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Updated: 09 मार्च, 2022 10:15 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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2017 में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को पंजाब के साथ साथ गोवा में भी सरकार बना लेने की पूरी उम्मीद रही, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. गोवा में तो कुछ नहीं मिला, लेकिन पंजाब में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी की हैसियत जरूर बन गयी थी. फिर भी धीरे धीरे विधायक पाला बदल कर जहां तहां निकल लिये. ऐसा करने वालों में वो विधायक भी रहे जिनको अरविंद केजरीवाल ने विपक्ष का नेता बनाया गया था.

जाते जाते कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी आम आदमी पार्टी के तीन विधायकों को कांग्रेस ज्वाइन करा दिया था. तीनों को अब कितना अफसोस हो रहा होगा, समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है.

देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले तक अरविंद केजरीवाल अपने बेहद भरोसेमंद साथियों मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के साथ घूम घूम कर मौके का मुआयना करते रहे. मुफ्त बिजली पानी वाले वादे भी करते और दिल्ली मॉडल की दुहाई भी देते - लेकिन बाद में पंजाब पर फोकस हो गये.

अरविंद केजरीवाल के पंजाब पर फोकस होते ही कुमार विश्वास कहर बन कर टूट पड़े - और अपने राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर आ गये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी अरविंद केजरीवाल के खालिस्तानियों के साथ रिश्ते को लेकर सवाल पूछने लगे.

देखते ही देखते अरविंद केजरीवाल को पंजाब में भी दिल्ली विधानसभा चुनावों की ही तरह देशद्रोही साबित करने की कोशिश होने लगी. कुमार विश्वास भी किस्तों में इंटरव्यू देकर कहीं भी आकर बहस कर लेने की चुनौती देने लगे - ऐसे बताया जाने लगा जैसे केजरीवाल तो देश से पंजाब को अलग कर प्रधानमंत्री ही बनना चाहते हैं.

अरविंद केजरीवाल को देशद्रोही और आतंकवादी साबित करने के साथ ही, आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भगवंत मान को एक नंबर का पियक्कड़ बताया जाने लगा. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह और भगवंत मान बगैर शराब पीये भाषण तक नहीं दे सकते - और भगवंत मान की तो 4 बजे के बाद पार्टी ही शुरू हो जाती है.

बहरहाल, ये पंजाब ही है जो आम चुनाव में पहली बार 2014 में आम आदमी पार्टी को 4 लोक सभा सांसद दिये थे - और अब पंजाब ही भगवंत मान की सरकार बनवा कर अरविंद केजरीवाल को विपक्षी खेमे के राहुल गांधी और ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) जैसे बड़े नेताओं में खड़ा करने जा रहा है - जो 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करने के एक्शन प्लान पर काम कर रहे हैं.

क्या से क्या हो गया देखते देखते!

पांच साल पहले जब दलित राजनीति के मुद्दे पर राष्ट्रपति चुनाव हो रहा था, अरविंद केजरीवाल के साथ अछूत जैसा सलूक हुआ था और ये हाल कांग्रेस नेतृत्व ने किया था. फिर भी आम आदमी पार्टी ने विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार का ही सपोर्ट किया था. पंजाब चुनाव के नतीजे भी एग्जिट पोल से मैच करते हैं तो अब कांग्रेस नेतृत्व के सामने विपक्ष का नेता बनने के लिए भी संघर्ष करना पड़ सकता है.

योगेंद्र यादव ने दी बधाई: अब तो एक जमाने में आप के आर्किटेक्ट रहे पुराने साथी योगेंद्र यादव ने भी अरविंद केजरीवाल को बधाई दे दी है - आप से निकाले जाने के बाद ये दूसरा मौका है जब योगेंद्र यादव केजरीवाल का सपोर्ट करते देखे जा सकते हैं. जब कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल पर एक करोड़ की रिश्वत लेने का इल्जाम लगाया था तब भी योगेंद्र यादव ने ये कहते हुए बचाव किया था कि सारी बातें मान लेंगे लेकिन केजरीवाल की इमानदारी पर शक नहीं कर सकते.

rahul gandhi, arvind kejriwal, mamata banerjeeपंजाब के नतीजे आने के बाद विपक्षी खेमे में अरविंद केजरीवाल को भी अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा

राजनीति में केजरीवाल के साथ ही कदम रखने वाले योगेंद्र यादव का पहले चुनाव विश्लेषक के तौर पर काफी नाम रहा है. पंजाब के एग्जिट पोल के नतीजों को योगेंद्र यादव फाइनल नतीजों की तरह ही ले रहे हैं.

योगेंद्र यादव ट्विटर पर लिखते हैं, 'एग्जिट पोल से अब तक सिर्फ पंजाब के बारे में ही हम किसी ठोस नतीजे पर पहुंच सकते हैं... ये साफ है कि आम आदमी पार्टी बहुमत से सरकार बनाने जा रही है.' योगेंद्र यादव ने आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को टैग करते हुए बधाई भी दी है.

बधाई के साथ ही ट्वीट के आखिर में योगेंद्र यादव ने अरविंद केजरीवाल को आगाह भी कर दिया है, 'उम्मीद है कि वो पंजाब के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे.'

हालांकि, योगेंद्र यादव के जमाने के ही अरविंद केजरीवाल के एक अन्य साथी कुमार विश्वास तो उनको दिल्ली चुनाव की ही तरह पंजाब में भी आतंकवादी साबित कराने पर तुले हुए थे. दिल्ली चुनाव में जिस तरह केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और दिल्ली बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा हमलावर थे, कुमार विश्वास उससे भी ज्यादा आक्रामक नजर आ रहे थे. फर्क ये था कि पंजाब चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ केजरीवाल को राहुल गांधी से भी ताने सुनने को मिल रहे थे.

और संयोग देखिये कि एक बार फिर देश में राष्ट्रपति चुनाव का टाइम हो चुका है और पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजे उससे पहले आ चुके होंगे. जब जुलाई, 2022 में नये राष्ट्रपति के लिए चुनाव हो रहे होंगे - क्या कांग्रेस नेतृत्व एक बार फिर अरविंद केजरीवाल को वैसे ही नजरअंदाज करने की हिमाकत करेगा?

ममता बनर्जी से पहले जैसे रिश्ते नहीं रहे: एक अंतर ये जरूर आया है कि जो ममता बनर्जी कांग्रेस की बैठकों में अरविंद केजरीवाल की पैरोकार हुआ करती थीं, अब दोनों नेताओं में आपस में ही टकराव शुरू हो गया है - और टकराव का कारण बना है गोवा विधानसभा चुनाव.

पंजाब की ही तरह अरविंद केजरीवाल 2017 में गोवा में भी चुनाव लड़े थे, लेकिन जब नतीजे आये तो बहुत बड़ा फासला सामने आ गया. गोवा में तो खाता भी नहीं खुला, लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी सबसे बड़ा विपक्षी दल बन चुकी थी.

ममता बनर्जी के साथ आप नेता के रिश्तों में कड़वाहट अरविंद केजरीवाल के बयानों से ही समझा जा सकता है. जब अरविंद केजरीवाल से ममता बनर्जी के मुंबई जाकर शरद पवार से मिलने को लेकर पूछा गया तो वो बोल दिये कि उनके पास उस बारे में कोई जानकारी नहीं है.

ममता बनर्जी से विपक्ष को एकजुट किये जाने की कोशिशों को लेकर पूछे जाने पर भी अरविंद केजरीवाल ने यही कहा कि उनकी तृणमूल कांग्रेस नेता से कोई बात नहीं हुई. बल्कि, वो यहां तक कहने लगे कि कोई काम कराना हो तो लोग उनके पास आ सकते हैं, लेकिन जोड़ तोड़ की राजनीति में वो यकीन नहीं रखते - ऐसे कामों के लिए लोगों उन नेताओं के पास जा सकते हैं जो जोड़-तोड़ की राजनीति में यकीन रखते हैं.

