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Updated: 23 मई, 2016 12:59 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
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देश की राजनीति में मुसलमान एक बड़ा वोट बैंक है और सत्ता पर काबिज होने के लिए हर पार्टी को इस वोट बैंक की जरूरत पड़ती है. और दशक दर दशक ये मजबूत ही हो रहा है. देश की सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों में मुस्लिम नेताओं का कद बढ़ा है. बात चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की, समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी की हो. असम में ऑल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट और तेलंगाना की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहदूल मुसलीमीन तो अपनी सियासत मुसलमानों के इर्द-गिर्द ही कर रही हैं. इन पार्टियों ने मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी अच्छी खासी छाप छोड़ी है.

उत्तर प्रदेश में बीते दो दशक के दौरान समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का वर्चस्व रहा है. आजम खान और नसीमुद्दीन सिद्दीकी राज्य से बड़े मुस्लिम नेता के तौर पर सामने आए हैं. वहीं बीजेपी के मुख्तार अब्बास नकवी इसी राज्य में मुस्लिम वोट बैंक का ज्यादा से ज्यादा फायदा अपनी पार्टी को दिलाने की कोशिश करते हैं. इनके अलावा मुस्लिम नेतृत्व के नाम पर बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी का अपना किरदार है. गौरतलब है कि जनसंख्या के हिसाब से सबसे अधिक मुस्लिम उत्तर प्रदेश में हैं और बीते दो दशकों के दौरान इनके समर्थन से ही राज्य में सत्ता बहुजन समाज और समाजवादी पार्टी के बीच बदलती रहती है. इन दोनों पार्टियों में अंदरूनी सत्ता का केन्द्र मुलायम सिंह यादव और मायावती हैं.

जहां समाजवादी पार्टी में आजम खान एक बड़बोले नेता की छवि रखते हैं और मुस्लिम वोट बैंक पर उनकी खास पकड़ नहीं दिखाई देने के कारण उन्हें मुस्लिम समाज में ज्यादा सीरियसली नहीं लिया जाता. वहीं बहुजन समाज पार्टी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी मायावती के सबसे करीबी माने जाते हैं और पार्टी के ज्यादातर फैसलों में उनकी अहम भूमिका देखी जाती है. नसीमुद्दीन सिद्दीकी के लिए यह भी माना जाता है कि राज्य में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों के बीच उनकी अच्छी पकड़ रखते हैं क्योंकि वह उस तबके को दलितों के समान आरक्षण दिलाने की वकालत करते हैं. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों में 32 फीसदी से अधिक मुस्लिम जनसंख्या है और ग्रामीण इलाकों में लगभग 16 फीसदी मुस्लिम हैं.

देश में मुस्लिम राजनीति के लिहाज से अगला अहम राज्य असम है. राज्य की कुल जनसंख्या में मुस्लिमों का बड़ा हिस्सा है. यहां शहरी इलाकों में जहां 18 फीसदी तो वहीं ग्रामीण इलाकों में लगभग 37 फीसदी मुस्लिम मौजूद हैं. जनसंख्या के इन आंकड़ों के चलते प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी से दूरी बनाकर पैदा हुई पार्टी ऑल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के मौलाना बदरुद्दीन अजमल बड़े नेता हैं. राज्य के चुनावों में 2006 में उन्होंने 10 सीट लाकर सभी को हैरान कर दिया था और 2011 के विधानसभा चुनावों में 18 सीट जीतकर पार्टी ने राज्य में प्रमुख विपक्षी दल का स्तर प्राप्त कर लिया था. गौरतलब है कि 2014 लोकसभा चुनावों में पार्टी ने 14 में से 3 सीटें जीती थी (कांग्रेस 3 और बीजेपी 7). राजनीतिक जानकारों का दावा है कि मौजूदा चुनावों (2016) में बदरुद्दीन अजमल किसी करिश्माई आंकड़े तक पहुंचने में सफल हो सकते हैं और वह राज्य में बीजेपी की सरकार बनाने की संभावनाओं को बड़ा धक्का दे सकते हैं (कांग्रेस के करार कर).

ताकतवर मुस्लिम नेताओं में गिनती तेलंगाना की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहदूल मुसलीमीन (एआईएमआईएम) के असदुद्दीन ओवैसी की भी होनी चाहिए. राज्य स्तर की पार्टी होने के बावजूद ओवैसी की लोकप्रियता देशभर में फैले वोट बैंक पर साफ तौर पर देखी जा सकती है. ओवैसी के उठाए मुद्दों पर देशभर में राजनीति गर्म हो उठती है और इन मुद्दों पर ओवैसी के सपोर्ट में देशभर से आवाज सुनाई देने लगती है. ताजा विवाद ‘भारत माता की जय’ से जुड़ा है. ओवैसी अपने विवादित बयानों से देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के खिलाफ देशभर से मुस्लिम समुदाय को लामबद्ध करने का नमूना कई बार दे चुके हैं. अब भले उनकी पार्टी के पास विधानसभा या संसद में ज्यादा सदस्य नहीं हैं और तेलंगाना के बाहर पार्टी का राजनीतिक वजूद नहीं है लेकिन औवैसी एक ऐसे मुस्लिम नेता हैं जो विवादों में रहकर पूरे देश के मुस्लिम वोट बैंक तक अपना संदेश पहुंचा लेते हैं. और कुछ हद तक तक बाकी पार्टियों को नुकसान भी पहुंचाते हैं.

ये नेता देश के प्रमुख मुस्लिम नेता हैं और जाहिर है देश का सबसे ताकतवर नेता इन्हीं में से कोई एक है. फिलहाल राजनीतिक प्रभाव को देखें तो कई लोग ओवैसी को सबसे ताकतवर नेता मान सकते हैं. वहीं राजनीतिक कद को देखें तो असम में बदरुद्दीन अजमल मौजूदा चुनावों में अपनी ताकत का परिचय दे सकते हैं. अगर चुनाव के नतीजे उनके पक्ष में बैठे तो वह राज्य में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने में अहम किरदार निभा सकते हैं. वहीं उत्तर प्रदेश, पूरे देश में मुस्लिम वोट बैंक का सबसे बड़ा हिस्सा. यहां समाजवादी पार्टी के खिलाफ 2017 में एंटीइनकम्बेंसी काम करती है तो मायावती के लिए नसीमुद्दीन सिद्दीकी अहम किरदार अदा कर सकते हैं. संख्या के हिसाब से वह देश के सबसे बड़े मुस्लिम नेता बनकर सामने आ सकते हैं. हालांकि इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता कि पार्टी में शीर्ष नेता होने के बावजूद वह पार्टी सुप्रीमो मायावती के सामने दबाव की राजनीति नहीं कर सकते.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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