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Updated: 08 दिसम्बर, 2022 06:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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गुजरात में अमित शाह (Amit Shah) ने बीजेपी की न सिर्फ एकतरफा जीत सुनिश्चित करायी है, देखा जाये तो 2017 की भी भरपाई कर ली है - और ये सब मुमकिन हुआ है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के रोड शो, रैलियों और गुजरात के लोगों से उनके जुड़ाव की बदौलत.

सबने देखा ही, कैसे 11 मार्च को अहमदाबाद में रोड शो करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी की तरफ से गुजरात में चुनावी बिगुल बजा दिया था. और फिर 5 दिसंबर को जब वोट देने गये तब भी एक ट्वीट भर से रोड शो जैसा माहौल बना दिया. कांग्रेस को बाकी बीजेपी विरोधियों ने मोदी के रोड शो को आचार संहिता का उल्लंघन बताया और चुनाव आयोग में शिकायत तक दर्ज करायी.

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का सीधा इल्जाम रहा, 'वोटिंग के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ढाई घंटे का रोड शो किया.' चुनाव आयोग में शिकायत भी दर्ज करायी. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ी प्रतिक्रिया जतायी थी, 'वोटिंग के दिन रोड शो की अनुमति नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी वीवीआईपी हैं... वे कुछ भी कर सकते हैं.'

लेकिन चुनाव आयोग को शिकायतों में कोई दम नजर नहीं आया. चुनाव आयोग की तरफ से कहा गया, 'कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के बूथ पर चलने की शिकायत की... हमने अहमदाबाद में चुनाव अधिकारी से तत्काल रिपोर्ट मांगी... रिपोर्ट के मुताबिक, ये स्थापित नहीं होता कि ये एक रोड शो था... लोग अपनेआप वहां पर थे.'

गुजरात चुनाव के नतीजों (Gujarat Election 2022 Results) ने बीजेपी को 'कोई नहीं है टक्कर में' टाइप नारे लगाने का मौका तो दे ही दिया है. अरविंद केजरीवाल को तो गुजरात के लोगों ने अपना संदेश दे ही दिया है, कांग्रेस के जरिये बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों को ही मैसेज दिया है - कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर... बाकी बाद में देखेंगे.

2024 में भी मोदी लहर के पूरे आसार

2022 के शुरू में ही उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के अगले दिन से ही बीजेपी ने गुजरात चुनावों की तैयारी शुरू कर दी थी - तैयारियों में परदे के पीछे अमित शाह अपनी रणनीति तो तैयार कर ही रहे थे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपने ग्राउंड वर्क को लेकर मंथन कर रहा था. संघ और बीजेपी के सारे बड़े नेताओं ने तभी से या तो डेरा डाल दिया था या फिर निगरानी रखने लगे थे.

narendra modi, amit shahमोदी-शाह के लिए गुजरात चुनाव असल में 2024 का प्रैक्टिस मैच था - और नतीजे सामने हैं.

दिल्ली से अहमदाबाद पहुंचते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एयरपोर्ट से ही रोड शो पर निकल पड़े थे - और पहले से तय कार्यक्रम के हिसाब से भारतीय जनता पार्टी के दफ्तर कमलम तक रोड शो करते ही पहुंचे थे.

ये बीजेपी की तरफ से हर किसी को एक मजबूत संदेश था. ये भी कि बीजेपी को चुनावी मशीन यूं ही नहीं कहा जाता है. बीजेपी के लिए ऐसे मुहावरे गढ़े जाने का श्रेय हासिल कर चुके अमित शाह खुद भी पूरे वक्त जी जान से जुटे रहे और 108 विधानसभाओं तक बीजेपी को बूथ लेवल पर मजबूत करने के लिए उन्होंने 24 चुनावी रैलियां की.

रैलियों के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर आगे रहे. मोदी ने गुजरात में 30 सितंबर से दो दिसंबर तक 39 रैलियां की. रैलियों के जरिये मोदी ने 134 विधानभा के लोगों तक पहुंच कर बीजेपी को वोट देने की अपील की - और आखिर वाला रोड शो तो 50 किलोमीटर लंबा रहा.

बरसों बाद 2017 में बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद कांग्रेस ने गुजरात चुनाव को लेकर इस बार कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी. ये तो रहा कि राहुल गांधी सहित सारे ही कांग्रेस नेता भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त रहे, लेकिन की हिस्सेदारी रस्मअदायगी से ज्यादा नहीं नजर आयी.

