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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 02 अक्टूबर, 2016 01:48 PM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
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बलूचिस्तान को आजाद मुल्क बनाने की बलूच नेताओं की उम्मीदें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान ने जवान कर दी तो आरएसएस के थिंक टैंक ने भी देश भर में बलूचिस्तान को लेकर एकता प्रदर्शन और सेमिनार-गोष्ठियों की कवायद तेज कर दी है. दिल्ली में इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन के बैनर तले बलोच नेताओं और बलूचिस्तान की आजादी के समर्थकों को स्वयंसेवकों ने जुटाया तो बलूच नेताओं ने भी साफ कर दिया कि बलूचिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद भारत का कर्ज वो चुकाएंगे.

कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में आरएसएस के थिंक टैंक आईपीएफ ने वैसे तो बलूचिस्तान की राष्ट्रीयता के मुद्दे पर सेमिनार का आयोजन किया था, बलूचिस्तान के मामले पर डॉक्यूमेंट्री और डॉक्यूमेंट के साथ पाकिस्तानी बर्बरता के तथ्य प्रस्तुत किए गए. लेकिन जिस जोशो-खरोश और बलूचिस्तान की आजादी के मुद्दे पर गर्माहट भरे भाषणों का नजारा सेमिनार में दिखा, उसने सेमिनार सुनने के लिए उमड़ी भीड़ के दिलो-दिमाग में ये साफ कर दिया कि बलूचिस्तान का सवाल दक्षिण एशिया की समूची सियासत का नक्शा जमीन से लेकर विश्व के मानचित्र तक बदलकर रख देगा.

सेमिनार में आईपीएफ की ओर से मोदी सरकार से मांग की गई कि बलूच नेताओं की राजनीतिक शरण की मांग फौरन मान ली जाए. दूसरी ओर सेमिनार के जरिए बलूच नेताओं ने भी भरोसा दिया है कि अगर राजनीतिक शरण मिली तो कश्मीर समेत भारत की जनता के सामने पाकिस्तान के गुनाहों को वो घूम-घूमकर बेनकाब करेंगे.

बलूचिस्तान के मुद्दे पर मजदाक दिलशाद बलूच और विश्व प्रसिद्ध लेखक तारिक फतेह ने खुलकर पाकिस्तान को खरी-खोटी सुनाई. मजदाक दिलशाद बलूच ने स्वतंत्रता प्रेमी बलूच लोगों के बुलंद जज्बे का ब्यौरा प्रस्तुत किया तो ये भी साफ किया कि मुट्ठी भर बलूच कौम डटकर पाकिस्तान के जुल्मों का सामना करेगी. आजादी के सवाल पर बीते 68 साल में पहली बार भारत ने बलूचिस्तान की जनता के जख्मों पर मरहम रखा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से बलूच जनता का दिल जीता है, तो वो दिन दूर नहीं कि हम आजाद बलूचिस्तान की हवा में सांस लेंगे. साथ ही पाकिस्तानी हुक्मरानों की बर्बरता से प्रेरित खतरनाक आतंकवादी दौरसे पूरे एशिया को आजाद करा लेंगे.

दिलशाद बलूच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शुक्रिया कहा तो वजहें भी साफ थीं. उन्होंने भर्राए गले से भीड़ के सामने कहा कि हम बलूच लोग दुनिया में बहुत अकेले पड़ गए थे लेकिन आज हम अकेले नहीं हैं. नरेंद्र मोदी वो इंसान हैं जिन्हें पहली बार हमारा दर्द महसूस हुआ है. हम भारत से मदद मांगने आए थे और जवाब हिंदुस्तान ने हमें दिया है. उससे हमारे हौंसले बुलंद हैं. हमें हिंदुस्तान की उस विरासत पर फिर से फख्र हो आया है जिस विरासत के कभी हम हिस्से हुआ करते थे.

दिलशाद कहते हैं, 'आज भी इस विरासत की छाया हमारी पीढ़ियों पर है. हम मुसलमान जरुर हैं लेकिन हमारा पाकिस्तानी बर्बरता से कोई नाता नहीं है. पाकिस्तानी तो ऐसे बर्बर हैं कि जिनकी आर्मी को निर्दोष लोगों को मारने में मजा आता है, कत्लोगारत उनके खून में समा गया है, हमारे 20 हजार नौजवान उन्होंने मार डाले. कई लापता हैं, कहां हैं, कुछ पता नहीं. हमारी 3000 महिलाएं लापता हैं, पाकिस्तान की बर्बर आर्मी ने घरों से महिलाओं और बच्चों तक को उठा लिया है. हमें बंगलादेश के अनुभव से पता है कि उन्होंने हमारी महिलाओं के साथ कैसा सलूक बरता होगा. हमें ऐसे पाकिस्तान के साथ नहीं रहना है, न हमें रहना है न सिंध को पाकिस्तान के साथ रहना है और ना ही पख्तून और पीओके को.'

