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Updated: 06 मार्च, 2021 06:11 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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नौकरशाह से सियासत तक का सफर तय करने वाले शाह फैसल अब खुद को 'भारत समर्थक' बता रहे हैं. किसी समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए नोबेल मांगने वाले और मोदी सरकार की जम्मू-कश्मीर के लिए अपनाई नीतियों के मुखर आलोचक रहे शाह फैसल में बीते दिनों में काफी बदलाव आए हैं. फैसल ने एक ट्वीट कर कहा, 'दोस्तों, इसे एक बार में सुलझा लेते हैं. मैं हमेशा से भारत समर्थक रहा हूं. लेकिन, अब मन से, बेशर्म, असहाय और बिना अफसोस के भारत समर्थक हूं. मैं अपने पक्ष पर कायम हूं. यह एक लंबी कहानी है और मुझे इस कहानी को एक दिन बताना होगा. लेकिन, यह कैसे हो रहा है. शांति.' जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद लोगों को 'कठपुतली या अलगाववादी' बनने की सलाह देने वाले शाह फैसल अपनी बनाई हुई पार्टी जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स मूवमेंट से पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं. कोरोना टीकाकरण को लेकर पीएम मोदी की तारीफ के साथ भारत को जगतगुरु तक कह रहे हैं. आखिर, जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद ऐसा क्या हुआ है कि शाह फैसल के सुर बदल गए हैं.

धारा 370 की समाप्ति की घोषणा के साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों क्रमश: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया था. राज्य की राजनीति में संभावनाएं टटोलने के लिए मार्च 2019 में शाह फैसल ने नई क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी बनाई थी. लेकिन, चुनाव में जाने से पहले ही विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो गया. इसके बाद शाह फैसल समेत राज्य के कई नेताओं को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत नजरबंद और गिरफ्तार किया गया. बीते साल जून में फैसल पर लगा पीएसए हटा दिया गया था और अगस्त में उन्होंने अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. दरअसल, राज्य के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गए. निकट भविष्य में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद बहुत कम है. इस स्थिति में शाह फैसल के लिए मुख्यधारा में लौटने के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आता है.

शाह फैसल ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि अनुच्छेद 370 की हटाए जाने के बाद से केवल दो ही स्थितियां कश्मीरियों के सामने हैं. कश्मीरी दिल-दिमाग से भारत के साथ रहें या फिर पूरी तरह खिलाफ हो जाएं. फैसल ने कहा था कि अब बीच का कोई रास्ता नहीं है. इस बयान से साफ हो जाता है कि फैसल ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था, वह मुख्यधारा में लौटेंगे. इस स्थिति में एक पूर्व IAS के सामने मुख्यधारा में लौटना ही एकमात्र रास्ता बचता है. फैसल अलगाववाद का रास्ता नहीं अपना सकते हैं, इतना तो कहा ही जा सकता है. उनके किसी अन्य राजनीतिक दल से जुड़ने की बातें करना भी बेमानी ही होगा.

शाह फैसल मानते हैं कि लोगों द्वारा उनके बारे में बनाई गई 'देश विरोधी' होने की धारणा को उनके विवादित बयानों से बनी है.शाह फैसल मानते हैं कि लोगों द्वारा उनके बारे में बनाई गई 'देश विरोधी' होने की धारणा को उनके विवादित बयानों से बनी है.

शाह फैसल मानते हैं कि लोगों द्वारा उनके बारे में बनाई गई 'देश विरोधी' होने की धारणा को उनके विवादित बयानों से बनी है. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद सरकार की आलोचना में किए गए अपने काफी सारे ट्वीट्स को शाह फैसल ने हटा दिया है. वह लगातार अपनी छवि को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं. खुद को भारत समर्थक बताने वाले शाह फैसल के इस 'हृदय परिवर्तन' के बाद से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि केंद्र सरकार की ओर से उन्हें राज्य में फिर से कोई सक्रिय भूमिका दी जा सकती है. जनवरी 2019 में दिया गया उनका इस्तीफा अभी तक मंजूर नहीं हुआ है. केंद्र की मोदी सरकार हर बार ही अपने फैसलों से लोगों को चौंकाती रहती है. इस स्थिति में अगर भविष्य में शाह फैसल को राज्य में एक बड़ी जिम्मेदारी वाला 'उपराज्यपाल' का पद दे दिया जाए, तो यह शायद ही बड़ी बात हो. संभावनाएं इस बात की भी हैं कि वह मुख्यधारा में लौटने के लिए वापस नौकरी पर आ सकते हैं और एलजी मनोज सिन्हा की टीम का हिस्सा बन जाएं.

जम्मू-कश्मीर में 'गुपकार गठबंधन' कमजोर हो चुका है. हालिया हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव के बाद भाजपा ने 'गुपकार' को एक तरह से हाशिए पर डाल दिया है और केवल कश्मीर रीजन तक ही सीमित कर दिया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस आदि क्षेत्रीय पार्टियों के इस गठबंधन के नेता राज्य को उसका विशेष दर्जा वापस दिलाने की वकालत कर रहे हैं. लेकिन, भविष्य में ऐसा होने की संभावना बहुत कम ही नजर आ रही है. जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की राजनीति के लिए जगह नहीं बची है. अलगाववादी नेता भी कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे हैं. अगर ये कुछ भी हरकत करते हैं, तो सरकार इन पर फिर से शिकंजा कसते हुए पीएसए लगा देगी.

जम्मू-कश्मीर का माहौल शांत बना हुआ है. स्थितियों में धीरे-धीरे सुधार आ रहा है और लोगों पर लगाए गए प्रतिबंध हटाए जा रहे है. ब्यूरोक्रेट से नेता बने शाह फैसल के लिए जम्मू-कश्मीर में राजनीति करना अब एक मुश्किल राह है, जिससे वह खुद को पहले ही अलग कर चुके हैं. शाह फैसल का हालिया ट्वीट बताता है कि उनके सामने मुख्यधारा में लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. आने वाले समय में क्या वह केंद्र सरकार के साथ जुड़कर जम्मू-कश्मीर में जम्हूरियत बहाल करने का काम करेंगे या फिर किसी बड़े पद पर आकर कश्मीर की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ेंगे, यह तो वक्त ही बताएगा.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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