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Updated: 08 मई, 2021 10:36 PM
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झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद से ही हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ट्विटर का खूब इस्तेमाल करते हैं. लोगों की समस्याएं सुनने और उनकी शिकायतें दूर करने से लेकर गवर्नेंस के कामों में भी हेमंत सोरेन शूरू से ही ट्विटर का भरपूर इस्तेमाल करते रहे हैं.

जनवरी, 2020 में JMM महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने द टेलीग्राफ अखबार को बताया था कि हेमंत सोरेन का ट्विटर हैंडल दो-तीन पेशेवर लोग मैनेज करते हैं.

सुप्रियो भट्टाचार्य के अनुसार, ये पेशेवर लोग भी कोई छोटे-मोटे IT प्रोफेशलन नहीं हैं, बल्कि उनके पास लोकनीति से जुड़े नीतिगत फैसलों, जनप्रतिनिधियों, शोधकर्ताओं और अकादमिक व्यक्तियों के लिए सलाहियत तैयार करने का लंबा अनुभव है. बताते हैं कि तभी से हर रोज लोग मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को टैग कर अपनी समस्याएं शेयर करते हैं - और फिर मुख्यमंत्री अफसरों को उन पर एक्शन लेने के साथ ही समाधान के बाद लोगों को अपडेट करने का भी आदेश देते हैं.

गवर्नेंस के कामों के साथ ही बीच में भी हेमंत सोरेन बाकी नेताओं की तरह ट्विटर को राजनीकि औजार के तौर पर भी इस्तेमाल करते रहे हैं. कोरोना संकट के ही पिछले दौर में हेमंत सोरेन ने रेल मंत्री पीयूष गोयल को लेकर भी बड़े ही सख्त लहजे में ट्वीट किया था.

15 मई, 2020 को एक ट्वीट में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने लिखा था, 'रेलवे रोजाना 300 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाकर कामगारों को उनके घर पहुंचाने के लिए तैयार है, लेकिन मुझे दुख है कि कुछ राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ, और झारखंड की सरकारों द्वारा इन ट्रेनों को अनुमति नहीं दी जा रही है, जिससे श्रमिकों को घर से दूर कष्ट सहना पड़ रहा है.'

तब हेमंत सोरेन ने पीयूष गोयल के शिकायती ट्वीट पर ही सवाल खड़ा कर दिया था. हेमंत सोरेन का कहना था कि प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए झारखंड सरकार ने ही ट्रेनों की मांग की थी - और केंद्रीय गृह मंत्री से मजदूरों को लाने के लिए हवाई जहाज के लिए भी परमिशन देने का आग्रह किया गया था.

रेल मंत्री पीयूष गोयल के ट्वीट पर हेमंत सोरेने ने लिखा, 'रेलमंत्री तक सही जानकारी नहीं पहुंचायी गयी. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मंत्रालय उन तक सही जानकारी नहीं पहुंचा रहा है.'

कोरोना काल (Coronavirus) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लेकर हेमंत सोरेन एक ट्वीट पर देश भर में बवाल मचा हुआ है - हेमंत सोरेन के ट्वीट के रिएक्शन में बीजेपी नेताओं की कौन कहे, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने भी हिंदी में ही ट्विटर पर जवाब दिया है - और अपने झारखंड समकक्ष के ट्वीट को देश को कमजोर करने वाला माना है.

क्या हेमंत सोरेन 'ओछी राजनीति' कर रहे हैं?

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी उसी छोर पर खड़े हैं जहां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं - या फिर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल. और सभी की शिकायतें केंद्र सरकार से एक जैसी ही हैं. राजनीति के हिसाब से देखें तो राजनीतिक विरोधी होने की वजह से ऐसी शिकायतें बनती भी हैं.

लेकिन अगर एक जैसी चुनौती से हर कोई जूझ रहा है तो केंद्र सरकार से सभी मुख्यमंत्रियों की शिकायतें एक जैसी क्यों नहीं हैं?

ये तो ऐसे ही लगता है जैसे या तो बीजेपी के मुख्यमंत्री राजनीतिक मजबूरी के चलते केंद्र सरकार को लेकर मन की बात नहीं कह पा रहे हैं - या फिर ये हो सकता है कि जैसे बीजेपी की विरोधी पार्टियों के मुख्यमंत्री अपने साथ भेदभाव के जो आरोप लगा रहे हैं वो बात ही सही है?

