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क्या अपने गृह राज्य में बीजेपी की राह आसान करेंगे नड्डा?
हिमाचल प्रदेश का आगामी विधानसभा चुनाव जयराम ठाकुर के साथ-साथ बीजेपी अध्यक्ष नड्डा के लिए काफी अहम है. क्योंकि जिस तरह गुजरात चुनाव को नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों से जोड़ कर देखा जायेगा इस वजह से कि वो उनका गृहराज्य है ठीक वैसा ही दबाव इन चुनावों में नड्डा पर भी देखने को मिलेगा.
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हिमाचल प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में पूर्व की तरह मुकाबला केवल देश की दो बड़ी पार्टियों, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और विपक्ष में बैठी कांग्रेस में ही होगा ऐसा नहीं लगता। क्योंकि पंजाब विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी भी यहां पूरा जोर लगा रही है. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए राह कुछ मुश्किल जरूर हुई है. बात बीजेपी की करें तो इसके अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार राज्य का दौरा कर चुनावी तैयारियों पर नजर बनाये हुए हैं। वैसे भी उनका गृहराज्य होने की वजह से यहां पार्टी की जीत सुनिशिचत करने का उनपर काफी दबाव भी होगा. तो वहीं कांग्रेस पार्टी का मनोबल पिछले साल हिमाचल की एक लोकसभा और 3 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में जीत दर्ज करने के बाद बढ़ा था लेकिन उसके लिए राज्य से किसी बड़े नेता का ना होना मुश्किलें पैदा कर सकता है. जबकि पड़ोसी राज्य पंजाब में बड़ी जीत हासिल करने के बाद आम आदमी पार्टी हिमाचल में काफी दिलचस्पी दिखा रही है तभी तो दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल इस महीने दोबारा हिमाचल जा चुके हैं और उनका पहला दौरा तो मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र मंडी में ही था.
साल के अंत में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव है ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या नड्डा पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतर पाएंगे
वैसे हाल ही में बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर उसे बड़ा झटका दिया है लेकिन आपके नेता ये दावा कर रहे हैं कि प्रदेश के लोग उनके साथ हैं और परिवर्तन चाहते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव (2017) में बीजेपी ने 68 में से 44 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया था. कांग्रेस को 21 सीटें मिली थी. एक सीट सीपीएम को और दो सीट पर निर्दल उम्मीदवार जीतने में कामयाब हुए थे.
अब आम आदमी पार्टी के चुनाव में हिस्सा लेने से परिस्थितियां पहले जैसी नहीं हैं. ऐसा ही हमनें कुछ महीने पहले उत्तराखंड के चुनाव में देखा था जहां आम आदमी पार्टी ने चुनाव प्रचार में काफी जोर दिखया था लेकिन नतीजों में कुछ खास नहीं कर पायी थी, उसका प्रदर्शन हिमाचल में भी वैसा ही रहेगा ये अभी कहा नहीं जा सकता. वैसे अगर प्रदेश में आम आदमी पार्टी अच्छा करती है तो ऐसा माना जा रहा है कि वो कांग्रेस का ही वोट कटेगी जिससे कि बीजेपी को फायदा हो सकता है.
हिमाचल में पिछले 4 दशक में कोई भी पार्टी लगातार दोबारा सत्ता में नहीं आई है. राज्य में 1980 के बाद कांग्रेस और बीजेपी के हाथों में बारी-बारी से सत्ता रही. हिमाचल से सटे से उत्तराखंड में बीजेपी दोबारा सत्ता में आयी है. 2000 में बने उत्तराखंड में ऐसा पहली बार हुआ कि सरकार रिपीट हुई हो, नहीं तो वहां भी सत्ता कांग्रेस और बीजेपी के हाथों में बारी-बारी से रही. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मिली जीत से बीजेपी आश्वस्त है कि वो हिमाचल में भी ऐसा कर पायेगी.
नड्डा की मुश्किलें
अपने हाल के दौरों में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों पर खूब हमला किया है. उन्होंने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के दावे को झूठा बताया जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजेपी जयराम ठाकुर को हटाकर हिमाचल प्रदेश का सीएम अनुराग ठाकुर को बनाना चाहती है. नड्डा ने कहा कि जयराम ठाकुर के नेतृत्व में ही बीजेपी राज्य का चुनाव लड़ेगी.
वैसे उनके दावे के बाद चुनावों में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर उठने वाले सवालों पर विराम लग गया है, लेकिन केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की सक्रियता लगातार बढ़ने से प्रदेश की राजनीति में उनकों बीजेपी का भविष्य का चेहरा माना जा रहा है. साथ ही प्रदेश में पार्टी के भीतर गुटबाजी को भी नजअंदाज नहीं किया जा सकता.
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और खुद अध्यक्ष नड्डा के गुट होने की खबरें चलती रहती हैं. पिछले साल बीजेपी को उपचुनावों में मिली हर के पीछे गुटबाजी को बड़ी वजहकी तरह देखा गया था. पिछले उप-चुनावों में हार के बाद चर्चा थी कि हिमाचल के मुख्यमंत्री को बदला जा सकता है जैसा कि बीजेपी ने गुजरात और उत्तराखंड में किया था, जहां विधानसभा चुनाव होने वाले थे. लेकिन बीजेपी ने ऐसा नहीं किया जिसके पीछे की वजह जयराम ठाकुर की ईमानदार छवि और जेपी नड्डा का करीबी होना माना गया था.
वैसे प्रदेश के उपचुनावों में मिली हार को जेपी नड्डा से ज्यादा जोड़ कर नहीं देखा गया था क्योंकि उपचुनाव में नड्डा कैम्पन के लिए हिमाचल नहीं गए थे और ना ही उनके इलाके में ये चुनाव हुए थे. जानकारों की माने तो उपचुनाव नतीजों में केवल एक ही फ़ैक्टर काम किया था, वो था - वीरभद्रसिंह. मरणोपरांत भी उन्होंने जनता को प्रभावित किया था. इसलिए तब चर्चा तेज थी कि क्या क्या जयराम ठाकुर आगे भी मुख्यमंत्री बने रहेंगे लेकिन बीजेपी ने उनको पदपर जारी रखा.
हार के बाद अपनी प्रतिक्रिया में जयराम ठाकुर ने कहा था कि कांग्रेस ने महंगाई को बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जिससे साफ़ था कि वो हार का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ रहे हैं. इसके बावजूद भी उनकी कुर्सी पर कोई आंच नहीं आयी. कह सकते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव जयराम ठाकुर के साथ-साथ बीजेपी अध्यक्ष नड्डा के लिए काफी अहम् है. क्योंकि जिस तरह गुजरात चुनाव को नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों से जोड़ कर देखा जायेगा इस वजह से कि वो उनका गृहराज्य है ठीक वैसा ही दबाव इन चुनावों में नड्डा पर भी देखने को मिलेगा.
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