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Updated: 02 जुलाई, 2018 06:38 PM
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जुलाई के शुरु में अमेरिका और भारत के बीच होने वाली "2 + 2 वार्ता" को अमेरिका ने "अपरिहार्य कारणों" का हवाला देते हुए अनिश्चित काल तक स्थगित कर दिया है. डायलॉग रद्द करने से एक दिन पहले, डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर अमेरिकी उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक टैरिफ चार्ज करने का आरोप लगाया. बैठक में भारत के विदेश और रक्षा मंत्रियों और अमेरिका के उनके समकक्षों को भाग लेना था.

मीटिंग के पहले, अमेरिका की एक टीम पिछले हफ्ते भारत में थी. ये टीम COMCASA (Communications Compatibility and Security Agreement) पर हस्ताक्षर करने को लेकर भारत के संदेहों को दूर करने के मकसद से आई थी. इसके पहले मूल फॉर्म CISMOA (Communication and Information on Security Memorandum of Agreement) था. लेकिन इसे भारत के लिए विशिष्ट कॉमकासा में बदल दिया गया था.

कॉमकासा का मकसद दोनों ही देशों के बीच सामंज्य बढ़ाने और कम्युनिकेशन सुरक्षा उपकरणों के हस्तांतरण के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करना है. यह अमेरिका द्वारा प्रस्तावित तीन समझौतों का हिस्सा है जो भारत की बीच बढ़ते संबंधों और भारत को हाई एंड टेक्नोलॉजी आईटम के हस्तांतरण को इंगित करता है. भारत ने पहले से ही लिमोआ (लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर कर दिया है. इसने दोनों देशों को एक दूसरे के बेस से भरने के रास्ते खोल दिए थे. विचाराधीन तीसरा समझौता बीईसीए (भू स्थानिक सहयोग के लिए मूल विनिमय और सहयोग समझौता) है.

USA, Indiaभारत को अमेरिका के चक्कर में अपने संबंध नहीं खराब करने चाहिए

कॉमकासा के पीछे का उद्देश्य भारत को बेचे जाने वाले प्लेटफार्मों पर हाई एंड टेक्नोलॉजी उपकरण स्थापित करना है. इससे ड्रोन की बिक्री के लिए भी दरवाजे खुल जाएंगे, जो उनसे खरीदे गए विमानों में भी स्थापित किया जाएगा. लेकिन भारत के अपने संदेह हैं. इसमें अमेरिकीयों के लिए सिस्टम खोलने, भारतीय संचार की निगरानी करने और रूसी मूल उपकरणों के साथ इसकी संगतता की निगरानी करने के लिए अमेरिका को सहमति देने की बातें शामिल हैं.

साथ ही अमेरिका, भारत को रूस से दूर करके, हमारी निर्भरता अपने ऊपर स्थापित कराना चाहता है. इसलिए ही उसने रूसी एस-400 के बदले भारत को पैट्रिऑट्रिक मिसाइल प्रणाली के साथ साथ थाड मिसाइल सिस्टम की पेशकश की थी, जिसे भारत ने ठुकरा दिया था. सीएएटीएसए (अमेरिकी अधिनियमों के माध्यम से अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला) को अमेरिकी सीनेट द्वारा पास कर दिया गया. और इसमें भारत के अनुरोधों पर विचार भी नहीं किया गया. इस तरह से अगर भारत रूस से सैन्य हार्डवेयर खरीदता है तो फिर भारत के उपर अमेरिकी प्रतिबंधों को खोलना है. इसके साथ ही, अमेरिका ने 4 नवंबर तक ईरान से तेल की खरीद रोकने के लिए भी भारत से कहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने ईरान पर प्रतिबंध लगाए हैं.

भारत को अपनी तरफ करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र के अमेरिकी स्थायी प्रतिनिधि और ट्रम्प की करीबी निकी हैली, भारत का दौरा कर रही हैं. उनका एजेंडा तेल आयात पर और एस- 400 मिसाइल सिस्टम की खरीद पर अमेरिका का संदेश पहुंचाना प्रतीत होता है. उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा, "मैं उन्हें (भारत) ईरान के साथ अपने रिश्ते पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित करुंगी."

