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Updated: 22 नवम्बर, 2019 11:04 PM
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झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election) में कांग्रेस भी 'राम भरोसे' चुनाव लड़ने जा रही है. BJP अध्यक्ष अमित शाह ने तो पहली ही रैली में अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण (Ram Temple in Ayodhya) के जोरदार जिक्र कर दिया. साफ हो गया कि बीजेपी फिर से राम मंदिर को चुनावी मुद्दा बना रही है.

कांग्रेस में आलम ये है कि राहुल गांधी के चुनाव प्रचार करने पर अभी अनिश्चितता बनी हुई है. प्रियंका गांधी वाड्रा ने तकरीबन मना ही कर दिया है. रही बात सोनिया गांधी के चुनाव प्रचार की तो अभी तक अपडेट यही है कि ऐसा कोई कार्यक्रम फाइनल नहीं है.

झारखंड चुनाव में भी कांग्रेस नेतृत्व की दिलचस्पी क्यों नहीं?

मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि राहुल गांधी के विदेश दौरे का कार्यक्रम फिर तय हो गया है. कांग्रेस के लिए मुश्किल वाली बात ये है कि राहुल गांधी के विदेश दौरे की तारीखें झारखंड चुनाव में प्रचार से टकरा रही हैं. संसद के शीतकालीन सत्र में राहुल गांधी के नाम से कम से कम 10 सवाल सूचीबद्ध बताये जाते हैं. राहुल गांधी कई मंत्रालयों से सवाल पूछने वाले हैं लेकिन खास फोकस केरल पर ही है. राहुल गांधी फिलहाल केरल के वायनाड से सांसद हैं. इसी हफ्ते स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा भी था कि वो राहुल गांधी को सवाल पूछने का मौका देने वाले थे लेकिन वो संसद में थे ही नहीं.

कांग्रेस ने महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव दोनों ही देखा जाये तो क्षेत्रीय नेताओं के भरोसे ही लड़ा था - केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से राहुल गांधी ने थोड़ी बहुत हाजिरी लगायी थी. कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी अब खुद को सिर्फ वायनाड का सांसद बताते हैं. चुनाव प्रचार में भी उनकी सीमित भागीदारी की एक ये भी वजह हो सकती है.

झारखंड कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद है कि 10 दिसंबर के आस पास राहुल गांधी झारखंड में चुनाव के लिए वक्त दे सकते हैं - क्योंकि उसके बाद उनके विदेश दौरे का कार्यक्रम बन गया है. जब महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनावी माहौल बन गया था तो राहुल गांधी विदेश दौरे पर थे. फिर बताया गया कि सोनिया गांधी के कहने पर वो दौरा बीच में ही छोड़ कर चुनाव प्रचार के लिए आ गये थे.

sonia, rahul and priyanka gandhiझारखंड चुनाव को भी गांधी परिवार ने स्थानीय नेताओं के जिम्मे छोड़ दिया है...

महाराष्ट्र और हरियाणा में राहुल गांधी ने कुछ 6 रैलियां की थीं जिनमें एक सोनिया गांधी के बदले की थी. सोनिया गांधी की हरियाणा रैली आखिरी वक्त में रद्द हो गयी और राहुल गांधी को वहां जाना पड़ा. प्रियंका गांधी तो दोनों ही राज्यों की चुनावी हलचल से दूर ही रहीं - अब झारखंड कैंपेन से ही उनके अलग रहने की ही चर्चा चल रही है. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दो दर्जन से ज्यादा चुनावी रैलियां की थीं. कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की पहली सूची में तो प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम भी नहीं था. कांग्रेस नेताओं का कहना रहा कि चूंकि वो यूपी के 2022 विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रही हैं इसलिए उसी पर फोकस रहना चाहती हैं. तभी दूसरी लिस्ट आयी और सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मनमोहन सिंह के बाद चौथे स्थान पर प्रियंका गांधी का नाम आ गया. हालांकि, अब साफ तौर पर कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी झारखंड चुनाव कैंपेन से पूरी तरह दूर रहेंगी.

