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Updated: 05 मई, 2023 09:50 PM
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कोई इन मजबूरियों को उनके एक तीर कई निशाने वाला मास्टर स्ट्रोक बता दें, उनकी मजबूरियां हैं. निःसंदेह दिग्गज राजनेता शरद पवार का एनसीपी के अध्यक्ष (राष्ट्रीय अध्यक्ष इसलिए नहीं कहेंगे चूंकि पार्टी ही राष्ट्रीय होने का टैग खो चुकी है) से इस्तीफे का ऐलान सियासी हलचल मचा रहा है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि आखिर 82 साल के पवार ने अचानक अध्यक्ष पद क्यों छोड़ा ? पर अचानक तो कुछ भी नहीं हुआ यदि विगत 15-20 दिनों के घटनाक्रम पर गौर करें तो ! पवार परिवार को तो खूब पता था. सुप्रिया सुले खूब वाकिफ थी तभी तो उन्होंने 15 दिन पहले दावा किया था कि अगले दो हफ्ते में महाराष्ट्र और दिल्ली मिलाकर दो बड़े राजनीतिक विस्फोट होने वाले हैं. और एक हो गया और दूसरा दिल्ली वाला फिलहाल दो तीन दिनों के लिए टल गया है चूंकि पवार साहब ने स्वयं इस्तीफे के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए तीन दिन का समय ले लिया है ! क्योंकि दोनों विस्फोटों का कनेक्शन है.कयास खूब लग रहे हैं और सारे के सारे या तो पोलिटिकल पंडित लगा रहे हैं या पॉलिटिकल पार्टियां लगा रही है सिवाय सत्ताधारी पार्टी यानी बीजेपी के. बीजेपी के नेता 'नो कमेंट्स' मोड में हैं. दरअसल बीजेपी का यही अनकहा अंदाज पूरे विपक्ष की हवा ख़राब कर दे रहा है.

Sharad Pawar, Maharashtra, NCP, Resignation, Ajit Pawar, Supriya Sule, Praful Patel, BJP, Congress अपने इस्तीफे से शरद पवार ने सिर्फ एनसीपी ही नहीं पूरे महाराष्ट्र की सियासत को प्रभावित किया है

एक आदर्श सवाल उठा क्या उन्होंने अपना उत्तराधिकारी तय करने के बाद युवा पीढ़ी को आगे लाने के लिए यह पद छोड़ा है ? एनसीपी की ही एक महिला कार्यकर्ता ने हुंकार भरी, 'टाइगर जिंदा है ... टाइगर बूढा भी हो जाए तो घास नहीं खाता...' अहम सवाल है एनसीपी में पवार के बाद कौन ? अगर शरद पवार की जगह अजित पवार को कुर्सी दी जानी तय है तो 64 साल की वयस युवा होती है क्या ? या फिर दिखाने के लिए परिवार से बाहर के प्रफुल्ल पटेल को बनाया जाए तो वे भी यंग नहीं है, उम्र वही साठा पार ही है.

स्पष्ट है कमान बेटी सुप्रिया सुले को दी जा सकती है, युवा नहीं भी तो अपेक्षाकृत युवा है हीं और फिर पॉलिटिक्स में 50-55 के मध्य के लोग युवा नेता ही कहलाते हैं. और यदि परिवार के बाहर के किसी युवा को मौका दे दिया तो उसकी निष्ठा कब तक बनी रहेगी या बनी रहेगी भी की नहीं, कौन गारंटी ले सकता है ? या फिर पार्टी के भीतर अजित पवार ख़ेमे की बढ़ती ताक़त ने उन्हें पद छोड़ने पर मजबूर किया है ?

हालांकि उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ने का मन नहीं बनाया है. तो क्या वे सोनिया फार्मूला को फॉलो करना चाहते हैं जिसके तहत अध्यक्ष खड़गे जी भले ही हों, बागडोर उनके हाथ में ही है. खैर ! अभी मान मनौव्वल का दौर चल रहा है ; एक भारी भरकम कमेटी भी बना दी गयी है जिसका असल उद्देश्य भले ही अध्यक्ष चुनना हो, कहा यह जा रहा है कि फिलहाल कमेटी का एकमेव उद्देश्य पवार साहब को मनाना है अध्यक्ष बने रहने के लिए.

देर सबेर पवार साहब के पद छोड़ने के पीछे के कारणों का पता चल ही जाएगा लेकिन उनके पद छोड़ने पर यह सवाल भी उठना लाजिमी है कि क्या दुनिया के सबसे युवा देश भारत के बुजुर्ग राजनीतिज्ञों को समय रहते सक्रिय राजनीति से विदाई नहीं ले लेनी चाहिए ? देश में आज भी नेताओं की बड़ी फेहरिस्त है जो अपनी पार्टी का अध्यक्ष बने रहने के साथ साथ संसद- विधानसभाओं में भी सक्रिय हैं.

पूर्व पीएम देवगौड़ा, सजायाफ्ता ओमप्रकाश चौटाला व फारुख अब्दुल्ला 85 साल की उम्र पार कर चुके हैं लेकिन अब भी अपनी अपनी पार्टियों के अध्यक्ष पद पर काबिज हैं. विडंबना ही है कि एक तरफ हर क्षेत्र में युवा अपनी पहचान बनाकर नाम कमा रहे हैं, वही दूसरी तरफ राजनीति में युवाओं के अवसर सीमित नजर आते हैं, हर युवा नेता बुजुर्गवार अध्यक्ष का पुत्र पुत्री हो, संभव नहीं है.

फिलहाल कयास ही लग रहे है तो लगे हाथों बिगर कांस्पीरेसी थ्योरी का खुलासा कर ही दें ! पवार साहब ने यदि पद छोड़ने का ऐलान अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ के विमोचन के मौके पर नहीं किया होता तो क्या होता ? निश्चित ही आत्मकथा में महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर उनके चौंकाने वाले खुलासों पर बवाल मचता, तमाम सहयोगी दल और अन्य विपक्ष भी ठीक वैसे ही नाक भौं सिकोड़ता जैसे कुछ दिनों पहले पवार जी द्वारा अडानी मुद्दे पर , विपक्षी एकता पर इतर और बेबाक राय रखे जाने पर.

तो क्यों ना कहें एक सोची समझी नीति के तहत शरद पवार ने पद छोड़ने के ऐलान की आड़ ले ली ? शरद पवार ने 2019 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद महाराष्ट्र की सियासी उथल-पुथल और अजित पवार के बीजेपी के साथ जाने के फैसले से संबंधित कई बातें अपनी किताब में लिखी हैं. कांग्रेस की खूब आलोचना की है, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को अहंकारी बताया है, उद्धव को अपरिपक्व नेता बताया है जिसमें अनुभव की कमी है, उन्होंने पीएम मोदी से अपने रिश्तों पर भी खुलकर कहा है.

उन्होंने जिक्र किया है कि क्यों उनके और पीएम मोदी के रिश्तों की इतनी चर्चा होती है. पवार लिखते हैं, 2004 से 2014 में वे गुजरात सरकार और केंद्र के बीच ब्रिज का काम करते थे. तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे और उस समय उनके केंद्र की सत्ताधारी कांग्रेस से रिश्ते अच्छे नहीं थे. वे लिखते हैं, 'इस दौरान केंद्र और गुजरात सरकार की बात नहीं हो रही थी. ऐसे में गुजरात की जनता को नुकसान हो रहा था.

इसलिए मैंने पहल की और तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से बात की. वह काफी समझदार और सुलझे हुए नेता थे क्योंकि वह इस बात को समझते थे. बाद में मुझे गुजरात और केंद्र के बीच संवाद स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. मेरे और नरेंद्र मोदी के बीच अच्छे संबंधों के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है. ये संबंध उस वक्त बने जब 10 साल तक मैं केंद्र में प्रतिनिधित्व कर रहा था.'

