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Updated: 26 फरवरी, 2021 05:10 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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हिंदू महासभा और नाथूराम गोडसे का विरोध करने वाली कांग्रेस ने शायद महात्मा गांधी के विचारों को तिलांजलि दे दी है. आजाद भारत का सबसे बड़ा खलनायक नाथूराम गोडसे अब शायद कांग्रेस को पसंद आने लगा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ की मौजूदगी में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के एक 'भक्त' को पार्टी में शामिल किया गया है. कमलनाथ ने कांग्रेस की विचारधारा के विपरीत जाते हुए ये काम किया है. जिसके बाद कांग्रेस के अंदर से ही विरोध के स्वर उठने लगे हैं. हालांकि, कुछ लोगों ने 'अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं' वाला तर्क भी दिया है. कांग्रेस ने हाल के दिनों में अपनी विचारधारा में काफी बदलाव किए हैं. चुनावों के मद्देनजर सॉफ्ट हिंदुत्व से लेकर मुस्लिमों को साधने के लिए समीकरण बनाने जैसे रणनीति कांग्रेस ने अपनाई है. लेकिन, ये 'गोडसे भक्त कांग्रेसी' वाला बदलाव कांग्रेस के लिए मुश्किलों भरा हो सकता है.

गांधी के विचारों को आदर्श मानकर राजनीति करने वाली कांग्रेस का अब गोडसे भक्त के लिए उमड़ा यह प्यार देखकर आपकी आंखें चौंक सकती हैं. हिंदू महासभा के नेता बाबूलाल चौरसिया ने कमलनाथ की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ली. इसके बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस की ओर से बाकायदा एक ट्वीट किया गया कि 'हिन्दू महासभा के नेता कांग्रेस में शामिल, ग्वालियर के वार्ड 44 के पार्षद एवं हिन्दू महासभा के नेता श्री बाबूलाल चौरसिया प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ जी की मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल हुए, श्री चौरसिया जी का कांग्रेस परिवार में स्वागत है.' ट्वीट में जिस तरह से गोडसे भक्त को सम्मान दिया गया है, वह कांग्रेस की कमजोर सियासी जमीन को दर्शाने के लिए काफी है. इन सब पर जाने से पहले ये जान लेते हैं कि बाबूलाल चौरसिया कौन हैं? बाबूलाल चौरसिया ग्वालियर के वार्ड 44 के पार्षद हैं. 2017 में हिंदू महासभा ने अपने कार्यालय में नाथूराम गोडसे का मंदिर बनवाया था. इस कार्यक्रम में बाबूलाल चौरसिया भी शामिल थे. उन्होंने गोडसे की पूजा करते हुए आरती उतारी थी.

हिंदू महसभा और गोडसे पर हमलावर रही कांग्रेस को 'गोडसे भक्त कांग्रेसी' क्यों पसंद आ रहा है, इस बदलाव के कई पहलू हैं. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद पार्टी के हाथ से मध्य प्रदेश में सत्ता चली गई. सिंधिया की वजह से कमलनाथ की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार मध्य प्रदेश में धड़ाम हो गई थी. ग्वालियर में सिंधिया के नाम की तूती बोलती है. वहीं, मध्य प्रदेश में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव से पहले कांग्रेस खुद को हर मामले में तैयार करने में जुटी है. लेकिन, कमलनाथ की ग्वालियर के मजबूत गढ़ में इस छोटी सी सेंध का कांग्रेस को ही नुकसान होगा. दरअसल, मध्य प्रदेश के चुनावी गणित में 'फेल' हो चुकी कांग्रेस किसी भी तरह से 'पास' होने की जुगत भिड़ा रही है. चाहे इसके लिए 'गोडसे भक्त कांग्रेसी' हो क्यों न बनना पड़ जाए.

'गोडसे भक्त कांग्रेसी' को लेकर पार्टी में विरोध भी हो रहा है और कमलनाथ का बचाव भी किया जा रहा है. कांग्रेस नेता मानक अग्रवाल ने कमलनाथ का बचाव किया है. मानक अग्रवाल की मानें, तो कमलनाथ को चौरसिया के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी. मानक अग्रवाल ने चौरसिया का पुरजोर विरोध किया, लेकिन ऐसा करवाने वाले कमलनाथ पर सवाल नहीं उठा सके. वहीं, सबसे दो कदम आगे जाकर कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने गोडसे भक्त चौरसिया के कांग्रेसी बनने को लेकर कहा, 'हमें अपराध से नफरत है, अपराधी से नहीं.' पटवारी ने कहा कि भाजपा में जाने वाले गोडसे के उपासक होते हैं. कांग्रेस की विचारधारा को आत्मसात करने वाला गांधी के विचारों को आत्मसात करता है. कांग्रेस की ये नई दार्शनिकता पार्टी को काफी भारी पड़ेगी.

कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता लंबे समय से पार्टी में शीर्ष नेतृत्व से लेकर निचले स्तर के संगठन में बदलाव की मांग कर रहे हैं.कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता लंबे समय से पार्टी में शीर्ष नेतृत्व से लेकर निचले स्तर के संगठन में बदलाव की मांग कर रहे हैं.

कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता लंबे समय से पार्टी में शीर्ष नेतृत्व से लेकर निचले स्तर के संगठन में बदलाव की मांग कर रहे हैं. लेकिन, उनकी इस मांग को लगातार दरकिनार किया जाता रहा है. पार्टी में आगामी 5 राज्यों में होने वाले चुनाव के बाद नए कांग्रेस अध्यक्ष का फैसला किया जाएगा. लेकिन, सभी इस नाम के लिए पहले से ही एक नाम को तय मान रहे हैं. कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यही है. वो कमलनाथ हों या अशोक गहलोत या कोई अन्य नेता, कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इन लोगों पर ही भरोसा दिखाता आया है. शीर्ष नेतृत्व के साथ इन नेताओं की करीबी की वजह से इनकी आलोचना पार्टी के अंदर मुखर रूप से नहीं हो पाती है. राजस्थान में सचिन पायलट वाले किस्से से आप इसे समझ सकते हैं. पार्टी के अंदर विरोध/आलोचना की जगह खत्म होती जा रही है. यह चलन कांग्रेस के लिए ही खतरनाक हो चला है.

'गोडसे भक्त कांग्रेसी' बाबूलाल चौरसिया ने कांग्रेस में शामिल होने के बाद खुद को जन्मजात कांग्रेसी बताया था. चौरसिया ने हिंदू महासभा पर अंधेरे में रखकर पूजा कराने का आरोप लगाते हुए कहा कि वे दिखाना चाहते थे, एक कांग्रेसी ने गोडसे की पूजा की है. चौरसिया ने दावा किया कि उन्होंने इसका विरोध किया था और हिंदू महासभा से दूरी बना ली थी. चौरसिया ने ये भी कहा कि वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते भी थे. कांग्रेस में शामिल हुए 'गोडसे भक्त कांग्रेसी' का भविष्य में क्या होगा, यह तो पार्टी ही तय करेगी. लेकिन, यह तय माना जा सकता है कि कांग्रेस अब अपनी खो चुकी सियासी जमीन वापस पाने के लिए गांधी-नेहरू के विचारों को भी ताक पर रखने को तैयार है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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