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Updated: 11 जुलाई, 2021 09:18 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
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मंत्रिमंडल विस्तार के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर का तीन दिवसीय रूस दौरा कोई एक मुद्दा नहीं, बल्कि कई मामलों को सुलझाने में अहम रोल निभा सकता है. यात्रा से एक साथ कई मसले मुकम्मल हो सकते हैं. अव्वल, उनका मॉस्को पहुंचने से पहले बीच में तेहरान रूकना, जहां ईरान के नए राष्टृपति इब्राहिम रईसी से मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बेहद गुप्त और व्यक्तिगत संदेश देना, जिसमें तालिबान से लड़ने की लड़ाई में उनका प्रत्यक्ष रूप से सहयोग की गुजारिश करना. वहीं, यात्रा का दूसरा बड़ा मकसद भारत-रूस के दरम्यान द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाने व क्षेत्रीय और वैश्विक मसलों पर सहयोग को और प्रगाढ़ बनाना होगा. आतंकवाद और कोरोना जैसी महामारी से लड़ने में दोनों देश वैसे साथ हैं ही. इस लड़ाई में और तेज गति लाने का प्रयास होगा. रूस भारत का हमेशा से भरोषेमंद दोस्त रहा है. उनकी मजबूत प्रतिबद्धता का भारत हमेशा कायल रहा है. बहरहाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर की सरकारी यात्रा वैसे रूस के लिए अधिकृत है. पर, इस मध्य उन्होंने ईरान भी जाना मुनासिब समझा.

Jaishankar, External Affairs Minister, Russia, India, Modi Government, Visit, Iranमाना जा रहा है कि केंद्रीय विदेश मंत्री का रूस दौरा भारत को नई बुलंदियों पर ले जाएगा

तेहरान जाने का मतलब नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के जरिए दोबारा से रिश्तों को पटरी पर लाने की पहल हुई. रिश्तों में मिठास वह भी चाहते हैं. इस बात की खुशनुमा तस्वीर उस वक्त देखने को मिली जब भारत के विदेश मंत्री की गर्मजोशी से उनका और उनके विदेश मंत्री जवाद जरीफ और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार द्वारा आवभगत की गई.संभवतः एस जयशंकर पहले ऐसे किसी देश के विदेश मंत्री हैं जो तेहरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मिलने गए.

क्योंकि अमेरिका का शिकंजा अब भी ईरान पर कसा हुआ है. इस लिहाज से किसी नेता का ईरान पहुंचने का मतलब है अमेरिका की नाराजगी झेलना, बावजूद इसके भारत ने साहस दिखाया. ईरान पर से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटाने को लेकर चर्चाएं गर्म हैं.ऐसे में ईरान भी भारत के कदम पर नजर बनाए हुए, उसी नजर से ध्यान हटाने के लिए प्रधानमंत्री का संदेश भारत के विदेश मंत्री पहुंचाने गए है.

संदेश की तस्वीर वैसे साफ है. आतंकवाद से लड़ने और अफगानिस्तान से तालिबानियों को खदेड़ने में दोनों देशों का एक साथ खड़ा होना संदेश का मूल उद्देश्य है. बता दें, ईरान अफगान सरकार और तालिबानियों के मध्य मध्यस्थता कर रहा है. लगातार बैठकें चल रही हैं. ईरानी सरकार का एक प्रतिनिधित्व मंडल इस समय अफगानिस्तान में मौजूद है जो उनकी अगुवाई में तालिबान व अफगान सरकार के बीच समझौता कराने का प्रयास कर रहा है.

लेकिन उसका असर ज्यादा दिखाई नहीं दे रहा. क्योंकि तालिबानी आतंकी अपनी हरकतों को लगातार अंजाम देते जा रहे हैं. तालिबानी आतंकियों ने बीते दो दिनों में अफगान के करीब छह जिलों पर कब्जा कर लिया है. बदगीस प्रांत की राजधानी काला-ए-नव में भी घुस गए हैं और पुलिस मुख्यालय पर कब्जा करके उनके हथियारों को लूट लिया है. सैकड़ों पुलिसकर्मियों को बंधक बनाया हुआ है.

हालांकि अफगानिस्तान के राष्टृपति अशरफ गनी बेशक कहते हों कि तालिबानी आतंकी अपने मंसूबों में सफल नहीं होंगे, लेकिन स्थिति दिनों दिन बिगड़ती जा रही है. कभी-कभार ऐसा भी प्रतीत होता है कि आधुनिक अफगानिस्तान को बनाने में भारत ने जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, वह बेकार जाती दिख रही है. अफगानिस्तान के संसद भवन का आधुनिक विकास भारत द्वारा कराया गया, इसके अलावा कई पुरानी धरोहरों व पयर्टक स्थलों का पुननिर्माण भी हिंदुस्तान के सहयोग से हुआ.

लेकिन तालिबानियों की दोबारा वापसी से सब गुड़गोबर होने को है. तालिबान आतंकियों की हिमाकत से भारत सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री बेहद चिंतित हैं. क्योंकि उनके सफल प्रयासों पर तालिबान लगातार पानी फेरता जा रहा है. जो मध्यस्थता इस समय ईरान अफगान-तालिबान के मध्य कर रहा है, उसमें भारत अपनी बात रखना चाहता है. उसी संदेश को विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा तेहरान पहुंचाया गया है.

अफगानिस्तान में जबसे अमेरिकी सेना हटी है, तभी से माहौल बिगड़ा. उसके बाद से ही वहां चौतरफा हमला हो रहे हैं. एक तरफ तालिबान, दूसरी तरफ डृगन-पाकिस्तान मिलकर खुराफात कर रहे हैं. चीन अफगानिस्तान में लगातार सक्रिय हो रहा है. दरअसल, चीन की योजना वहां बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव का विस्तार करना है. इसको लेकर काबूल और बीजिंग में बातचीत जारी है.

अफगानिस्तान में छिड़ी निर्णायक लड़ाई के बीच रूस ने अफगानिस्तान को बड़ा संबल दिया है. उनकी सीमावर्ती देशों से रूस ने सुरक्षा का वादा किया है. रूस के विदेश मंत्री ने भी एशिया के यहयोगी मुल्कों की सुरक्षा का वादा किया है. अफगानिस्तान के हालात क्यों बिगड़े, दोबारा से तालिबान ने क्यों दस्तक दी?  ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर किसे के पास नहीं है.

दोहा में जब अफगान प्रतिनिधिमंडल और तालिबान के बीच वार्ता हुई तो मामला सुलझता दिखाई पड़ा था. वार्ता में तालिबान का नेतृत्व शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई ने किया था. तब उन्होंने अफगान के पूर्व उपराष्ट्रपति यूनूस कानूनी के समक्ष वादा किया था कि वह पीछे हट जाएंगे और कोई हरकत नहीं करेंगे. लेकिन उसके कुछ महीनों के बाद ही चीन-पाकिस्तान ने फिर से हवा दे दी.

तालिबानियों की दोबारा से दस्तक के पीछे ये दोनों मुल्क अदृश्य भूमिका निभा रहे हैं. उनका मुख्य मकसद भारत के प्रयासों को कमजोर करना मात्र है. क्योंकि भारत की दखल प्रत्यक्ष रूप से खुलेआम अफगान में है. वहां भारत का मान-सम्मान सबसे ज्यादा किया जाता है. बस यही बात इन खुराफातियों का नागवार गुजरती है.

विदेश मंत्री एस जयशंकर रूस की तीन दिवसीय यात्रा में अफगानिस्तान में तालिबान टॉप एजेंडे में है. यही कारण है उनकी मौजूदा यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है. अगर रूस के अलावा एकाध और ताकतवर देश खुलकर तालिबानियों के खिलाफ खड़े हो जाएंगे, तो उनका भागना सुनिश्चित हो जाएगा.

तालिबानी आंतकियों के कमजोर पड़ने से डैगन और पाकिस्तान अपने आप धराशाही जाएंगे. निश्चित रूप से तालिबानियों की दखल शांतिप्रिय एशियाई मुल्कों के लिए उचित नहीं, समय रहते इनका मुकम्मल इलाज खोजना ही होगा. वरना, आने वाले वक्त में बड़ी मुसिबतें खड़ी कर सकते हैं, जिन्हें बाद में सुलझाना किसी भी देश के लिए मुश्किल होगा.

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