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Updated: 14 जून, 2023 01:49 PM
sanjay saxena
 
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अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होना है और राहुल गांधी मानहानि के एक केस में सजा सुनाये जाने के बाद चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गए है. गौरतलब हो सजा सुनाए जाने से पूर्व तक राहुल गांधी को ही कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार माना जाता था. राहुल के पीएम की रेस से बाहर होने की संभावना के बाद बदली परिस्थितियों में प्रियंका पीएम बनने का सपना देखने लगी हैं. ऐेसे में उनके यूपी कांग्रेस का प्रभारी बने रहना का कोई औचित्य नहीं रह जाता है.सवाल यही है कि यूपी में गांधी परिवार नहीं तो कौन.

सूत्रों की मानें तो आगामी चुनाव की तैयारियों को देखते हुए राज्य में कांग्रेस को जल्द ही नया प्रभारी मिल सकता है. पार्टी में प्रभारी के लिए नए नामों को लेकर मंथन भी शुरू हो गया है.सूत्रों के अनुसार कई नाम यूपी कांग्रेस प्रभारी की रेस में हैं. हरीश रावत और तारिक अनवर का नाम इस रेस में सबसे आगे बताया जा रहा है. इनको कांग्रेस का राज्य में प्रभार दिया जा सकता है. हालांकि अभी पार्टी जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती है. यूपी में कांग्रेस की नई कार्यकारिणी का भी एलान होना है, इसको लेकर भी कई नामों पर चर्चा चल रही है. माना जा रहा है कि प्रदेश कार्यकारिणी में क्षेत्रीय अध्यक्षों को जगह दी जा सकती है. राजनीतिक के जानकारों की मानें तो कर्नाटक चुनाव के बाद पार्टी में संगठन स्तर पर कुछ नेताओं की जिम्मेदारी को बढ़ाया जा सकता है. खास तौर पार्टी में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी को देखते हुए ये बदलाव काफी अहम होगा.

Congress, UP, Assembly Elections, Lok Sabha Election, Rahul Gandhi, Priyanka Gandhi, Sonia Gandhiलाख प्रयासों के बावजूद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी उभर नहीं पा रही है

सूत्रों की मानें तो कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी की भूमिका बदलेगी.वह चुनावी राज्यों में ज्यादा समय देंगी. बता दें कि इस साल के अंत तक राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने वाले हैं. कांग्रेस की सरकार राजस्थान और छत्तीसगढ़ में है, जबकि बीजेपी की सरकार मध्य प्रदेश में है. हालांकि कर्नाटक में जीत के बाद अब कांग्रेस ने इन राज्यों में तैयारी तेज कर दी है,लेकिन कांग्रेस के लिए राजस्थान में हालात काफी खराब है.

यहां कांग्रेस के लिए वापसी आसान नहीं होगी, इसी लिए कांग्रेस ने यहां कई लोकलुभावन घोषणाएं की हैं.200 यूनिट बिजली तो उपभोक्ताओं को फ्री में मिलने भी लगी है. बहरहाल,बात प्रियंका के बाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति की कि जाए तो यहां पार्टी के पास जनाधार वाले नेताओं का पूरी तरह से टोटा है.ज्यादातर नेता उम्रदराज हो चुके हैं,कांग्रेस ने नई पीढ़ी के नेताओं को कभी तवज्जो नहीं दी,जिसकी वजह से नई लीडरशिप भी तैयार नहीं हो पाई है.

80 लोकसभा सीटों वाली यूपी में यदि कांग्रेस का रिकार्ड अच्छा नहीं रहा तो उसके लिए अगले वर्ष केन्द्र में सत्ता की राह आसान नहीं होगी.दरअसल,प्रदेश कांग्रेस की अंतरकलह और बिखरा प्रबंधन उस पर फिर भारी पड़ा है. कभी-कभी सत्ताधारी दल भाजपा की नीतियों के विरोध को हथियार बनाकर कांग्रेस कुछ हमलावर तो दिखती है पर लोगों में विश्वास कायम नहीं कर पाती है.पदाधिकारियों की आपसी खींचतान इतनी बुरी तरह से हावी है कि कार्यकर्ता भी खेमेबंदी में उलझकर रह गए हैं. वोटों में उसकी भागीदारी भी घटती रही है.

यह दशा लोकसभा चुनाव-2024 में उसके प्रदर्शन को लेकर चिंता की लकीरों को और बड़ा करती हैं.कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने आठ अक्टूबर, 2022 को पदभार संभाला था. उनके साथ ही पार्टी ने प्रदेश को छह प्रांतों में बांटकर पहली बार प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में नया प्रयोग भी किया. जातीय समीकरणों के आधार पर अपने नेताओं को नई जिम्मेदारी सौंपी गई. नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पश्चिमी प्रांत, नकुल दुबे को अवध, अनिल यादव को बृज, वीरेन्द्र चौधरी को पूर्वांचल, योगेश दीक्षित को बुंदेलखंड व अजय राय को प्रयाग प्रांत का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

इन सभी के लिए नगर निकाय चुनाव पहली परीक्षा थी। दूसरे दलों के लिए लोकसभा चुनाव-2024 से पहले निकाय चुनाव भले ही सेमीफाइनल रहा हो पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व प्रांतीय अध्यक्षों के लिए अपना दमखम दिखाने का पहला मौका था,जिसमें यह कोई करिश्मा नहीं कर सके. देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी की उत्तर प्रदेश में दुर्दाशा की यह कहानी पुरानी है. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के सभी 399 प्रत्याशियों को कुल मिलाकर 21,51,234 वोट मिले थे, जो कि कुल पड़े मतों का 2.33 प्रतिशत था.इससे पूर्व वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिन्हें कुल 54,16,540 वोट मिले थे.

कांग्रेस के हिस्से 6.25 प्रतिशत वोट आए थे.तब कांग्रेस गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में थी और फिर 2022 में अकेले दम किस्मत आजमाई थी. वोटों के प्रतिशत का अंतर उसकी घटती ताकत को खुद बयां करता है.वहीं 2017 के निकाय चुनाव में कांग्रेस को 10 प्रतिशत मत मिले थे और वह भाजपा, सपा व बसपा से काफी पीछे रही थी.2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं और पार्टी का वोट प्रतिशत 7.53 रहा था.2019 लोकसभा में कांग्रेस के हाथ एक जीत ही लगी थी. यह भी साफ है कि हर चुनाव में कांग्रेस अपने खोए जनाधार को लौटाने की कोई कारगर जुगत लगाने में नाकाम रहती है,अब तो उसके पास को तुरूप का इक्का भी नही बचा है.जिस तुरूप के इक्के प्रियंका वाड्रा पर कांग्रेस को काफी नाज था, वह यूपी में पूरी तरह से फिसड्डी साबित हुईं. 

लेखक

sanjay saxena

freelance journalist

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