New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 18 फरवरी, 2019 04:38 PM
  • Total Shares

7 सितंबर 1965 की आधी रात के बाद पांच पाकिस्तानी विध्वंसक भारतीय मंदिरों के शहर द्वारका से महज 5.8 नॉटिकल मील की दूरी तक आए और फायरिंग शुरू कर दी. इस घटना से ठीक एक हफ्ते पहले पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के नाम से पूरी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपना आक्रामक सैन्य अभियान चलाया था. भारत और पाकिस्तान तब आधिकारिक तौर पर युद्ध की स्थिति में आ चुके थे और पाकिस्तानी नेवी अब लड़ाई के मूड में थी.

समुद्री तट के समानांतर खड़े द्वितीय विश्व युद्ध के पुराने बेड़ों से सजे पाकिस्तानी युद्धपोत ने उस रात गुजरात के तट पर 50 गोले दागे. पाकिस्तानी नेवी ने जिसे 'ऑपरेशन द्वारका' नाम दिया था, उसका मकसद उस रडार स्टेशन को नष्ट करना था जो कि भारत को अरब सागर में नेवी की गतिविधियों की निगरानी करने में मददगार था. पाक नेवी की बमबारी चार मिनट तक जारी रही. पाकिस्तानी सेना जामनगर स्थित भारतीय एयर फोर्स द्वारा किए जाने वाले हवाई हमले के डर से कराची वापस लौट गई.

अगले दिन सुबह घटनास्थल पर गई नेवी की टीम के मुताबिक पाकिस्तान द्वारा दागे गए गोले रेलवे स्टेशन और मंदिर की नरम जमीन पर गिरे थे और इन्होंने गेस्ट हाउस और एक स्टीम इंजन को नुकसान पहुंचाया था. इस घटना में सिर्फ एक गाय की मौत हुई, जो हमले के समय इसके आसपास थी. नुकसान ज्यादा नहीं हुआ, क्योंकि कुल दागे गए 50 गोलों में से 40 फटे ही नहीं.

pakistan 1965 warपाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के नाम से पूरी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपना आक्रामक सैन्य अभियान चलाया था

भारतीय नौसेना के इतिहासकारों ने इसे एक उपद्रवी छापामारी करार दिया है. द्वारका में कोई रडार स्टेशन नहीं था बल्कि ऐसे दावे एक उत्साही नौसेना द्वार पेश की गई कहानी थी. पाकिस्तानी नौसेना का कहना था कि इस ऑपरेशन से उसके चार सूत्री मकसद में से ज्यादातर में कामयाबी मिली, जिनमें से एक भारतीय नौसेना इकाई को उनकी पनडुब्बी PNS गाजी से हमले के लिए बाहर लाना, दूसरा रडार स्टेशन को नष्ट करना, भारतीय सेना का मनोबल गिराना और भारतीय एयरफोर्स को उत्तर दिशा से दूसरी तरफ मोड़ना था. पाकिस्तानी सेना 8 सितंबर को नौसेना दिवस के रूप में मनाती है.

लेकिन उस रात द्वारका पूरी तरह असुरक्षित था. और यही इस कहानी में अजीबोगरीब ट्विस्ट है. 2 सितंबर को भारतीय नौसेना ने आईएनएस तलवार को ओखा की निगरानी के लिए भेजा ताकि पाकिस्तानी सेना के आगे बढ़ने की चेतावनी दी जा सके. ग्रेट ब्रिटेन से पांच साल पहले ही मिला आईएनएस तलवार किसी भी एशियाई नौसेना के सबसे आधुनिक वॉरशि‍प में से एक था. इसमें दो 4.5 इंच की बंदूकें थीं, जो कि 16 किलोमीटर के दायरे में एक मिनट में एक टन स्टील और भारी-भरकम विस्फोटक को नेस्तनाबूद कर सकती थीं. इस युद्धपोत पर दूसरे भी हथियार थे, जिनमें पनडुब्बी को नष्ट करने वाले मोर्टार और विमान को नष्ट करने वाली बंदूकें थीं.

तलवार को द्वारका से महज 30 किलोमीटर उत्तर में ओखा में इंजन में समस्या आने के बाद रुकना पड़ा. इसने पाकिस्तानी नौसेना टुकड़ी के ट्रांसमिशन को टेप कर लिया और करीब रात 10 बजे यह जानने के बाद कि पाक नेवी का टारगेट वही है, इस पर कार्रवाई भी शुरू कर दी. तलवार पर तैनात अधिकारी ने रिपोर्ट किया था कि जहाज की 4.5 इंच की बंदूकें और फायरिंग पर नियंत्रण करने वाला रडार लड़ाई के लिए पूरी तरह से तैयार है.

तलवार लड़ाई के लिए आगे नहीं बढ़ा. पाकिस्तानी बेड़े से भिड़ने के प्रति उसने इसलिए अनिच्छा दिखाई होगी क्योंकि नेवी के हाथ साउथ ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्रालय के एक अजीब आदेश के कारण बंधे थे. सितंबर की शुरुआत में रक्षा मंत्रालय के एक अतरिक्त सचिव ने नेवी के चीफ वाइस एडमिरल बीएस सोमन को भेजे एक नोट में कहा था, 'नेवी को पोरबंदर के उत्तरी अक्षांश में कार्रवाई नहीं करनी है और साथ ही समुद्र में पाकिस्तान के खिलाफ किसी आक्रामक कार्रवाई की शुरुआत नहीं करनी है, जब तक कि पाकिस्तानी सेना द्वारा की जाने वाली आक्रामक कार्रवाई का जवाब देने के लिए मजबूर न होना पड़े.'

