New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 23 मई, 2019 10:40 AM
मनीष दीक्षित
मनीष दीक्षित
  @manish.dixit.39545
  • Total Shares

Loksabha Election results 2019 देखते हुए Narendra Modi की सत्‍ता में दोबारा वापसी का जायजा लेने से पहले चुनाव प्रचार पर एक बार फिर नजर डालने की जरूरत है. 17वीं लोकसभा चुनाव प्रचार में किसी पार्टी की लहर भले ही न दिखी हो लेकिन नफरत की लहर साफतौर पर दिखी. और सबसे ज्यादा निशाने पर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. दरअसल, नरेंद्र मोदी के विरोधी उनके समर्थकों से ज्यादा मददगार साबित हुए हैं, चाहे वो गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल रहा हो या प्रधानमंत्री रहने का दौर. याद कीजिए 2014 में जब नरेंद्र मोदी भाजपा प्रचार समिति की कमान संभाले चुनावी अभियान में उतरते थे तो उनकी तीखी आलोचनाएं होती थीं. तब की यूपीए सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं ने मोदी पर इतने हमले किए कि सीमाओं तक का ध्यान नहीं रखा. मणिशंकर अय्यर का चायवाले पर तंज हो या नीच आदमी या फिर प्रियंका और राहुल गांधी के तीखे हमले.

इन सबका जवाब मोदी ने खुद को पीड़ित बताकर जनता से मांगा. उन्होंने पलटवार करने के बजाय जनता के बीच जाकर जनता से फैसला करने को कहा. मोदी के इस तरह सधे जवाब देने की रणनीति को कम से कम 2019 तक भी विपक्षी नेता नहीं समझ सके. 2019 के लोकसभा चुनाव समाप्त होते-होते आखिरकार मणिशंकर अय्यर ने अपना मुंह खोला और फिर अपने नीच वाले बयान को सही बताने का दावा एक लेख लिखकर कर दिया.

narendra modiमोदी ने खुद को पीड़ित बताकर आलोचनाओं का जवाब जनता से मांगा

इससे पहले पंजाब के मंत्री और ताजा-ताजा कांग्रेस में आए नवजोत सिद्धू ने कहा, 'मोदी को ऐसा छक्का मारो कि सीमा पार जाकर गिरे.' ममता बनर्जी का थप्पड़ वाला बयान हो या राहुल गांधी का ये कहना कि मोदी नफरत फैलाने वाले नेता हैं, हर बयान मोदी का मददगार बना. अगर हम गुजरात विधानसभा चुनाव की बात करें तब भी विपक्ष ने वहां के स्थानीय मुद्दों को उठाने के बजाय 'नीच', 'तू चाय बेच', 'गब्बर सिंह टैक्स', 'विकास गांडो थयो छे', जैसे नारे मोदी को कठघरे में खड़ा करने के लिए किए. लेकिन इसका उल्टा ही असर दिखा.

इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए कि आज की तारीख में नरेंद्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और उनकी देशव्यापी लोकप्रियता के मुकाबले दूर-दूर तक कोई और नेता नहीं है. इसके पीछे उनकी भ्रष्टाचारमुक्त छवि और सख्त फैसले लेने के साहस का भी योगदान है. कांग्रेस ने जनता में मोदी की छवि तोड़ने और बदलने के क्रम में 'चौकीदार चोर है' और सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने जैसे अभियान छेड़े लेकिन इसका उल्टा ही असर हुआ. नफरत का ये आलम रहा कि मोदी के हर फैसले का विरोध किसी भी स्तर तक जाकर हुआ. नोटबंदी की आलोचना तक तो समझ में आता था लेकिन पाकिस्तान पर कार्रवाई को भी सवालों के घेरे में खड़ा करके विपक्ष ने वो ब्लंडर किया जिसका मोदी को बेसब्री से इंतजार था. देश के लोग अभी इतने आधुनिक नहीं हुए हैं कि पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश को सबक सिखाने पर अपनी सरकार को कठघरे में खड़ा कर सुबूत मांगने लगें.

मोदी इस बात को अच्छे से समझते हैं और इसके लिए उन्होंने विपक्ष को लगातार जमकर घेरा. विपक्षी दल हमेशा विकास के बदले राष्ट्रवाद को मुददा बनाने पर मोदी की आलोचना करते हैं लेकिन मोदी को ये राजनीतिक मसाला विपक्षी नेताओं ने खुद थाली पर सजाकर दिया. सर्जिकल स्ट्राइक पर अगर विपक्ष ये कह देता कि हम सरकार के साथ हैं और ये कदम सवालों से परे है तो शायद ये मुद्दा नहीं बनता. लेकिन विपक्षी दल के नेता मोदी से नफरत के चक्कर में बगैर सोचे-समझे बयान देते चले गए. पिछले चुनाव में मोदी की बोटी-बोटी करने की बात कहने वाले इमरान मसूद को कांग्रेस ने फिर सहारनपुर से टिकट दिया तो इसके पीछे मसूद की मोदी विरोधी छवि ही थी.

कहने का मतलब ये है कि मोदी से नफरत करने वाले हर नेता और शख्स को विपक्षी सम्मान देने को आतुर थे. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने प्रियंका शर्मा नामक एक भाजपा नेता को एक मीम शेयर करने पर जेल भेज दिया. भाजपा नेता को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली और उसी दिन पुलिस ने मामले में FIR लगा दी. इसके बाद मोदी ने प. बंगाल में एक चुनावी सभा में ये मुद्दा उठाया. कहा कि मैं दीदी को चुनौती देता हूं कि मेरा भद्दे से भद्दा चित्र बनाएं, मैं कोई कार्रवाई नहीं करूंगा. ये भी सच है कि सोशल मीडिया पर मोदी की बहुत धज्जियां उड़ाई गई हैं और निम्न स्तर का प्रचार उनके खिलाफ हो रहा है लेकिन इसे नजरअंदाज किया जाता रहा.

जहां तक नफरत भरे बयानों पर प्रतिक्रिया देने की बात आएगी तो मोदी से ज्यादा होशियार शायद ही कोई दिखे. मोदी ऐसे बयानों पर तत्काल प्रतिक्रिया नहीं देते. राजनीतिक फायदा होने का समय आने तक इंतजार करते हैं और बेहद सोच समझकर प्रतिक्रिया देते हैं जो कि ज्यादातर मौकों पर विपक्षी नेताओं को फायदे की जगह नुकसान पहुंचाती रही. मोदी की खुद को पीड़ित के तौर पर जनता के सामने पेश करने की सधी हुई रणनीति ने उतावले विपक्ष के नफरत भरे बयानों से भी फायदा उठा लिया.

ये भी पढ़ें-

Loksabha Election में महिला सेलिब्रिटी: कहां जीत और कहां हार रही हैं, जानिए...

Exit poll नतीजों के तुरंत बाद विपक्ष की 'EVM हैक': हार से बचने का पैटर्न समझिए

Exit poll 2019: पांचवें चरण में राहुल-सोनिया समेत इन 10 उम्मीदवारों का भाग्य लिखा जा चुका है !

लेखक

मनीष दीक्षित मनीष दीक्षित @manish.dixit.39545

लेखक इंडिया टुडे मैगज़ीन में असिस्टेंट एडिटर हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय