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Updated: 24 जून, 2021 10:47 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सचिन पायलट (Sachin Pilot) के दिल्ली से बैरंग लौट जाने को लेकर राजस्थान के बीजेपी सांसद डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा का दावा है कि कांग्रेस नेता कांग्रेस नेता ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को 50-60 फोन किये, लेकिन वे उठाये नहीं. लिहाजा कई दिन इंतजार करने के बाद सचिन पायलट लौट गये.

सचिन पायलट को लेकर किरोड़ी लाल मीणा ने ये बातें भी उनके ही इलाके राजस्थान के दौसा में कही - और लगे हाथ नसीहत भी दे डाली है, 'दम घुट कर नहीं रहना चाहिये और स्वाभिमान से निर्णय करना चाहिये.'

सचिन पायलट को लेकर ये बीजेपी का बुलावा भी हो सकता है या फिर अशोक गहलोत सरकार को लेकर चेतावनी भी कह सकते हैं. ज्यादा कुछ हो न हो, मीणा का ये बयान सचिन पायलट के पक्ष में तो जाता ही है. कम से कम सचिन पायलट को लेकर राजस्थान में जो मीणा विधायकों की बयानबाजी चल रही है, उसमें तो ये महत्वपूर्ण हो ही जाता है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद के बाद निगाहें सचिन पायलट के फैसले पर टिकी हुई हैं - वैसे भी हिमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने अपनी तरफ से स्पष्ट तो कर ही दिया है कि ऐसी चीजों के लिए संघ की पृष्ठभूमि होना कोई अनिवार्य शर्त नहीं रह गयी है.

खबर तो ये भी है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) को भी सचिन पायलट की ही तरह सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी ने रिस्पॉन्स नहीं दिया और मजबूरन काफी इंतजार के बाद उनको भी लौट जाना पड़ा - सवाल ये उठता है कि ऐसा करने के गांधी परिवार कांग्रेस नेताओं के क्या मैसेज देना चाहता है?

गांधी परिवार के लिए पायलट-कैप्टन एक जैसे क्यों?

कांग्रेस की चुनौतियां बेहिसाब बढ़ती जा रही हैं, लेकिन गांधी परिवार लगता है बिलकुल बेअसर है. तमिलनाडु को छोड़ कर बीते विधानसभा चुनावों में चार राज्यों में बुरी हार के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व की दिलचस्पी न तो पंजाब में सत्ता में वापसी को लेकर नजर आ रही है, न राजस्थान में सरकार बचाने में और न ही महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में हिस्सेदारी बचाने में - आखिर क्यों?

सचिन पायलट और कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस के भीतर भी राजनीति के अलग अलग छोर पर खड़े हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने पंजाब में चुनाव जीता और वो मुख्यमंत्री बन गये, लेकिन राजस्थान में भी ठीक ऐसा ही होने के बावजूद सचिन पायलट को पहले डिप्टी सीएम बनाया गया और बाद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथ साथ सरकार से भी हटा दिया गया.

फायदे की स्थिति के हिसाब से अगर तुलना की जाये तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की अशोक गहलोत की तुलना की जा सकती है - और उसके उलट सचिन पायलट की नवजोत सिंह सिद्धू से.

capt. amrinder singh, sachin pilotअलग अलग छोर पर खड़े सचिन पायलट और कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ कांग्रेस नेतृत्व एक जैसा ही सलूक कर रहा है.

सारी बातों के बावजूद सचिन पायलट और कैप्टन अमरिंदर सिंह में एक बात कॉमन है और वो है दोनों का नेतृत्व के खिलाफ अपनी जिद पर अड़े रहना - लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत करने वाले नवजोत सिद्धू से राहुल गांधी या सोनिया गांधी को कोई शिकायत नहीं है, लेकिन अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत करने वाले सचिन पायलट फूटी आंख नहीं सूझते - आखिर ऐसे भेदभावपूर्ण उलटे व्यवहार की वजह क्या हो सकती है?

ये सब निजी पसंद नापसंद से ज्यादा तो नहीं लगता - और ऐसा राजनीति में होता है क्या? होता भी है तो लंबे समय तक ऐसे ही चलता है क्या?

कैप्टन अमरिंदर सिंह से कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से वही करने को कहा जा रहा है जिसे लेकर अशोक गहलोत से सवाल तक नहीं पूछे जाते. बताते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को नेतृत्व की तरफ से कहा गया है कि कांग्रेस घोषणा पत्र में जो 18 वादे किये गये थे, समय सीमा के भीतर पंजाब सरकार उसे पूरा करे.

