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Updated: 18 फरवरी, 2020 01:46 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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यह कोई पुरानी बात नहीं है जब कत्ल (Murder), अपहरण (Kidnapping), नरसंहार से लेकर विमान का अपहरण करने वाले भी हमारे यहां लोकसभा (Loksabha), विधानसभा (Vidhansabha) आदि के चुनाव (Elections) लड़ते ही नहीं थे, बल्कि जीत भी जाते थे. दुर्भाग्य है कि अब यह सिलसिला और भी बढ़ा है. अफसोस तो तब होता है जब हमारे यहां ऐसे कुख्यात अपराधी तत्व सांसद और विधायक तक बन रहे हैं. पर सुप्रीम कोर्ट (Suprteme Court) के ताजा फैसले के बाद तो यह लगता है कि अब यह सिलसिला बंद हो जायेगा या कम से कम इस पर रोक लगेगी. राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण (Politician with criminal cases) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सभी सियासी दलों से पूछा कि वे क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों को पार्टी कि टिकट क्यों दे रहे हैं? अब उन्हें इसकी वजह बतानी होगी और जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी देनी होगी. क्या इस फैसले के बाद अब भी कोई दल किसी अपराधी को टिकट देने का साहस करेगा? मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मौजूदा लोकसभा के 542 सांसदों में से 233 यानी 43 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे लंबित हैं.159 यानी 29 प्रतिशत सांसदों के खिलाफ हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर मामले लंबित है. तो क्या इस तरह के होंगे देश के कर्णधार? गांधी के देश में जरा सोचिए कि हमारे यहां राजनीति का स्तर किस हद तक गिरा है. इस गटर टाइप राजनीति से देश को तो निकलना होगा.'

Supreme Court, Politician, Criminal Cases, AAP, Arvind Kejriwal  इसे हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज देश की राजनीति और उस राजनीति में शामिल पार्टियां दागियों से भरी पड़ी है

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य कहा जाएगा. इसका एक फायदा यह भी होगा कि अगर राजनीतिक पार्टियों ने कोर्ट के निर्देश का पालन नहीं किया तो चुनाव आयोग ऐसे  मामलों का संज्ञान लेकर स्वत: कार्यवाई कर सकती है या ऐसे मामलों को अदालत तक ले जा सकता है. अब सियासी दलों को यह तो बताना ही होगा कि उन्होंने ऐसे उम्मीदवार क्यों चुनें जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं.

अब दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) के हाल ही में चुने गए विधायकों की कहानी भी सुन लीजिए. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के अनुसार, चुनाव जीते आम आदमी पार्टी के 62 विधायकों में से 38 विधायकों में पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं. 9 विधायक अलग-अलग मामलों में दोषी भी करार किए जा चुके हैं. इनमें एक विधायक पर आईपीसी की धारा- 307 (हत्या की कोशिश) के खिलाफ मुकदमा चल रहा है. महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित केस 13 विधायकों के खिलाफ चल रहे हैं.

इन 13 में से एक विधायक के खिलाफ धारा-376 के तहत बलात्कार का भी आरोप है. आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ खुद ही सबसे ज्यादा आपराधिक केस दर्ज हैं. उनके खिलाफ चल रहे 13 आपराधिक केस के से तीन मामले तो गंभीर हैं. दूसरे नंबर पर हैं ओखला सीट से आप के विधायक अमानतुल्लाह खान, जिनके खिलाफ 12 आपराधिक केस चल रहे हैं. मटिआला विधानसभा सीट से AAP के विधायक गुलाब सिंह पर और आप विधायक सोमनाथ भारती और शोएब इकबाल के खिलाफ 6-6 आपराधिक केस चल रहे हैं.

यह समझ नहीं आता कि हमारे महान लोकतंत्र में राजनीति में इतने अपराधी तत्वों को क्यों शरण मिलने लगी है. गुजरे कुछ दशकों से राजनीति में अपराधी तत्वों के आने का सिलसिला बढ़ता ही चला जा रहा है. पहले नेताओं के अपराध में लिप्त होने की बातें तो छिप भी जाती थीं या फिर यह भी कह सकते है कि ये सूचनाएं आम आदमी से छिपाई जाती थीं.

लेकिन, अब राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता ऐसा चाहकर भी नहीं कर पाते क्योंकि जन प्रतिनिधित्व क़ानून में कई बार हुए बदलावों के बाद अब स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि कम से कम चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को किसी भी चुनाव का नामांकन भरते वक्त यह खुलासा तो करना ही पड़ता है कि क्या वह व्यक्ति किसी तरह के अपराध में लिप्त तो नहीं है?

अगर कानूनन उसके अपराध चुनाव न लड़ पाने की स्थितियां पैदा करने वाले होते हैं तो ऐसा नामांकन कई बार रद्द भी हो जाता है. दरअसल राजनीति को तो अब कमाने-खाने का धंधा मान लिया गया है. बहुत से असरदार लोगों को लगता है कि वे राजनीति में आकर अपने काले कारनामें छिपा लेंगे. वे सफेदपोश हो जाएंगे. 

हाल ही में दिल्ली विधान सभा के चुनावों में एक राजनीतिक दल ने एक बड़े हलवाई के पुत्र को टिकट दिया. उस इंसान ने एक दिन भी राजनीति या जन सेवा नहीं की पर उसे टिकट थमा दिया गया.सारी दिल्ली में चर्चा थी कि उस हलवाई ने टिकट पाने के लिए 5 करोड़ रुपये पार्टी को दान दिए थे.

अच्छी बात यह हुई कि उसे जनता ने नकारा. पर यह हमेशा नहीं होता. आम आदमी पार्टी के ओखला से चुए गए विधायक अमानतुल्लाह के शरजील इमाम से भी संबंध बताए जाते हैं. इमाम पर भारत को तोड़ने के केस में देशद्रोह का केस चल रहा है.

देखा जाए तो राजनीति में सिर्फ उन्हीं लोगों को आना चाहिए जो समाज सेवा के प्रति गंभीर हों. उन्हें किसी तरह का लालच ना हो। अगर इससे इतर सोच वाले लोग राजनीति में आते हैं तो फिर स्थिति बिगड़ती है. दरअसल अब अधिकतर सियासी दलों का एकमात्र लक्ष्य सीट जीतने पर ही रह गया है. इस कारण से सियासी दल अपराधी तत्वों को टिकट देने से परहेज नहीं करते.

ये बेहद गंभीर स्थिति है. कहना न होगा कि इसी मानसिकता के कारण ही राजनीति में आपराधिक छवि के लोग आ रहे हैं. इन्हें राजनीति में मान-सम्मान भी मिलता है. यहां कुछ जिम्मेदारी जनता की भी है. उसे भी अमानतुल्लाह जैसे तत्वों को वोट देने से पहले सोचना चाहिए. मतदाताओं को आपराधिक बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों को तो किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करना चाहिए. चूंकि जनता गुंडे- मवालियों को चुन लेती है तो सियासी दलों को भी लगता है कि उनके फैसले पर जनता ने मोहर लगा दी.

देखिए राजनीति को आपराधी तत्वों के जाल से तब ही निकाला जा सकेगा जब सभी दल फैसला लेंगे कि वे किसी भी सूरत में काले कारनामें करने वालों को टिकट नहीं देंगे. इस बारे में जीरो टोलरेंस की नीति पर ही चलना होगा. अगर वे इस बाबत कोई सख्त फैसला लें तो बात बन सकता है. वर्ना तो जिन्हें जेल में होना चाहिए वे संसद और विधान सभाओं में ही मिलेंगे.

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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