गोवा चुनाव को लेकर ममता बनर्जी से जुड़े सवाल पर भी अरविंद केजरीवाल का जवाब खारिज करने वाला ही रहा. अरविंद केजरीवाल का कहना रहा कि गोवा में तृणमूल कांग्रेस का आधार ही क्या है?

हो सकता है अभी ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल में गंभीर टकराव जैसी नौबत नहीं आयी हो, लेकिन कॉमन इंटरेस्ट होने की वजह से साफ है कि आज नहीं कल ये तो होना ही था. अगर राहुल गांधी पिछड़ जाते हैं तो 2024 में प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज करने वालों में अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ही बचेंगे - तब देखना होगा कि कौन किसे पछाड़ता है.

एक लांचपैड चाहिये था, मिलने वाला है

अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार खत्म करने की उम्मीद जगा कर राजनीति में आये थे, लेकिन गुजरते वक्त के साथ अपनी पॉलिटिकल लाइन बदलते गये. तमाम विघ्न बाधाओं के बावजूद अरविद केजरीवाल मंजिल की तरफ बढ़ते रहे, लेकिन अरसे से उनको एक मजबूत लांचपैड की जरूरत महसूस हो रही थी - पहली बार न सही, दूसरी बार पंजाब विधानसभा चुनाव ने अरविंद केजरीवाल को वो लांचपैड उपलब्ध करा दिया है.

अब इसे राजनीति में संयोग समझें या अरविंद केजरीवाल के प्रयोग - सच तो यही है कि आम आदमी पार्टी के नेता की राजनीति हर बार कांग्रेस के खिलाफ ही चमकी है. आंदोलन के रास्ते अरविंद केजरीवाल राजनीति में आये तब केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार हुआ करती थी.

दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल ने तभी धावा बोला जब कांग्रेस की ही शीला दीक्षित मुख्यमंत्री रहीं. अरविंद केजरीवाल पहली बार शीला दीक्षित के खिलाफ ही चुनाव लड़े और हरा कर हीरो बन गये. आत्मविश्वास इस कदर कुलांचे भरने लगा कि वाराणसी जाकर 2014 में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को चैलेंज कर बैठे. जब हार गये तो हैसियत मालूम हुई.

ध्यान देने वाली बात ये है कि अब भी अरविंद केजरीवाल पंजाब में कांग्रेस से ही सत्ता हथियाने के लिए तैयार हैं - हो सकता है अब कांग्रेस नेतृत्व को भी अरविंद केजरीवाल की अहमियत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह समझ में आने लगी हो. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मोदी को भी कांग्रेस काफी हल्के में लेती रही.

प्रधानमंत्री मोदी तो एक बार केजरीवाल किसी छोटे शहर के एक नेता जैसा बता ही चुके हैं, सोनिया गांधी और राहुल गांधी को भी लगता है अरविंद केजरीवाल को एमसीडी के मेयर की तरह ही ट्रीट करते रहे - लेकिन दिल्ली से पंजाब जाकर वही अरविंद केजरीवाल सबसे बड़े खिलाड़ी बन गये हैं.

अब तो अरविंद केजरीवाल भी डंके की चोट पर कह सकते हैं कि कांग्रेस की बराबरी कर ली है - दो राज्यों में कांग्रेस की भी सरकारें हैं और अब आप के साथ भी ऐसा ही होने जा रहा है. कांग्रेस की राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार है - और कुछ राज्यों में वो सरकारों में साझीदार भी है.

बेशक पंजाब के बाद भी अरविंद केजरीवाल को अभी मीलों का सफर तय करना होगा, लेकिन एक बात तो तय है आगे से हो सकता है शरद पवार भी ये कहते सुने जायें कि जैसे कांग्रेस के बगैर विपक्षी मोर्चे की कल्पना नहीं की जा सकती है - अरविंद केजरीवाल के बगैर भी कोई भी विपक्षी मोर्चा अधूरा रहेगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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