उनकी यात्रा का समय भी स्पष्ट है. यह अब रद्द की गई "2 + 2" बैठक के प्रस्ताव के रूप में था. शायद उन्होंने प्रधान मंत्री को बैठक स्थगित करने के वास्तविक कारणों के बारे में बताया होगा. भारत भी वर्तमान में अमेरिका के साथ एक ट्रेड युद्ध में उलझा है जिससे सिर्फ समय ही खराब हो सकता है. दोनों पक्षों पर टैरिफ बढ़ाने से वर्तमान संबंध तुरंत ही सुधर सकते हैं.

एक नेता के रूप में ट्रम्प की अविश्वसनीयता किसी से छिपी नहीं है. वो इतिहास में किसी भी और नेता की तुलना में सबसे तेजी से अपने फैसले और सहयोगियों से मुंह मोड़ सकते हैं. उन्होंने अपने छोटे से कार्यकाल में ही कार्यालय में अपने सभी सहयोगियों को नाराज कर दिया है, और जो उनसे दूर भी चले गए हैं. मोदी, जिन्होंने पुतिन और शी के साथ कई मुलाकातें की हैं. और वो ओबामा के साथ भी कई बैठकें कर चुके हैं. उन्होंने ट्रम्प के इस व्यवहार को समझते हुए, अमेरिका से दूरी बना ली है. और यही कारण है कि भारत-अमेरिका मुद्दों की कमान अपने मंत्रियों को दे दी है. उन्होंने भारत में ट्रम्प की मेजबानी करने की भी पेशकश नहीं की है.

भारत भले ही अमेरिका का सुरक्षा भागीदार हो. लेकिन न तो वो वाशिंगटन की मांगों से और न ही इसके फैसलों से बंधे हैं. नाटो की तरह भारत अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं के लिए अमेरिका पर निर्भर नहीं है. भारत अमेरिका के साथ अभ्यास कर सकता है लेकिन उसने साफ कर दिया है कि वो यूएस कमांड के तहत काम नहीं करेगा और न ही यह इसके साथ ज्वाइंट पैट्रोल में संलग्न होगा.

अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ावा देने के दौरान और इसकी सभी खरीद अमेरिका को अपनी बेरोजगारी को कम करने में सक्षम बनाता है. यह किसी सहायता के तहत हथियारों को नहीं खरीदता बल्कि उन्हें बाजार के भाव के अनुसार खरीदता है. सच्चाई तो यही है कि रूस और ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंध उसके खुद के लिए हैं और न तो संयुक्त राष्ट्र और न ही विश्व समुदाय को इसका समर्थन प्राप्त है. अपनी व्यक्तिगत लड़ाई में भारत को खींचने की उनकी मंशा न तो उचित और न ही कानूनी रूप से वैध है. अगर भारत झुकता है, तो यह अपने पारंपरिक सहयोगियों के साथ उसके संबंध तोड़ देगा.

USA, Indiaअगर आज भारत झुक गया तो फिर कभी उठ नहीं पाएगा

अमेरिका को अपनी जरुरत के अनुसार संबंध बनाने और बाद में स्थिति बदलते ही उन्हें तोड़ देने के लिए जाना जाता है. इसके पारंपरिक सहयोगियों ने अब अमेरिका को अनदेखा करते हुए अपने रास्ते बनाने शुरु कर दिए हैं. ऐसे में आज के समय अमेरिका को कई कारणों से भारत की जरूरत है. अफगानिस्तान में भारतीय निवेश उस देश को विकसित करने की मांग में अमेरिका की सहायता करते हैं. भारत इस क्षेत्र में चीन को चुनौती देने के लिए सैन्य और आर्थिक शक्ति से संपन्न एशिया का एकमात्र राष्ट्र है. इसलिए अमेरिका को भारतीय सैन्य सहयोग की सख्त जरुरत है. अमेरिका की वर्तमान रणनीति भारत के जरिए रूस और ईरान पर वापस वार करने की है.

