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Updated: 16 नवम्बर, 2015 01:09 PM
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यह साल शायद फ्रांस कभी नहीं भूलेगा. उसे इस साल एक के बाद एक चार बड़े आतंकी हमले झेलने पड़े. पूरी दुनिया फ्रांस के साथ होने की बात कर रही है. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी बुलंद आवाज में पेरिस अटैक की आलोचना कर चुके हैं. लेकिन कल्पना कीजिए...ये हमले अगर न्यू यॉर्क में होते तो. यह सवाल अजीब है और वाजिब भी. लेकिन इस सवाल का जवाब बहुच पेचीदा नहीं है. बहुत सीधा सा जवाब है. अगर हमले न्यू यॉर्क में होते तो सीरिया को भी अफगानिस्तान बना दिया जाता. यही अमेरिकी नीति है.

9 सितंबर, 2001 की सुबह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर्स से दो विमानों के टकराने के बाद अमेरिका आतंकवाद से लड़ने निकला था. वो भी लड़ने क्या आतंकवाद को मिटाने निकला था. लेकिन तब से आज तक की दुनिया कैसे बदली है और आतंकवाद कहां पहुंचा है, इस पर गौर किया जाना चाहिए.

अमेरिका का डबल स्टैंडर्ड

अमेरिका पर यह आरोप इसलिए क्योंकि यह सवाल हमेशा उठेगा कि पिछले 13-14 वर्षों में आतंकवाद खत्म हुआ या इसने और विस्तार हासिल कर लिया. किसी विषय पर दोहरी नीति हमेशा से अमेरिका की पहचान रही है. अमेरिका आतंकवाद के खात्मे की भी बात करता है और पाकिस्तान को आर्थिक मदद भी मुहैया कराता है. केवल इसलिए कि उसे अभी कुछ दिन और अफगानिस्तान में रहना है. और केवल पाकिस्तान की बात क्यों. ISIS का खौफ आज पूरी दुनिया में है. इसे लेकर अमेरिकी नीति क्या सोचती है, इसे भी देख लीजिए.

आज ISIS का प्रकोप इराक और सीरिया के ज्यादातर शहरों में है. इराक में हैदर अल-अबादी की सरकार है जबकि सीरिया में सत्ता राष्ट्रपति बशर अल असद के हाथ में है. पिछले पांच वर्षों में 50 लाख सीरियाई देश छोड़ चुके हैं और ग्रीस तथा दूसरे यूरोपीय देशों में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं. लेकिन अमेरिका की रुचि केवल उत्तरी इराक के कुर्द बहुल इलाकों में ही है. ISIS के खिलाफ वह केवल इन्हीं इलाकों में बम बरसा रहा है और आतंक के खिलाफ जंग का दंभ भी भरता है.

अमेरिका ने तब तक ISIS के खिलाफ कदम उठाना जरूरी नहीं समझा जब तक उसके लड़ाकों ने कुर्द क्षेत्र के करीब और इसकी राजधानी इरबिल में अपनी गतिविधि तेज नहीं कर दी. तेल के संपन्न इस क्षेत्र में अमेरिका के अपने हित हैं. कुर्द क्षेत्र की सरकार अमेरिका और मिडिल ईस्ट की भरोसेमंद सहयोगी है. बराक ओबामा कई बार सफाई दे चुके हैं कि इस क्षेत्र में कई अमेरिकी रहते हैं. इसलिए उनकी रक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका की है. लेकिन बात अमेरिकी लोगों की रक्षा से आगे तेल की है और सीरिया में रूस की एंट्री पर अमेरिका की नाराजगी की असल वजह भी.

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