गुजरात बीजेपी में भी एक चर्चा ये रही कि अरविंद केजरीवाल कांग्रेस को रिप्लेस कर सकते हैं, लेकिन अमित शाह का ध्यान तो कहीं और ही रहा - वो किसी भी कीमत पर केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी का वोट शेयर नहीं बढ़ने देना चाहते थे.

अमित शाह ने गुजरात बीजेपी की टीम को साफ साफ बोल दिया था कि किसी भी सूरत में आप का वोट शेयर 24 फीसदी तक नहीं पहुंचना चाहिये या उससे आगे जाना चाहिये - और एक बार फिर वो अपने मिशन में पूरी तरह सफल लगते हैं.

रुझानों के हिसाब से भी देखें तो बीजेपी अकेले 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी हासिल कर चुकी है. 2017 में बीजेपी का वोट शेयर 49.1 फीसदी था. देखा जाये तो उत्साहवर्धक बढ़त मानी जाएगी - हालांकि, ये भी नहीं भूलना चाहिये कि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को 62.21 फीसदी वोट मिले थे.

फिर भी गुजरात चुनाव में मोदी के असर की बदौलत ये कयास तो लगाये ही जा सकते हैं कि 2024 में एक बार फिर मोदी लहर का असर देखने को मिल सकता है - और गुजरात के नतीजे ये भी कह रहे हैं कि मोदी के चेहरे पर ही 2024 के पहले के चुनाव लड़ने का बीजेपी के संसदीय बोर्ड का फैसला भी सही है. हां, हिमाचल प्रदेश अभी से अपवाद के तौर देखा जा सकता है.

कांग्रेस मुक्त गुजरात नहीं होने से रोका जा सकता था

बीजेपी के मुकाबले गुजरात में कांग्रेस के वोट शेयर की बात करें तो 2017 के विधानसभा चुनाव में ये 41.4 फीसदी रहा - मतलब, 11.6 फीसदी का अंतर था, लेकिन अभी तो हाल ये है कि कांग्रेस 27.2 फीसदी पर पहुंच चुकी है.

निश्चित तौर पर ये कांग्रेस मुक्त गुजरात की तरफ ही इशारा कर रहा है, लेकिन राहुल गांधी और उनकी टीम को ये भी समझने की कोशिश करनी चाहिये कि ये हाल तब है जब चुनाव जीतने जैसी कोई भी कोशिश नजर नहीं आयी है.

अव्वल तो राहुल गांधी के भी चुनाव प्रचार से कांग्रेस के प्रदर्शन पर कोई फर्क नहीं पड़ता. कांग्रेस के बागी नेता लगातार कहते रहे हैं कि कांग्रेस नेतृत्व को तो जैसे चुनाव हारने की आदत पड़ती जा रही है, लेकिन राहुल गांधी के दौरे से एक असर तो पड़ता ही है - स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता एक्टिव रहते हैं.

गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने सिर्फ एक दिन का दौरा किया था. वो भी कांग्रेस के आदिवासी नेता अनंत पटेल के कहने पर. ये अनंत पटेल ही हैं जो अपने इलाके में सारे विरोधियों की हवा खराब कर रहे हैं - और बीजेपी के लिए भी बड़ी चुनौती बने हुए हैं.

हिमाचल प्रदेश में तो प्रियंका गांधी की भी मौजूदगी दर्ज की गयी थी, लेकिन गुजरात तो क्षेत्रीय नेताओं और अशोक गहलोत के हवाले ही रहा, फिर भी अगर कांग्रेस 20 सीटों तक पहुंच सकती है और 27 फीसदी वोट शेयर हासिल करती है, तो कम है क्या?

जितनी मेहनत राहुल गांधी ने इसी साल हुए केरल विधानसभा चुनाव में किया था या तमिलनाडु और पंजाब में कांग्रेस के लिए कैंपेन करते रहे, गुजरात में आधा भी मेहनत और कोशिश किये होते तो कांग्रेस की स्थिति काफी बेहतर हो सकती थी.

केजरीवाल कांग्रेस की जगह नहीं ले पा रहे हैं

जिस दिन अहमदाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रोड शो हुआ था, अगले ही दिन अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कांफ्रेंस की और एमसीडी चुनावों को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार पर जोरदार हमला बोला था - मान कर चलना चाहिये कि टीवी पर नहीं तो मोबाइल पर राहुल गांधी भी ये सब देख ही रहे होंगे.

हो सकता है, तभी राहुल गांधी के मन के किसी कोने ये आइडिया आया हो कि गुजरात में भी एक बार अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की तरह बीजेपी से लड़ा कर देखते हैं. अरविंद केजरीवाल तब तक पंजाब में सरकार बना चुके थे - और वो भी तो राहुल गांधी की तरफ से आम आदमी पार्टी को अघोषित गिफ्ट ही समझा जाना चाहिये.

अरविंद केजरीवाल ने अपनी तरह से गुजरात चुनाव को लेकर कोई कसर बाकी रखी हो, ऐसा तो नहीं लगता. भले ही मन ही मन बीजेपी से लड़ने का दिखावा करते हुए कांग्रेस को बर्बाद करने का इरादा ही क्यों न हो!

गुजरात चुनाव के नतीजों से कम से कम दो बातें तो साफ हो ही चुकी हैं. एक, गुजरात के लोगों ने अरविंद केजरीवाल और उनकी राजनीति को पूरी तरह नकार दिया है. वैसे भी जब गुजरात के पास अपने नरेंद्र मोदी हों, तो भला वहां के लोग मिलते जुलते वैसे ही नेता को क्यों चुनें - जैसे उनके सामने कोई डुप्लीकेट खड़ा हो?

अब तो मान लेना चाहिये कि गुजरात के लोगों ने साफ कर दिया है कि न तो नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर की जरूरत है, न ही अयोध्या जाने के लिए उनको आम आदमी पार्टी की सरकार की.

विपक्ष एक बार फिर चूक गया - और ये भी संकेत है

कांग्रेस नेतृत्व के अनमने रवैये के बावजूद अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में अपनी तरफ से काफी प्रयास किये, लेकिन पूरे विपक्ष की तरफ से ऐसी कोई भी कोशिश नहीं हुई - ताकि ये समझा जा सके कि मोदी-शाह की बीजेपी को गुजरात में रोकने की कोई कोशिश हो भी रही है.

निश्चित तौर पर नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर मोदी विरोधी मोर्चा खड़ा करने का प्रयास किया था, लेकिन जिस तरह मैनपुरी सीट पर डिंपल यादव के लिए जेडीयू नेता केसी त्यागी वोट मांगते देखे गये, गुजरात में ऐसी कोई कोशिश तो नहीं ही दिखी.

ममता बनर्जी ने जिस तरह पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मीटिंग शुरू की थी, बीजेपी के अंदर भी कुछ लोगों की धड़कनें बढ़ने लगी थीं. बंगाल का चुनाव हारने के बाद ये स्वाभाविक भी था, सिर पर यूपी चुनाव भी तो था.

यूपी चुनाव के दौरान तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को एक्टिव देखा गया. यहां तक कि वो दिल्ली और चंडीगढ़ ही नहीं, पटना तक पहुंच गये थे, लेकिन गुजरात को लेकर ऐसी कोई कोशिश किसी भी तरफ से नहीं दिखी जो आम दिनों में देखी जाती है - भला किस बिनाह पर समझा जाये कि 2024 में विपक्ष कहीं एक साथ नजर आएगा?

2024 में मोदी-बनाम केजरीवाल होने से रहा

गुजरात चुनाव के नतीजों से ये तो साफ है कि 2024 में लड़ाई मोदी बनाम केजरीवाल तो होने से रही. ऐसे में सवाल ये है कि क्या मोदी के सामने विपक्ष की तरफ से कोई एक चेहरा होगा भी नहीं या एक बार फिर 2019 जैसा नजारा ही देखने को मिलेगा - और नतीजे भी वैसे ही होंगे?

बेशक दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने नगर निगम चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन किया है, लेकिन गुजरात और हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने पूरी तरह निराश किया है. जैसे तैसे गुजरात में क्षेत्रीय दल का दर्जा पाकर केजरीवाल आप का राष्ट्रीय पार्टी बना दें, तो भी क्या हो जाएगा?

ममता बनर्जी को शरद पवार के जरिये हाशिये पर भेज कर, नीतीश कुमार को अहमियत न देकर और अरविंद केजरीवाल को साबित करने का मौका देकर कांग्रेस ने राजनीतिक चाल तो ठीक ही चली है. भारत जोड़ो यात्रा के जरिये अगर राहुल गांधी और कुछ करें न करें विपक्षी खेमे में दबदबा कायम रख पाते हैं तो बाकी दावेदार तो पीछे ही रहेंगे - और बीजेपी 2024 में भी बड़े आराम से खेल कर देगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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