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Updated: 13 अगस्त, 2017 07:01 PM
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नीतीश कुमार ने शरद यादव को राज्य सभा में जेडीयू के नेता पद से हटा दिया है. जेडीयू सांसदों ने आरसीपी सिंह को सदन में नया नेता बनाने का आधिकारिक पत्र भी सभापति वेंकैया नायडू को सौंप दिया है. शरद यादव के साथ बागी बने अली अनवर को भी संसदीय दल से सस्पेंड कर दिया गया है. अली अनवर के खिलाफ ये कार्रवाई सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई विपक्षी दलों की मीटिंग में शामिल होने के बाद हुई है.

बावजूद इन सब के शरद यादव को नीतीश कुमार ने पार्टी से निकाला नहीं है. अगर शरद यादव को जेडीयू से निकाला नहीं जाता तो वो 19 अगस्त की कार्यकारिणी में जाने के लिए अधिकृत हैं - और अगर वो गये तो सोचिये फिर क्या क्या होगा?

नीतीश का स्टैंड

अपने तीन दिन के जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान शरद यादव ने साफ साफ समझाया कि जेडीयू के दो टुकड़े हो चुके हैं. शरद यादव जहां-जहां पहुंचे एक ही बात पर उनका सबसे ज्यादा जोर रहा, "एक सरकारी जनता दल है, जिसे नीतीश कुमार चला रहा हैं और एक मैं जनता दल (युनाइटेड) में हूं, जिसके साथ बिहार की जनता है."

शरद यादव के इस कार्यक्रम में हर जगह आरजेडी के कार्यकर्ताओं की बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी देखी गयी. कई कार्यक्रम तो पूरी तरह आरजेडी की ओर से ही आयोजित किये गये थे. हर जगह शरद यादव यही समझाते रहे कि किस तरह नीतीश कुमार ने बिहार के लोगों को धोखा दिया है.

sharad yadav, nitish kumar'यूनाइटेड' कब तक?

शरद के आरोपों पर सफाई देते हुए नीतीश कुमार ने भी कह दिया कि वो सीनियर नेता हैं और अपने लिए पूरी तरह आजाद हैं. दिल्ली में नीतीश ने कहा, "शरद यादव अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र हैं. पार्टी ने आम सहमति से बिहार में भाजपा के साथ जाने का फैसला किया. वो अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र हैं." दिलचस्प बात ये है कि नीतीश उनके खिलाफ किसी एक्शन की बात नहीं कर रहे हैं. अली अनवर के खिलाफ तो एक्शन लिया गया है लेकिन शरद यादव के खिलाफ नहीं. क्या नीतीश कुमार कुछ सोच समझ कर शरद यादव के खिलाफ एक्शन से परहेज कर रहे हैं?

शरद यादव को लेकर जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी का कहना है, "शरद जी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं. 19 अगस्त को पार्टी की नेशनल एग्जीक्यूटिव की बैठक है एनडीए के साथ सरकार बनाने के नीतीश कुमार के फैसले को एंडोर्स करने के लिए. शरद जी आएंगे और अपनी बात रखेंगे तो हमें प्रसन्नता होगी."

फिर तो पक्का है कि शरद यादव को कार्यकारिणी में जाने के लिए ग्रीन सिग्नल हो रखा है. अब अगर शरद यादव कार्यकारिणी में जाते हैं तो क्या सब कुछ सामान्य ही रहेगा या हंगामा भी होगा?

शरद यादव का संभावित स्टैंड

सुना है कि जेडीयू की ये कार्यकारिणी पहले दिल्ली में होनी थी, लेकिन परिस्थितिजन्य विवशताएं बताकर वेन्यू पटना शिफ्ट कर दिया गया. जानकार इसे नीतीश और शरद यादव की ताकत से जोड़ कर देखते हैं. पटना के सत्ता के गलियारों में नजर रखने वालों की मानें तो अगर कार्यकारिणी की बैठक दिल्ली में होती तो नीतीश कुमार पर शरद यादव भारी पड़ते.

तर्क ये है कि दोनों नेताओं की कुछ मजबूत तो कुछ कमजोर कड़ियां हैं. नीतीश जेडीयू के मौजूदा अध्यक्ष तो हैं लेकिन पार्टी पर जितना प्रभाव या दबाव उनका बिहार में है उतना राज्य से बाहर नहीं है. शरद यादव का बिहार में प्रभाव भले कम हो लेकिन बाहरी इकाइयों में खासा प्रभाव है. शरद यादव को जेडीयू की 14 राज्य इकाइयों का समर्थन हासिल है, ऐसा उनके समर्थक दावा कर रहे हैं.

अब अगर नीतीश कुमार शरद यादव को कार्यकारिणी से पहले जेडीयू से बेदखल कर देते हैं तो आगे उन्हें समर्थकों के सवालों के जवाब भी देने होंगे. कार्यकारिणी में तो सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि सभी इकाइयों के नेताओं की शिरकत होगी और अगर शरद यादव वहां नहीं रहे तो वे हंगामा करेंगे, ये तय मान कर चलना चाहिये.

इसी तरह, अगर नीतीश ने शरद यादव के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया तो निश्चित तौर पर वो कार्यकारिणी में हिस्सा लेंगे. और हिस्सा लेंगे तो चुपचाप प्रस्ताव पर दस्तखत करने तो जाएंगे नहीं. अगर उनके हाल के बयानों को देखें तो लगता यही है कि बड़ा हंगामा तो वही करेंगे.

चूंकि शरद यादव खुद को ही जेडीयू का असली नेता बता रहे हैं और जैसा कि उनके समर्थकों का दावा भी है - फिर तो ये भी संभव है कि कार्यकारिणी में उल्टे नीतीश कुमार को निकालने का प्रस्ताव शरद यादव ही ला दें.

शरद यादव को आरजेडी से समर्थन मिल ही रहा है. आरजेडी के नेता फिलहाल 27 अगस्त की रैली की तैयारी में जुटे हैं. इसी तैयारी में लालू प्रसाद सिवान पहुंचे थे जहां जेडीयू नेता अवध बिहारी चौधरी आरजेडी में शामिल हो गये. तेजस्वी यादव की जनादेश अपमान यात्रा चल ही रही है. और इन सभी के पीछे 13 दलों के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी 2019 पर नजर टिकाये डटी हुई हैं.

जाहिर है नीतीश कुमार की इन सारी गतिविधियों पर नजर होगी और उसी हिसाब से वो भी काउंटर करने की तैयारी किये ही होंगे. आखिर उन्हें यूं ही चाणक्य तो कहा नहीं जाता.

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