भारत, अमेरिका की व्यक्तिगत शत्रुता के लिए अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को अनदेखा नहीं कर सकता है. भारत-रूस संबंध दशकों से हैं. रूस हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है. वर्तमान में 60 प्रतिशत से अधिक भारतीय सैन्य उपकरण रूसी मूल के हैं. हालांकि अमेरिका और रूस अलग अलग स्पेक्ट्रम पर हैं, लेकिन अमेरिका कभी भी अपना रुख बदल सकता है. जैसा कि उसने उत्तर कोरिया के साथ किया है. अगर भारत अमेरिका के प्रभाव में पड़ता है और एस -400 खरीदने की योजना छोड़ देता है, तो वह रूस के साथ अपने संबंधों को दोबारा बहाल नहीं कर पाएगा.

चाबहार बंदरगाह में भारतीय निवेश बहुत अधिक है और बंदरगाह भारत को कई रणनीतिक लाभ प्रदान करता है. भारत ने तेल की खरीद बढ़ाने के लिए ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी के भारतीय दौरे के बाद ईरान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. अमेरिकी मांगों पर इसे रोकना, ईरान को भारत से दूर कर देगा और चाबहार बंदरगाह पर इसके समझौते को नुकसान पहुंचाएगा. चीन पहले से ही अमेरिका के साथ कई संघर्षों में है और ईरान से तेल का सबसे बड़ा खरीदार कभी भी अमेरिकी अनुरोधों से सहमत नहीं होगा. अगर भारत ऐसा करता है, तो यह लगभग चाबहार बंदरगाह को चीन को उपहार देना होगा.

अमेरिका के साथ अपनी बढ़ती निकटता के बावजूद भारत को एक स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करने की जरूरत है. पहले चरण के रूप में इसे COMCASA पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए, जो अमेरिका की एकतरफा नीतियों के साथ उनकी असहमति को दिखाता है. भारत और अमेरिका दोनों को एक दूसरे की जरूरत है. फिर भी दोनों स्वतंत्र हैं. यदि अमेरिका अपनी विदेश नीति को तोड़ सकता है, तो भारत को भी तोड़ देना चाहिए.

"2 + 2 मीटिंग" एक ऐसा मंच होना चाहिए था जहां से दोनों देश अपने संदेश जोरदार तरीके से और स्पष्ट रुप से पेश करते. अमेरिका ने भारतीय दिमाग और दृढ़ संकल्प को समझ लिया होगा. अगर अमेरिका सुनने को इच्छुक नहीं है, तो भारत के पास अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के अलावा बहुत ही सीमित विकल्प है.

इस प्रकार हमें अमेरिकी प्रतिबंधों को बाईपास करना होगा या अगर सबसे खराब स्थिति का सोचें तो इसे मैनेज करना होगा. ट्रम्प का राष्ट्रपति के रूप में साढ़े तीन साल का कार्यकाल बाकी है. इस दौरान और बाद में भारत को अमेरिका की उतनी जरूरत नहीं जितनी की अमेरिका को भारत की होगी. यदि अमेरिका अब भारतीय राष्ट्रीय हितों को स्वीकार नहीं करता है, तो राष्ट्रपति के बदलने के बाद यह होगा. पर होगा जरुर. भारत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, इसे लुभाने की आवश्यकता होगी. अगर ये अब झुक जाता है तो फिर इसे हमेशा के लिए ही बेकार समझा जाएगा. और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और इसके सामरिक लाभ में भी भारत अपनी विश्वसनीयता खो बैठेगा.

(DailyO के लिए साभार)

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लेखक

हर्ष कक्कड़ हर्ष कक्कड़ @हर्ष कक्कड़

लेखक रिटायर्ड मेजर जनरल हैं..

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