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Updated: 28 जनवरी, 2016 02:19 PM
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सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी... इतिहास के दो ऐसे किरदार जिनके बीच व्यक्तिगत तौर पर शायद उतनी दूरियां नहीं रही होंगी जितना दोनों के चाहने वालों ने, इतिहास लिखने वालों ने पैदा कर दी. 18 अगस्त, 1945 को हुई विमान दुर्घटना के बाद सुभाष चंद्र के साथ क्या हुआ..ये विवाद अब भी अपनी जगह है लेकिन इस बीच एक नई बहस चल पड़ी है. भारत को आजादी दिलाने में किसकी भूमिका अहम रही..गांधीजी की या नेताजी की?

एक किताब से शुरू हुई बहस

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मिलिट्री इतिहासकार जनरल जीडी बक्शी ने अपनी आने वाली किताब 'बोस: एन इंडियन समुराई' में यह दावा किया है भारत की आजादी के कागजात पर हस्ताक्षर करने वाले ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने कहा था कि ब्रिटिश शासन के लिए नेताजी सबसे बड़ी 'चुनौती' थे. इस मुकाबले में गांधीजी का अहिंसात्मक आंदोलन ब्रिटिश सत्ता के लिए कम चुनौती भरा था.

बक्शी ने अपनी किताब में लेबर पार्टी के नेता एटली और 1956 में पश्चिम बंगाल के कार्यवाहक गवर्नर जस्टिस पीबी चक्रवर्ती के बीच हुई बातचीत का हवाला दिया है. एटली तब 1956 में कोलकाता आए थे और जस्टिस चक्रवर्ती के मेहमान थे. उसी समय एटली ने ये बात कही. जस्टिस चक्रवर्ती तब कोलकाता हाईकोर्ट के भी मुख्य न्यायाधीश थे. किताब के अनुसार जस्टिस चक्रवर्ती ने आरसी मजूमदार की पुस्तक: 'अ हिस्ट्री ऑफ बंगाल' के प्रकाशक को एक खत लिखा था.

जस्टिस चक्रवर्ती ने उस खत में लिखा, 'जब मैं कार्यवाहक गवर्नर था तब लॉर्ड एटली जिन्होंने यहां से ब्रिटिश शासन को हटाने का फैसला किया, अपने भारत दौरे के दौरान मेरे साथ दो दिन बिताए थे. तब मेरी इस विषय पर उनसे विस्तार से चर्चा हुई कि किन वजहों से ब्रिटेन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. मैंने उसने सीधा प्रश्न किया कि गांधीजी द्वारा 1942 में शुरू हुआ भारत छोड़ो आंदोलन अपनी धार खो रहा था. 1947 में कोई और बड़ी वजह भी दिखाई नहीं देती फिर क्या कारण था कि एकाएक ब्रिटिश शासन ने भारत को आजाद करने का फैसला किया. जवाब में एटली ने कई कारण गिनाए लेकिन उन सब में सबसे मुख्य था भारतीय सेना और नेवी के लोगों में ब्रिटिश शासन के प्रति बढ़ता असंतोष और अविश्वास. इस अविश्वास के भी बढ़ने का प्रमुख कारण नेताजी के सैन्य कार्य थे.'

इसी खत में जस्टिस चक्रवर्ती आगे लिखते हैं, मैंने एटली से चर्चा के अंत में पूछा कि भारत को आजाद करने के फैसले में गांधीजी का कितना प्रभाव रहा. इसे सुनने के बाद एटली ने मुस्कुराते हुए धीरे से कहा 'बहुत कम' (m-i-n-i-m-a-l).

वैसे, किताब से इतर यह तो कहा ही जाता रहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की मिलिट्री इंटेलिजेंस ने रिपोर्ट दी थी कि भारतीय सैनिक भड़के हुए हैं और उन पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता. उस समय बमुश्किल 40,000 ब्रिटिश टुकड़ी ही भारत में मौजूद थी. और उनमें से भी कई अपने देश लौटना चाहते थे. जबकि भारतीय सैनिकों की तादाद 20 लाख के आसपास थी. इन्ही मुश्किल हालातों को देखते हुए ब्रिटिश शासन ने भारत छोड़ने का फैसला किया.

बोस और गांधी

यह बात जगजाहिर है कि दोनों नेता अलग मिजाज के थे लेकिन मसकद तो एक ही था. हाल ही में नरेंद्र मोदी सरकार ने नेताजी से जुड़े करीब 100 फाइलों को सार्वजनिक किया. कई और किए जाने हैं. तो क्या इन फाइलों के बाहर आने के साथ ये जरूरी हो गया है कि हम किसी पूर्वाग्रह के बगैर इतिहास को लेकर एक बार फिर गंभीर चर्चा करें? और क्या इतिहास की किताबों को नए सिरे से प्रकाशित करने की जरूरत है?

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