लगता तो कभी कभी ऐसा भी है कि बीजेपी के मुख्यमंत्री भी उन मुश्किलों से जूझ रहे हैं जो चुनौतियां गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों के सामने है - ये बात अलग है कि योगी आदित्यनाथ जैसे मुख्यमंत्री अलग तरीका आजमाते हैं. ऑक्सीजन की कमी को तेज आवाज में खारिज करते हैं. ऐसे मुद्दे उठाने वालों के खिलाफ NSA के तहत एक्शन लेने का अफसरों को हिदायत देते हैं. खबर ये भी आती है कि अस्पतालों तक को मैसेज देने की कोशिश होती है कि अगर ऑक्सीजन की कमी की शिकायत किये या मीडिया को बताये तो फिर नतीजे भुगतने को तैयार रहना.

अगर इतना सब कुछ होता है तो कैसे नहीं लगेगा कि सब कुछ ठीक ठाक नहीं है. यूपी में भी ऑक्सीजन की कमी वैसी ही जैसी दिल्ली में तथ्यों के तौर पर देश की सबसे बड़ी अदालत के जरिये सामने आ रही है.

hemant soren, narendra modiक्या हेमंत सोरेन ने ट्विटर पर सिर्फ अपने 'मन की बात' की है?

आखिर अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी के साथ मीटिंग में यही तो पूछ रहे थे कि ऑक्सीजन की जरूरत पड़ने पर वो किससे बात करें - कोई एक नोडल व्यक्ति तय करके बता दिया जाये. ऐसा नहीं हुआ और कुछ अस्पताल हाई कोर्ट चले गये - फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और दिल्ली सरकार ने अपना पक्ष रखा. अदालत रूटीन के आधार पर दिल्ली में ऑक्सीजन सप्लाई की समीक्षा करने लगी और मालूम हुआ कि दिल्ली को वास्तव में ऑक्सीजन नहीं मिल रहा है.

अरविंद केजरीवाल तो सुप्रीम कोर्ट के जरिये अपनी बात केंद्र सरकार तक पहुंचाने में कामयाब रहे, लेकिन हेमंत सोरेन की शिकायत है कि उनकी बात कोई सुन ही नहीं रहा है. हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर हुई बात के बाद एक ट्वीट किया है - और उस पर बवाल मचा हुआ है.

हेमंत सोरेन के ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर लोग ये सवाल भी पूछ रहे थे कि ये भी बता देते कि उनकी तरफ से क्या बात हुई. न्यूज एजेंसी पीटीआई के जरिये खबर आयी है कि हेमंत सोरेन बातचीत में अपनी बात नहीं सुने जाने से नाराज थे - और ट्विटर पर उसी का इजहार किया है.

हेमंत सोरेन के ट्वीट के बाद बीजेपी की तरफ से कई नेताओं ने धावा बोल दिया है. हिमंता बिस्वा सरमा से लेकर किरण रिजिजु तक, हर कोई हेमंत सोरेन को नसीहत देने लगा है - ओछी राजनीति करने से लेकर संवैधानिक पदों की गरिमा को गिराने जैसे इल्जाम लगाये जा रहे हैं.

कोरोना के सवालों के जवाब 'यशस्वी प्रधानमंत्री' के नाम से शुरू और खत्म करने वाले स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने तो हेमंत सोरेन को कह डाला है कि मुख्यमंत्री को कोरोना के खिलाफ लड़ाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नहीं.

सिर्फ बीजेपी नेताओं की ही कौन कहे, बाहर होकर मन से सपोर्ट करने वाले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की तरफ से भी हेमंत सोरेन को नसीहत दी गयी है. जगन मोहन रेड्डी का कहना है कि 'हमारे बीच चाहे जितने मतभेद हों, इस स्तर की राजनीति से हमारा राष्ट्र केवल कमजोर ही होगा.'

लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने हाल ही में जो कहा था उससे तो यही लगता है कि हेमंत सोरेन जैसी ही मुश्किल उनके सामने भी रही है. भूपेश बघेल का कहना था कि प्रधानमंत्री के साथ जो मीटिंग हुई उसमें सिर्फ वन-वे चर्चा थी - कोई जवाब नहीं मिला.

दिल्ली का मामला अदालत नहीं पहुंचता तो राजनीतिक ही लगता

केंद्र सरकार की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने साफ तौर कह दिया कि सरकार अदालत को किसी सख्त फैसले के लिए मजबूर न करे, बल्कि अफसरों को आदेश दे कि हर दिन वे दिल्ली के लिए 700 MT ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित करें.

ठीक एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट की और भी तल्ख टिप्पणी रही, 'अगर कुछ भी छिपाने के लिए नहीं है तो फिर सरकार को आगे आकर देश को ये बताना चाहिये कि किस तरह से केंद्र सरकार की ओर से ऑक्सीजन का आवंटन किया जा रहा है.'

अदालत की तरफ से ये काफी कड़ी टिप्पणी रही - और ऐसी ही टिप्पणियां केंद्र सरकार को लेकर देश के कई हाई कोर्ट में भी जजों ने की है. ऐसी सूरत में, दिल्ली को जरूरत के मुताबिक ऑक्सीजन नहीं मिल रहा है - ये कोई शक शुबहे वाली बात तो नहीं लगती. दिल्ली में ऑक्सीजन सप्लाई का मामला सुप्रीम कोर्ट में है - और अदालत बार बार केंद्र सरकार को ताकीद कर रही है कि उसे सख्त फैसले लेने पर मजबूर न किया जाये.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल काफी दिनों से बता रहे हैं कि दिल्ली को रोजाना 700 MT ऑक्सीजन की जरूरत है. साथ में, जब जब केंद्र सरकार से जितना ऑक्सीजन मिला है, अरविंद केजरीवाल ये भी बताते गये हैं - और अब कह रहे हैं कि अगर दिल्ली को जरूरत के मुताबिक ऑक्सीजन मिल गया तो वो ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं होने देंगे.

अरविंद केजरीवाल का केंद्र की मोदी सरकार से टकराव तो शुरू से ही होता रहा है, लेकिन विधानसभा चुनावों के पहले से और उसके बाद में भी उनकी पुरानी आक्रामक शैली नहीं देखने को मिली है - शिकायत का उनका अंदाज काफी बदल गया है.

दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी को ही लें तो शुरू से ही वो यही बता रहे हैं कि केंद्र सरकार से मदद मिल रही है - केंद्र सरकार कोशिश कर रही है, लेकिन हमेशा जोर इसी बात पर रहता है कि केंद्र सरकार दिल्ली की जरूरत के मुताबिक ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं कर रही है.

ये बताने के लिए ही प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुख्यमंत्रियों की मीटिंग से अरविंद केजरीवाल ने अपने भाषण की लाइव स्ट्रीमिंग करायी थी - जिसे लेकर प्रधानमंत्री ने प्रोटोकॉल का पालन करने के साथ साथ संयम बरतने की सलाह दी थी और अरविंद केजरीवाल ने तत्काल माफी भी मांग ली थी.

अगर दिल्ली के ऑक्सीजन का मामला सुप्रीम कोर्ट में नहीं होता लोगों को लगता भी - और बीजेपी नेता घूम घूम कर समझाते भी कि अरविंद केजरीवाल सिर्फ राजनीति करते हैं और इस मामले में भी कर रहे हैं.

लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही है कि केंद्रीय गृह मंत्री 2020 जैसी तत्परता दिल्ली को लेकर क्यों नहीं दिखा रहे हैं. पिछली बार तो अमित शाह ने स्थिति की गंभीरता समझते ही पहल की और अफसरों के साथ साथ दिल्ली को लेकर एक सर्वदलीय बैठक भी बुलायी. अरविंद केजरीवाल भी अमित शाह के सक्रिय होने और स्थिति को काबू में कर लेने को लेकर खासे अभिभूत नजर आ रहे थे.

और इस बार की हालत ये है कि केंद्र की तरफ से पिछली बार जैसी पहल तो दूर, जरूरत भर ऑक्सीजन भी नहीं मिल पा रही है - सवाल ये है कि जो वस्तुस्थिति है उसे कैसे समझने की कोशिश करें? कैसे मान लें कि सब कुछ ठीक चल रहा है? वास्तव में कोरोना के खिलाफ मिल कर जंग लड़ी जा रही है? कैसे मान लें कि वायरस के नाम पर आपस में ही जंग नहीं लड़ी जा रही है - अगर ऐसा नहीं है तो हेमंत सोरेन के ट्वीट और सोनिया गांधी के कोरोना संकट को लेकर मोदी सरकार पर हमले को किस नजरिये से देखा जा सकता है?

अब ऐसा भी नहीं कह सकते कि हर बात में राजनीति ही हो रही है. बंगाल से बुरा हाल केरल में होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के ट्वीट को शेयर करते हुए केरल के मेडिकल स्टाफ को बधायी दी है - वैसे काम का क्रेडिट तो विजयन को ही मिलेगा.

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