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दिलशाद बलूच मार्मिक आवाज में बोलते जा रहे थे. बलूचिस्तान के सीने पर लगे जख्मों की उन्होंने दिल दहला देने वाली दास्तां सुनाई. उनकी हर आवाज पर भीड़ बार बार आजाद बलूचिस्तान जिंदाबाद, भारत माता की जय के नारे लगाती तो संकेत यही था कि उनकी बात दिल्ली के लोगों के दिल-दिमाग में घुस रही थी. मजदाक दिलशाद ने जब ये कहा कि बलूचों को इस्लाम के नाम पर जिन्ना ने ठग लिया तो सेमिनार में खामोशी आ गई. दिलशाद ने कहा कि जिन्ना ने जब सबसे पहले इस्लाम के नाम पर आवाज दी थी तभी बलूच पुरखों ने उसे कहा था कि इस्लाम के नाम पर तो कई मुल्क हैं, सऊदी अरब है, ईरान है, अफगान हैं, सबको आवाज दो, हमीं को क्यों बुला रहे हो? ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उन्हें पता था कि इस्लाम के नाम पर कैसी छल-फरेब और धोखाधड़ी की हिंसक राजनीति जिन्ना कर रहा है.

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 दिल्ली में खुली पाकिस्तान की पोल

बकौल दिलशाद, जिन्ना ने अंग्रेजों के सामने आजाद बलूचिस्तान के मुद्दे पर वकील बनने की बात मंजूर की थी. बलूचों से अपने वजन के बराबर तौलवा कर सोना लिया लेकिन उस जिन्ना ने किया क्या? उसने बलोचिस्तान की खनिज संपदा और समुद्री किनारों के लिए बलूचिस्तान को पाकिस्तान के कब्जे रखने की साजिश रची. फौज भेजकर जबरन कब्जा किया, हमारे खान साहेब और उनकी बेगम को गिरफ्तार कर लिया. बंदूक की नोक पर विलय पत्र पर दस्तखत कराए जबकि हम 1947 में अंग्रेजों की ओर से आजाद मुल्क घोषित कर दिए गए थे, हम कभी अंग्रेजों की रियासत नहीं थे. हमारा अंग्रेजों से समझौता था कि वो कुछ इलाके अपने पास रखेंगे. बलूच लोगों ने हमेशा लोकतांत्रिक तरीके से काम किया, हिंदू बलूच, सिख बलूच, मुस्लिम बलूच सबने कौम के लिए काम किया. हमारी दीवाने खास, दीवाने आम 1947 में थी जिसने एकसुर से पाकिस्तान से मिलने का जिन्ना का प्रस्ताव रद्द कर दिया. हमारे पुरखों ने तब भारत से मदद मांगी थी, भारत ने जाने क्यों इन्कार कर दिया.

दिलशाद के मुताबिक तब बलूच नेता आगा अब्दुल करीम खान अफगानिस्तान चले गए और वहीं से पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी जो आजतक चल रही है. दुनिया को समझ लेना चाहिए कि आजतक बलूच मूवमेंट खत्म नहीं हुई है. बलूच बच्चे स्कूलों में पाकिस्तान का तराना नहीं गाते. वे जिन्ना, सैयद अहमद खान और इकबाल को अपना पुरखा नहीं मानते और न ही पाकिस्तान की तरह अब्दाली, गोरी, गजनवी से कोई नाता जोड़ते हैं. दिलशाद बताते हैं कि बलूच सदियों से आजाद कौम रही हैं और रहेगी. उनके ऊपर बीते 68 साल में पाकिस्तान ने जुल्मोसितम की इंतहा की है तो भी वे संघर्ष से पीछे नहीं हटे.

दिलशाद ये भी कहते गए कि हम पाकिस्तान का खात्मा करके ही दम लेंगे. अब जबकि भारत हमारे साथ खड़ा है तो दुनिया की कोई ताकत आजाद बलूचिस्तान बनाने से हमें रोक नहीं सकेगी. मजदाक दिलशाद ने आजतक को खास बातचीत में बताया कि भारत में बलूच नेताओं के लिए राजनीतिक शरण मांगी है. उनके मुताबिक राजनीतिक शरण मिली तो जहां भारत सरकार रखेगी वहां वे रहेंगे, चाहे वो जगह जम्मू-कश्मीर ही क्यों ना हो.

