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Updated: 10 मई, 2022 02:06 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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गुजरात में विधानसभा का चुनाव इसी साल के अंत में होना है. चुनाव की तारीखों की घोषणा अभी नहीं हुई है लेकिन अभी से ही यहां के आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी पार्टियों ने एड़ी से लेकर चोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया है. सबसे पहले गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार में चार आदिवासी नेताओं को मंत्री बनाया गया. फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दाहोद में 22 हजार करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास किया. उसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस महीने की एक तारीख को भरुच में भारतीय ट्राइबल पार्टी के संस्थापक छोटू वसावा के साथ 'आदिवासी संकल्प महासम्मेलन' को सम्बोधित किया और दोनों पार्टियों ने चुनावी गठबंधन का भी ऐलान किया. और अब बारी आती है कांग्रेस पार्टी की, जिसके पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी दाहोद में 'आदिवासी सत्याग्रह रैली' को सम्बोधित करने पहुंचे.

Gujarat Election, Gujarat, Assembly Elections, Tribal, Voter, Prime Minister, Narendra Modi, Arvind Kejriwal, Aam Aadmi Partyदल चाहे कोई भी हो गुजरात में सबका प्रयास यही है कि आदिवासी समुदाय का ध्यान आकर्षित कर लिया जाए

तो सवाल ये कि आखिर सभी पार्टियों की नज़र आदिवासी वोट बैंक पर क्यों है? चुनाव आते ही आदिवासी समुदाय की याद सभी पार्टियों को क्यों आने लगी? आइये जानते हैं आदिवासी समुदाय की प्रदेश में चुनावी अहमियत.

गुजरात में आदिवासी समुदाय की आबादी करीब 14.8 फीसदी है. गुजरात विधानसभा की 182 में 27 सीटें इनके लिए आरक्षित है. इसके अलावा लगभग 15 सीटों पर इस समुदाय का असर है. 2017 के विधानसभा चुनाव में इनके लिए आरक्षित 27 सीटों में कांग्रेस 15, भाजपा 9, भारतीय ट्राइबल पार्टी 2 और निर्दलीय 1 सीट पर जीत दर्ज़ की थी.

राज्य में आदिवासी आबादी परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रही है, हालांकि, पिछले दो दशकों में, भाजपा ने राज्य की आदिवासी बेल्ट में अपनी पैठ बनाने में कामयाबी हासिल की है.

कैसे विभिन्न पार्टियां आदिवासी मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए कोशिशें कर रही हैं?

भाजपा- इस साल सितंबर में गुजरात में जब मंत्रिमंडल का फेरबदल हुआ तब भूपेंद्र पटेल सरकार में चार आदिवासी नेताओं को मंत्री बनाया गया. इससे पहले विजय रुपाणी सरकार में दो ही आदिवासी मंत्री थे. अप्रैल 20 को गुजरात के दाहोद में पीएम नरेंद्र मोदी ने 22 हजार करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास करते हुए कहा कि दाहोद अब मेक इन इंडिया का भी बहुत बड़ा केंद्र बनने जा रहा है.

लेकिन सच यही है कि भाजपा 27 साल के शासन और लगभग तीन दशकों के जमीनी स्तर पर काम करने के बाद भी आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस के गढ़ में अपनी बड़ी पैठ बनाने में असमर्थ ही रही है.

आम आदमी पार्टी- दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने एक मई को भरुच में भारतीय ट्राइबल पार्टी के संस्थापक छोटू वसावा के साथ 'आदिवासी संकल्प महासम्मेलन' को सम्बोधित किया और दोनों पार्टियों ने चुनावी गठबंधन का भी ऐलान किया. 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ चुकी है.

कांग्रेस- गुजरात में आदिवासी समुदाय हमेशा से कांग्रेस पार्टी के समर्थक रहे हैं. लेकिन इस समय कांग्रेस का गणित कुछ ठीक नहीं चल रहा है. गुजरात में कांग्रेस को झटके पर झटका लग रहा है. बीटीपी के संस्थाप छोटू वसावा जिन्हें गरीबों का मसीहा कहा जाता है, ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान किया है. वही आम आदमी पार्टी जिसने कांग्रेस को दिल्ली से बेदखल करने के बाद पंजाब से भी उखड फेंका और अब गुजरात में उसका स्थान हथियाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.

आदिवासी इलाके खेड़ब्रह्मा से विधायक अश्विन कोटवाल ने विधानसभा के साथ साथ कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे कर बीजेपी का हाथ थाम लिया. अब कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी दाहोद में 'आदिवासी सत्याग्रह रैली' को सम्बोधित कर इस समुदाय को अपने पार्टी के पक्ष में जोड़े रहने का भरसक प्रयास कर रहे हैं.

अब देखना दिलचस्प होगा कि आदिवासी समुदाय का रुख इस बार क्या रहता है? क्या वो कांग्रेस पार्टी के साथ बने रहेंगे या फिर आम आदमी पार्टी और भाजपा का साथ निभाएंगे?

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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