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Updated: 22 अप्रिल, 2018 12:29 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
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देश में जब भी किसी पर कोई आरोप लगता है तो उसके खिलाफ एक्शन होता है. पुलिस पकड़कर अदालत के सामने पेश करती है, सबूत देती है फिर अदालत बताती है कि वो कसूरवार है या नहीं, इसके बाद अदालत के फैसले के मुताबिक सजा मिलती है. लेकिन जब जज गड़बड़ी करे तो उसके खिलाफ भी व्यवस्था है. बड़ी अदालतें जज के खिलाफ भी कार्रवाई के लिए बनी हैं. लेकिन सबसे बड़ी कोर्ट का सबसे बड़ा जज अगर आरोपों के घेरे में आए तो क्या? जाहिर बात है मामला किसी और अदालत में सुना जाना चाहिए. चीफ जस्टिस के खिलाफ जांच की सबसे बड़ी अदालत है महाभियोग. लेकिन महाभियोग का मकसद वो नहीं है जो सोशल मीडिया पर समझाया जा रहा है. कोई जस्टिस लोया केस से इसका मतलब निकाल रहा है तो कोई राममंदिर से लेकिन ये पांच कारण जाने बगैर आप महाभियोग की हकीकत नहीं जान पाएंगे.

supreme courtसुप्रीम कोर्ट

कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाने के प्रस्ताव का जो नोटिस राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू को दिया है उसमें इसके लिए पांच आधार बताए गए हैं.

विपक्षी दलों ने कहा कि पहला आरोप प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट से संबंधित हैं. मामला सबसे पहले तब सामने आया था जब प्रशांत भूषण के साथ चीफ जस्टिस की कोर्ट रूम में गरमा गरमी हुई थी.

दरअसल जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ मेडिकल कॉलेज घोटाला मामले में शिकायत दर्ज कराई थी. सीबीआई की एफआईआर के मुताबिक प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट मामले की सुनवाई कर रहे जजों को घूस देने की योजना थी और इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच की अध्यक्षता दीपक मिश्रा कर रहे थे.

गौरतलब है कि जस्टिस जे चेलमेश्वर ने इस कथित घोटाले की सुनवाई के लिए एक संवैधानिक बेंच बनाने का आदेश दिया था, लेकिन नवंबर माह में चीफ जस्टिस मिश्रा ने इस आदेश को पलट दिया था. इसी बिनाह पर अब प्रशांत भूषण ने अदालत की सुनवाई में लापरवाही और अनियमितता का आरोप लगाते हुए जस्टिस मिश्रा की जांच की मांग की. महा अभियोग का पहला आधार इस मामले को बनाया जा रहा है.

deepak mishraप्रशांत भूषण ने अदालत की सुनवाई में लापरवाही और अनियमितता का आरोप लगाते हुए जस्टिस मिश्रा की जांच की मांग की

क्या था प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट का मामला

मेडिकल कॉलेज घोटाला मामला यह है कि प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट को एक मेडिकल कॉलेज के लिए मान्यता चाहिए थी जिसे मेडिकल काउंसिल ऑउ इंडिया ने मना कर दिया था. जिसके बाद आरोप है कि एक कथित बिचौलिए के तौर पर एक शख्स ने मान्यता दिलाने का भरोसा दिलाया और ट्रस्ट की तरफ से उसे पैसे मुहैया कराया गया. सीबीआई ने इस मामले की जांच पड़ताल की और ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व जज कुद्दूसी और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया.

आरोप है कि इस मामले में संबंधित व्यक्तियों को गैरकानूनी लाभ दिया गया. इस मामले को प्रधान न्यायाधीश ने जिस तरह से देखा उसे लेकर सवाल है. यह रिकॉर्ड पर है कि सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की है. इस मामले में बिचौलियों के बीच रिकॉर्ड की गई बातचीत का ब्यौरा भी है.

प्रस्ताव के अनुसार इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति नारायण शुक्ला के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की इजाजत मांगी और प्रधान न्यायाधीश के साथ साक्ष्य साझा किए. लेकिन उन्होंने जांच की इजाजत देने से इनकार कर दिया.

दूसरा आरोप उस रिट याचिका को प्रधान न्यायाधीश द्वारा देखे जाने के प्रशासनिक और न्यायिक पहलू के संदर्भ में है जो प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में जांच की मांग करते हुए दायर की गई थी.

तीसरा आरोप भी इसी मामले से जुड़ा है. महाभियोग लाने वालों का कहना है कि यह परंपरा रही है कि जब प्रधान न्यायाधीश संविधान पीठ में होते हैं तो किसी मामले को शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश के पास भेजा जाता है. इस मामले में ऐसा नहीं करने दिया गया.

प्रधान न्यायाधीश पर चौथा आरोप गलत हलफनामा देकर जमीन हासिल करने का है. प्रस्ताव में पार्टियों ने कहा कि न्यायमूर्ति मिश्रा ने वकील रहते हुए गलत हलफनामा देकर जमीन ली और 2012 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने के बाद उन्होंने जमीन वापस की, जबकि उक्त जमीन का आवंटन वर्ष 1985 में ही रद्द कर दिया गया था.

इन दलों का पांचवा आरोप है कि प्रधान न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय में कुछ महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील मामलों को विभिन्न पीठ को आवंटित करने में अपने पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग किया.

कांग्रेस ने शुक्रवार को इस मामले में सफाई भी दी. उसने कहा कि उसके इस कदम के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है तथा इसका न्यायाधीश बीएच लोया मामले में 19 अप्रैल को सुनाए गए फैसले और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में हो रही सुनवाई से कोई संबंध नहीं है.

सभापति को महाभियोग चलाने के प्रस्ताव का नोटिस देने के बाद कपिल सिब्बल ने कहा, ‘प्रधान न्यायाधीश के पद की एक मर्यादा होती है. इस पद का हम सम्मान करते हैं, लेकिन ख़ुद प्रधान न्यायाधीश को भी इसका सम्मान करना चाहिए. हमें विश्वास था कि चार न्यायाधीशों ने जो सवाल खड़े किए थे उनका समाधान होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’

यह पूछे जाने पर कि क्या महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने के कदम का लोया मामले से कोई संबंध है तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि इस मामले में फैसला 19 अप्रैल को आया है, जबकि महाभियोग प्रस्ताव से जुड़ी प्रक्रिया करीब एक महीने से चल रही थी.

यह सवाल किया गया कि क्या इसका अयोध्या मामले से लेकर चल रही सुनवाई से है तो कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘नहीं.’

दरअसल, प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली विशेष खंडपीठ अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई कर रही है.

इस मामले में जब शीर्ष अदालत में सुनवाई शुरू हुई थी तो कुछ पक्षकारों के वकीलों ने इसकी सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कराने का अनुरोध किया था जिसे न्यायालय ने ठुकरा दिया था.

सिब्बल ने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव किसी मामले के फैसले या सुनवाई को लेकर नहीं लाया जाता, बल्कि इसका संबंध न्यायाधीश के ‘गलत आचरण’ से होता है.

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लेखक

गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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