सरकार इस संघर्ष को बढ़ाना नहीं चाहती थी. इस संयम बिल्कुलल 1962 के भारत-चीन युद्ध जैसा था जिसमें प्रधानमंत्री नेहरू ने कई गुना बेहतर भारतीय एयरफोर्स की तैनाती न करने का घातक फैसला लिया था. लेकिन सरकार के इस अजीबोगरीब निर्देश से भी आईएनएस तलवार और इसके कमांडर वीए धारेश्वर द्वारा कार्रवाई न करने की बात समझ में नहीं आती. कई भारतीय नौसेना अधिकारियों ने इस बात पर नाराजगी जताई थी. वाइस एडमिरल एमके रॉय ने 'वॉर इन द इंडियन ओशन' में रॉयल नेवी के एडमिरल सर जॉन ब्यांग के कोर्ट मार्शल का हवाला दिया है, जिन्हें मिनोरका की घेराबंदी के दौरान फ्रेंच बेड़े के खिलाफ उचित कार्रवाई न करने पर यह सजा मिली थी.

एडमिरल ब्यांग 1757 में पोर्ट्समाउथ में एचएसएस मोनार्क के क्वॉर्टरडेक पर तैनात थे. वाइस एडमिरल रॉय भारतीय संदर्भ में इस तरह की कार्रवाई की सलाह नहीं देते लेकिन वह कहते हैं, 'लेकिन इस बात को कभी भुलाया नहीं जाना चाहिए कि यह समुद्र में तैनात अधिकारी का आवश्यक कर्तव्य है कि वह दुश्मन को जंग के मैदान में लाए.'

पाकिस्तान के साथ 1971 की लड़ाई में पूर्वी नौसेना के कमांडर रहे वाइस एडमिरल कृष्णा ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, हमारा एक पोत ओखा में था. यह दुर्भायपूर्ण है कि वह पानी में उतरकर लड़ाई में भाग नहीं ले सका. भले ही एक मत नेवी के युद्ध में भाग लेने के खिलाफ था, लेकिन कोई भी सरकार किसी युद्धपोत के उसपर हमला होने की स्थिति में उसे कार्रवाई करने का दोषी नहीं ठहरा सकती. हमारी राष्ट्रीय सम्मान का तिरस्कार मजाक की बात नहीं है और हम यह कहकर हंस नहीं सकते कि, 'पाकिस्तानी सेना सिर्फ एक गाय को मार सकी.' कम से कम उस 'अनजान गाय' की याद में एक स्मारक बनाया जाना चाहिए जोकि पाकिस्तानी नेवी के साथ लड़ाई में मारी गई.

भारतीय सेना के ट्रांजिशन से जीत के आधिकारिक इतिहास के मुताबिक तलवार को ओखा में इसलिए रुकना पड़ा था क्योंकि उसे मरम्मत की जरूरत थी क्योंकि उसके कंडेसरों में लीकेज की समस्या हो गई थी जिसके कारण बॉयलर फीड में कचरे की गंभीर समस्या पैदा हो गई थी. आईएनएस तलवार के एक पूर्व क्रू ने हाल ही में मुझे बताया कि यह समस्या कठिन थी, लेकिन ऐसा नहीं था कि इसे दुरुस्त न किया जा सके. कम से कम तलवार बंदरगाह से ही पाकिस्तानी युद्धपोतों पर अपनी बंदूकों से फायरिंग कर सकता था.

तलवार की घटना जल्द नहीं भुलाई जा सकी. इसे छह साल बाद 1971 की लड़ाई में महसूस किया, जहां वाइस एडमिरल रॉय और कृष्णा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भारतीय सेना ने सोवियत रूस से तटीय छापों के लिए मिसाइल से लैस तेजी से आक्रमण करने वाले छोटे जहाज हासिल किए थे. इन 'मिसाइल बोट्स' को बड़े युद्धपोतों पर लाया जा रहा था और दिसंबर 1971 में जंग के दौरान इन्हें कराची के पास उतारा गया था.

ट्राइडेंट और पाइथन नाम के दो अलग हमलों में इन्हें इस्तेमाल किया गया, इसे ऐंटी-शिप मिसाइलों का दुनिया का सबसे सफल प्रयोग माना जाता है. इन्होंने पाकिस्तानी नेवी के विध्वंसक, एक माइंसस्वीपर, एक युद्धपोत टैंकर, तीन व्यापारी जहाजों को डुबो दिया और कराची स्थित तेल के टैकों को नष्ट कर दिया था. ऑपरेशन द्वारका और एक मृत गाय के डरावने अतीत को आखिरकार दफन कर दिया गया था.

#1965 युद्ध, #पाकिस्तान, #विजय दिवस, 1965 युद्ध, पाकिस्तान, विजय दिवस

लेखक

संदीप उन्नीथन संदीप उन्नीथन @sandeepunnithanindiatoday

लेखक इंडिया टुडे में डिप्टी एडिटर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय