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Updated: 13 सितम्बर, 2016 10:34 PM
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मायावती के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले स्थान पर नजर आ रहे हैं - और उसके बाद ही नंबर आता है मुलायम सिंह, अखिलेश यादव या राहुल गांधी का. मायावती की ये कौन सी स्ट्रैटेजी है? कहीं ये एंटी-पोलराइजेशन का आइडिया तो नहीं है.

एंटी-पोलराइजेशन

एंटी-पोलराइजेशन बोले तो? अक्सर हिंदुत्व के मसले को लेकर बीजेपी पर ध्रुवीकरण के आरोप लगते हैं, एंटी-पोलराइजेशन ठीक उसका उल्टा है.

मायावती जानती हैं कि मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं देने वाले - और दलित तो खफा हैं ही. मायावती की रणनीति है कि इन दोनों का गठजोड़ जितना मजबूत होगा बीजेपी को उतना ही नुकसान होगा. दलित वोट बैंक को अपनी राजनीतिक तिजोरी में रखा मान कर चलने वाली मायावती को 2014 के नतीजों ने हिला कर रख दिया था. कुछ दिनों तक तो वो शांत रहीं, फिर खूब सोच-समझ कर दलित-मुस्लिम गठजोड़ खड़ा करने का फैसला किया - और अब उसी को अमली जामा पहनाने में जुटी हैं. यही दम फैक्टर है जो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग 2.0 वर्जन है.

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एक बात तो साफ है कि हिंदुओं में एकता बहाल करने के लिए आरएसएस समरसता भोज से लेकर समरसता स्थान आजमाता रहा है - लेकिन कोई न कोई ऐसी घटना हो जाती है कि मुहंकी खानी पड़ती है. हाल फिलहाल संघ की बड़ी कोशिश यही रही है कि हिंदुओं में भेदभाव कम हो ताकि घर वापसी जैसी मुहिम की जरूरत ही खत्म हो जाए. दलितों के गुस्से को देखते हुए अमित शाह का कार्यक्रम रद्द हुआ उसके बाद संघ ने समरसता राखी के जरिये डैमेज कंट्रोल की कोशिश की - और मोर्चा संभालने संघ प्रमुख खुद आगरा पहुंचे - जहां उन्होंने बड़बोले नेताओं के हिंदुओं के ज्यादा बच्चा पैदा करने वाले बयानों को औपचारिक तौर पर एनडोर्स किया.

अपनी खास रणनीति के तहत मायावती खुद भी उसी दौरान आगरा पहुंचीं - वो मौजूदा दौर की बीएसपी की पहली रैली थी.

सफाई और गारंटी

आगरा पहुंच कर मायावती ने सबसे पहले सफाई दी कि न तो उन्होंने न ही उनके मेंटोर कांशीराम ने कभी कहा था - 'तिलक तराजू और तलवार...' आगरा के बाद रैलियां करते मायावती आजमगढ़ और इलाहाबाद होते हुए सहारनपुर पहुंचीं. जिस तरह मायावती ने आगरा में दलितों को सफाई दी थी उसी तरह सहारनपुर में मायावती ने दलितों के सामने बीएसपी में जातीय समीकरणों की तस्वीर साफ की. सहारनपुर में मायावती का मुस्लिम वोट बैंक पर खास जोर दिखा - वैसे भी सहारनपुर की सीमा मुजफ्फर नगर से मिलती है जो गाहे बगाहे दंगों के लिए याद दिलाया जाता रहा है.

सहारनपुर में मायावती ने मायावती ने अयोध्या कांड का जोर देकर जिक्र किया - और दंगों की बाकायदा याद दिला कर जख्मों को कुरेद कर ताजा करने की पूरी कोशिश की. ऐसा लग रहा था जैसे मायावती डर पैदा कर भरोसा भी दिलाना चाहती हैं. इस दौरान मायावती ने दलितों के साथ साथ मुस्लिम समुदाय को समझाने के लिए सभी सियासी हथकंडे अपनाये.

मायावती ने रैली में आये लोगों को तरह तरह से समझाने की कोशिश की. मायावती ने समझाया कि जब भी उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुनने की नौबत आएगी वो किसी दलित या मुस्लिम को ही गद्दी सौंपेंगी. इस मुद्दे को भी मायावती ने एक खास अंदाज में उठाया.

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हर एक कानूनी कवच जरूरी होता है...

मायावती ने कहा कि सोशल मीडिया पर चल रहा है कि अगर बीएसपी सत्ता में आई तो सतीश मिश्रा मुख्यमंत्री बनेंगे जो सही नहीं है. "यहां तक कि 2019 में अगर सत्ता समीकरणों के तहत मुझे दिल्ली जाना पड़ा तो भी कोई दलित ही सीएम होगा - राज्य सभा के सदस्य या एमएलसी सीएम नहीं बनेंगे," मायावती ने सफाई दी. फिर बोलीं - अगर मध्य प्रदेश में बीएसपी सरकार बनाती है तो भी सीएम दलित या मुस्लिम ही होगा - और अगर ऐसी ही स्थिति उत्तराखंड में आई तो वहां कोई दलित, क्षत्रीय या कोई मुस्लिम ही सीएम बनेगा.

सतीश मिश्रा के बारे में मायावती ने कहा कि वो वरिष्ठ वकील हैं और उन्हें वो हमेशा इसलिए साथ रखती हैं ताकि कोई कानूनी झंझट आ तो मिश्रा उससे सलटते रहें.

राजनीतिक हलकों में सतीश मिश्रा ही मायावती की सोशल इंजीनियरिंग का मास्टर माइंड माना जाता है. 2011 में विकीलीक्स केबलों में सतीश मिश्रा को ये कहते बताया गया था कि चूंकि मायावती अंग्रेजी में कमजोर हैं और विदेशियों से उनके संबंध न के बराबर है इसलिए वो बीच में उन्हें रखती हैं. विकीलीक्स के हवाले से आई खबरों के मुताबिक मिश्रा ने माना था कि मायावती के भ्रष्टाचार के प्रति झुकाव से वो वाकिफ थे. ये उसी दौर की बात है जब पहली बार पता चला कि एक सैंडल के लिए मायावती लखनऊ से मुंबई चार्टर प्लेन भेज दिया करती थीं.

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मायावती की हर रैली में खासी भीड़ थी. हालांकि, विपक्षी नेताओं ने उसे किराये की भीड़ करार दिया. मायावती को मालूम है कि मुस्लिम समुदाय का वोट उसी को मिलेगा जो उन्हें भरोसा दिलाये कि उसमें बीजेपी को रोकने का पूरा दम है. इसीलिए मायावती लगातार मोदी के खिलाफ हमलावर रुख अख्तियार किये हुए हैं. समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के प्रति नरम रुख की एक वजह ये भी है कि अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो मुस्लिम वोट कहीं उधर न खिसक जाए. गैर-यादव ओबीसी वोटों को लेकर भी मायावती को इसी बात का डर सता रहा होगा.

आजम खां के बयान पर मायावती का बयान भी ऐसा ही इशारा कर रहा है. जब आजम खां ने अंबेडकर को लेकर टिप्पणी की तो मायावती ने सीधे उन्हें कुछ न कह कर मुलायम सिंह को निशाने पर लिया - और दोष उन्हीं पर मढ़ दिया.

जहां तक खुद को भविष्य में परिस्थितियों के प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने की बात है तो मायावती इसके जरिये अपने समर्थकों की हौसलाअफजाई करने की कोशिश कर रही होंगी - क्योंकि मुस्लिम समुदाय को भी पता है कि मौजूदा हालात तो किसी भी एंगल से मायावती को 2019 में दिल्ली पहुंचाते नहीं दिखते - हां, बरास्ता राज्य सभा की बात और है.

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