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Updated: 21 दिसम्बर, 2021 03:44 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पंजाब में बेअदबी के दो हालिया मामलों में मॉब लिंचिंग कर दो लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. सभी राजनीतिक पार्टियों ने बेअदबी के इन मामलों पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए घटना की निंदा की है. लेकिन, मॉब लिंचिंग पर खामोशी अख्तियार कर ली है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से लेकर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी तक हर संगठन और राजनीतिक दल ने बेअदबी के मामलों की जांच की बात की है. पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, तो बेअदबी के मामलों पर राजनीति होनी तय है. इसी के चलते अकाली दल, भाजपा, आम आदमी पार्टी और पंजाब लोक कांग्रेस समेत सभी दलों के निशाने पर कांग्रेस की चन्नी सरकार आ चुकी है. क्योंकि, पंजाब में गुरु ग्रंथ साहिब से बेअदबी का मुद्दा अन्य सभी मामलों से ज्यादा प्रभावी कहा जाता है. माना जाता है कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में अकाली दल और भाजपा गठबंधन की सरकार जाने के पीछे 'बरगाड़ी बेअदबी कांड' ने अहम भूमिका निभाई थी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि बेअदबी से पंजाब में सत्ता परिवर्तन होता है, तो क्या इस बार भी होगा?

Impact of Sacrilege in Punjab Politicsअकाली और भाजपा गठबंधन सरकार की हार में बरगाड़ी बेअदबी मामले ने अहम भूमिका निभाई थी.

बेअदबी कैसे डालती है राजनीतिक प्रभाव?

पंजाब में बेअदबी के मामले पर राज्य सरकार की ओर से कानून बनाया गया है. जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब, कुरान, भगवत गीता, बाइबिल के साथ बेअदबी किए जाने पर आजीवन कारावास की सजा निर्धारित है. लेकिन, यह अभी राष्ट्रपति के पास लंबित है. 2015 में फरीदकोट के बरगाड़ी में गुरु ग्रंथ साहिब के अंग जमीन पर पड़े मिले थे. जिसके बाद सिख संगठनों ने बेअदबी के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उग्र प्रदर्शन किया था. कोटकपुरा गोलीकांड के नाम से मशहूर इन मामलों पर तत्कालीन अकाली दल और भाजपा की गठबंधन सरकार पर इस मामले में दो सालों तक कुछ भी नहीं करने का आरोप लगा था. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सत्ताविरोधी लहर से जूझ रहे अकाली दल और भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के पूर्व नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बेअदबी मामले को चुनावी मुद्दा बनाते हुए सत्ता हासिल की थी.

2017 में अकाली दल और भाजपा को बेअदबी मामले की खामियाजा इस कदर भुगतना पड़ा था कि पंजाब के चुनाव इतिहास में सबसे खराब प्रदर्शन करते हुए 117 विधानसभा सीट में से अकाली दल को 15 और भाजपा को 3 सीट मिली थीं. दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस में अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने भी बेअदबी मामले पर कैप्टन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं किए जाने का मामला उछाला था. जिसकी वजह से अमरिंदर सिंह को सीएम की कुर्सी के साथ ही कांग्रेस भी छोड़नी पड़ी थी. और, कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनते ही 2015 के बेअदबी मामले में न्याय दिलाने की बात कहनी पड़ी थी. वहीं, स्वर्ण मंदिर और कपूरथला में हुई हालिया बेअदबी की घटनाओं से अब कांग्रेस के सामने भी अकाली दल-भाजपा जैसी ही स्थिति बन गई है.

कांग्रेस की हालत पहले से ही खराब?

पंजाब में कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर दलित कार्ड खेला था. लेकिन, बेअदबी जैसे संवेदनशील मामले के सामने सारे कार्ड धरे के धरे रह जाते हैं. पंजाब में फिलहाल कांग्रेस को आंतरिक कलह समेत नवजोत सिंह सिद्धू की उग्र राजनीति काफी नुकसान पहुंचा चुकी है. कांग्रेस छोड़कर अपनी नई पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया है. किसान आंदोलन को खड़ा करने से लेकर इस मुद्दे का हल निकालने तक के बीच में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अहम भूमिका निभाई है. माना जा रहा है कि अमरिंदर सिंह अपने करीबी किसान नेताओं के सहारे कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी भी अरविंद केजरीवाल के हिट रहे 'दिल्ली मॉडल' के सहारे पंजाब में पैर पसारने की कोशिश में है. पंजाब की राजनीतिक स्थितियों को लेकर आए तमाम सर्वे में भी आम आदमी पार्टी को कांग्रेस पर अच्छी खासी बढ़त दी जा रही है. हालांकि, अकाली दल और बसपा इस चुनावी रेस में सबसे कमजोर खिलाड़ी माने जा रहे हैं. लेकिन, इन सभी हालातों पर नजर रखते हुए कहा जा सकता है कि कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव की राह आसान नहीं होने वाली है. 

कांग्रेस पर क्यों नजर आ रहा है संकट?

बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट में अनुमान के अनुसार, 2015 के बाद से अब तक पंजाब में सिख, हिंदू और इस्लाम के धर्म ग्रंथों की बेअदबी से जुड़े 170 मामले सामने आए हैं. ये तमाम मामले कांग्रेस की सरकार के शासन के दौरान हुए हैं, तो कांग्रेस के लिए कहीं न कहीं मुश्किल बढ़ाएंगे ही. सिखों के प्रभाव वाले पंजाब में बरगाड़ी कांड के साथ ही गुरु ग्रंथ साहिब से बेअदबी के कई बड़े मामले घटित हुए हैं. और, इन सभी में अभी तक मामलों की जांच ही चल रही है. आइए जानते हैं बेअदबी से जुड़े कुछ बड़े मामलों के बारे में...

2015 में फरीदकोट के बरगाड़ी गांव में गुरु ग्रंथ साहिब के अंग (पेज) मिले थे. बेअदबी के इस मामले के विरोध में प्रदर्शन हुए. कोटकपुरा में विरोध प्रदर्शन के दौरान सिखों और पुलिस के बीच संघर्ष में चली गोली से दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी.

2016 में बलविंदर कौर पर लुधियाना के घव्वदी में गुरु ग्रंथ साहिब से बेअदबी करने का आरोप लगा था. बलविंदर कौर की दो मोटर साइकिल सवारों ने दिनदहाड़े हत्या कर दी थी. पुलिस ने इस मामले में दो लोगों को आरोपी बनाया था.

गुरदासपुर में एक सिपाही पर गुरुद्वारा साहिब में बेअदबी का आरोप लगाया गया. सिपाही दीपक सिंह की लोगों ने जमकर पिटाई की थी. इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

आनंदपुर साहिब के श्री केसगढ़ साहिब में लुधियाना के रहने वाले परमजीत सिंह पर सिगरेट पीकर संगतों पर फेंकने के चलते बेअदबी का आरोप लगा था. इस मामले में भी अभी तक जांच ही चल रही है.

किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर निहंगों ने बेअदबी के आरोप में तरनतारन जिले के एक दलित शख्स लखबीर सिंह की हत्या कर दी थी. निहंगों ने लखबीर सिंह के साथ बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं. लखबीर सिंह के हाथ और पैर काटकर उसे मंच के पास लगी बैरिकेडिंग पर टांग दिया था. इस मामले में निहंगों को गिरफ्तार किया गया था.

स्वर्ण मंदिर में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की कोशिश में एक शख्स की हत्या कर दी गई. एक दिन बाद कपूरथला में भी बेअदबी का आरोप लगाकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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