को नई दिशा देने से बचता था. केन्द्र में कांग्रेस सरकारों के दौर में भारत के कूटनीतिक हितों की बलि दी जाती रही. माना जाता रहा कि इजरायल से संबंध रखने के चलते देश के मुसलमान खफा हो जाएंगे. इस कूटनीतिक विफलता के लिए कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां ही उत्तरदायी हैं. दुर्भाग्यवश हमारे यहां सत्ता उनके हाथों में लंबे समय तक रही, जिन्हें ये भी लगता था कि इजरायल से संबंध प्रगाढ़ करने से उन प्रवासी भारतीयों के हित प्रभावित हों जो खाड़ी के देशों में रहते हैं. इसके अलावा कच्चे तेल के आयात का भी सवाल था. पर देश के हितों की घोर अवहेलना हुई. हम उस अरब संसार के साथ खड़े रहे जो हमारे शत्रु पाकिस्तान को लगातार खाद-पानी देता रहा.

यहूदी, मराठी मुंबई -

वैसे भी बाकी धर्मों से जरा अलग हैं यहूदी धर्मावलम्बी. यहूदी एकेश्वरवाद में विश्वास करते हैं. आज से करीब 4000 साल पुराना यहूदी धर्म वर्तमान में इजरायल का "राजधर्म" है. मुंबई की आपाधापी से भरी जिंदगी में कुछ इस तरह की जगहें अभी भी बची हैं, जहां पर सन्नाटा पसरा रहता है. जहां पर जाकर लगता है कि जिंदगी की रफ्तार थम सी गई है.

हम बात कर रहे हैं मुंबई के महालक्ष्मी यहूदी कब्रिस्तान की. जैसा कि इसके नाम से ही साफ है कि यहां मुंबई के यहुदियों का कब्रिस्तान है. इस कब्रिस्तान में शहर के यहूदी 1927 से दफनाए जा रहे हैं. यानी करीब 90 साल से. हिन्दी फिल्मों के गुजरे दौर के महान एक्टर डेविड भी यहां ही दफन हैं. वे भी यहूदी थे. अंग्रेजी के नामवर लेखक और कवि निजिम एजिकल और दूसरे कई यहूदी भी यहां आराम फरमा रहे हैं.

india, israel, relationsइजरायल सही मायनों में भारत के संकट का साथी रहा है

मुंबई में आज भी लगभग एक हजार यहूदी रहते हैं. महाराष्ट्र के सभी यहूदी मराठी बोलते हैं. महाराष्ट्र के पुणे शहर में भी काफी यहूदी रहते हैं. देश में सर्वाधिक यहूदी आबादी महाराष्ट्र में ही है. बहरहाल, यहां की कब्रों के ऊपर मराठी, गुजराती, हिब्रू और अंगेजी भाषाओं में उस इंसान का संक्षिप्त परिचय लिखा गया है, जो अब संसार से जा चुके हैं. महालक्ष्मी यहूदी कब्रगाह में लगभग दो हजारें कब्रें हैं. तक़रीबन सभी संगमरमर के पत्थरों से बनी हैं.

अफसोस होता है कि भारत में यहूदी नागरिकों के बारे में कभी नहीं सोचा गया. भारत में हजारों यहूदी सदियों से रहते हैं. भारत में आज के दिन भी करीब 7 हजार यहूदी हैं. ये केरल, महाराष्ट्र और देश के अन्य भागों में रहते हैं. भारत की पाकिस्तान पर 1971 के युद्ध में जंग के महानायकों में लेफ्टिनेंट जनरल जे.एफ.आर जैकब भी थे. वो यहूदी थे. पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में अन्दर घुसकर पाकिस्तानी फौजों पर भयानक आक्रमण करवाने वाले इस्टर्न कमांड के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल जैकब के वीरता की गाथा रोमांचक है. उनके आक्रामक युद्ध कौशल का ही परिणाम था कि नब्बे हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों ने अपने हथियारों समेत भारत की सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया.

संकट का साथी -

कहते हैं कि मित्र की पहचान संकट के समय होती है. इस लिहाज से इजरायल ने भारत का हर संकट की घड़ी में साथ दिया है. इजरायल ने 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाइयों के दौरान भी भारत को मदद दी. 1965 और 1971 में इजरायल ने भारत को लगातार गुप्त जानकारियां देकर मदद की थी. कहा तो यह भी जाता है कि तब भारतीय सुरक्षा या ख़ुफ़िया अधिकारी साइप्रस या तुर्की के रास्ते इजरायल जाते थे. वहां उनके पासपोर्ट पर मुहर तक नहीं लगती थी. उन्हें मात्र एक कागज की पर्ची दी जाती थी, जो उनके इजरायल यात्रा का सुबूत होता था.

1999 के करगिल युद्ध में इजरायल मदद के बाद ही भारत और इजरायल खासतौर पर करीब आए. तब इजरायल ने भारत को एरियल ड्रोन, लेसर गाइडेड बम, गोला बारूद और अन्य हथियारों की मदद दी. पाकिस्तान के परमाणु बम, जिसे इस्लामी बम भी कहा जाता है, ने भी दोनों देशों को नज़दीक आने में मदद की. इजरायल को भी इस बात का डर रहा है कि कहीं यह परमाणु बम ईरान या किसी इस्लामी चरमपंथी संगठन के हाथ न लग जाए.

आप कह सकते हैं कि हमेशा से ही भारत और इजरायल के बीच सैन्य संबंध सबसे अहम रहे हैं. संकट के समय भारत के अनुरोध पर इजरायल की त्वरित प्रतिक्रिया ने उसे भारत के लिए भरोसेमंद हथियार आपूर्ति करने वाले देश के तौर पर स्थापित किया और इससे दोनों देशों के रिश्ते काफ़ी मज़बूत हुए हैं.

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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