कितनी अजीब बात है कि सचिन पायलट भी राजस्थान चुनाव के दौरान राहुल गांधी की तरफ से किये गये वादे पूरे करने को लेकर ही अशोक गहलोत सरकार के सामने आवाज उठाते रहते हैं तो चुप करा दिया जाता है. कांग्रेस में रहते ज्योतिरादित्य सिंधिया भी तो तत्कालीन कमलनाथ सरकार से ऐसा ही करने को कह रहे थे.

कितने ताज्जुब की बात है कि अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ उठते सवालों की कीमत सचिन पायलट को चुकानी पड़ रही है - और नवजोत सिद्धू की तरफ से उठाये जाने वाले सवालों का खामियाजा कैप्टन अमरिंदर सिंह को भुगतना पड़ रहा है!

बगावत बर्दाश्त नहीं, बाकी सब मंजूर है

कांग्रेस फिलहाल जिन मुश्किलों से जूझ रही है, फेहरिस्त बड़ी लंबी है. जो पंजाब में हो रहा है वैसा ही माहौल राजस्थान में भी बना हुआ है. कांग्रेस के लिए हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी पार्टी हाल एक जैसा ही है.

जिन वजहों से कांग्रेस 2019 में हरियाणा में सरकार बनाने में चूक गयी, उसी कारण मध्य प्रदेश में बनी बनायी सरकार भी 2020 में गवां दी - और वही वजह असम से भी कांग्रेस मुक्त होने में रही. आज कांग्रेस के ही हिमंता बिस्वा सरमा असम के मुख्यमंत्री बन गये हैं, लेकिन कांग्रेस की वजह से नहीं बल्कि बीजेपी की वजह से.

कांग्रेस में G23 नेताओं के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जा रहा है. जितिन प्रसाद ने तो मौका मिलते ही पीछा छुड़ा लिया - और जम्मू कश्मीर की वजह से गुलाम नबी आजाद की पूछ बनी हुई है वरना बाकियों का जो हाल हो रखा है सब देख ही रहे हैं.

क्या गांधी परिवार पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार को कांग्रेस की सरकार नहीं मानता?

कैप्टन अमरिंदर सिंह तो 2017 से पहले जहां थे, पांच साल तक कांग्रेस की सरकार चलाने के बाद भी उसी मोड़ पर पहुंच गये हैं. असल बात तो ये है कि बीजेपी नेतृत्व जैसे राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेस नेताओं को पाकिस्तान के नाम पर घेर लेता है, कैप्टन अमरिंदर सिंह को छूता तक नहीं, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को तो नवजोत सिंह सिद्धू ही ज्यादा पसंद आते हैं जिनकी हरकतें सिर्फ फजीहत कराती रहती हैं.

ऐसा लगता है, कांग्रेस नेतृत्व को नाना पटोले जैसे नेता ही अच्छे लगते हैं. नाना पटोले की सबसे बड़ी खासियत यही है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेकर बीजेपी में बगावत किये थे - और यही बात राहुल गांधी को भा गयी. 2014 में वो एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल को हरा कर बीजेपी के सांसद बने थे, लेकिन 2019 में कांग्रेस के टिकट पर नितिन गडकरी से हार गये. जब महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार बनी तो कांग्रेस कोटे से विधानसभा में स्पीकर बने और बाद में महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष बना दिये गये.

नाना पटोले जैसी सक्रियता इन दिनों दिखा रहे हैं, लगता तो ऐसा ही है कि वो महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार से कांग्रेस को बाहर करा कर ही मानेंगे. जिस डर की वजह से कांग्रेस नेतृत्व ने महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में शामिल होने का फैसला किया था, अगर नाना पटोले कोई नया कदम उठाते हैं तो फिर से वैसा ही हाल हो सकता है. तब कांग्रेस को डर था कि सरकार में शामिल नहीं हुए तो महाराष्ट्र में पार्टी टूट जाएगी. नाना पटोले के ताजा बयान तो काफी हद तक ऐसे ही संदेश दे रहे हैं.

अगर नाना पटोले को ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार गिरने पर मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं, तो वो हकीकत को जानबूझ कर ना समझने की कोशिश कर रहे हैं - क्या शिवसेना या एनसीपी चुनाव के लिए तैयार हो सकते हैं?

क्या बीजेपी बंगाल की हार के बाद भी महाराष्ट्र में मध्यावधि चुनाव का सामना करना चाहेगी. ऐसा तो बिलकुल भी नहीं लगता. अगर ऐसा नहीं होता तो नया गठबंधन बनेगा, सरकार फिर से बनेगी और कांग्रेस बाहर हो जाएगी - फिर तो राजस्थान और पंजाब की पूरी और महाराष्ट्र की एक तिहाई सत्ता भी हाथ से फिसल जाएगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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