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Updated: 06 अक्टूबर, 2019 08:09 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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चुनाव सिर पर हैं और राहुल गांधी बैंकॉक घूमने गए हुए हैं. सॉरी, सॉरी... घूमने नहीं, ध्यान लगाने गए हैं और बैंकॉक नहीं, किसी और देश गए हैं. हां, मिल गया... कंबोडिया गए हैं, विपश्यना के लिए. राहुल गांधी और उनका ध्यान. खुद तो चले गए, यहां भाजपा वाले बैंकॉक गए होने की बात कर रहे हैं तो कांग्रेस के कुछ लोग (गौरव पंधी जैसे) कंबोडिया बता रहे हैं. उधर अभिषेक मनु सिंघवी भाजपा को राहुल की निजता का पाठ पढ़ा रहे हैं, लेकिन ये नहीं बताया कि राहुल गए कहां हैं. अब एक सवाल सबके जेहन में घूम रहा है कि आखिर राहुल गांधी गए कहां हैं? बैंकॉक या कंबोडिया. चलिए उसे छोड़िए, कहीं भी गए हों, लेकिन इस सवाल की आड़ में एक चिंता मुंह छुपाए बैठी है कि जिस समय खुद कांग्रेस 'अंतर्ध्यान' होने की हालत में आ चुकी है, उस समय में राहुल गांधी 'ध्यान' कैसे कर सकते हैं?

राहुल गांधी, चुनाव, कांग्रेसतीन राज्यों के चुनाव में तमाम राजनीतिक पार्टियां मैदान में हैं, लेकिन राहुल गांधी शांति की तलाश में विदेश पहुंचे हुए हैं.

तीन राज्यों के चुनाव

21 अक्टूबर 2019, ये तारीख है हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव की. भाजपा तो चुनाव प्रचार में पूरा दम दिखा ही रही है, साथ ही तमाम स्थानीय पार्टियां भी एड़िया घिसने से नहीं चूक रही हैं. सब तैयार हैं अपने विरोधियों को धूल चटाने के लिए. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस है, जो अपनी विरोधी पार्टियों से तो क्या लड़ेगी, उसके अपने घर में ही कलह मची हुई है. मां-बेटे भले ही एक साथ हों, लेकिन उनके समर्थक एक दूसरे के खिलाफ दिख रहे हैं. यही वजह है कि इस चुनाव में कांग्रेस मजबूती से खुद को जनता के सामने नहीं रख पा रही है. चुनाव प्रचार हर गुजरते दिन के साथ तेज होता जा रहा है, लेकिन कांग्रेस का सबसे अहम चेहरा किसी देश की यात्रा पर है और सुनने में आ रहा है कि ध्यान लगाने के लिए गया है. जब भाजपा तंज कस रही है तो कांग्रेस की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं कि ये उनका निजी मामला है, जिसमें भाजपा को नहीं घुसना चाहिए. वाकई कांग्रेस बेहद बुरे दौर से गुजर रही है.

चिंता है राहुल का चुनाव मैदान से दूर चले जाना

चुनावों के इस दौर में चुनाव का विषय ये नहीं है कि राहुल गांधी कहां गए हैं और क्या करने गए हैं, बल्कि चिंता ये है कि वह क्यों चले गए. इस वक्त उनकी पार्टी को उनकी सबसे अधिक जरूरत थी. जनता इस वक्त उन्हें सुनना चाहेगी. जानना चाहेगी कि वह ऐसा क्या करने वाले हैं, जिसके लिए वह अपना कीमती वोट कांग्रेस के दे दें. लेकिन इन सबके उलट, राहुल गांधी तो चुनावी मैदान से ही दूर चले गए हैं. भाजपा की ओर से जब इस पर तंज कसे जा रहे हैं तो राहुल गांधी के कुछ समर्थक ये भी तर्क दे रहे हैं कि ना तो वह कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, ना ही किसी और पद पर हैं, तो ऐसे में क्या वह पूजा-पाठ और ध्यान भी नहीं कर सकते? चलिए मान ली आपकी बात, लेकिन जब भी बात कांग्रेस की होगी, तो राहुल गांधी वह चेहरा हैं, जो हमेशा सबके जेहन में आएंगे. राहुल गांधी की कांग्रेस के प्रति एक जिम्मेदारी है, जिसे उन्हें निभाना चाहिए था.

विपश्यना कहीं बहाना तो नहीं

कई बार मूड खराब हो जाता है तो आदमी थोड़ा अकेले में रहना पसंद करता है. कहीं राहुल गांधी के साथ ऐसा ही नहीं हो रहा. इधर हरियाणा में अशोक तंवर ने विद्रोह कर दिया और बोल दिया कि सोहना सीट 5 करोड़ में बिकी, उधर मुंबई में संजय निरूपम ने काला झंडा उठा लिया है. जब राहुल अध्यक्ष थे, जो सोनिया के समर्थक माथा पीटते थे, अब सोनिया अंतरिम अध्यक्ष बनी हैं, तो निरूपम को लग रहा है कि पार्टी के बुजुर्ग मिलकर नौजवानों को किनारे लगा रहे हैं. पार्टी के अंदर इतनी खींच-तान चल रही है कि किसी का भी दिमाग खराब हो जाए. तो कहीं ऐसा तो नहीं, कि इन सबसे परेशान होकर राहुल गांधी विदेशी दौरे पर रवाना हो लिए?

पार्टी को अकेला नहीं छोड़ सकते

राहुल गांधी को भले ही अभी अपनी पार्टी कांग्रेस से मोह नहीं हो, लेकिन उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह पार्टी को अकेला नहीं छोड़ सकते. मुश्किल वक्त है कांग्रेस के लिए, पार्टी के भीतर का संग्राम अपने चरम पर है, ऐसे में अगर पार्टी का इतना अहम चेहरा ही घूमने या फिर शांति की तलाश में निकल पड़ेगा, तो चुनाव जीतना तो दूर, लड़ना भी मुश्किल हो जाएगा. लोकसभा चुनावों में हारने के बाद जिस तरह राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, उसने दिखाया कि वह अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं. अब एक बार फिर तीन राज्यों के चुनाव सिर पर हैं और वह विपश्यना करने कंबोडिया जा पहुंचे हैं, ये भी जिम्मेदारी से भागने जैसा ही है, क्यों वह विपश्यना में खुद को शांत कर रहे हैं और इधर पार्टी के अंदर भूचाल आया हुआ है.

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