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बकौल दिलशाद, 'हम कश्मीर के लोगों को भी पाकिस्तान के बर्बर चेहरा दिखाएंगे, बताएंगे कि जैसे समंदर किनारे और खनिज संपदा के लिए पाकिस्तानी पंजाब के चार जिलों से जुड़े मुसलमानों ने हमारी नस्लों पर जुल्म ढाए हैं वैसे ही अपनी ऐय्याशियों के लिए वही पाकिस्तीन पंजाब के चार जिलों के लोग कश्मीर के चंद लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं. हम लोग आजादी पसंद हैं लेकिन पाकिस्तान के पंजाबी मुसलमानों की तरह बर्बर नहीं हैं, उन्होंने तो न हमें अधिकार दिए, न महाजिरों को अधिकार दिए. न बलूचिस्तान में मीडिया घुसकर रिपोर्ट कर सकता है और ना ही पीओके या किसी और सरहदी इलाके में. गैर मुस्लिम तो ये पचा ही नहीं सकते और ये हम बलूच लोगों को भी पाकिस्तान की इतिहास की पुस्तकों में पढ़ाते हें कि बलूच लोग बर्बर हैं, गंदे हैं, हम भला ऐसे पाकिस्तान को क्यों बर्दाश्त करें. जबकि हकीकत ये है कि हम बलूच लोग चाहे हिंदू बलूच हों, सिख बलूच या मुस्लिम बलूच, हम एक राष्ट्र के रूप में सदियों से रहते आ रहे हैं बड़े प्यार के साथ क्योंकि हमारी असल संस्कृति और सभ्यता भारत की विरासत के साथ पली बढ़ी है.

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 पाकिस्तानी आर्मी की करतूतों से परेशान है बलूचिस्तान

सेमिनार में तारिक फतेह ने बताया कि 1800 में यूरोप के नक्शों में बलोचिस्तान का जिक्र है लेकिन पाकिस्तान का नहीं. जैसे तुर्क, जैसे कजाक, जैसे अफगान वैसे ही बलूच लोगों का इतिहास, रवायत है, पुरखे और अतीत हैं. जबकि पाकिस्तान तो सिर्फ एक मानसिकता है, गंदी मानसिकता जिसने पूरे इलाके को नापाक और नर्क बना दिया. तारिक फतेह ने मोहम्मद अली जिन्ना के खिलाफ भी जमकर आग उगली और कहा कि वो तो सुअर खाता था इसलिए उसका दिमाग भी वैसा ही बन गया था. वो किराए का आदमी था, अंग्रेजों का घटिया पिट्ठू, ऐसे भ्रष्ट जिन्ना को गालियां दी जानी चाहिए जिसने बलोच लोगों से उस जमाने में 90 पाउंड लिए, जिसे सोने की तुला पर बलोच लोगों ने तौला था.

जिन्ना ने वायदा किया था कि कलात यानी बलूचिस्तान आजाद रहेगा लेकिन उसने किया क्या? उसने जबरन 1947 के बाद 9 महीने तक आजाद रहे कलात पर कब्जा किया. उस दौर में बड़ी गलती भारत सरकार ने की, जब बलूच नेता भारत के साथ विलय पत्र पर दस्तखत के लिए तैयार थे, भारत के नेता विलय के लिए तैयार नहीं हुए. नेहरु और मौलाना आजाद ने प्रस्ताव नहीं माना. वो प्रस्ताव अगर मान लिया होता तो आज ग्वादर भारत में होता और दुनिया की राजनीति कुछ और होती.

तारिक फतेह ने जोर देकर कहा कि ये हिंदुस्तान के करोड़ों हिंदुओं की जिम्मेदारी है कि वो बलोचिस्तान को पाकिस्तान के चंगुल से आजाद कराएं. जैसा सिंध के हिंदू राजा दाहिर ने सदियों पहले इमाम हुसैन के बच्चों को शरण दी थी. आपके अहसानात हैं हम पर, पैगंबर के बच्चों को आपने शरण दी. आपने बंगलादेश के करोड़ों मुसलमानों और महिलाओं-बच्चों को पाकिस्तान के जुल्मोसितम से आजाद कराया. वैसी ही मदद आज बलूचिस्तान को चाहिए. और हम वायदा करते हैं कि आपको बलूचिस्तान में हमेशा जयहिंद का नारा सुनने को मिलेगा.

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सेमिनार में बंगलादेश की तर्ज पर बलोचिस्तान को सैनिक कार्रवाई के जरिए आजाद कराने का मसला भी उठा. उरी हमले और पीओके में आतंकी कैंपों के खिलाफ आर्मी के सर्जिकल ऑपरेशन की भी जमकर तारीफ हुई. रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्सी ने साफ किया कि दक्षिण एशिया में सोता शेर जाग उठा है. तीस वर्षों बाद भारत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व मिला है जिसने आर्मी को करने की आजादी दी है. लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी वो प्रधानमंत्री हैं जिन्हें इतिहास पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक के लिए याद रखेगा लेकिन असली काम तो अभी बाकी है. समय आ गया है कि भारत बंगलादेश की तर्ज पर बलोचिस्तान के अवाम के साथ न्याय करे.

बहरहाल, सेमिनार में साफ हो गया कि बड़ी तादाद में बलूच नेता दिल्ली में डेरा डालने की तैयारी कर चुके हैं. उन्हें मोदी सरकार की हरी झंडी का इंतजार है जिसके बाद बलूचिस्तान की आजादी के संघर्ष का नया अध्याय शुरू हो जाएगा.

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

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