सवाल ये है कि कांग्रेस नेतृत्व आखिर झारखंड चुनाव में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखा रहा है?

हरियाणा चुनाव से पहले कांग्रेस में खूब उठापटक हुई थी. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अशोक तंवर को हटाकर भूपिंदर सिंह हुड्डा को जब कमान सौंप दी तो वो बगावत कर बैठे और फिर खूब बवाल हुआ. तमाम दुश्वारियों के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा - और अगर JJP के दुष्यंत चौटाला बीजेपी से हाथ नहीं मिलाये होते तो कांग्रेस भी सरकार बना सकती थी.

महाराष्ट्र का तो हाल ये रहा कि कांग्रेस में भी एनसीपी की ही तरह पार्टी छोड़ने वालों में होड़ मची हुई थी. दोनों ही दलों से नेता बीजेपी और शिवसेना लगातार ज्वाइन कर रहे थे, फिर भी चुनाव नतीजे आये तो मालूम हुआ कि प्रदर्शन उम्मीद से कहीं ज्यादा रहा. हरियाणा में तो कांग्रेस चूक गयी लेकिन महाराष्ट्र में कुछ हिचक के बाद अब तो सरकार में भी शामिल हो रही है. वैसे कांग्रेस नेतृत्व का ये फैसला भी महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं और चुनाव जीत कर आये विधायकों के दबाव में लेना पडा है.

महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस के खाते में जो सीटें आयीं वो किसी लॉटरी लगने से कम नहीं कही जाएंगी. वैसे भी अगर पूरा गांधी परिवार चुनाव प्रचार में कूदा होता तो स्थिति कोई बेहतर तो रहने वाली थी नहीं.

आम चुनाव में पूरा दम झोंक देने के बावजूद कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक सीट बचा पायी वो भी सोनिया गांधी की क्योंकि राहुल गांधी तो अमेठी से हार ही गये.

ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस नेतृत्व को झारखंड में भी महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह ही लॉटरी लगने का पूर्वाभास हो गया है?

सूबे में कांग्रेस का हाल

कांग्रेस के झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह मोर्चा संभाले हुए हैं. चुनाव प्रचार के लिए कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के अलावा कुछ राष्ट्रीय नेताओं के भी कार्यक्रम होने हैं - लेकिन गांधी परिवार के दिलचस्पी न लेने से सूबे के कांग्रेस नेता काफी मायूस देखे जा रहे हैं.

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) नेता हेमंत सोरेन की अगुवाई में महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे के वक्त तो काफी मोलभाव किया लेकिन बाद में सब स्थानीय नेताओें और उम्मीदवारों की किस्मत के भरोसे छोड़ दिया है ऐसा लगता है.

झारखंड प्रदेश कांग्रेस की स्थिति पहले से ही डांवाडोल है. अब तक जो सुखदेव भगत कांग्रेस की कमान संभाल रहे थे वो अपनी ही सीट लोहरदगा से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. मजे की बात ये है कि मौजूदा PCC अध्यक्ष रामेश्वर उरांव भी सीट से चुनाव मैदान में हैं. लड़ाई पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष बनाम मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष हो गयी है.

बीजेपी अध्यक्ष पहले ही झारखंड दौरे में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के लिए बतौर बीजेपी उम्मीदवार वोट मांग आये हैं. बीजेपी की सहयोगी रही सुदेश महतो की पार्टी AJSU ने लड़ाई दिलचस्प बना दी है. सुखदेव भगत के खिलाफ उन्हें बीते चुनावों में हराने वाले कमल किशोर भगत की पत्नी को उम्मीदवार बनाया है. हालांकि, कमल किशोर भगत की पत्नी पिछला उपचुनाव सुखदेव भगत से हार गयी थीं.

2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुछ 6 सीटें मिली थीं - कांग्रेस नेतृत्व लगता है इस बार कुछ ज्यादा ही नाउम्मीद हो चला है. वैसे महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजों को देखते हुए झारखंड को लेकर भी कहा जा सकता है कि कुछ भी हो सकता है.

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