पवार साहब ने अपने परिवार का भी जिक्र किया, अपनी पत्नी की भूमिका को भी खूब सराहा. वे कहते हैं, 'मेरी पत्नी प्रतिभा और अजित के संबंध काफी गहरे हैं. प्रतिभा कभी राजनीतिक घटनाक्रम में नहीं पड़तीं, लेकिन अजित का मामला परिवार से जुड़ा था. अजित ने प्रतिभा (शरद जी की पत्नी) से मिलने के बाद दुख जताया और उन्होंने स्वीकार किया कि जो कुछ हुआ, वह गलत था. ऐसा नहीं होना चाहिए था और यह हमारे लिए काफी था और इसने पूरे प्रकरण पर पर्दा डाल दिया.'

एक पत्रकार दूर की कौड़ी भी निकाल लाया जब उसने कहा कि एक परिवार में एक भतीजा शरद पवार जी का है, चचेरे भाई बहन अजित दादा और सुप्रिया है और एक अन्य परिवार में एक भतीजा वरुण था जो चचेरा भाई ही है एक बहन का ! कहने का मतलब यदि इस्तीफे का ऐलान नहीं होता तो आत्मकथा खूब सुर्खियां बटोरती, तमाम पंडित बायोग्राफी पर कयास लगाते और कुल मिलाकर एक बार फिर मोदी के खिलाफ लामबंद होता विपक्ष असहज होता नजर आता.

एक अन्य पत्रकार का मानना है कि शरद पवार ने अपनी पार्टी के कतिपय नेताओं को बीजेपी के साथ जाने के लिए सेफ पैसेज देने के वास्ते इस्तीफे का ऐलान किया है. उम्र के इस पड़ाव पर वे स्वयं को जोड़तोड़ की राजनीति से ऊपर उठा दिखाना चाहते हैं. चूँकि वही छवि अब आगे उनके काम आएगी. और देखिये दो दिन भी नहीं बीते और उत्पाती एडिटोरियल से 'सामना' हो रहा है.

कुंठा जो शुरू से ही थी या कहें बायोग्राफी इम्पैक्ट ! वर्डिक्ट ही दे दिया कि अजित पवार के इस्तीफे और एनसीपी में संभावित टूट को देखते हुए पवार ने इस्तीफा देने का फैसला किया था. अन्य कई अनर्गल सच्ची झूठी बातें भी कह दी गई है. खूब कटाक्ष भी किये हैं एनसीपी के तमाम दिग्गज नेताओं पर. लेख कहता है, 'पवार द्वारा सेवानिवृत्ति की घोषणा करते ही कई प्रमुख नेताओं के आंसू छलक पड़े, रोने-धोने लगे. पवार के चरणों पर नतमस्तक हो गए.

‘आपके बिना हम कौन? कैसे?’ ऐसा विलाप किया. लेकिन इनमें से कइयों के एक पैर भाजपा में हैं और पार्टी को इस तरह से टूटते देखने की बजाय सम्मान से सेवानिवृत्ति ले ली जाए, ऐसा सेकुलर विचार पवार के मन में आया होगा तो उसमें गलत नहीं है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का एक गुट भारतीय जनता पार्टी की दहलीज पर पहुंच गया है और राज्य की राजनीति में कभी भी कोई भूकंप आ सकता है, ऐसे माहौल में पवार ने इस्तीफा देकर हलचल मचा दी.'

परंतु उद्धव भले ही साठा पार चुके हैं, फिलहाल राजनीति में कच्चे हैं और ऐसा शरद पवार जी ने कहा है तो गलत नहीं कहा है. दरअसल उद्धव जी अपने ही एक उत्पाती नेता संजय राउत की कठपुतली बन बैठे हैं. जिन शरद पवार जी के क़दमों की आहट तक राजनीति में कोई नहीं सुन पाया, उनको इस कदर कमतर आंक रहे हैं कि उन्होंने मजबूरी में सेवानिवृति ले ली या उन्हें रिटायर होने के लिए कह दिया गया ! अंततः एक बात तो सभी समझ रहे हैं कि कयास जितने भी लगते रहे या लगाए जाते रहे, शरद पवार जी का ऐलान, यदि वापस ले भी लिया तो भी, एडवांटेज मोदी ही हैं !

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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