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Updated: 08 जून, 2016 05:12 PM
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मामला मथुरा का हो या बिहार बोर्ड के टॉपर छात्रों का, या फिर नशे की जाल में फंसे पंजाब के युवाओं का - तकरीबन सबकी कहानी एक जैसी ही नजर आती है. अगर कहीं कोई फर्क नजर आता है तो वो सिर्फ इतना कि कहानियों के किरदार बदल जाते हैं.

घर घर की कहानी

पंजाब में ड्रग्स का धंधा और लत अपनी जड़ें इतनी गहराई तक जमा चुके हैं कि बगैर बड़े ऑपरेशन के निजात संभव नहीं दिखती. इस मामले में नेताओं से लेकर अफसरों तक की मिली भगत की खबरें आती रहीं हैं. आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए तो कुमार विश्वास ने एक गीत भी लिखा है - और उस पर भी बवाल हुआ है.

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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि कार्रवाई के नाम पर किस तरह उन्हें पकड़ कर जेल भेजा गया जो नशे के आदी रहे या ड्रग्स की पुड़िया बेचने वाले. रिपोर्ट में एक गुरुद्वारे के प्रधान ने बताया है, "पुलिस उन युवा लोगों पर ध्यान लगाकर बैठी है जो इस नशे की चपेट में आ चुके हैं. उन लोगों को पकड़ना आसान रहता है. बड़ी मछलियां आराम से आजाद घूम रही हैं. उन्होंने इस काले कारनामे में पैसा कमाकर आलीशान मकान बना लिए हैं." रिपोर्ट में पाया गया है कि कई इलाकों में स्थिति ये है कि हर घर से कोई न कोई जेल भेजा गया है.

बिहार के घोटाले

पिछले साल जब एक परीक्षा केंद्र पर खिड़कियों से लटके लोगों की तस्वीर वायरल हुई तो खूब बवाल हुआ. सरकार ने उसे गंभीरता से लिया और लगा कि आगे से ऐसी कोशिशों पर लगाम लग सकेगी. लेकिन आगे तो मामला उससे भी आगे निकल गया.

बिहार बोर्ड के उस टॉपर की क्रिएटिविटी तो आपने आज तक की रिपोर्ट में देखी ही होगी - जब उसने प्लस-टू लेवल पर एक नया सब्जेक्ट इजाद किया - प्रोडिकल साइंस. एक ऐसा सब्जेक्ट जिसमें पकवान बनाने की बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है.

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नीतीश सरकार इस मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए आपराधिक कार्रवाई के आदेश दिये. पुलिस भी टॉपर छात्रों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर हरकत में आ गई.

किसी भी आपराधिक घटना में हर हिस्सेदार अपराधी होता है, लेकिन क्या वही जो सिर्फ सामने नजर आता है? वे जो पर्दे के पीछे काम कर रहे होते हैं? वे जिनके संरक्षण से ऐसी गतिविधियां फलती फूलती हैं.

बिहार की ही तरह यूपी में मथुरा के जवाहर बाग की घटना भी क्या राजनीतिक संरक्षण के बगैर मुमकिन थी क्या?

मथुरा का जिम्मेदार कौन?

जवाहर बाग में सत्याग्रह के नाम पर करोड़ों की जमीन पर कब्जे की जो कहानी सामने आ रही है उसके पात्र बदलते जा रहे हैं. सबसे पहले रामवृक्ष यादव का नाम सामने आया तो सवाल उठा कि आखिर उसे किसका संरक्षण मिला हुआ था.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इस मामले में यूपी सरकार के मंत्री शिवपाल यादव के इस्तीफे की मांग की. शाह ने इसी बहाने समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव को भी खूब खरी खोटी सुनाई.

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इस किरदार के पीछे का किरदार कौन?

वैसे भी मथुरा में पुलिस और प्रशासनिक दफ्तरों के ठीक बीच इतने दिन तक रामवृक्ष यादव का काबिज होना बगैर राजनीतिक संरक्षण के संभव है क्या?

जवाहर बाग को लेकर अब ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि उसका मास्टरमाइंड रामवृक्ष नहीं बल्कि कोई बाबा और तिवारी गैंग है - जो अफसरों की वीडियो कांफ्रेंसिंग से निकल कर आ रही है.

कभी एनआईए की वकील का इल्जाम होता है कि उस पर केस कमजोर करने का दबाव डाला जा रहा है तो कभी चारा घोटाले की फाइलें गायब होने की खबर आती है.

ऐसा क्यों लगता है कि उत्तर से लेकर दक्षिण तक और नीचे से लेकर ऊपर तक हर अपराध का तौर-तरीका एक जैसा ही है - बस देश, काल और परिस्थिति के हिसाब से किरदार बदल जाते हैं.

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